Monday, October 14, 2019

आदर्श व प्रेरक मोदी परिवार



        राष्ट्र-चितन
आदर्श व प्रेरक मोदी परिवार

       विष्णुगुप्त


नरेन्द्र मोदी परिवार से जुड़ी हुई एक प्रेरक, सुखद,आदर्श, घटना और दृष्टांत है, जिसकी उम्मीद अनेकानेकों को ही नही सकती है। घटना 2012 के गुजरात विधान सभा के चुनाव के समय की है। मैं उस घटना का साक्षात किया था। तब मैं गुजरात विधान सभा चुनाव की रिपोर्टिंग करने गुजरात गया था। नरेन्द्र मोदी के विधान सभा चुनाव क्षेत्र मणिनगर की घटना है। मणिनगर विधान सभा के भाजपा कार्यालय के सामने रोड पर एक व्यकित अति साधारण वेश-भूषा में खडे थे, वे आटोवालों को कहीं जाने के लिए हाथ दे रहे थे। उसी समय प्रसिद्ध व चर्चित समाजवादी नेता राजनारायण जिन्होंने इन्दिरा गांधी को चुनाव में हराने का पराक्रम दिखाया था के शिष्य और समाजवादी नेता क्रांति प्रकाश मुझे आवाज देते हैं, कहते है कि इन्हें पहचानिये ये कौन है? शाम का समय था , थोड़ा अंधेरा भी हो चुका था, इसलिए मैं उन्हें पहचान नहीं सका, फिर क्रांति प्रकाश बोलते हैं कि ये मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के भाई हैं, विश्वास ही नहीं हुआ। पर बात तो सच्ची थी। हम दोनों उनके पास पहुंचे और पूछे कि आपको जाना कहां हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि घर जाना है, फिर हमलोगों ने पूछा कि आपके पास गाडी नहीं है, उन्होंने सादगीपूर्ण जवाब दिया कि उनके पास धन कहां है जो गाडी खरीदे और गाडी की जरूरत भी नहीं है। उनके इस जवाब को सुनकर हम दंग रह गये, हम नेताओं और वह भी सत्ता में बैठे नेताओ के परिजनों की ठसक, अंहकार, सत्ता का दुरूपयोग और सरकारी धन की लूट करते हुए देखा सुना है, हम लोगों की मानसिकताएं भी कुछ ऐसी विकसित हो गयी है कि हम लोग उसी को बडा नेता मानते है या फिर बडा होने का अहसास करते हैं जिनकी जिंदगी ठसक भरी होती है, जिसकी जिंदगी और दिनचर्या में अहंकार भरा होता है, जिसकी जिंदगी सत्ता के दुरूपयोग से चलती फिरती है, जिसकी जिंदगी कानूनों को तोडने और कानूनो को निरर्थक बना कर लाभार्थी बनने से चलती है, जिसकी जिंदगी सरकारी धन की लूट से गुलजार होती है। बहुतायत की जिंदगी और मानसिकता में सादगीपूर्ण जिंदगी, निष्पक्ष और ईमानदार व्यक्ति कही से भी स्वीकार ही नही होते है, बल्कि इस संस्कृकि के लोगों को नकरात्मक या फिर पागल घोषित कर देते हैं।
                      अभी-अभी फिर मोदी परिवार की एक ओर आदर्श व प्रेरक घटना से पूरा देश अवगत हुआ है। यह घटना उस दिल्ली में घटी जहां पर खुद नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के पद पर बैठे हैं। नरेन्द्र मोदी के अपने भाई प्रहलाद मोदी की पुत्री दमयंत्री के साथ पर्स लूट की घटना होती है। वह प्रधानमंत्री की भतीजी होने जैसा कोई भी हंगामा खडी नहीं करती है, कोई हायतौबा नहीं मचाती है। साधारण नागरिक की हैसियत से थाना पहुचती है और अपनी एफआइआर दर्ज कराती है। वह यह भी नहीं