Wednesday, July 29, 2020

चीन और पाकिस्तान के खिलाफ हमारा अचूक हथियार बनेगा राफेल

  राष्ट्र-चिंतन

दुश्मनों के लिए काल है राफेल


चीन और पाकिस्तान के खिलाफ हमारा अचूक हथियार बनेगा राफेल
       
            

                   विष्णुगुप्त
 
     

राफेल की कई विशेषताएं हैं जो दुश्मनों में भय पैदा करती है, समय पर कहर भी बरपा सकती हैऔर हमारी सीमा की सुरक्षा की गांरटी भी है। पहली विशेषता यह है कि दुनिया के सबसे घातक मिसाइलों से लैस है और सेमी स्टील्थ तकनीक से भी लैस है। दूसरी विशेषता यह है कि 24500 किलोग्राम का भार आसानी से उठा कर ले जा सकता है। तीसरी विशेषता इसकी यह है कि मात्र एक मिनट में ही 60 हजार फीट की उंचाई पर जा सकता है। चैथी विशेषता यह है कि हवा से जमीन पर मार करने के लिए स्केल्प मिसाइल से लैस है। पाचवी विशेषता 17000 हजार किलोग्राम फयूल क्षमता की है। छठी विशेषता यह है कि इसमें हवा से हवा मार करने वाली मीटिवोर मिसाइल लगी है। सातवी विशेषता यह है कि इसकी अधिकतम 2222 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड है। आठवी विशेषता इसकी यह है कि राफेल परमाणु हथियारों को सुरक्षित ले जाने की क्षमता रखता है। नौवीं विशेषता इसकी यह है कि इसमें इजरायल का हेलमेट माउंट डिस्प्ले लगा हुआ है। इसकी दसवी विशेषता यह है कि यह किसी भी मौसम मे उड़ान भरने और अपने निशाने को हिट करने की क्षमता रखता है।
                                देश को पांच राफेल विमान मिल गये। फंास से चलकर अम्बाला नौसेना के अडडंे पर राफेल विमान पहुंच गये। भारतीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से राफेल की शक्ति बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने और दुश्मन देशों के नापाक इरादों तथा कारस्तानियों को विफल करने की गारंटी भी देता है। पाकिस्तान ही नहीं बल्कि चीन भी राफेल की इस शक्ति के सामने भयभीत है और भारत की इस शक्ति को तोड खोजने के लिए परेश्शान है। राफेल की शक्ति जुड़ने से नरेन्द्र मोदी की छवि और पराक्रम में भी वृद्धि हुई है। नरेन्द मोदी अपने पहले कार्यकाल से ही राफेल को लेकर न केवल गंभीर थे बल्कि राफेल को भारतीय सेना मे शामिल कराने को लेकर सक्रिय रहे हैं। निश्चित तौर पर राफेल की शक्ति हासिल करना भारत की बहुत बडी कूटनीतिक जीत के साथ ही साथ सामरिक जीत भी है जो दुश्मन देशों को भयभीत करने और उनके द्वारा भारत को कमजोर आंकने की मानसिकता पर प्रहार करती है।
                            दुश्मन देश, दुश्मन शक्तियां वर्षो से राफेल हासिल करने के क्षेत्र में रोड़ा बनी हुई थी, वे नहीं चाहती थी कि भारत राफेल जैसा कोई लडाकू विमान हासिल करे जो प्रहारक क्षमता रखता हो और उसकी गिनती अमेरिका-सोवियत संघ के लड़ाकू विमानो से उपर होती है। राफेल डील को निलंबित रखने के लिए बहुत सारी अड़चने डाली गयी, राफेल लडाकू विमान के खिलाफ झूठ का सहारा लिया गया, कुछ धमकियां भी पिलायी गयी। झूठ यह परोसा गया था कि राफेल लडाकू विमान भारत की सुरक्षा चुनौतियो को पूरा नहीं करता है, राफेल की क्षमता बहुत ही कमजोर है। राफेल लडाकू विमान भारत के गर्म मौसम में अपनी क्षमता का अधिकतम परिणाम नहीं दे सकता है। कुछ दुश्मन देशों के पैसों पर पलने वाले बुद्धिजीवियों ने अफवाह फैलायी थी कि राफेल खरीद करने पर चीन जैसे देश नाराज हो जायंेंगे और सीमा पर युद्ध की स्थिति उत्पन् कर देंगा। ऐसी अफवाहों और धमकियां अपना रंग दिखायी थी, अपने प्रभाव से शासक वर्ग को भी भयभीत की थी। मनमोहन सिंह की 10 सालों के शासन काल के दौरान राफेल डील को निलंबित कर रखा गया। मनमोहन सिंह की सरकार तर्क देती थी कि सर्वश्रेष्ठ लडाकू विमानों की खोज के कारण राफेल का डील निलंबित है और राफेल को खरीदने के लिए पैसे का अभाव है।
                         पर असली कारण चीन की धमकी और दबाव था। चीन राफेल खरीद को लेकर मनमोहन सरकार की गर्दन पकड़ कर बैठी थी। जबकि चीन के द्वारा लगातार खडी की जा रही सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए राफेल जैसा लडाकू विमान की खरीद जरूरी था। भारतीय सेना लगातार कहती रही कि सुरक्षा चुनौतियों को ध्यान रखते हुए राफेल जैसे विमानों की तुरंत खरीद जरूरी है। ध्यान देना यहां यह जरूरी है कि समझौते होने के बाद राफेल जैसे लडाकू विमान तुरंत-फुरंत नहीं मिलते हैं, कमसे कम पांच साल का समय लगता है। यह देरी भारतीय नौ सेना को चिंता में डाल रखी थी।
