Monday, January 11, 2021

वीगर मुसलमानों का जनसांख्यिकीय नरसंहार रोको

 


 

                       राष्ट्र-चिंतन
वीगर मुसलमानों का जनसांख्यिकीय नरसंहार रोको
        
विष्णुगुप्त



चीन का खौफनाक और हिंसक कारवाई कोई नयी नहीं है, अपने ही नागरिकों के खिलाफ हिंसक और खौफनाक कार्रवाई को लेकर चीन की आलोचना होती रही है, पर चीन के लिए मानवाधिकार का संरक्षण कोई अहम स्थान नहीं रखता है और अपने नागरिकों के प्रति नरम व्यवहार तथा हिंसाहीन कार्रवाई की उम्मीद हो ही नहीं सकती है। ऐसा इसलिए कि चीन में कोई लोकतंत्र नहीं है, चीन में कम्युनिस्ट तानाशाही है। वह भी एक ऐसी कम्युनिस्ट तानाशाही जिसमें जनता की सहभागिता होती ही नहीं है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती नहीं है, मीडिया की आजादी होती नहीं, मानवाधिकार की बात करने वाले लोग या तो हिंसक तक पर मार दिये जाते है या फिर अनंतकाल तक जेलों में डाल दिये जाते हैं, चीन की जेलें घोर अमानवीय, उत्पीड़न, अत्याचार हिंसक रूप सें प्रताड़ित करने की प्रतीक होती हैं।
                                     अभी-अभी दुनिया में चीन का ऐसा पर्दाफाश हुआ है, चीन का ऐसा धिनौना चेहरा सामने आया है जिसे पढकर रोंगटे खडे हो जाते हैं। यह पर्दाफाश चीन में वीगर मुसलमानों को लेकर है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन वीगर मुसलमानों का जनसांख्यिकीय नरसंहार कर रहा है। जनसांख्यिकीय नरसंहार के लिए वीगर मुस्लिम महिलाओं पर हिंसा और अमानवीय ढंग से गर्भ पर पहरा बैठा दिया गया है। जैसे ही किसी वीगर मुस्लिम महिला के गर्भवती होने की सूचना मिलती है वैसे ही वीगर मुस्लिम महिला को यातना शिविरों में भर्ती करा दिया जाता है और बलपूर्वक उनका गर्भपात करा दिया जाता है। वीगर मुसलमानों के मजहबी अधिकारों के प्रति भी चीन घोर असहिष्णुता रखता है, उनके मजहबी अधिकार को कुचलने के लिए पुलिस और सेना का प्रयोग किया जाता है।
                                                सबसे पहले यह जानना होगा कि वीगर मुसलमान कौन हैं? वीगर मुसलमानों का जनसांख्यिकीय नरसंहार चीन क्यों कर रहा है? चीन वीगर मुसलमानों के मजहबी अधिकार को कुचलने के लिए कौन सा हथकंडा अपना रहा है? दुनिया के नियामक चीन के इस बर्बर, खौफनाक और हिंसक नीति के खिलाफ चुप्पी क्यों साधे रखे हैं? क्या दुनिया के नियामकों को चीन के खिलाफ मानवाधिकार हनन और जनसांख्यिकीय नरसंहार के खिलाफ कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? क्या चीन से संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद के वीटों के अधिकार को नहीं छिना जाना चाहिए? क्या मुस्लिम दुनिया को चीन की इस खौफनाक, बर्बर और ंिहंसक कार्रवाई के खिलाफ अभियान चलाने की जरूरत है? मुस्लिम दुनिया के नेता बनने के लिए हिंसक और मजहबी आधार पर सक्रिय पाकिस्मतान, मलेशिया और तुर्की की इस प्रश्न पर चुप्पी क्यों हैं? पाकिस्तान, मलेशिया और तुर्की के लिए वीगर मुसलमानों के हित और उनका मानवाधिकार कोई अहमियत नहीं रखते हैं? क्या अमेरिका इस प्रसंग पर चीन को झुकाने और वीगर मुसलमानों के हित और उनका मानवाधिकार सुरक्षित कराने में सफल हो सकता है? अमेरिका की तरह यूरोपीय देश भी चीन के खिलाफ कदम उठाने के लिए अभियानी होंगे?
