राष्ट्र-चिंतन
‘हिन्दुत्व‘ बन गया अमेरिका की प्रेरणा प्रहरी
अमेरिका में भी ‘ हिन्दुत्व ‘ बन गया सत्ता की गारंटी
विष्णुगुप्त
‘ हिन्दुत्व ‘ एक स्वतंत्र विचार प्रवाह है। ‘ हिन्दुत्व का मूल संस्कार और प्रचंड विचारधारा वसुधैव कुटुम्बकम् और ओम शांति है। वसुधैव कुटुम्बकम् और ओम शांति हमारे उपनिषद सहित कई ग्रंथों में लिपिबद्ध है। वसुधैव कुटुम्बकम् का अर्थ धरती ही परिवार है, ओम शांति का अर्थ हिंसा और विकास से मुक्ति है, सदाचार और सह अस्तित्व का भाव है। कहने का स्पष्ट भाव है कि हिन्दुत्व पूरी धरती को अपना परिवार मानता है, इसमें भेदभाव निषेध है, हिंसा निषेध है, शांति, सदभाव और समरसता का सहज और सरल प्रवाह है। हिन्दुत्व किसी विकार, रूढी या फिर अंधविश्वास का गुलाम बनने के लिए प्रेरित नहीं करता है। सभी प्रतीकों और स्थापित विचारों को आधुनिक समय में काल-परिस्थितियों के अनुसार स्वतंत्र आंकलन और विश्लेषण के आधार पर स्वीकार करने की स्वीकृति है, स्वतंत्रता है, इसमें पुरातन विकृतियां, रूढियों और अंधविश्वासों का खारिज करने की सीख भी है। जब कोई संस्कृति और विचारधारा इतनी समृद्धशाली, विवेकशील होगी, उन्नत होगी, क्रांतिकारी होगी तो फिर उस संस्कृति और विचारधारा की स्वतः उन्नति होगी, स्वतः ग्रहण करने की प्रेरणा होगी। आज हम यह निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि इन्ही विशेषताओं को लेकर दुनिया भर में हिन्दुत्व के प्रति जागरूकता बढी हैं, हिन्दुत्व को स्वीकार्य करने की क्रियाएं बढी है, मोक्ष की बात खारिज भी कर दे ंतो भी जीवन की सुखमय प्रक्रिया को आगे बढाने के लिए प्रेरणा दृष्टि मानी जा रही है, शांति और सदभाव के लिए जरूरी माना जा रहा है। ऐसा परिदृश्य दुनिया भर में देखी जा रही है। हिन्दुत्व की यह निधि आगे भी बढती ही जायेगी। ‘ हिन्दुत्व ‘ दुनिया की सबसे पूरानी जीवन शैली की शक्ति रहा है।
‘ हिन्दुत्व ‘ का प्रंचड प्रवाह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में भी स्पष्ट है। हाल के वर्षो में जिस प्रकार से भारत में हिन्दुत्व को चुनावी राजनीति के केन्द्र में विशाल शक्ति के तौर पर खड़ा हुआ देखा गया है उसी तरह से ‘हिन्दुत्व ‘ को अमेरिकी केन्द्रीय राजनीति में भी एक प्रभावकारी शक्ति के केन्द्र में देखा जा रहा है। हिन्दुत्व को भी जीत की गारंटी मानी जा रही है। जब हिन्दुत्व को जीत की गांरटी मान लिया जायेगा तब हिन्दुत्व में विश्वास रखने वालों को अपनी ओर खींचने, लुभाने और हिन्दुत्व के प्रतीक चिन्हों पर समर्थन जताने और उनको लेकर सम्मान दर्शाने की राजनीतिक प्रक्रियाएं भी तेज होंगी।राजनीति प्रक्रियाएं तेज भी हुई हैं। अमेरिका में मुख्यतः दो दलीय राजनीति की उम्मीद होती है। एक रिपब्लिकन और दूसरा डेमोक्रेट। यही दोनों पार्टियों के बीच अमेरिका की केन्द्रीय राजनीति घूमती-फिरती है। वर्तमान में अमेरिका पर रिपब्लिकन की सत्ता है और डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति है। रिपब्लिकन जहां घोर राष्ट्रवादी होते हैं और उनकी सोच भी भारत की भारतीय जनता पार्टी की तरह होती है जबकि डेमोक्रेट पार्टी को समाजवादी संस्कृति के परिचायक माना जाता है जिनपर वामपंथी समर्थक विचारधाराएं शासन करती हैं। ये दोनों विचारधाराओं ने अपनी-अपनी जीत के