                           चीन और पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों की सुरक्षा चुनौतियो से जुझने के लिए भारतीय सुरक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए राफेल जैसे लडाकू विमानों की खरीद जरूरी थी। नरेन्द्र मोदी जब सत्ता में आये तो उनके सामने यह एक यक्ष प्रश्न था। चीन और पाकिस्तान बार-बार भारतीय सीमा का उल्लंघन और भारतीय सेना का संहार कर रहे थे। इसके अलावा अंतर्राष्टीय स्तर पर भी कूटनीतिक तौर पर भारत को ब्लैकमेल कर रहे थे। भारत जब तक सुरक्षा के दृष्टिकोण पर कमजोर रहेगा तब तक चीन की ब्लैकमैंलिंग भी जोर पर रहेगी, चीन बार-बार अंतर्राष्टीय स्तर पर भारत को अपमानित करता रहेगा और भारत के जवाब देने पर सीमा पर युद्ध की स्थिति खडी कर भयभीत करता रहेगा। इसका एक उदाहरण भी जानना जरूरी है। भारत और अमरिकी सैनिकों के बीच एक सैनिक अभ्यास का कार्यक्रम निश्चित था। चीन को सैनिक अभ्यास स्वीकार नहीं हुआ था और चीन की धमकी के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने अमेरिका के साथ सैनिक अभ्यास का कार्यक्रम रद कर दिया था। नरेन्द्र मोदी ने सत्ता मंें आने के पहले विदेशी दुश्मन देशों से आंखों में आंख डाल कर बात करने की नीति उठायी थी। सत्ता में आने के साथ ही साथ नरेन्द्र मोदी ने यह तय किया था कि चीन से रोज-रोज डरने से अच्छा है उसका सामना किया जाये और उसे जवाब उसकी भाषा में ही दिया जाना चाहिएं। इसके लिए सबसे जरूरी अपनी सुरक्षा की चुनौतियों को पूरा करना यानी कि अपनी सेना को मजबूत करना। हमारी सेना पहले से जी जर्जर थीं। मनमोहन सिंह सरकार ने दस सालों तक भारतीय सेना की जरूरत को पूरी करने में नाकाम रही थी और राफेल जैसे विमानों की खरीद करने मे भी विफल रही थी। नरेन्द्र मोदी ने अड़चनों को दूर करने में कामयाब हुए, अंतर्राष्टीय कूटनीति का प्रबंधन किया, अमेरिका की डर और धमकी का भी प्रबंधन किया। इसके उपरांत राफेल लडाकू विमान खरीदने का पराक्रम को सच कर दिखाया।
                               बोफोर्स की तरह राफेल सत्ता खोर नहीं बना। बोफोर्स राजीव गांधी की सत्ता खायी थी, वीपी सिंह की सत्ता बनायी  थी। भारत की विपक्षी पार्टियां राफेल को बोफार्स बनाने की बहुत बडी कोशिश की थीं। कांग्रेस, कम्युनिस्ट और अन्य राजनीतिक पार्टियां कहती थी कि नरेन्द्र मोदी के लिए सफेल बोफोर्स साबित होगा। राहुल गांधी तो राफेल खरीद पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर चैकीदार चोर है का नारा दिया था। राहुल गांधी को उम्मीद थी कि चैकीदार चोर का नारा काम आ जायेगा और 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की पराजय होगी। पर राहुल गाधी की खुशफहमी ही नरेन्द्र मोदी की जीत का कारण बन गयी। नरेन्द मोदी ने राफेल की खरीद को देश की अस्मिता के साथ जोड़ दिया। भारतीय सेना की शक्ति से जोड़ दिया। संसद के अंदर राफेल डील पर उठे प्रश्नों पर जवाब देते हुए वित्त मंत्री सीतारमन ने कहा था कि राफेल नरेन्द्र मोदी जी की सत्ता में वापसी का मंत्र है और गारंटी भी है। सीतारमन की वह बात 2019 के लोकसभा चुनावों में सच साबित हुई। सुप्रीम कोर्ट ने भी राफेल की खरीद पर क्लिन चीट देकर नरेन्द्र मोदी के काम को आसान कर दिया था। देश की जनता भी यह समझी थी कि सीमाओं की रक्षा करने और दुश्मन देशों के नापाक इरादों को तोडने के लिए राफेल की शक्ति का होना जरूर है।
                           जब-जब भारत परमाणु विस्फोट करता है, अपनी रक्षा बजट बढाता है, राफेल जैसे खतरनाक लडाकू विमान की खरीद करता है तब-तब देश के गददार और जयचन्दो के पेट मे मरोड़ आना शुरू हो जाता है और ये कुर्तकों का पहाड खडा कर देते हैं, दुश्मन देश की तरफदारी करने से भी नहीं चूकते हैं। कहते हैं कि देश में इतनी बडी गरीबी है तब देश की रक्षा बजट क्यों बढाया जा रहा है, खतरनाक हथियारों की होड गैर जरूरी है, इससे पडोसी देशों की अस्मिता का हनन होता हैं। इसी मानसिकता का भारत बार-बार कीमत चुकायी है। तिब्बत पर कब्जा जमाने के साथ ही साथ यह तय हो गया था कि चीन एक न एक दिन भारत पर भी हमला करेगा । पर जवाहरलाल नेहरू ने अपनी सेना मजबूत नहीं की थी। दुष्पिरणाम यह हुआ कि 1962 में चीन हमले में भारत बुरी तरह पराजित हुआ है। चीन आज भी हमारी सीमा भूमि पर कब्जा जमाये बैठा हुआ है।
                             निश्चित तौर पर चीन और पाकिस्तान के लिए राफेल लडाकू विमान एक गंभीर संदेश है। भारत अब अपनी सेना की चुनौतियो को पूरी करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। फ्रांस ही नहीं बल्कि अमेरिका, इजरायल और रूस के साथ लगातार रक्षा डील कर कर रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस आज इसलिए शक्तिमान हैं क्योकि उसके पास आर्थिक शक्ति के साथ ही साथ सामरिक शक्ति भी है। भारत को भी अगर दुनिया में सम्मान के साथ रहना है तो फिर भारत को अपनी सामरिक शक्ति भी मजबूत करनी होगी। चीन ने अभी लददाख के अंदर जो कारस्तानी की है उस कारस्तानी से निपटने के लिए राफेल अचूक हथियार साबित होगा।