                                 वीगर मुसलमान चीन की शिजिंयांग प्रात के रहने वाल अल्पसंख्यक समुदाय है जिनका मजहब इस्लाम है। ये इस्लाम के कट्टर समर्थक हैं। इनका पेशा कृषि और पशुचारण है। यह इस्लामिक जनजातीय समुदाय अपने आप को मध्य एशिया के निवासी बताते हैं। शिजिंयांग प्रांत का इतिहास भी लद्दाख जैसा है, वीगर मुसलमानों की उत्पीडन और हिसंक कहानी लद्दाख के बौद्धों की तरह है। लद्दाख की तरह ही शिजियांग भी कभी स्वतंत्र भूभाग था, चीन से वह अलग था। 1949 में माओत्से तुंग ने अपने विस्तारवादी नीति के कारण शिजियांग भूभाग को चीन का हिस्सा बना लिया था। शिजियांग भूभाग को अपना हिस्सा बनाने के लिए चीन ने बडे पैमाने पर हिंसा बरपाई थी, हजारों लोगों को मौत का घाट उतार दिया गया था। 1949 से लेकर अभी तक चीन अपने कब्जे में रखने के लिए हिंसा और प्रताड़ना का सहारा लेता है। फिर भी वीगर के मुसलमान चीन की अधीनता स्वीकार करने के लिए राजी नहीं हैं।
                                                      वीगर मुसलमानों का कहना है कि उनका मजहब इस्लाम है, वे कट्टर मजहबी हैं, उन्हें मजहब से बेदखल रखना स्वीकार नहीं हैं। उनकी मान्यता है कि चीन उनका देश नहीं है,चीन आक्रमणकर्ता हैं। चीन का हमेशा व्यवहार और नीति आक्रमणकारियों जैसे ही रहा है। वीगर मुसलमान कहते हैं कि शिजियांग 1949 से पूर्व एक इस्लामी भूभाग था। शिजियांग को इस्लामिक देश घोषित किया जाना चाहिए, चीन अपना अधिकार छोडे। सच तो यह है कि वीगर मुसलमान भी इस्लाम की हिंसा और अलगाव तथा मजहबी घृणा के सहचर हैं। जिस तरह से दुनिया के अंदर में इस्लामिक देश की मांग के लिए घृणा, अलगाव, विखंडन तथा हिंसा-आतंकवाद का जिहाद चल रहा है उसी तरह की घृणा, हिंसा,अलगाव, विखंडन, आतंकवाद का जिहाद शिजियांग में जारी है।चीन का आरोप है कि एक घोर और घृणित इस्लामिक राज के लिए शिजियांग में जिहाद चल रहा है, वीगर मुसलमान चीनी पुलिसकर्मियों और अन्य धर्मविहीन आबादी को निशाना बनाते हैं, जिसके कारण निर्दोष लोगों की जानें जाती है। वीगर मुसलमान सिर्फ चीन में ही नहीं है बल्कि वीगर मुसलमानों की एक खास आबादी इराक और तुर्की में भी है। वीगर मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले साहित्यकार, कवि, कलाकार पलायन कर गये है। वीगर मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले साहित्यकार, कवि और कलाकार पलायन कर अमेरिका, यूरोप और अन्य मुस्लिम देशों में शरण लिये हुए है, शरणस्थली से ही चीन के खिलाफ और इस्लामिक देश बनाने के लिए अभियानी हैं।
                                                चीन की ही नहीं बल्कि दुनिया में जहां-जहां कम्युनिस्ट तानाशाहियां रही थी वहां-वहां मजहब और धर्म की बुनियाद को तहस-नहस करना और नष्ट करना उनकी नीति रही थी। सोवियत संघ से लेकर चेकस्लोवाकिया तक इसका उदाहरण पसरा हुआ था। सोवियत संघ और चैकस्लोवाकिया खुद ही दफन हो गये। कार्ल माक्र्स ने मजहब-धर्म को अफीम कहा था। यूरोप में ईसाईयत और यूरोप के पडोस में इस्लाम के हिंसक और घृणा के साथ ही साथ सत्ता को नियंत्रित करने के भीषण