Tuesday, July 21, 2020

प्रचंड हिन्दुत्व की आग में राममंदिर विरोधी पाटियां स्वाहा हो जायेेंगी

राष्ट्र-चिंतन 
प्रचंड हिन्दुत्व की आग में राममंदिर विरोधी पाटियां स्वाहा हो जायेेंगी
राममंदिर भूमि ‘ पूजन समारोह पर आत्मघाती राजनीति
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राममंदिर प्रसंग जिसने राजनीतिक इतिहास को बदल डाला / सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विरोध का औचित्य क्या रह जाता है। फिर से राममंदिर निर्माण के खिलाफ राजनीतिक शोर मचाने और समाप्त हो चुके ज्वलनशील प्रश्न को क्यों जिंदा किया जा रहा ह?, ज्वलंनशील प्रश्न की आग को और क्यों भड़काया जा रहा हैं? हमें लगता है कि जान-बुझ कर तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक पार्टियां नरेन्द्र मोदी के तीसरे कार्यकाल की आधारशिला बना रही हैं। भगवान राम इस देश की संस्कृति में रचे-बसे हैं और गौरव के प्रतीक हैं। बहुसंख्यक वर्ग अब भगवान राम विरोधी राजनीति को पंख कभी नहीं देगा।



                             विष्णुगुप्त


                     
राममंदिर भूमि पूजन पर राजनीति गर्म हो गयी है। राममंदिर भूमि पूजन समारोह पर राजनीति कैसे नहीं गर्म होती, राजनीतिज्ञों की तीखी और विरोध वाली बयानबाजी कैसे नहीं होती? अभी भी भाजपा विरोधी पार्टियां जो अपने आप को तथाकथित रूप से सेक्युलर कहती हैं और जिनका वोट आधार मुस्लिम तुष्टीकरण हैं वे पार्टियां नहीं चाहती हैं कि राममंदिर का निर्माण हो। बहुत सारे राजनीतिज्ञ और बहुत सारे तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग पहले की तरह ही इस प्रसंग पर सक्रियता रखते हैं, तीखी बयानबाजी पर सक्रिय है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तरह-तरह की सलाह दी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जवाहरलाल नेहरू का अनुशरण करने के लिए कहा जा रहा है। जवाहरलाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के उदघाटन समारोह में जाने से इनकार कर दिया था। राममंदिर विरोधी राजनीतिज्ञों का कहना है कि चूंकि भारत एक सेक्युलर देश है, इसलिए प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति को भूमि पूजन समारोह में नहीं जाना चाहिए। इतिहास कहता है कि नेहरू ने तत्कालीन राष्टपति राजेन्द्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर के उदघाटन समारोह से दूर रहने के लिए कहा था पर राजेन्द्र प्रसाद ने नेहरू की मन की इच्छा का सम्मान करने से इनकार कर दिया था। नेहरू और मोदी में अंतर है। नेहरू जहां कहते थे कि वे त्रूटि रूप से हिन्दू हैं, स्वभाव और क्रियाशीलता में मुस्लिम के करीब हैं। पर नेहरू के विपरीत नरेन्द्र मोदी पक्के सनातनी हैं, सनातनी धर्म का पालन करते हैं, उनके जीवन की पूरी क्रियाएं सनातनी हैं। मोदी की छवि भी सनातनी क्रिया से ही बनी है और मजबूत हुई है।
                         देश की सेक्युलर कहने वाली राजनीतिक पार्टियां, सेक्युलर राजनीतिज्ञ और सेक्युलर तथाकथित बुद्धिजीवी गजब की राजनीति करते है, आज रामजन्म भूमि पूजन समारोह से दूर रहने की सलाह देने वाले वर्ग सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने से पूर्व पूछते थे कि अयोध्या से नरेन्द्र मोदी की कौन सी नाराजगी है? यह शोर बार-बार उठता था कि नरेन्द्र मोदी वाराणसी जाते हैं पर भगवान राम की जन्मस्थली अयोघ्या क्यों नहीं जाते है, उनके अंदर भगवान राम और राममंदिर निर्माण के क्षेत्र में कोई नकारात्मक सोच तो नहीं है? यह शोर दोनों तरफ उठता था। कहने का अर्थ यह है कि यह शोर नरेन्द्र मोदी के समर्थको, उग्र राष्टवादियों और नरेन्द्र मोदी के विरोधियों की ओर से भी मचता था। समर्थक और उग्र राष्टवादियों की वचैनी तो समझी जा सकती थी पर उनके विरोधियों की राममंदिर निर्माण को लेकर वचैनी का अर्थ क्या हो सकता था? विरोधी संवर्ग नरेन्द्र मोदी को हिन्दू विरोधी और एक ठग के रूप में छवि बनाना चाहते थे। उनकी खुशफहमी थी कि नरेन्द्र मोदी के अयोध्या नहीं जाने को राजनीतिक हथियार बनाया जा सकता है और इस राजनीतिक हथियार से नरेन्द्र मोदी का शिकार किया जा सकता है। नरेन्द्र मोदी को राजनीतिक शिकार बनाने के लिए उन्हे राममंदिर विरोधी बताना जरूरी था , राममंदिर निर्माण की तारीख इसीलिए बार-बार पूछी जाती थी।  