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Tuesday, July 21, 2020

प्रचंड हिन्दुत्व की आग में राममंदिर विरोधी पाटियां स्वाहा हो जायेेंगी

राष्ट्र-चिंतन 
प्रचंड हिन्दुत्व की आग में राममंदिर विरोधी पाटियां स्वाहा हो जायेेंगी
राममंदिर भूमि ‘ पूजन समारोह पर आत्मघाती राजनीति
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राममंदिर प्रसंग जिसने राजनीतिक इतिहास को बदल डाला / सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विरोध का औचित्य क्या रह जाता है। फिर से राममंदिर निर्माण के खिलाफ राजनीतिक शोर मचाने और समाप्त हो चुके ज्वलनशील प्रश्न को क्यों जिंदा किया जा रहा ह?, ज्वलंनशील प्रश्न की आग को और क्यों भड़काया जा रहा हैं? हमें लगता है कि जान-बुझ कर तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक पार्टियां नरेन्द्र मोदी के तीसरे कार्यकाल की आधारशिला बना रही हैं। भगवान राम इस देश की संस्कृति में रचे-बसे हैं और गौरव के प्रतीक हैं। बहुसंख्यक वर्ग अब भगवान राम विरोधी राजनीति को पंख कभी नहीं देगा।



                             विष्णुगुप्त


                     
राममंदिर भूमि पूजन पर राजनीति गर्म हो गयी है। राममंदिर भूमि पूजन समारोह पर राजनीति कैसे नहीं गर्म होती, राजनीतिज्ञों की तीखी और विरोध वाली बयानबाजी कैसे नहीं होती? अभी भी भाजपा विरोधी पार्टियां जो अपने आप को तथाकथित रूप से सेक्युलर कहती हैं और जिनका वोट आधार मुस्लिम तुष्टीकरण हैं वे पार्टियां नहीं चाहती हैं कि राममंदिर का निर्माण हो। बहुत सारे राजनीतिज्ञ और बहुत सारे तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग पहले की तरह ही इस प्रसंग पर सक्रियता रखते हैं, तीखी बयानबाजी पर सक्रिय है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तरह-तरह की सलाह दी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जवाहरलाल नेहरू का अनुशरण करने के लिए कहा जा रहा है। जवाहरलाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के उदघाटन समारोह में जाने से इनकार कर दिया था। राममंदिर विरोधी राजनीतिज्ञों का कहना है कि चूंकि भारत एक सेक्युलर देश है, इसलिए प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति को भूमि पूजन समारोह में नहीं जाना चाहिए। इतिहास कहता है कि नेहरू ने तत्कालीन राष्टपति राजेन्द्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर के उदघाटन समारोह से दूर रहने के लिए कहा था पर राजेन्द्र प्रसाद ने नेहरू की मन की इच्छा का सम्मान करने से इनकार कर दिया था। नेहरू और मोदी में अंतर है। नेहरू जहां कहते थे कि वे त्रूटि रूप से हिन्दू हैं, स्वभाव और क्रियाशीलता में मुस्लिम के करीब हैं। पर नेहरू के विपरीत नरेन्द्र मोदी पक्के सनातनी हैं, सनातनी धर्म का पालन करते हैं, उनके जीवन की पूरी क्रियाएं सनातनी हैं। मोदी की छवि भी सनातनी क्रिया से ही बनी है और मजबूत हुई है।
                         देश की सेक्युलर कहने वाली राजनीतिक पार्टियां, सेक्युलर राजनीतिज्ञ और सेक्युलर तथाकथित बुद्धिजीवी गजब की राजनीति करते है, आज रामजन्म भूमि पूजन समारोह से दूर रहने की सलाह देने वाले वर्ग सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने से पूर्व पूछते थे कि अयोध्या से नरेन्द्र मोदी की कौन सी नाराजगी है? यह शोर बार-बार उठता था कि नरेन्द्र मोदी वाराणसी जाते हैं पर भगवान राम की जन्मस्थली अयोघ्या क्यों नहीं जाते है, उनके अंदर भगवान राम और राममंदिर निर्माण के क्षेत्र में कोई नकारात्मक सोच तो नहीं है? यह शोर दोनों तरफ उठता था। कहने का अर्थ यह है कि यह शोर नरेन्द्र मोदी के समर्थको, उग्र राष्टवादियों और नरेन्द्र मोदी के विरोधियों की ओर से भी मचता था। समर्थक और उग्र राष्टवादियों की वचैनी तो समझी जा सकती थी पर उनके विरोधियों की राममंदिर निर्माण को लेकर वचैनी का अर्थ क्या हो सकता था? विरोधी संवर्ग नरेन्द्र मोदी को हिन्दू विरोधी और एक ठग के रूप में छवि बनाना चाहते थे। उनकी खुशफहमी थी कि नरेन्द्र मोदी के अयोध्या नहीं जाने को राजनीतिक हथियार बनाया जा सकता है और इस राजनीतिक हथियार से नरेन्द्र मोदी का शिकार किया जा सकता है। नरेन्द्र मोदी को राजनीतिक शिकार बनाने के लिए उन्हे राममंदिर विरोधी बताना जरूरी था , राममंदिर निर्माण की तारीख इसीलिए बार-बार पूछी जाती थी।  प्रश्न यह किया जाता था कि रामंदिर निर्माण कब शुरू होगा, इसका जवाब नरेन्द्र मोदी को देना चाहिए। भाजपा और नरेन्द्र मोदी ठग है और हिन्दुओं का वोट लेकर सिर्फ सत्ता सुख भोगते हैं।
                                     पर हमें नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा इस बात की करनी चाहिए कि उन्होंने अपना आपा नही खोया, अपने विरोधियों की चाल में नहीं उलझे और न ही अपने उग्र समर्थकों के गुस्से से प्रभावित हुए। राममंदिर निर्माण पर कोई ऐसी बयानबाजी भी नहीं की थी तो उग्रता और किसी को डराने-धमकाने जैसे हो। राजनीतिक संयम प्रदर्शित करने में वे सफल रहे।
प्रसंग कोर्ट में था। कोर्ट में बहादुरी दिखाने की जरूरत थी। जाहिर तौर पर नरेन्द्र मोदी ने सारा ध्यान कोर्ट की जटिलताओं पर लगाया था। उन्हें यह विश्वास था कि कोर्ट में उनकी राममंदिर अवधारणा की जीत जरूर होगी। सुखद परिणाम भी आया। देश का सर्वोच्च कोर्ट ने राममंदिर निर्माण की सभी बाधाएं दूर कर दी और अयोध्या में विवादित स्थल को ही भगवान राम का जन्म स्थल मान लिया।