दुष्परिणाम हुए थे और कार्ल माक्र्स ने दुष्परिणामों के मूल्यांकन के बाद मजहब और धर्म को अफीम कहा था। कार्ल माक्र्स की थ्योरी पर ही कम्युनिस्ट तानाशाहियां मजहब और धर्म को मिटाने के लिए अपना प्रथम एजेंडा बना लिया। चीन कभी बौद्ध धर्म वाला देश था जहां पर महात्मा बुद्ध का बहुत ही गहरा प्रभाव था। महान सम्राट अशोंक ने बौद्ध धर्म को चीन में विस्तार दिया था। जैसे ही चीन के अंदर माओत्से तुंग का उदय हुआ वैसे ही बौद्ध धर्म को मिटाने की कोशिश हुई, बौद्ध मंदिरों को या तो तोड दिया गया या फिर बौद्ध मंदिरों में जाने वाले लोगों को गोलियां से उड़ा दिया गया या उन्हें जेलों में डाल दिया गया। चीन में बौद्ध धर्म को पूरी तरह से नष्ट करने में इन्हें कामयाबी मिली। पर बौद्ध धर्म की तरह इस्लाम को मिटाने में कम्युनिस्ट तानाशाही को पूरी तरह से सफलता नहीं मिली। इस्लाम के मानने वालों ने अपनी कट्टरता से चीन को मजहबहीन बनाने की नीति सफल नहीं होने दिया।
                                    वीगर मुसलमानों को नियंत्रित रखने के लिए चीन ने जिस तरह के हथकंडे अपनाये गये हैं उसे सुनकर रोंगटे खडे हो जायेंगे। दुनिया में चर्चित है कि वीगर मुसलमानों को मजहबहीन बनाने के लिए चीन की कम्युनिस्ट तानाशाही घोर बर्बर और अति हिंसक नीति अपना रखी है। एक करोड़ से अधिक वीगर मुसलमानों को यातना शिविर में रखा गया है जहां पर मजहब की लत को छुडाने के लिए हिंसा की नीति अपनायी जाती है। वीगर मुसलमानों को सुअर का मांस खाने तक के लिए बाध्य किया जाता है। जैसे ही कोई मजहबी सामग्री पकडी जाती है वैसे ही जिसके पास मजहबी सामग्री पकडी जाती है उसे गिरफतार कर यातना शिविरों में डाल दिया जाता है। चीन से कई ऐसी तस्वीरें आयी है जिसमें मस्जिदों को टाॅयलेट घर में तब्दील हुआ बताया गया है। इतना तो सच है कि चीन ने मस्जिदों पर ताले लगा ही रखे हैं, मस्जिदों का ध्वंस करना भी जारी है। इसके अलावा वीगर मुसलमानों को आबादी की दृष्टिकोण पर अल्पसंख्यक बनाने के लिए नीति जारी है। चीनी मूल के लोगों को शिजियांग प्रदेश में बसाया जा रहा है। चीनी मूल के लोगों को काफी रियायतें मिली हुई है। चीन का मानना है कि शिजियांग प्रदेश के वीगर मुसलमानों के जिहाद की समस्या का समाधान आबादी संतुलन बना कर किया जा सकता है। चीनी आबादी संतुलन का अर्थ सिर्फ और सिफ वीगर मुसलमनों की आबादी को कम करना,वीगर मुस्लिम आबादी को कुचलना है।
                         सबसे ज्यादा चिंताजनक खामोशी मुस्लिम दुनिया को लेकर है। मुस्लिम दुनिया इस प्रसंग पर खामोश क्यों है? कुछ समय पहले ही फ्रांस के खिलाफ मुस्लिम दुनिया ने कैसी हिंसक अभियान चलायी थी, यह भी जगजाहिर है। जबकि फ्रांस में ऐसा कुछ भी नहीं था। चीन के सामने मुस्लिम दुनिया झुकी रहती है। पाकिस्तान जो मुस्लिम दुनिया का अगवा बनने की कोशिश करता है वह तो चीन का मोहरा है। अगर मुस्लिम दुनिया अभियानी होती तो फिर वीगर मुसलमानों के हितों पर चीन सोचने के लिए जरूर बाध्य होता। चीन के खिलाफ दुनिया में सिर्फ अमेरिका ही है जो वीगर मुसलमानों की जनसाख्यिकीय नरसंहार के खिलाफ प्रतिबंधों को लागू किया है। वीगर मुसलमानों का जनसांख्यिकीय नरसंहर रोका जाना चाहिए।