कहती है कि उनके चाचा नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। जब पुलिस वाले दमयंत्री का पता एफआइआर में देखते है तो तब पुलिस और मीडिया में हडकम्प मच जाता है। थोडे समय में ही पर्स लुटेरे पकडे जाते हैं, रूपये और जरूरी कागजात वापस मिल जाते हैं। आदर्श और प्रेरक वाली बात इसके आगे हैं। दमयंत्री अमृतसर से दिल्ली आई थी। वह कोई सरकारी गेस्ट हाउस या फाइव स्टार होटल में भी नहीं ठहरी थी, वह एक गुजराती धर्मशाला में ठहरी थी और सार्वजनिक वाहन का प्रयोग की थी। धर्मशाला में ठहरने का अर्थ क्या होता है, धर्मशाला में कौन लोग ठहरते हैं? यह कौन नहीं जानता है? धर्मशाला में कोई साधन सम्पन्न व्यक्ति नहीं ठहरते हैं, धर्मशाला में कोई अंबानी-अडानी संस्कृति के लोग नहीं ठहरते हैं, धर्मशाला में कोई विधायक-सांसद और उनके परिवार नहीं ठहरते हैं, धर्मशाला में कोई मंत्री या उनका परिवार नहीं ठहरता है, धर्मशाला में कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का परिवार नहीं ठहरता है, ऐसे लोग तो फाइव स्टार होटलों के सहचर होते हैं या फिर ऐसे लोग सरकारी संस्थानों के एयर कडिश्न संस्कृति के गेस्ट हाउसों में ठहरने के सहचर होते हैं। धर्मशाला मे तो सांधन विहीन और गरीब संस्कृति के लोग ठहरते हैं जो किसी तरह अपनी जिंदगी सक्रिय रखते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री भतीजी दमयंती ने धर्मशाला में ठहर कर और सार्वजनिक परिवहन का सहचर बन कर जो सीख दी है वह प्रेरक है, एक सीख है और आदर्श स्थिति है।
                             नरेन्द्र मोदी की मां और पत्नी का यहां पर वर्णण न करना बईमानी होगी। हालांकि अपनी पत्नी को लेकर नरेन्द्र मोदी सहिष्णंुता नहीं रखते हैं, इस कसौटी पर नरेन्द्र मोदी हमेशा आलोचना के शिकार रहे हैं पर नरेन्द्र मोदी की पत्नी जशोदा बेन का जीवन और नरेन्द्र मोदी के प्रति सहिष्णुता,त्याग की चरम स्थिति है। जशोदा बेन अभी भी कानूनी तौर पर नरेन्द्र मोदी की पत्नी हैं। कानूनी तौर पर नरेन्द्र मोदी की पत्नी होने के कारण जशोदा बेन कई सरकारी सुविधाओं की हकदार हैं, उन्हें कई छूट भी मिली हुई है, उन्हें हाई लेबल की सुरक्षा निहित है। पर यह जानकार हर्ष होता है, यह जानकार सीख मिलती है, यह जानकर आदर्श स्थिति खडी होती है कि जशोदाबेन ने कोई सरकारी सुविधा नहीं ली है, कोई छूट हासिल नहीं की है या फिर सरकारी छूट के लिए कोई इच्छा कभी भी व्यक्त नहीं की है। सबसे बडी बात यह है कि जशोदाबेन को हाई लेबल की सुरक्षा भी नहीं चाहिए। जशोदा बेन एक शिक्षिका थी। सेवा निवृति के बाद मिलने वाले पेंशन पर ही अपनी जिंदगी सक्रिय रखी है। विरोधी लोगों ने खूब भडकाने की कोशिश की थी, विरोधी लोगों ने खूब मोहरा बनाने और लालच देने की कोशिश की थी पर जशोदा बेन कभी भी नरेन्द्र मोदी के लिए असहिष्णुता नहीं बनी। नरेन्द्र मोदी की माता जब टूटे हुए चश्मे में रस्सी बांध कर पहनती है, पैसे निकालने के लिए बैक की लाइन में खडी