                                     राममंदिर के अस्तित्व के प्रश्न ने कई मिथक तोड़ डाले, कई राजनीतिक पार्टियों की राजनीतिक बगिया तोड़ डाले, कई राजनीतिज्ञों की चमकीली-भडकीली राजनीतिक दुनिया को हाशिये पर खडा कर दिया। इसके साथ ही साथ कई गैर राजनीतिक संस्कृति की अवधारणाएं भी टूट गयी। संस्कृति सर्वश्रेष्ठता का प्रश्न महत्वपूर्ण हो गया। राजनीतिक मिथक क्या था? गैर राजनीतिक संस्कृति की अवधारणाएं क्या थी? किस प्रकार से राजनीतिक दलों की राजनीतिक बगिया तहस-नहस हो गयी? सबसे पहली गैर राजनीतिक संस्कृति की अवधारणाओं के नष्ट होने की बात पर विचार करते हैं। यह अवधारणा थी कि राममंदिर निर्माण से देश की एकता और अखंडता टूट जायेगी, देश में खून की नदियां बह जायेगी, अंतर्राष्टीय स्तर पर भारत को प्रतिबंधों का सामना करना पडेगा, मुस्लिम देश जिनकी ंसख्या 60 के करीब है, भारत पर हमला भी कर सकते हैं, भारत को तेल बेचने से इनकार कर भारत को तबाह कर सकते हैं। ये सभी अवधारणाएं टूट गयी। कांग्रेस ने जमकर राममंदिर निर्माण और आंदोलन के खिलाफ आग उगला, राममंदिर निर्माण के आंदोलनकारियों को अपमानित करने का काम किया। हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी भी प्रस्तुत कर डाली। भगवान राम को काल्पनिक पात्र बता दिया। 
                                             प्रचंड हिन्दू प्रवाह में कांग्रेस बह गयी। मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार के दौरान कारसेवकों पर गोलियां चलवायी थी, दर्जनों कारसेवकों की जान ली थी। मुलायम सिंह यादव का पुत्र अखिलेश यादव का बयान था कि उसके रहते कभी भी राममंदिर नहीं बन सकता है। कम्युनिस्ट पार्टियां तो राममंदिर आंदोलन पर कैसी खतरनाक और रक्तरंजित बयानबाजी करती थी, यह भी उल्लेखनीय है। कम्युनिस्ट राजनीतिक पार्टियां कहती थी कि राममंदिर निर्माण से भारत का हिन्दूकरण हो जायेगा। हिन्दुत्व विरोध के कारण कम्युनिस्ट राजनीतिक पार्टियां आज हाशिये पर खडी हो गयी। त्रिपुरा में इनकी वर्षो-वर्षो की सरकार को उखाड़ कर भाजपा इनकी सीना पर बैठ कर राज कर रही है। इसके साथ ही साथ देश के तथाकथित बुद्धिजीवी जो बार-बार कहते थे कि राममंदिर का प्रसंग हिन्दूकरण से है वे आज हाशिये पर हैं, उनकी एनजीओ और विदेशी चंदे व सहायता पर कानून का पहरा बैठा हुआ है।
                                संस्कृति का प्रश्न कभी गौण नहीं होता है, संस्कृति के प्रश्न को नष्ट नहीं किया जा सकता है, संस्कृति के प्रश्न को अपमानित नहीं किया जा सकता है, संस्कृति के प्रश्न पर उदासीनता नही पसारी जा सकती है। संस्कृति का प्रश्न तो सर्वश्रेष्ठ और सर्वशक्ति मान होता है। जबसे राष्ट की अवधारणा का जन्म हुआ है, जबसे समाज की अवधारणा का जन्म हुआ है, जबसे समूह की अवधारणा का जन्म हुआ है तबसे संस्कृति का प्रश्न सर्व शक्तिमान हुआ है। संस्कृति पर गर्व करना और संस्कृति के प्रश्न पर एकता प्रदर्शित करना भी महत्वपूर्ण हुआ है। संस्कृति की सर्वश्रेष्ठता सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि हर देश, हर समाज और हर समूह में देखी जाती है। भगवान राम इस भूखंड की संस्कृति हैं। इस देश की संस्कृति में भगवान राम रचे-बसे हैं। इसलिए भगवान राम पर गर्व करना, एकता प्रदर्शित करना कोई नकरात्मक पहलू नहीं है और न ही इसे सांप्रदायिक कह कर खारिज किया जा सकता है। कुछ लोग, कुछ समूह और कुछ राजनीति पार्टियां गंगा-जमूनी संस्कृति का प्रत्यारोपण करते है। पर कोई भी देश आयातित संस्कृति को आत्मसात नहीं करता है। आयातित संस्कृत को हमेशा विरोधी शक्ति के रूप में देखने की परमपरा है। आयातित संस्कृति असल में मूल-देशज संस्कृति को लहूलुहान और विखंडित कर अपना राज स्थापित करना चाहती है। कोई भी जागरूक और सजग बहुलता वाला समाज अपनी मूल, देशज, प्रेरक और गर्व करने वाली संस्कृति की जगह रक्तरंजित और पिशाचु संस्कृति का वर्चस्व कैसे स्वीकार करेगा। देश का बहुलता वाला समाज आज अपनी संस्कृति को लेकर चिंितत है। इसलिए कि भारत में उल्टा ही हो रहा है, भारत में बहुसंख्यक समाज ही तथाकथित अल्पसंख्यक समाज से प्रताडि़त, उत्पीडि़त और अपमानित होने के लिए बाध्य है। इसी का प्रकटीकरण नरेन्द्र मोदी हैं।
क्या हम यह मान सकते हैं कि किसी के विरोध करने से, किसी के नेहरू का उदाहरण पेश करने से, किसी के सेक्युलर सिद्धांत की परिभाषा सामने रखने से नरेन्द्र मोदी मान जायेंगे, प्रभावित हो जायेंगे? रामजन्म भूमि पूजन समारोह में जाने से इनकार कर देंगे? ऐसी सोच रखने वाले लोग, ऐसी राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टियां यह समझ नहीं पा रही हैं कि वे एक फिर नकारात्मक राजनीति कर रही हैं, तुष्टीकरण की आत्मघाती राजनीति कर रही हैं। राममंदिर विरोधी राजनीतिक पार्टियां पहले ही इस सोच का खामियाजा भुगत चुकी हैं, अपने जनाधार पर कुठाराघात कर चुकी हैं, देश के बहुसंख्यक वर्ग के मन को आहत कर चुकी हैं, उनके सम्मान को लहूलुहान कर चुकी हैं। इस अपराध की सजा भी इन्हें मिल चुकी है। आज भाजपा का देश पर राज्य और अधिकतर राज्यों में भाजपा का शासन इसी कारण है। खासकर राजनीतिक पार्टियां यह क्यों नहीं सोचती हैं कि बहुसंख्यक वर्ग को नाराज कर, अपमानित कर वे सत्ता हासिल नहीं कर सकती हैं। बहुसंख्यक जनता वोट करने से समय राजनीतिक पार्टियों की इस करतूत का भी परीक्षण करेगी।
जब सुप्रीम कोर्ट ने यह मान लिया कि अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है और वहां राममंदिर निर्माण की स्वीकृति प्रदान की जाती है तब फिर से राममंदिर निर्माण के खिलाफ राजनीतिक शोर मचाने और समाप्त हो चुके ज्वलनशील प्रश्न को क्यों जिंदा करना चाहते हैं, ज्वलंनशील प्रश्न की आग को और क्यों भड़काना चाहते हैं? हमें लगता है कि जान-बुझ कर तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक पार्टियां नरेन्द्र मोदी के तीसरे कार्यकाल की आधारशिला बना रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांच अगस्त को अयोध्या जरूर जायेंगे और भूमि पूजन कर जरूर करेंगे। पांच अगस्त का दिन इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित होने जा रहा है।