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विष्णुगुप्त
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Monday, January 4, 2021

वैक्सीन पर विपक्ष का आत्मघाती विरोध

  


             
         राष्ट्र-चिंतन
कोवैक्सीन एक महान स्वदेशी उपलब्धि है ,यह सक्षम और आत्मनिर्भर भारत का प्रमाण है
वैक्सीन पर विपक्ष का आत्मघाती विरोध
       
           विष्णुगुप्त




भारत का विपक्ष अजीब है, उसका विरोध की नजरिया भी राष्ट्रहंता जैसी है, समय-समय पर ऐसे विरोध की विपक्ष की संस्कृति देखने को मिल ही जाती है। अगर विरोध नरेन्द्र मोदी की सरकार की उपलब्धियों और कार्यक्रमों पर आधारित हो तो फिर विरोध न केवल जहरीला होता है बल्कि आत्मघाती भी हो जाता है। एक नहीं कई उदाहरण यहां उपस्थित है। पाकिस्तान के खिलाफ एयर स्ट्राइक हो या फिर राष्ट्रीय जरूरतों के दृष्टिगत राफेल की खरीद के खिलाफ भारतीय विपक्ष न केवल गैर जरूरी विरोध करता है बल्कि राजनीतिक तौर पर अभियानी भी हो जाता है, एयर स्ट्राइक का सबूत तक मांगा जाता है, जब सीमा पर सेना विदेशी आक्रमणकारियों, विदेशी घुसपैठियों और भारतीय जयंचदों के खिलाफ वीरता पूर्ण कार्रवाई करती है तो फिर भारतीय सेना को ही बदनाम करने के लिए राजनीति होती है, भारतीय सेना को बलात्कारी और हिंसक बता कर दुश्मन देशों की पीठ थपथपाई जाती है, जब चीन के खिलाफ वर्तमान भारतीय सरकार वीरता दिखाती है, चीन को जैसे को तैसे में जवाब देती है तो फिर विपक्ष यह कहना नहीं चूकता कि भारतीय सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिंसक है, युद्धशील हैं, देश को युद्ध हिंसा में झेलने का काम कर रहा है, विपक्ष यह नहीं देखता कि आजादी के बाद वर्तमान केन्द्रीय सरकार ही चीन को वीरतापूर्ण जवाब दिया है, चीन की उपनिवेशिक नीति और पड़ोसियों की भूमि को हडपने की नीति को मरोड कर रख दिया है। विपक्ष के विरोध में एक और खतरनाक प्रवृति शामिल हो गयी है। यह खतरनाक प्रवृति देशी वैक्सीन के विरोध का है। यह विरोध उस देशी वैक्सीन का है जिसके माध्यम से सपना देखा गया है कि भारत को महामारी के खिलाफ आत्मनिर्भर बनाना, महामारी से मुक्ति पाना, माहामारी से उन गरीब और फटेहाल नागरिकों की जान की सुरक्षा करना जो कोरोना महामारी की चपेट में आकर जान गंवा रहे हैं। निश्चित तौर पर स्वदेशी वैक्सीन तैयार करना अपने देश के लिए एक महान उपलब्धि है, इस महान उपलब्धि पर हमें उन बैज्ञाानिकों पर गर्व करने की जरूरत है जिन्होने दिन-रात परिश्रम कर यह वैक्सीन तैयार किये हैं और जिनके नतीजे भी संतोषजनक नहीं बल्कि प्रभावशाली है। हर देशवासी को इस वैक्सीन पर गर्व करने और देशी वैक्सीन की उपलब्धि के खिलाफ अफवाहों को खारिज करने की जिम्मेदारी है।
                                        विरेध कितना जहरीला है, विरोध कितना अवैज्ञानिक है, विरोध कितना आधारहीन है, यह देख लीजिये। विरोध करने वाले सपा के अखिलेश यादव का बयान देख लीजिये। अखिलेश यादव का कहना है कि भाजपा के वैक्सीन पर उन्हें विश्वास नहीं है, भाजपा के वैक्सीन सीधे तौर पर नागरिकों को नपुंसक बना देगी, भाजपा इस वैक्सीन का इस्तेमाल अपने विरोधी लोगों को निपटाने और नपुंसक बनाने के लिए करेगी, इस भाजपा के वैक्सीन का बहिष्कार किया जाना चाहिए, वे खूद इस भाजपा के वैक्सीन को नहीं लगवायेंगे। इसी से मिलते-जुलते बयान