होती है तो यह देख कर हर कोई को गर्व होता है, वह अपने प्रधानमंत्री बेटे पर कभी भी यह दबाव नहीं डालती कि वह उनके अन्य बेटों के लिए कुछ करें जो साधारण जिंदगी जीने के संकट राह पर खडे हैं। नरेन्द्र मोदी के भाई, उनकी बहने भी कभी ऐसा कोई कार्य नही करते हैं जिससे नरेन्द मोदी की छवि पर कोई आंच आये या फिर सत्ता का दुरूपयोग का आरोप लगे। यह सुखद स्थिति नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से निर्मित नहीं हुई है। कहने वाले कहते हैं कि यह आदर्श, सुखद, प्रेरक लक्ष्मण रेखा नरेन्द्र मोदी उसी दिन छीच दी थी जिस दिन नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे।
                         नरेन्द्र मोदी परिवार का कोई सदस्य राजनीति में है क्या? क्या नरेन्द्र मोदी ने अपने किसी परिजनों को राजनीति में आगे किया है? इसका उत्तर नहीं ही हो सकता है। इसकी उलट स्थिति देख लीजिये। भारतीय राजनीति में जब कोई बडा नेता बनता है तब वह वंशवादी परिवार खडा कर लेता है। उदाहरण कोई एक नहीं है बल्कि अनेकानेक है। जवाहर लाल नेहरू से लेकर लालू, मुलायम, पासवान, मायावती, चैटाला, हुडा, करूणानिधि, बादल, नायडू आदि वंशवादी राजनीति किस कदर लोकतंत्र की मुंह चिढा रही हैं, यह कौन नहीं जानता है? वंशवादी परिवार के कारण लोकतंत्र हमारा कितना कमजोर हुआ है, यह भी कौन नहीं जानता है। वंशवादी परिवार की उभरी और स्थापित हुई राजनीति के कारण आम आदमी की राजनीति में प्रवेश और पहुंच लगातार कमजोर हो रही है। आज स्थिति यह है कि सांसद का बेटा ही सांसद बन रहा है, विधायक का बेटा ही विधायक बन रहा है। दिल्ली में बाप-दादे के नाम पर ऐसे राजनीतिज्ञ लोग भर पडे हैं जो बडी-बडी कोठियां कब्जा रखी है, बडी-बडी छूट हासिल कर रखी हैं, विशेषाधिकार हासिल कर रखे हैं। कोई एसपीजी की सुरक्षा ले रखी है तो कोई जेड प्लस की सुरक्षा ले रखी हैं। जिन पैसों से गरीबों का विकास किया जाना चाहिए, गरीब क्षेत्रों की उन्नति होनी चाहिए उन पैसों से वंशवादी परिजनों की सुरक्षा दी जाती है। ऐसे कोई परिवार खुद विशेषताएं, छूट और सुरक्षा छोडने के लिए तैयार नहीं हैं। यह भी सही है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ऐसे वंशवादी परिवार राजनीतिक तौर तेजी के साथ सीमित हो रहे हैं, हाशिये पर खडे हो रहे हैं। ऐसे वंशवादी राजनीति परिवारों पर नरेन्द मोदी का परिवार लोकतंत्र की सही और प्रेरक राह दिखा रहा है।
                 देश की आम जनता को ऐसी सुखद, प्रेरक, आदर्श स्थिति पर गर्व करना चाहिए। अगर देश की जनता ऐसे आदर्श, सुखद, प्रेरक परिवार पर गर्व नहीं करेगी तो फिर देश की राजनीति पर लूटेरे, वंशवादी, सरकारी सुविधा खोर लोगों का कब्जा कैसे समाप्त होगा। हमें अगर लोकतंत्र को मजबूत करना है और आम आदमी की तकदीर बनानी है तो नरेन्द्र मोदी जैसे आदर्श, प्रेरक और सुखद स्थिति वाले राजनीतिक परिवारों पर हमें गर्व करना ही नहीं चाहिए बल्कि अपने जीवन में भी सीख लेनी चाहिए।