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विष्णुगुप्त
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Tuesday, July 14, 2020

‘ हागिया सोफिया ‘ को मस्जिद में तब्दील करने का संदेश घृणात्मक है


 

           राष्ट्र-चिंतन 
‘ हागिया सोफिया ‘ को मस्जिद में तब्दील करने का संदेश घृणात्मक है


मुस्तफा कमाल पाशा की विरासत बन गयी मजहबी घृणा का नया घर/ तुर्की में इस्लामिक कट्टरपंथ का बोलबाला/ इस्लामिक देश में गैर मुस्लिमों की विरासत और प्रतीक चिन्हों का कोई अर्थ नहीं/ पोप भी विरोध में खड़े हुए/ दुनिया भर में भी विरोध/ यूएनस्कों ने भी चिंता जतायी/ पर तुर्की के इस्लामिक शासक को कोई परवाह नही। इस्लामिक कट्टरपंथी इसे अपनी जीत मानकर खुशी मना रहे हैं/ कल तुर्की भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया के रूप में तब्दील हो सकती है।
            
  
                      
                         विष्णुगुप्त


इस्लामिक दुनिया की दो बड़ी घटनाओं ने दुनिया का ध्यान खींचा है, दोनों घटनाएं विघटन और घृणा से जुड़ी हुई हैं और यह प्रमाणित करती हैं कि इस्लामिक देशों में अन्य धर्मों व पंथों की विरासतों तथा प्रतीक चिन्हों का सम्मान और सुरक्षित रखना मुश्किल काम है तथा काफिर मानसिकताएं इन पर कहर बन कर टूटती हैं। पहली घटना पाकिस्तान की रही हैं जिसमें पाकिस्तान की काफिर मानसिकता ने इस्लामाबाद में निर्मानाधीन हिन्दू मंदिर का निर्माण रोकवा दिया, काफिर मानसिकताओं ने तर्क यह दिया  कि चूंकि पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है, इसलिए यहां पर काफिरों का मंदिर बन ही नहीं सकता है। जब काफिर मानसिकताएं ज्वार लेती हैं तब इस्लामिक सत्ता, इस्लामिक न्याय व्यवस्था भी काफिर मानसिकताओं से ही फैसले सुनाती हैं। ऐसी स्थिति में इस्लामाबाद स्थित हिन्दू मंदिर का निर्माण रूकना भी स्वाभाविक था। 
                               दूसरी विखंडन और घृणा से जुड़ी हुई घटना उस तुर्की से जुड़ी हुई है जो कभी आधुनिकता के लिए जानी जाती थी और महान सुधारक मुस्तफा कमाल पाशा की विरासत रही है। कुछ साल पहले तक कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता था कि एक दिन ऐसा भी आयेगा जब मुस्तफा कमाल पाशा की विरासत की जगह इस्लाम की काफिर मानसिकताएं राज करेंगी और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की विरासत को तरह-नहस कर दिया जायेगा, प्रेरक और ज्ञानवर्द्धक चिन्हों को भी काफिर मानसिकताओं से जोड़ कर देखा जायेग। पर अब तुर्की में ऐसी ही घृणा की फसल लहरा रही है। तुर्की के राष्टपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने एक घृणात्मक और विखंडनकारी कदम उठाते हुए दुनिया में चर्चित संग्रहालय हागिया सोफिया को तहस-नहस कर एक मस्जिद में तब्दील कर दिया। हागिया सोफिया संग्रहालय में अजान सुनाई दे रही है। पाकिस्तान के इस्लामाबाद में मंदिर निर्माण रोके जाने और तुर्की में प्रसिद्ध संग्रहालय हागिया सोफिया को मस्जिद में तब्दील करने से अल्पसंख्यक हिन्दुओं और ईसाइयों के लिए बज्रपात से कम नहीं है और उन्हें यह संदेश दे दिया गया है कि एक इस्लामिक देश में तुम्हारी विरासत या प्रेरक चिन्ह कोई अर्थ नहीं रखता है।
                                            हागिया सोफिया सिर्फ संग्रहालय भर नहीं था, वह एक जीता-जागता इतिहास भी था, अपने में बर्बरता, वीभत्सता और घृणा की अनेकानेक कहानियां समेटे हुए था। ग्रीक स्थापत्य कला बेजोड़ नमूना है। उस काल में ग्रीक स्थापत्य कला विख्यात थी। इसीलिए यूएनस्को ने हागिया सोफिया संग्रहालय को संरक्षित स्माराक घोषित कर रखा था। दुनिया भर के सामाजिक और कला वैज्ञानिकों के लिए यह संग्रहालय एक तीर्थ स्थल से कम नहीं था। दुनिया भर के जिज्ञासु सामाजिक और कला वैज्ञानिक इस संग्रहालय में बैठ कर न केवल अध्ययण करते थे बल्कि इतिहास की मजहबी बर्बरता और वीभत्सता और घृणात्मकता पर शोध भी करते थे। यह संग्रहालय सिर्फ ज्ञान-विज्ञान और कला का ही केन्द्र नहीं था। बल्कि यह संग्रहालय ईसाई संस्कृति की भी धरोहर थी। पहले यह चर्च था। इस चर्च की ख्याति यूरोप तक फैली हुई थी। कोई आज नहीं बल्कि यह छठी सदी में बना था। बाइजेंटाइन सम्राट जस्टिनियन ने इसे बनाया था। लेकिन ओस्मानिया साम्राज्य के उदय के साथ ही साथ तुर्की में ईसाई संस्कृति के बूरे दिन शुरू हो गये थे। जैसी बर्बरता के आधार पर अरब में इस्लाम की स्थापना और विस्तार हुआ था वैसी ही बर्बरता की कहानी तुर्की में लिखी गयी थी। बलपूर्वक और घृणात्मक दृष्टि से इस्लाम स्वीकार करने के लिए बाध्य किया गया, ईसाई संस्कृति को तहस-नहस कर दिया गया, प्रतीक चिन्हों को जमींदोज कर दिया गया। ओस्मानिया साम्राज्य किसी भी स्थिति में ईसाई प्रतीक चिन्हों को देखना नहीं चाहता था। इसीलिए उसने हागिया सोफिया चर्च को एक मस्जिद में तब्दील कर दिया।