लिए हिन्दुत्व को प्रभावित करने की पूरी कोशिश की है। रिपब्लिकन उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तो पहले से ही हिन्दुत्व के समर्थक हैं, भारत में नरेन्द्र मोदी के हिन्दुत्ववाद की शक्ति से चमत्कृत है और नरेन्द्र मोदी को अपना मित्र मानने पर गर्व करते हैं। अमेरिका में लगभग एक करोड़ भारतीय हैं जिनमें से अधिकतर हिन्दू हैं। डेमोक्रेट ने भी अमरिकी हिन्दुओं को अपनी ओर करने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प से दो कदम आगे बढ गये। उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार उन्होंने एक भारतीय मूल की महिला को बना दिया जिनका नाम कमला हैरिस है। कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने का सीधा अर्थ अमरिकी हिन्दुओं का वोट हासिल करना है। डेमोक्रेट के इस चुनावी नीति को कुछ लोग भारतीय कार्ड खेलना कहते हैं तो अधिकतर लोग इसे हिन्दू कार्ड के तौर पर देखते हैं।
अमरिकी राष्ट्रपति चुनावों में धर्म का दृष्टिकोण की बात अस्वीकार नहीं हो सकती है। धर्म का दृष्टिकोण की बात सौ प्रतिशत स्वीकार है। धर्म का हस्तक्षेप या फिर प्रभाव पूरी तरह से स्पष्ट और रेखांकित है। अब यहां यह प्रश्न खड़ा हो सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में धर्म के कोन-कोन दृष्टिकोण हैं? कोई एक दृष्टिकोण तो हो नहीं सकता है? धर्म के कई दृष्टिकोण है। इनमें ईसाई, इस्लाम, यहूदी और हिन्दुत्व दृष्टिकोण प्रमुख हैं।
कुछ सालों पहले तक सिर्फ एक दृष्टिकोण था। उस दृष्टिकोण का नाम था ईसाई। यहूदी सत्ता के साथ सहचर थे और सभी सताएं यहूदी को आत्मसात करती थीं। यह सही है कि अमेरिका की सत्ता पर यहूदी की पकड मजबूत होती थी। यहूदी को विश्वसनीय माना जाता था। इजरायल के जन्म और यहूदियों के अस्तित्व के लिए अमेरिका एक प्रहरी के सम्मान में खडा रहा है। इसलिए यहूदी अमेरिका के अभिमान के साथ खड़ा होते रहे हैं। अमेरिका ने एक समय मानवाधिकार के नाम पर इस्लाम को आगे बढने का अवसर दिया। इस्लाम के मानने वालों को अपने यहां फलने-फंुलने की सभी आवश्यक सुविधाएं दी। पर अमेरिकी वल्र्ड ट्रेड संेंटर पर हुए मुस्लिम आतंकवादी हमले के बाद राजनीतिक स्थितियां बदली हैं। अब अमेरिका में मुस्लिमों के खिलाफ राष्ट्रवादी सोच का उदय हुआ है। यह राष्ट्रवादी सोच मुस्लिम आबादी के लिए कोई सकारात्मक नहीं है। यह सोच सही है या गलत? इस पर स्वतंत्र विश्लेषण अपेक्षित है। पिछला राष्ट्रपति चुनाव में मुस्लिम आबादी एक यक्ष प्रश्न थी। खासकर डोनाल्ड ट्रम्प ने मुसलमानों के खिलाफ जनादेश मांगा था। अपने वायदे में डोनाल्ड ट्रम्प ने मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात की थी। इस पर इ्रसाई आबादी चमत्कृत थी। ईसाई राष्ट्रवादियों का सीधा टकराव मुस्लिम सोच के साथ रही है। डोनाल्ड ट्रम्प ने कई देशांें के मुसलमानों को अपने यहां आने पर प्रतिबंध लगा कर ईसाई राष्ट्रवादियों की सोच को तुष्ट किया था। अब यहां यह प्रश्न भी है कि अमेरिका की मुस्लिम आबादी इस राष्ट्रपति चुनाव में किधर है? निःसंदेह मुस्लिम आबादी डोनाल्ड ट्रम्प की ओर झुकाव नहीं रखेंगी। मुस्लिम संवर्ग का दांव समाजवादी डेमोक्रेट पर है जो डेमोक्रेट उनकी मंशा को तुष्ट करते हैं, संरक्षण देते हैं।