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विष्णुगुप्त
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Tuesday, October 1, 2019

घृणित और विखंडन युक्त इस्लामिक हथकंडा


राष्ट्र-चितन
घृणित और विखंडन युक्त इस्लामिक हथकंडा


इस्लाम के प्रति घृणा बढाने वाला इमरान खान का हथकंडा, फिर गैर मुस्लिम देशों के मुसलमानों की राष्ट्रीयता क्या होगी ?

       विष्णुगुप्त



इस्लामिक शासकों द्वारा इस्लाम का डर-भय दिखाना और इस्लाम को हथकंडा के तौर पर प्रस्तुत करना कोई नयी बात नहीं है। खासकर गैर इस्लामिक देशों और गैर इस्लामिक जनता को डराने-धमकाने के लिए इस्लाम के आधार पर मुस्लिम समुदाय की गोलबंदी की बात होती रहती है, कभी इस्लामिक देशों के शासक तो कभी इस्लामिक आतंकवादी संगठन ऐसी बात करते रहते हैं। कभी मिश्र, सीरिया जैसे मुस्लिम देश ने इस्राइल के खिलाफ मुसलमानों की गोलबंदी की बात की थी पर ये देश खुद इस्राइल से युद्ध में हार कर समझौते के लिए बाध्य हुए, कभी ईरान और मलेशिया जैसे मुस्लिम देश भी इस्राइल सहित अन्य काफिर देशों के खिलाफ मुसलमानों की एकता और गोलबंदी की बात की थी। पर उनकी बात भी अनसुनी हो गयी, इन सब की अपील पर कोई खतरनाक प्रक्रिया सामने नहीं आयी, इन सबों की दुनिया में जगहंसाई ही हुई। गैर मुस्लिम आबादी के बीच इनकी यह सोच एक कट्टरवादी और घृणात्मक की कसौटी पर देखी गयी। निश्चित तौर पर ऐसी अपील और ऐसी मजहबी प्रक्रिया से इस्लाम के प्रति कोई सहानुभूति सामने नहीं आती है बल्कि यह कहना जरूरी हो जाता है कि ऐसी अपील और ऐसी मजहबी प्रकिया से इस्लाम की ही छवि खराब होती है, इस्लाम के प्रति असहिष्णुता ही सामने आती है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि यूरोपीय  और अमेरिकी उदार समाज में इस्लाम के प्रति घृणा और विखंडन ही उत्पन्न होती है।
                         अभी-अभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने मुस्लिम शासकों की उर्पयुक्त हथकंडे और घृणात्मक मजहबी प्रक्रिया को आगे बढाया है, एक हथकंडे के तौर पर प्रस्तुत किया है। इसके संकेत और निष्कर्ष बहुत ही खतरनाक है। जाहिर तौर पर इमरान भारत को डराने-धमकाने के लिए हथकंडे के तौर पर इस्लाम को प्रस्तुत किया था, परमाणु युद्ध का खतरा दिखाया था, जेहाद को सही ठहराया था, पूरी दुनिया के मुस्लिम समुदाय को संगठित होकर खडा होने के लिए उकसाया था। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि इमरान खान के ऐसे हथकंडों से डर कौन रहा है, इमरान खान के ऐसे हथकंडों से क्या भारत डरने वाला है, ऐसे हथकंडों से दुनिया के अन्य देश भी सहानुभूति प्रकट करने के लिए सामने आयेंगे, क्या ऐसे हथकंडों से कश्मीर में जेहाद और आतंकवाद का नया दौर शुरू हो सकता है? क्या ऐसे हथकंडों का प्रभाव दुनिया के अन्य मुस्लिम देशों पर पडेगा, क्या ऐसे हथकंडो से दुनिया के अन्य मुस्लिम देश अपने हित छोड कर पाकिस्तान के हित रक्षक होने के लिए तैयार होंगे, क्या ऐसे हथकंडे से दुनिया के अन्य समुदाय के बीच कोई सकरात्मक सहानुभूति उत्पन्न होगी?
