Tuesday, October 13, 2020

‘ गेम चेंजर ‘ बनेगी स्वामित्व योजना ?

 


 

     राष्ट्र-चिंतन

‘ गेम चेंजर ‘ बनेगी स्वामित्व योजना ?

        विष्णुगुप्त

                       

                                    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्ती योजनाओं की श्रृखंला में एक और योजना शामिल हो गयी। यह योजना है स्वामित्व योजना। मोदी काल में पहले से ही कई योजनाएं चल रही है जिनमें उज्जवला योजना, स्वच्छ भारत योजना और जन-धन योजना शामिल हैं। इस योजना की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि उनकी अन्य योजनाओं की तरह यह स्वामित्व योजना भी मील का पत्थर साबित होगी और देश में करोड़ों लोगों का अपनी जमीन और घर का स्वामित्व मिलेगा। हर योजना का अर्थ परोपकार होता है, वंचित और खारिज कर दिये गये लोगो को अधिकार देना तथा उन्हें लाभान्वित करना होता है। जाहिर तौर पर इस योजना का अभी अर्थ और लक्ष्य वैसे व्यक्ति को स्वामित्व देने का कार्य करना है जिनके पास जमीन तो, घर तो है पर उस पर उनका कानूनी अधिकार नहीं है।
                                               कहने और देखने में यह स्पष्ट जरूर होता है कि यह योजना वंचित वर्ग को अधिकार देने वाला है, उनकी भविष्य की चिंताओं का समाधान करने वाला है, उन्हें लंबे समय से कानूनी प्रक्रियाओं से उलझने और लड़ाई -झगडे से बचाने का कार्य है पर इस योजना को लागू करने के क्षेत्र में कितनी कठिनाइयां है, कितना दुरूह कार्य है, इस पर अभी तक कोई स्पष्ट राय सामने नहीं आयी है। महत्वपूर्ण योजना लाना और योजना की घोषणा करना ही महत्वपूर्ण नहीं होता है, महत्वपूर्ण तो योजना को ईमानदारी पूर्ण, भष्टचार मुक्त और सहजता के साथ लागू करना होता है। देश में अब तक जितनी भी योजनाएं आयी हे सबके सब में बईमानी हुई, भ्रष्टचार हुआ, आमजन को योजनाओं का लाभ उठाने के रास्ते कठिन बनाये गये, पात्र लोगों वंचित ही रखा गया, अपात्र और पहुंच वाले येन-केन-प्रकारेण योजनाओं का लाभ उठाने में सफल हो गये। दूर-दराज के क्षेत्रों में बैंकों के बईमान कर्मचारियों ने जन-धन का खाता खोलने में रिश्वत खाई थी। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि स्वामित्व योजना भी सहज और भ्रष्टचार मुक्त होगी? ऐसे अपनी किसी भी योजना के पक्ष में प्रशंसा करना और उसे जनकल्याणकारी बताना हर सत्ता का प्रिय कार्य होता है, इसलिए योजनाओं की घोषणा के तुरंत बाद ही इसकी सफलता की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
                                         फिर भी इस योजना को लेकर नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा में कोई हर्ज नहीं है, कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं होनी चाहिए। सत्ता चाहे किसी भी व्यक्ति की है, सत्ता चाहे किसी भी विचारधारा की क्यों न हों, अगर वह कोई कल्याणकारी और वंचित समाज को लाभ-अधिकार देने वाली योजनाओं का श्रीगणेश करती है तो फिर उसका स्वागत किया जाना चाहिए, समर्थन किया जाना चाहिए, यह लोकतंत्र का मूल सिद्धांत होना चाहिए। हम तो कांग्र्रेस राज के सूचना