प्रश्न यह किया जाता था कि रामंदिर निर्माण कब शुरू होगा, इसका जवाब नरेन्द्र मोदी को देना चाहिए। भाजपा और नरेन्द्र मोदी ठग है और हिन्दुओं का वोट लेकर सिर्फ सत्ता सुख भोगते हैं।
                                     पर हमें नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा इस बात की करनी चाहिए कि उन्होंने अपना आपा नही खोया, अपने विरोधियों की चाल में नहीं उलझे और न ही अपने उग्र समर्थकों के गुस्से से प्रभावित हुए। राममंदिर निर्माण पर कोई ऐसी बयानबाजी भी नहीं की थी तो उग्रता और किसी को डराने-धमकाने जैसे हो। राजनीतिक संयम प्रदर्शित करने में वे सफल रहे।
प्रसंग कोर्ट में था। कोर्ट में बहादुरी दिखाने की जरूरत थी। जाहिर तौर पर नरेन्द्र मोदी ने सारा ध्यान कोर्ट की जटिलताओं पर लगाया था। उन्हें यह विश्वास था कि कोर्ट में उनकी राममंदिर अवधारणा की जीत जरूर होगी। सुखद परिणाम भी आया। देश का सर्वोच्च कोर्ट ने राममंदिर निर्माण की सभी बाधाएं दूर कर दी और अयोध्या में विवादित स्थल को ही भगवान राम का जन्म स्थल मान लिया।
                                     राममंदिर के अस्तित्व के प्रश्न ने कई मिथक तोड़ डाले, कई राजनीतिक पार्टियों की राजनीतिक बगिया तोड़ डाले, कई राजनीतिज्ञों की चमकीली-भडकीली राजनीतिक दुनिया को हाशिये पर खडा कर दिया। इसके साथ ही साथ कई गैर राजनीतिक संस्कृति की अवधारणाएं भी टूट गयी। संस्कृति सर्वश्रेष्ठता का प्रश्न महत्वपूर्ण हो गया। राजनीतिक मिथक क्या था? गैर राजनीतिक संस्कृति की अवधारणाएं क्या थी? किस प्रकार से राजनीतिक दलों की राजनीतिक बगिया तहस-नहस हो गयी? सबसे पहली गैर राजनीतिक संस्कृति की अवधारणाओं के नष्ट होने की बात पर विचार करते हैं। यह अवधारणा थी कि राममंदिर निर्माण से देश की एकता और अखंडता टूट जायेगी, देश में खून की नदियां बह जायेगी, अंतर्राष्टीय स्तर पर भारत को प्रतिबंधों का सामना करना पडेगा, मुस्लिम देश जिनकी ंसख्या 60 के करीब है, भारत पर हमला भी कर सकते हैं, भारत को तेल बेचने से इनकार कर भारत को तबाह कर सकते हैं। ये सभी अवधारणाएं टूट गयी। कांग्रेस ने जमकर राममंदिर निर्माण और आंदोलन के खिलाफ आग उगला, राममंदिर निर्माण के आंदोलनकारियों को अपमानित करने का काम किया। हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी भी प्रस्तुत कर डाली। भगवान राम को काल्पनिक पात्र बता दिया। 
                                             प्रचंड हिन्दू प्रवाह में कांग्रेस बह गयी। मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार के दौरान कारसेवकों पर गोलियां चलवायी थी, दर्जनों कारसेवकों की जान ली थी। मुलायम सिंह यादव का पुत्र अखिलेश यादव का बयान था कि उसके रहते कभी भी राममंदिर नहीं बन सकता है। कम्युनिस्ट पार्टियां तो राममंदिर आंदोलन पर कैसी खतरनाक और रक्तरंजित बयानबाजी करती थी, यह भी उल्लेखनीय है। कम्युनिस्ट राजनीतिक पार्टियां कहती थी कि राममंदिर निर्माण से भारत का हिन्दूकरण हो जायेगा। हिन्दुत्व विरोध के कारण कम्युनिस्ट राजनीतिक पार्टियां आज हाशिये पर खडी हो गयी। त्रिपुरा में इनकी वर्षो-वर्षो की सरकार को उखाड़ कर भाजपा इनकी सीना पर बैठ कर राज कर रही है। इसके साथ ही साथ देश के तथाकथित बुद्धिजीवी जो बार-बार कहते थे कि राममंदिर का प्रसंग हिन्दूकरण से है वे आज हाशिये पर हैं, उनकी एनजीओ और विदेशी चंदे व सहायता पर कानून का पहरा बैठा हुआ है।