                           इन सभी प्रश्नों पर इमरान खान या फिर उनके देश की कूटनीति पहले या बाद में आत्म विश्लेषण नहीं किये होंगे। अगर इमरान खान और उनके देश की कूटनीति इन सभी प्रश्नों के आत्म विश्लेषण किये होते तो ये कभी भी इस्लाम का भय नहीं दिखाये होते, कश्मीर को इस्लाम से न जोडकर मानवता और मानवाधिकार से जोडे हुए होते। निश्चित तौर पर कश्मीर की वर्तमान राजनीतिक घटना को मानवता और मानवाधिकार के साथ जोडे हुए होते तो दुनिया के नियामकों और दुनिया के जनमत के बीच इस प्रश्न पर सहानुभूति प्रकट होती। पर यह कहना सही होगा कि इमरान खान ने यह अवसर खो दिया। इमरान खान कोई दक्ष राजनीतिज्ञ नही है, कोई दक्ष कूटनीतिकार नही है, इमरान खान मूलत’ क्रिकेटर हैं। कोई पक्के राजनीतिज्ञ ही इस मर्म को समझ सकता है। पाकिस्तान के लिए दुर्भाग्य यह है कि उनकी सत्ता पर विराजमान शख्त पक्के राजनीतिज्ञ और कूटनीतिकार नहीं हैं।
                    इमरान खान ने जिस पूरी मुस्लिम आबादी की जेहाद की बात की है वह भी एक प्रहसन है। पाकिस्तान के पक्ष में पूरी मुस्लिम आबादी उतर जायेगी, क्या यह संभव है? क्या पाकिस्तान को पूरी दुनिया की मुस्लिम समुदाय अपना खलीफा मानती है? पूरी मुस्लिम आबादी भी एक जुट कैसे होगी? मजहबी इस्लामिक देश में रहने वाली मुस्लिम आबादी एकजुट हो सकती है पर गैर मुस्लिम देश में रहने वाली मुस्लिम आबादी भी साथ जुड कर जेहाद क्यों और कैसे कर सकती है। राष्ट्रीयता का प्रश्न उठेगा? फिर भारत में रहने वाली मुस्लिम आबादी, अमेरिका में रहने वाली मुस्लिम आबादी या फिर यूरोप में रहने वाली मुस्लिम आबादी, जापान, कबोडिया जैसे बौद्ध देश में रहने वाली मुस्लिम आबादी की राष्ट्रीयता कौन सी होगी? क्या इनकी राष्ट्रीयता इस्लाम होगी? अगर इनकी राष्ट्रीयता इस्लाम होगी तो फिर ये संबंधित देश के नागरिक कैसे होंगे? इतना ही नहीं बल्कि ये मुस्लिम आबादी जिनकी राष्ट्रीयता इस्लाम होगी तो फिर संबंधित देश की नागरिक सुविधाओं का उपयोग मुस्लिम आबादी कैसे करेगी? क्या ऐसे हथकंडों से इनकी छवि खराब नहीं होगी, गैर मुस्लिम आबादी इनकी नागरिक सुविधाएं लुटने और इन्हें इस्लाम की राष्ट्रीयता के आधार पर इस्लामिक देशों में भेजने की मांग क्यो नहीं करेंगे? खास कर अमेरिका और यूरोप में मुसलमानो की राष्ट्रीयता पर प्रश्न खडा होता है, इस्लामिक राष्ट्रीयता पर राजनीति की लक्ष्मण रेखा भी खिची जाती है। कहा यह जाता है कि अमेरिकी, यूरोपीय या फिर जापानी जैसी राष्ट्रीयता से इन्हें दिक्तत है या फिर अस्वीकार है तो इन्हें इस्लामिक राष्ट्रीयता वाले देश मे ही चला जाना चाहिए। इसी प्रश्न पर अमेरिका में मुस्लिम और ईसाइयों के बीच लक्ष्मण रेखा खिची गयी है। खुद डोनाल्ड ट्रम्प कोई एक बार नहीं बल्कि कई बार कह चुके हैं कि इस्लामिक राष्ट्रीयता की बात करने वाले मुसलमानों को अमेरिकी कानून का पाठ पढाया जायेगा और उन्हें उनके मूल देश में भेज दिया जायेगा। अमेरिका में डोनल्ड ट्रम्प के शासन के दौरान इस प्रश्न पर बडी-बडी राजनीति, प्रशासनिक और सुरक्षात्मक कार्यवाहियां भी हुई है। डोनाल्ड ट्रम्प ने इसी दृष्टिकोण से कई देशों की मुस्लिम आबादी के अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। मुस्लिम आबादी को वीजा देने मे अमेरिकी प्रशासन असहिष्णुता ही बरतता रहा है। यह सब इमरान खान जैसी सोच के दुष्परिणाम है।