अधिकार का भी उसी तरह से समर्थन करते हैं और हर नागरिक को भी उसी तरह से समर्थन करना चाहिए जिस तरह से हम नरेन्द मोदी के उज्जवला योजना, जन-धन योजना और स्वच्छ भारत यांेजना और अन्य योजनाओं का करते हैं। निश्चित तौर पर सूचना के अधिकार से भ्रष्टचार पीडितांे को न्याय मिला है। अब यहां एक प्रश्न यह उठता है कि स्वामित्व योजना को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा क्यों होनी चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि उन्होंने एक ऐसे प्रश्न का हल करने के लिए आगे आये है जिस प्रश्न की बोझ से करोड़ों लोग दबे हुए थे और पीड़ित थे।
                                               वास्तव में स्वामित्व के अधिकार का प्रश्न हल करने में हमने बहुत ही देरी कर दी है, इस देरी की कीमत कितनी चुकायी गयी है उसका अब तक कोई हिसाब-किताब नहीं है, हजारों नहीं बल्कि लाखों लोगों ने जान देकर कीमत चुकायी है, कानूनी झंगडों में अपनी आजीविका की कमाई भस्म की है। आजादी की प्राप्ति के बाद ही इस प्रश्न का हल खोज लेना चाहिए था। यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण था। आजादी के बाद हमारे जिन शासकों ने भी शासन किया उनके राजनीतिक एजेंडे से यह प्रश्न दूर था। भारत गांवों का देश है, इसीलिए यह कहा जाता है कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। यह भी सही है कि गांवों की जनता शिक्षा से दूर थी, शिक्षा के वंचित होने के कारण गांव के लोग सरकारी कागजों या फिर स्वामित्व के अधिकार के अर्थ से अनभिज्ञ थे। उनकी सोच यह थी कि उन्हें कोई भी उनके घर और उनकी जमीन से वचित नही कर सकता है। जिस जमीन को वह पूर्खेै दर पूर्खे से जोतते-कोड़ते आये है और जिस घर में वे रहते आये हैं उस पर तो उनका परमपरागत अधिकार है और उनके इस अधिकार से कोई भी वंचित नहीं कर सकता है। यह भी सही है कि आज से बीस-तीस साल पूर्व तक गांवों में जमीन की कोई किल्लत नहीं थी, गांव के लोगों के पास जीविका चलाने के लिए प्रर्याप्त भूमि थी, बहुत सारी भूमि परती रह जाती थी। इसलिए जमीन या घर के लिए कोई मारा-मारी नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे विकास की जरूरतें बढी, जनसंख्या बढी। विकास की जरूरतें बढने और जनसंख्या बढने से उसके दुष्परिणाम भी तरह-तरह के सामने आने लगे। विकास के लिए जमीन कम पडने लगी। इसके अलावा खेती की महत्ता भी बढ गयी, परमपरागत खेती की जगह व्यावासायिक खेती ने ले ली। इसलिए जमीन पर कब्जा के लिए कानूनी अहर्ताएं जरूरी हो गयीं।
                                       जमीन पर स्वामित्व के लिए कानूनी अहर्ताएं वैसे लोग ही पूरी कर सकें जो आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर मजबूत थे और जिनकी पहुंच सत्ता तथा प्रशासनिक स्तर पर अति मजबूत थीं। ऐसे सवंर्ग के लोग जैसे-तैसे कर स्वामित्व के कागजत हासिल कर लियें। पर वैसे लोग पीडित बन गये जो स्वामित्व के कागज हासिल नहीं कर सकें। खासकर आदिवासी सवंर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुए। जंगलों में रहने वाले आदिवासी कभी भी सरकारी कागजों के पीछे नहीं