                                        तुर्की में जब महान सुधारक मुस्तफा कमाल पाशा का राज्य स्थापित हुआ तो उनके सामने यह विरासत की बर्बरता यक्ष प्रश्न के रूप में खडी थी। धर्मनिरपेक्षा के रास्ते में कंलक के तौर पर खडी थी। आधुनिकता के रास्ते में एक रोड़ा थी। कंलकित मजहबी उदाहरण थी। ऐसी बर्बरता और घृणा के उदाहरण रहते तुर्की को आधुनिकता के रास्ते पर अग्रसर कैसे किया जा सकता था, मजहबी मानिकसताएं लोगों के मन से कैसे निकाली जा सकती थी, लोगो को धर्मनिरपेक्षता का पाठ कैसे पढाया जा सकता था? इसलिए इस बर्बरता के उदाहरण को मिटाना भी जरूरी था। मुस्तफा कमाल पाशा ने चर्च से मस्जिद बना दी गयी हागिया सोफिया के विशाल भवन को आधुनिक संग्रहालय बनाने का निश्चय किया था। उनके इस निर्णय पर तुर्की में विरोध का बवंडर उठा था और इसे इस्लाम विरोधी करतूत की संज्ञा दी गयी थी। पर मुस्तफा कमाल पाशा ने विरोध के बवंडर को सख्ती के साथ दबा दिया था। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि तुर्की में जिस तरह से मजहबी घृणा फैलायी गयी थी उसका एक अध्ययण भी कराया था। ओस्मानिया साम्राज्य की मजहबी करूततों को भी इस संग्रहालय में संग्रहित किया गया था। इसके साथ ही साथ दुनिया की कला-विज्ञान की संस्कृति को भी संरक्षित कर रखा गया था। मुस्तफा कमाल पाशा की धारणा यह थी कि दुनिया भर में हागिया सोफिया संग्रहालय की ख्याति हो और दुनिया भर के कला विज्ञानी तथा इतिहास के विद्वान आकर इस संग्रहालय में अध्ययण करें। इस तरह 1934 में हागिया सोफिया एक संग्रहालय का रूप धारण कर लिया। इस अर्थ में मुस्तफा कमाल पाशा बेहद सफल साबित हुए थे। दुनिया भर के कला विज्ञान के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए हामिया सोफया सग्रहालय एक तीर्थ स्थल से कम नहीं था।
                                पर इस्लाम के कट्टरपंथियों के लिए हागिया सोफिया आंख की किरकिरी की तरह खडी थी। इस्लामिक कट्टरपंथी इसके खिलाफ साजिश पर साजिश करते रहे थे। कइ्र बार संग्रहालय को आग लगाने और नष्ट करने तक की साजिश हुई थी। इस्लामिक कट्टरपंथी कहते थे कि एक इस्लामिक देश में काफिर मानसिकताएं कैसे संरिक्षत हो सकती हैं, काफिर मानिकताओं के प्रतीक चिन्ह कैसे खडी रह सकती है, ये आधुनिकता की काफिर मानसिकताएं हमें मुंह चिराती हैं। सच यह भी है कि इस्लामिक दुनिया में काफिर प्रतीक चिन्हों पर हमेशा हिंसा होती रहती है। अफगानिस्तान में तालिबान ने बुद्ध प्राचीण प्रतीकों पर कैसी हिंसा की थी? यह भी जगजाहिर है। ईरान कभी पारसी संस्कृति वाला देश था पर इस्लाम के आगमन के साथ ही साथ पारसी संस्कृति और पारसी कला को गैर इस्लामिक मान लिया गया। आज ईरान के अंदर में पारसी संस्कृति और पारसी कला का कहीं कोई नामोनिशान तक नही है। 
                                   तुकी पर वर्तमान में रेचेप तैय्यप आर्दोआन की सरकार है। रेचेप तैय्यप आर्दोआन एक घोर इस्लामिक कट्टरपंथी मानसिकता का शासक है। सभी चिजों को वह काफिर मानसिकता से ही देखता है। काफिर मानसिकता के तहत ही वह भारत का विरोध करता है, इजरायल के खिलाफ आग उगलता है। जब भारत ने धारा 370 हटायी थी तब पाकिस्तान के पक्ष में दो ही देश खडे हुए थे, एक तुर्की और दूसरा मलेशिया। ये दोनों देश काफिर मानसिकता से ही ग्रसित होकर भारत विरोध में खडे थे। हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद बनाने का चुनावी वायदा था। पिछले राष्टपति के चुनाव में रेचेप तैय्यप आर्दोआन ने कट्टरपंथियों से वायदा किया था कि अगर वह चुनाव जीते और राष्टपति बने तो फिर हामिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद बना कर अजान दिलवायेगे। इसी कसौटी पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने समर्थन देकर रेचेप तैय्यप आर्दोआन को राष्टपति बनवाया था। एक खतरनाक बात गौर करने की जरूरत है। रेचेप तैय्यप आर्दोआन ने अपनी कट्टरपंथी मानसिकता और काफिर मानसिकता की कसौटी पर तुर्की को जिस रास्ते पर लेकर चल रहे हैं वह बहुत ही खतरनाक है। कल तुर्की भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे उदाहरण में शामिल हो जायेगी। अब तुर्की में आधुनिकता धीरे-धीरे हिंसा और घृणा की बलि बेदी पर कुर्बान हो रही है। तुर्की में अब बकरा दाढी और बडे भाई कुर्ता तथा छोटे भाई का पायजामा वाली जहरीली संस्कृति पैर जमा रही है। छोटी-छोटी लड़कियों पर भी बुर्का अनिवार्य किया जा रहा है।
                      हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में तब्दील करने की घृणा के खिलाफ दुनिया भर में आवाज उठी है, ईसाइयों के पोप ने भी इस पर चिंता जाहिर की है। यूरोपीय यूनियन भी विरोध किया है। पर रेचेप तैय्यप आर्दोआन के लिए कोई परवाह की बात नहीं है। रेचेप तैय्यप आर्दोआन अपने इस कदम से पीछे हटने वाले कहां है, उन पर तो इस्लाम की कट्टपंथी मानसिकताएं सवार है। तुर्की ही क्यों बल्कि सभी इस्लामिक देशों का एक ही संदेश है कि काफिर लोगों का मानवाधिकार या फिर उनकी विरासत कोई अर्थ नहीं रखता है।