                          अमेरिका की एक कूटनीतिज्ञ ने इमरान खान को आईना दिखाया है। अमेरिकी कूटनीतिज्ञ ने कहा है कि यह सब इमरान खान का एक स्वार्थ है। कश्मीर में मुसलमानों की चिंता तो उसे है पर चीन में मुसलमानों के उत्पीडन और संहार के प्रति इमरान खान की जबान क्यों नहीं खुलती है। चीन में कोई एक नहीं बल्कि कई लाख मुस्लिम चीनी जेलों या फिर चीनी यातना गृहों में कैद है। चीन के झिगजियाग प्रदेश मुस्लिम बहुल है। चीन के झिंगजियांग प्रदेश में अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग को लेकर जेहाद और आतंकवाद जारी है। मुस्लिम जेहाद और आतंकवाद को कुचलने के लिए चीन ने हिंसक और खौफनाक सैनिक नीति अपना रखी है। मजहबी कार्य से मनाही है। पर पाकिस्तान कभी भी चीने शिंगजियांग प्रदेश में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के मानवाधिकार की बात नहीं करता है। इमरान खान भी चीन के खिलाफ बोलता नहीं है। इमरान खान की मुस्लिम कसौटी पर दोहरी नीति है और इमरान खान की इस दोहरी नीति से दुनिया कैसे अनभिज्ञ होगी।
                           दुनिया का समर्थन पाकिस्तान को क्यों नहीं मिल रहा है? मुस्लिम दुनिया का भी पूर्ण समर्थन पाकिस्तान के साथ नहीं है। सिर्फ मलेशिया और तुर्की जैसे एक्के-दुक्के देश ही पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं। शेष मुस्लिम देश अपने-अपने हितों के साथ खडे हैं। दुनिया के सामने पाकिस्तान की कैसी छवि है, यह कौन नहीं जानता है? दुनिया के सामने पाकिस्तान की छवि एक आतंकवादी देश की है, दुनिया के सामने पाकिस्तान की छवि एक बर्बर इस्लामिक देश की है, दुनिया के सामने पाकिस्तान की छवि शांति के दुश्मन के रूप में है। सच यही है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद और जेहाद का आउटसोर्सिंग कर दुनिया की शांति को हिंसा के रूप में तब्दील किया है, दुनिया की शांति में विष घोला है। पाकिस्तान के पोषित और प्रायोजित आतंकवाद और जेहाद से दुनिया में लाखों लोग मारे गये हैं।
                                       नये दौर का नया भारत है। नये दौर के नये भारत में पाकिस्तान का मुस्लिम हथकंडा कोई कारगर नहीं होगा। कश्मीर भारत का आतंरिक प्रश्न है। इमरान खान की मुस्लिम हथकंडे की चुनौती का प्रबंधन करने की शक्ति भारत के पास है। भारत ने कश्मीर के प्रशन का मुस्लिमकरण नहीं होने दिया, यह भारत का पराकर्म है। अब इमरान खान ही नहीं बल्कि पाकिस्तान जमात को भारत के पराकर्म को स्वीकार कर लेना चाहिए। इमरान खान ने दुनिया के मुसलमानों की एकता और जेहाद के जेहाद के लिए उकसा कर इस्लाम की ही छवि गिरायी है।


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