कांग्रेस के सांसद शशि थरूर और जयराम रमेश ने दिये हैं। जयराम रमेश और शशि थरूर ने वैक्सीन प्रयोग के सभी आंकडे सार्वजनिक करने की मांग की है। सबसे पहले तो यह देखना होगा इस वैक्सीन का विरोध करने वाले अखिलेश यादव, जयराम रमेश और शशि थरूर जैसे लोग सिर्फ एक राजनीतिज्ञ है, ये कोई डाॅक्टर नहीं है, ये कोई स्वास्थ्य वैज्ञानिक नहीं हैं। अभी तक कोई ऐसी बात जाहिर नहीं हुई है जिससे पता चला है कि सही में यह वैक्सीन उम्मीदों पर खरा नहीं उतरती है और इसके नतीजे खतरनाक हैं।
                                              अखिलेश यादव और अन्य विपक्ष के नेताओं ने जो यह कहा है कि यह वैक्सीन भाजपा का है, यह भी मूर्खतापूर्ण बयानबाजी है, यह वैक्सीन भाजपा का है क्या? इस मूर्खतापूर्ण बात पर कौन देशवासी स्वीकार कर सकता है? इस वैक्सीन को तैयार करने वाली सरकारी-गैर सरकारी कंपनी है। इन वैक्सीनों का लगाने की जिम्मेदारी क्या भाजपा के पास है? उत्तर नहीं। इन वैक्सीनों को लगाने की जिम्मेदारी और नियंत्रण अधिकार सरकार और शासन के पास है। फिर यह वैक्सीन भाजपा के कैसे हुई? सबसे खतरनाक बयानबाजी तो विशेष आबादी को लेकर है। अखिलेश यादव आदि का कहना है कि भाजपा अपने विरोध की एक विशेष आबादी और विरोधियों को निपटाना चाहती है, उनका जान लेना चाहती है। यह विशेष आबादी का इशारा किस और है और इसके पीछे की राजनीति को समझा जा सकता है। देश के विशेष आबादी का राजनीतिक अर्थ उस अल्पसंख्यक आबादी से है जोेे हर समय भाजपा के खिलाफ रहती है और भाजपा के खिलाफ हर चुनाव में वोट करती है, इसके साथ ही साथ कांग्रेस, कम्युनिस्ट और सपा, बसापा, राजद जैसी पार्टियों की उंगलियों की गुलाम होती है। यह विशेष आबादी का राजनीतिक हथकंडा वैक्सीन के खिलाफ विद्रोह कराने की साजिश भी करार दिया जा सकता है। मोदी सरकार के कार्यकाल में इस विशेष आबादी को उकसाने और विद्रोह कराने की कई साजिशें रची जा चुकी हैं।
                                         सबसे महत्वपूर्ण बात प्रयोग के आंकड़े सार्वजनिक करने की है। विपक्ष का कहना है कि अंतिम चरम में प्रयोग के आंकड़े सरकार क्यों नहीं सार्वजनिक कर रही है। ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रयोग के आंकडे गोपनीय होते हैं,प्रयोग के आंकडे सार्वजनिक करने के भी खतरे कम नहीं है, उसका उपयोग दुष्प्रचार में हो सकता है। अभी तक दुनिया में जितनी भी कोरोना के खिलाफ वैक्सीनों के इस्तेमाल को स्वीकार किया गया है उन सभी के अंतिम चरण के प्रयोग के आकंडे जारी नहीं हुए है, वैक्सीन बनाने वाली कंपनी और सरकारों ने आंकडे जारी करने से मना कर दिया है। चीन और रूस ने जो वैक्सीनें बनायी है उन वैक्सीनों के अंतिम चरणों के प्रयोग के आकंडे भी जारी नहीं किये हैं। जबकि चीनी और रूसी वैक्सीन का इस्तेमाल होना शुरू हो गया है। चीन और रूस अपनी-अपनी वैक्सीन का इस्तेमाल युद्ध स्तर पर कर रहे हैं। ब्रिटेन और अमेरिका ने भी बिना विरोध का वैक्सीन इस्तेमाल शुरू कर दिया है। भारत का विपक्ष रूस और चीन का सबक क्यों नहीं लेता है?