                                संस्कृति का प्रश्न कभी गौण नहीं होता है, संस्कृति के प्रश्न को नष्ट नहीं किया जा सकता है, संस्कृति के प्रश्न को अपमानित नहीं किया जा सकता है, संस्कृति के प्रश्न पर उदासीनता नही पसारी जा सकती है। संस्कृति का प्रश्न तो सर्वश्रेष्ठ और सर्वशक्ति मान होता है। जबसे राष्ट की अवधारणा का जन्म हुआ है, जबसे समाज की अवधारणा का जन्म हुआ है, जबसे समूह की अवधारणा का जन्म हुआ है तबसे संस्कृति का प्रश्न सर्व शक्तिमान हुआ है। संस्कृति पर गर्व करना और संस्कृति के प्रश्न पर एकता प्रदर्शित करना भी महत्वपूर्ण हुआ है। संस्कृति की सर्वश्रेष्ठता सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि हर देश, हर समाज और हर समूह में देखी जाती है। भगवान राम इस भूखंड की संस्कृति हैं। इस देश की संस्कृति में भगवान राम रचे-बसे हैं। इसलिए भगवान राम पर गर्व करना, एकता प्रदर्शित करना कोई नकरात्मक पहलू नहीं है और न ही इसे सांप्रदायिक कह कर खारिज किया जा सकता है। कुछ लोग, कुछ समूह और कुछ राजनीति पार्टियां गंगा-जमूनी संस्कृति का प्रत्यारोपण करते है। पर कोई भी देश आयातित संस्कृति को आत्मसात नहीं करता है। आयातित संस्कृत को हमेशा विरोधी शक्ति के रूप में देखने की परमपरा है। आयातित संस्कृति असल में मूल-देशज संस्कृति को लहूलुहान और विखंडित कर अपना राज स्थापित करना चाहती है। कोई भी जागरूक और सजग बहुलता वाला समाज अपनी मूल, देशज, प्रेरक और गर्व करने वाली संस्कृति की जगह रक्तरंजित और पिशाचु संस्कृति का वर्चस्व कैसे स्वीकार करेगा। देश का बहुलता वाला समाज आज अपनी संस्कृति को लेकर चिंितत है। इसलिए कि भारत में उल्टा ही हो रहा है, भारत में बहुसंख्यक समाज ही तथाकथित अल्पसंख्यक समाज से प्रताडि़त, उत्पीडि़त और अपमानित होने के लिए बाध्य है। इसी का प्रकटीकरण नरेन्द्र मोदी हैं।
क्या हम यह मान सकते हैं कि किसी के विरोध करने से, किसी के नेहरू का उदाहरण पेश करने से, किसी के सेक्युलर सिद्धांत की परिभाषा सामने रखने से नरेन्द्र मोदी मान जायेंगे, प्रभावित हो जायेंगे? रामजन्म भूमि पूजन समारोह में जाने से इनकार कर देंगे? ऐसी सोच रखने वाले लोग, ऐसी राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टियां यह समझ नहीं पा रही हैं कि वे एक फिर नकारात्मक राजनीति कर रही हैं, तुष्टीकरण की आत्मघाती राजनीति कर रही हैं। राममंदिर विरोधी राजनीतिक पार्टियां पहले ही इस सोच का खामियाजा भुगत चुकी हैं, अपने जनाधार पर कुठाराघात कर चुकी हैं, देश के बहुसंख्यक वर्ग के मन को आहत कर चुकी हैं, उनके सम्मान को लहूलुहान कर चुकी हैं। इस अपराध की सजा भी इन्हें मिल चुकी है। आज भाजपा का देश पर राज्य और अधिकतर राज्यों में भाजपा का शासन इसी कारण है। खासकर राजनीतिक पार्टियां यह क्यों नहीं सोचती हैं कि बहुसंख्यक वर्ग को नाराज कर, अपमानित कर वे सत्ता हासिल नहीं कर सकती हैं। बहुसंख्यक जनता वोट करने से समय राजनीतिक पार्टियों की इस करतूत का भी परीक्षण करेगी।
जब सुप्रीम कोर्ट ने यह मान लिया कि अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है और वहां राममंदिर निर्माण की स्वीकृति प्रदान की जाती है तब फिर से राममंदिर निर्माण के खिलाफ राजनीतिक शोर मचाने और समाप्त हो चुके ज्वलनशील प्रश्न को क्यों जिंदा करना चाहते हैं, ज्वलंनशील प्रश्न की आग को और क्यों भड़काना चाहते हैं? हमें लगता है कि जान-बुझ कर तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक पार्टियां नरेन्द्र मोदी के तीसरे कार्यकाल की आधारशिला बना रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांच अगस्त को अयोध्या जरूर जायेंगे और भूमि पूजन कर जरूर करेंगे। पांच अगस्त का दिन इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित होने जा रहा है।

संपर्क .....
विष्णुगुप्त
मोबाइल नंबर ...    9315206123

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