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Tuesday, July 7, 2020

ड्रोन वैज्ञानिक प्रताप की प्रतिभा और देशभक्ति को प्रणाम

राष्ट्र-चिंतन
देशभक्ति बनी प्ररेणा/मोदी की अपील पर विदेशी रक्षा कपंनियों के ऑफर को ठुकराया / डीआरडीओ में काम करना स्वीकारा / प्रतिभा पलायन पर अब स्पष्ट नीति बननी चाहिए / प्रतिभा सम्मान जरूरी 

ड्रोन वैज्ञानिक प्रताप की प्रतिभा और देशभक्ति को प्रणाम



                    विष्णुगुप्त


देश के लिए सुखद रहा कि प्रताप एनएम ने देशभक्ति चुनी और डीआरडीओ में वैज्ञानिक का पद स्वीकार कर लिया। अब प्रताप एनएम अपनी प्रतिभा और अपनी खोज से देश को लाभवन्वित करेंगे, देश का नाम रौशन करेंगे। प्रताप एनएम ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील सुनी और अमेरिका, फ्रंास आदि देशों की रक्षा कंपनियों से मिले ऑफर को ठुकरा दिया। नरेन्द्र मोदी ने तत्परता दिखाते हुए इस प्रतिभा पलायन को सिर्फ रोका ही नहीं बल्कि देशभक्ति को जगाते हुए देश की रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रेरणा भी दी है। यह सही है कि अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तत्परता नहीं दिखायी होती तो फिर डीआरडीओ इस युवा और प्रतिभाशाली ड्रोन वैज्ञानिक की सेवा से वंचित हो जाता। इसलिए कि इस युवा वैज्ञानिक को अपनी ओर खीचंने के लिए दुनिया भर के रक्षा संस्थानों में प्रतिस्पर्द्धा चल रही थी, मुहमांगा पैकेज दिया जा रहा था। अब डीआरडीओ इस युवा वैज्ञानिक की प्रतिभा का लाभ उठा सकेगा और देश की रक्षा की जरूरतों को पूरा करने में सफल हो सकता है। 
                                   भारत वर्षो से प्रतिभा पलायन का शिकार है। देश में प्रतिभाओं की पहचान और उनका सर्वद्धन की गणित ठीक नहीं है, प्रतिभाएं नजरअंदाज की जाती रही हैं, प्रतिभाओं का उचित सम्मान और उचित जगह भी नहीं मिलती हैं, अफसरशाही और भाई-भतीजावाद में भी प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं या फिर हाशिये पर चढ़ा दी जाती हैं, इसका दुष्परिणाम घातक होता है। प्रतिभाएं देश से पलायन करने के लिए मजबूर होती हैं। हमारी प्रतिभाओं की खोज और कर्मठता से अमेरिका और यूरोप के देश न केवल लाभावन्वित होते हैं बल्कि तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल करते हैं। क्या यह सही नही हे कि भारतीय मूल के कई वैज्ञानिकों को विज्ञान का नॉबेल पुरस्कार मिला है? आज अमेरिका और यूरोप के रक्षा सस्थान और अन्य तकनीकी क्षेत्रों में काम करने वाली अधिकतर प्रतिभाएं भारतीय हैं। 
                             प्रताप एनएम कौन हैं। आखिर क्यों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी प्रताप एनएम से डीआरडीओ ज्वाइन करने की अपील करने के लिए बाध्य होना पडा ? आखि क्यों दुनिया की रक्षा कंपनियां प्रताप एनएम को अपने यहां खींचने के लिए प्रतिस्पर्द्धा कर रही थी? प्रताप एनएम आखिर क्यों चमकीली विदेशी रक्षा कंपनियों के अवसर को ठकुरा कर अपने देश में ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए तैयार हुए? क्या इसके लिए देश भक्ति की शक्ति प्रेरणा बन कर सामने आयी और प्रताप एनएम को प्रेरणा दी? क्या आज के युवा प्रताप एनएम से प्रेरणा लेगा और प्रताप एनएम को अपना आईकॉन बनायेंगे? प्रताप एनएम की प्रेरणा जागृत कर हम प्रतिभा पलायन को रोक सकते हैं? क्या देक्ष को प्रतिभा पलायन पर स्पष्ट नीति नहीं बनानी चाहिए? देश की प्रतिभा का लाभ देश को मिले, इस पर अब गंभीरता से विचार किया ही जाना चाहिए।
                                 प्रताप की उपलब्धि क्या है, उनकी ख्याति दुनिया में क्यों और कैसे फैली यह जान कर आप भी आश्चर्य में पड़ जायेगे और यह सोचने के लिए बाध्य होेंगे कि जब हौसला असीम हो, मेहनत और समर्पण हो तो फिर जरूरी साधन भी गौण हो जाते हैं। प्रताप एनएम के पास न तो संसाधन थे, न ही ससाधनों को एकत्रित करने के लिए जरूरी धन राशि, परिवारिक बैंकग्राउंड भी सामान्य था, परिवार में विज्ञान का भी कोई व्यक्ति नहीं थे। प्रोत्साहन भी दूर-दूर तक नहीं था। कोई गंभीरता के साथ लेने के लिए तैयार नहीं था। हर जगह शर्मिन्दगी मिल रही है, उपहास उड़ाते लोग सामने होते थे। कोई विश्वास करने के लिए तैयार नहीं था कि यह छोटा सा बालक ड्रोन जैसी तकनीकी के संबंध में जो बड़ी-बड़ी बातें करता है वह सही है। पर उसने शर्मिन्दगी और अपमान को अपनी कमजोर नहीं बनायी, अपने रास्ते का रोड़ा नहीं बनने दिया, अपने विश्वास को डगमगाने नहीं दिया। कहते हैं कि जब हौसला होता है, हौसले को पूरा करने के लिए समर्पण व संघर्ष्र करने की क्षमता होती है तो फिर बड़े से बड़े लक्ष्य भी गौण हो जाते हैं, छोटे पड़ जाते हैं। प्रमाणित तौर पर प्रताप एनएम के पास हौसला था और अपने लक्ष्य के प्रति दृढंता भी थी।