                              भारत सरकार ने जो दो वैक्सीनों को इस्तेमाल करने की स्वीकृति प्रदान की है, उसमें से एक अद्ध्र्र देशी है तो दूसरी पूर्ण देशी है। कोविशील्ड और कोवैक्सीन नामक वैक्सीन को भारत सरकार ने स्वीकृति दी है। कोविशील्ड आॅक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका का भारतीय संस्करण है पर कोवैक्सीन पूरी तरह से स्वदेशी है, कोविशील्ड को भारत में सीरम इंस्टिटयूट आफ इंडिया बना रही है। कोवैक्सीन को भारत बायोटेक कंपनी इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च बना रही है। गौर करने वाली बात यह है कि आॅक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड को ब्रिटेन में इस्तेमाल की स्वीकृति मिल गयी है। जब ब्रिटेन ने अपने यहां कोविशील्ड को इस्तेमाल करने की स्वीकृति प्रदान की कर दी है तब भारत में भी इस वैक्सीन के इस्तेमाल की स्वीकृति मिली है। विपक्ष इस तथ्य की अवहेलना क्यों कर रहा है?
                                          स्वदेशी कोवैक्सीन की उपलब्धि महान है। यह उपलब्धि सक्षम भारत और आत्मनिर्भर भारत की पहचान है। दुनिया को भारत ने दिखा दिया है कि हमारे पास भी वैज्ञानिक शक्ति है और हम भी दुनिया की कोरोना महामारी संकट ही नहीं बल्कि हर उन संकटों से निपटने की शक्ति रखते हैं जिन संकटों से दुनिया त्राहिमाम करती है। दुनिया को यह विश्वास ही नहीं था कि भारत भी उसके साथ ही साथ कोरोना के खिलाफ वैक्सीन तैयार कर लेगा और अपने देश को कोरोना से मुक्ति दिलाने के रास्ते पर गतिमान हो जायेगा? दुनिया तो भारत को अभी भी सांप-सपेरे वाले देश के रूप में देखने की आदि है। पर दुनिया को यह नहीं मालूम है कि भारत आज ज्ञान-विज्ञान का हब बन गया है, ज्ञान-विज्ञान का आईकाॅन बन गया है। यह मोदी का भारत है जो दुनिया से कदम-ताल मिलाने की शक्ति रखता है।
                                 भारत की स्वदेशी वैक्सीन दुनिया के लिए चर्चा का विषय है। दुनिया के कई देशों ने भारत की स्वदेशी वैक्सीन पर दिलचस्पी दिखायी है। नेपाल सहित दुनिया के कई गरीब और विकासशील देशों ने कोवैक्सीन को खरदीने की राय जाहिर की है। भारत अपनी इस कोवैक्सीन कोरोना वैक्सीन के माध्यम से दुनिया भर में अपनी शक्तिशाली पैठ बनाने में कामयाब हो सकता है। खासकर गरीब और विकासशील देशों को भारत मदद कर सकता है। ऐशिया और अफ्र्र्रीका के देशों में भारत अपनी वैक्सीन की आपूर्ति कर एक महाशक्ति बन सकता है। नरेन्द्र मोदी ने कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए अपनी नीति पहले ही जाहिर कर चुके हैं। नरेन्द्र मोदी ने कोवैक्सीन कोरोना वैक्सीन के माध्यम से गरीब देशों को मदद करने की राय जाहिर कर एक शानदार काम किया है जिस पर पूरे देशवासियों को गर्व होना चाहिए।
                          वास्तव में हमारा विपक्ष कम्युनिस्ट संस्कृति का सहचर बन गया है। कम्युनिस्टों की संस्कृति थी कि सिर्फ कार्ल माक्र्स, लेनिन, स्तालिन और माओत्से तुग ही प्रेरक पुरूष है, उनके सामने गांधी, सुभाष और भगत सिंह कुछ भी नहीं हैं। कम्युनिस्ट देश की हर उस उपलब्धि का विरोध करते थे जिस उपलब्धि से भारत दुनिया को चकित करता था और यह उपलब्धि स्वदेशी होती थी। इसी कारण कम्युनिस्ट निपट गये, संग्रहालय में दर्ज होने की स्थिति में पहुंच गये। भारतीय विपक्ष अगर इसी तरह स्वदेशी उपलब्धि पर विरोध करते रहें तो फिर ये भी कम्युनिस्टों की तरह निपट ही जायेगे। ऐसे भी मोदी के सामने भारतीय विपक्ष लगातार निपट रहे हैं। कोवैक्सीन का विरोध विपक्ष के लिए हानिकारक ही नहीं बल्कि आत्मघातक भी है।


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