‘ हिन्दुत्व ‘ भी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में सफलता की गारंटी क्यों मान लिया गया? क्या अमेरिकी हिन्दुत्व में इतनी राजनीतिक क्षमता है कि वह राष्ट्रपति का चुनाव हरा या जीता सकें? हिन्दुत्प के लोग किसी समर्थन करेंगे, रिपब्लिकन को या फिर डेमोक्रेट को? वास्तव में सबसे बडी शक्ति देशभक्ति है, सह अस्तित्व है। देशभक्ति हिन्दुत्व का सर्वश्रेष्ठ गौरव और जीवन प्रक्रिया है। हिन्दुत्व की विशेषता है कि उसके अनुआयी जिस मिट्टी का वरण करते हैं, जिस मिट्टी पर रहते हैं, उस मिट्टी से प्यार करते हैं, उस मिट्टी पर मर-मिटने की वीरता दिखाते हैं, ये परसंस्कृति हंता कतई नहीं होते है, संरक्षण देने वाली संस्कृति के हंता होने के स्थान पर सहचर बन जाते हैं। सबसे बडी बात यह है कि अमेरिका जाने वाले हिन्दू कोई अनपढ, जाहिल और ंिहंसक प्रवृति के होते नहीं हैं। अमेरिका जाने वाले हिन्दू वैज्ञानिक होते हैं, शैक्षणिक वीर होते हैं, अर्थशास्त्री होेते हैं, प्रशासनिक क्षमता रखने वाले प्रशासक होते हैं, टेक्नोक्रेट होते हैं। कोई भी हिन्दू धर्म मानने वाला वैज्ञानिक, टेक्नोक्रेट,शैक्षणिक वीर, अर्थशास्त्री, प्रशासनिक क्षमता रखने वाले प्रशासक, आदि कभी भी अमेरिकी हितों को नुकसान नही पहुंचाते हैं, अमेरिकी संस्कृति को भी सम्मान देते हैं, अमेरिकी संस्कृति का सहचर बन कर आगे बढते हैं। कई भारतीय मूल के वैज्ञानिकों को अमेरिका में विज्ञान का नोबेल पुरस्कार तक मिल चुका है। विज्ञान, अर्थशास़्त्र सहित अन्य क्षेत्रों मे भारतीयों के योगदान को अमेरिकी लोग प्रेरणा के तौर पर देखते है। भारतीय मूल के लोगों की यह निधि मूल्यवान ही नहीं बल्कि धरोहर के समान है।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में हिन्दुत्व के लिए कोई सीख भी होनी चाहिए? निश्चित तौर पर हिन्दुत्व के लिए एक परीक्षा की घंडी है। अमेरिकी हिन्दुओं के लिए भारतीय हित गौण होना चाहिए, अमेरिकी हित प्रमुख होना चाहिए। यह सही है कि वर्तमान रिपब्लिकन उम्मीदवार और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियां अनुकूल रही है, राहतकारी रही है, इस्लामिक आतंकवाद से राहत दिलाने वाली रही है, मजहब के नाम पर गोलबंदी करने वाले देशों की मानसिकताएं कुचलने वाली रही है। डोनाल्ड ट्रम्प बार-बार भारत और नरेन्द्र मोदी को अपना मित्र और प्रेरणास्रोेत कहते हैं, यह भी सही है कि डोनाल्ड ट्रम्प के शासनकाल में हिन्दुत्व को गौरव मिला, प्रशंसा मिली, संरक्षण मिला। प्रशासकीय कार्य भी हिन्दुत्व भारतीय को जगह मिली। जबकि हर डेमोक्रेटिक सत्ता में भारत के लिए परिस्थितियां प्रतिकुल रही हैं, भारतीय हितों पर छूरी चलती रही है, हंता और आतंकवाद की मानसिकताओं का पोषण होता रहा है। भारत किस प्रकार से आतंकवाद और परसंस्कृति की हिंसक प्रवृतियों को झेलने के लिए बाध्य रहा है, यह भी जगजाहिर है।
फिर भी हिन्दुओं को अमेरिका का राष्ट्रीय दृष्टिकोण और राष्ट्रीय राय के प्रकटिकरण से अलग होना लाभकारी नहीं होगा। अमेरिकी हिन्दुओं को मेरी सीख है कि अमेरिका के राष्ट्रीय दृष्टिकोण और चुनावी प्रकटिकरण की कसौटी पर ही वोट का दृष्टिकोण उन्हें तय करना चाहिए।
संपर्क .....
विष्णुगुप्त
मोबाइल नंबर ... 9315206123
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