                                       अब प्र्रताप एनएम की उपलब्धियों और संभावनाओं को देखते हैं, परीक्षण करते हैं। अभी वह मात्र 22 साल के युवा है। इस 22 साल की उम्र में ही उनकी उपलब्धि बेजोड़, अतुलनीय और आश्चर्य में डालनी वाली है। उनकी उपलब्धियां सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी चर्चा के विषय बनी हैं। अब तक उन्होंने कोई एक-दो नहीं बल्कि 600 से अधिक ड्रोन बना चुके हैं। 600 से अधिक ड्रोन बनाना कोई साधारण उपलब्धि नहीं है। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। यबसे बड़ी बात यह है कि इनके द्वारा बनाया गया ड्रोन अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अचूक होते हैं, इनके बनाये गये ड्रोन परीक्षण में सही साबित हुए हैं। दनके द्वारा बनाये गये ड्रोन आपातकाल में जीवनदायनी की भूमिका निभाता है। आपातकाल में इनके ड्रोन महती भूमिका निभाते हैं। कर्नाटक में आयी बाढ के समय इनके ड्रोन का परीक्षण किया गया था। प्रताप का ड्रोन बाढ पीडितों के बीच राहत सामग्री पहुंचाने में कामयाब हुआ था। खासकर दवाइयां और अन्य जरूरी चीजें प्रताप के बनाये ड्रोन से बाढ पीडि़तों के बीच पहुचायी गयी थी। रक्षा सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रताप का ड्रोन सीमा सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खास कर लद्दाख क्षेत्र में प्रताप के ड्रोन की सेवाए ली जा रही है।  आज हमारे जीवन में ड्रोन की जरूरत बढी है। खेती से लेकर आपातकाल, आपदाकाल और सुरक्षा के क्षेत्र में ड्रोन की दखल और जरूरत बढी है। प्राय हर देश ड्रोन तकनीकी के क्षेत्र में आगे आना चाहते हैं। अब तो हथियारों की आपूर्ति और जासूसी के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल आसानी से हो रहा है। हमारा दुश्मन देश पाकिस्तान बार-बार सीमा के नजदीक ड्रोन से हथियार भेजता है। भारतीय सीमा सुरक्षा बलों ने पाकिस्तानी ड्रोन को कई बार मार भी गिराया है।
                                                    प्रताप एनएम कहते है कि उन्हें 14 साल की उम्र में ड्रोन के प्रति दिलचस्पी जगी थी। उन्होंने ईकचरे से ड्रोन को उठा कर उसके आतंरिक स्थिति का अध्ययण करना शुरू कर दिया था। उसके पास पैसा नहीं होने के कारण बड़ी समस्या थी। इस कारण ईकचरे पर उसे निर्भर रहना पड़ा। ईकचरे को एकत्रित कर उन्होंने ड्रोन बनाना और उड़ाना शुरू कर दिया। प्रताप के बनाये ड्रोन चित्र भी लेने में समझ हैं। प्रताप के ड्रोन दुनिया भर के विभिन्न रक्षा प्रदर्शनियों में भाग लेकर पुरस्कार जीत चुके हैं। जर्मनी के हनोहर में हुए अंतर्राष्टीय ड्रोन एकस्पो 2018 आईस्टीन इनोवेशन गोल्ड मेडल के पुरस्कार प्रताप हासिल कर चुके हैं। देश के मुबई आईआईटी सहित अन्य कई तकनीकी संसाधनों में प्रताप व्याख्यान भी दे चुके हैं। इसके अलावा विदेशों में भी व्याख्यान देने के लिए जाते रहते हैं। वे व्याख्चान में कहते हैं कि परिश्रम और दूरदृष्टि के माध्यम से लक्ष्य की ओर पहुंचा जा सकता है।
                   आज के युवा वर्ग को प्रताप एनएम से प्रेरणा लेने की जरूरत है। निश्चित तौर पर प्रताप एनएम आज के युवाओं के लिए एक आईकॉन हैं। उन्होंने मात्र 22 साल की उम्र में जो उपलब्धियां हासिल की है वह दुनिया भर में एक बेमसाल उदाहरण है। खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा होनी चाहिए कि उन्होने प्रताप एनएम की प्रतिभा और देश की उनकी जरूरत को समझा, प्रताप को डीआरडीओ में काम करने के लिए प्रेरित किया और सम्मानपूर्ण पैकेज दिलाया। अब देश के अंदर में प्रतिभा पलायन पर गंभीरता पूर्ण विचार करने की आवश्कता है। हम करोडो और अरबों खर्च कर प्रतिभाएं तलाशते हैं, प्रतिभाएं तैयार करते हैं फिर ये प्रतिभाओं का लाभ अमेरिका और यूरोप जैसे देश उठाते हैं। यह देश की ही कमजोरी है। इस कमजोरी को हमें दूर करना होगा। प्रतिभाओं को उचित सम्मान देना हमे सीखना होगा। प्रताप एनएम की प्रतिभा और देशभक्ति को हम प्रणाम करते हैं।

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