भागे। उनका कहना साफ था कि जल, जंगल और जमीन पर उनका परमपरागत अधिकार हैं। यह सही है कि आदिवासियों का पूरा जीवन ही जंगलो पर निर्भर था। वे समूह में रहते थे जहां पर कभी सरकारी कर्मचारी भी नहीं पहुंच पाते थे। जब से जंगलों का राष्ट्रीयकरण हुआ और टाइगर प्रोजेक्ट की शुरूआत हुई तब से आदिवासियों को उनकी पुश्तैनी जमीन से बेदखल कर दिया गयां। जंगलों से उन्हें बाहर खदेड़ने की कोशिश हुई, उनकी पुश्तैनी जमीन को बन क्षेत्र की जमीन घोषित कर दिया गया। आज भी जंगलों के आस पास रहने वाले लाखों आदिवासियों के पास उनकी सम्पत्ति के कागजत नहीं है, उनके पास जमीन भी है और घर भी है पर उसके कानूनी कागजात नहीं है। आदिवासी सवंर्ग स्वामित्व के कागजात के लिए अथक दौड-धूप भी लगाते हैं पर नाकाम ही साबित होते हैं। आदिवासियों के जंगल, जल और जमीन पर अधिकार को लेकर लंबी लडाई भी जारी है। इस पर राजनीतिक बहसें भी होती रहती हैं। पर यह विषय अभी तक वैसे ही है जैसे आजादी के पूर्व मे था। इस स्वामित्व योजना आदिवासियों को कितना लाभ देगी, यह नहीं कहा जा सकता है?
                           स्वामित्व योजना के बडे फायदे भी गिनाये जा रहे हैं। फायदें होंगे भी। जिन लोगों को स्वामित्व कार्ड मिलेगा उन लोगो के लिए जीवन भी आसान हो जायेगा, उन्हें हर जगह वंचित श्रेणी से बाहर रखने वालों पर लगाम लगेगी, सरकारी योजनाओं का लाभ भी आसानी से उठा सकते हैं। खासकर कर्ज के क्षेत्र मे लाभ की उम्मीद से इनकार नही कहा किया जा सकता है। जमीन और धर पर स्वामित्व के कागजात नहीं होने पर बैंक कर्ज देने से इनकार कर देता था। अब बैंक इनकार नहीं कर सकते हैं। कोई भी स्वामित्व कार्डधारी अपना स्वामित्व के कागजात दिखा कर बैंक से कर्ज ले सकता है। जरूरत पडने पर स्वामित्वधारी व्यक्ति अपनी जमीन और घर को बेच भी सकता था। अब तब स्वामित्व कार्ड नहीं होने के कारण जमीन और घर की खरीद विकी नहीं होती थी। सबसे बडी बात यह है कि सरकार को भी राजस्व टैक्स की आमदनी बढेगी।
                                          स्वामित्य योजना का एक खतरा भी है और इस खतरे पर केन्द्रीय सरकार को ध्यान देना चाहिए। स्वामित्व योजना लाभ आतकवादी संगटन और विदेशी घुसपैठी भी उठा सकते हैं। देश के अंदर में आतंकवादी संगठन जगह-जगह पर कब्जा कर बैठे है, खासकर सरकारी भूमि पर आतंकवादी मानसिकता के लोग अवैध कब्जा कर बैठे हुए हैं, इसके अलावा विदेशी घुसपैठिये भी सरकारी जमीन पर कब्जा कर बैठे हुए हैं। दिल्ली, मुबंई और अन्य सभी बडे शहरों के पास विदेशी घुसपैठिये कब्जा जमाये बैठे हैं। इनके पास अवैध तौर पर एक नागरिक के अवैध कागजात भी हैं। आतंकवादी संगठनों और विदेशी घुसपैठियो की मानसिकता इस योजना से पुष्ट न हों, यह व्यवस्था होनी चाहिएं। इस संबंध में योजना से संबंधित दिशानिर्देश भी जारी किया जाना चाहिए।
                                यह योजन ‘ गेम चेंजर ‘ तभी साबित होगी जब यह योजना ईमानदारीपूर्वक लागू होगी, भ्रष्टचार मुक्त लागू होगी और इनकी सरकारी कार्यवाहियां आसान होगी।




संपर्क .....
विष्णुगुप्त
मोबाइल नंबर ...    9315206123




No comments:

Post a Comment