शंघाई चीनी समूह से भारत को अलग होना चाहिए
आचार्य श्रीहरि
चीन के वर्चस्व वाले शंघाई शिखर सहयोग संगठन की बैठक में भारत पराजित हुआ, भारत का अपमान हुआ, भारत को अकेला खड़ा होने के लिए मजबूर कर दिया गया। जबकि पाकिस्तान की जीत हुई, पाकिस्तानी आतंक की अवधारणा को समर्थन मिला, पाकिस्तान अपनी आतंकी अवधारणा का ढिढोरा कैसे नीं पिटता? चीन की चरणवंदना वाली बैठक और संगठन में भारत अकेला क्यों पडा, भारत की हार क्यो हुई, पाकिस्तान की जीत क्यों हुई, आतंक की अवधारणा क्यों प्रशंसित हुई? भारत का अगला कदम क्या होगा? क्या भारत शंघाई शिक्षर सहयोग संगठन की सदस्यता छोड़ सकता है? पाकिस्तान और चीन वाली चरणवंदना वाले संगठन में सदस्यता की अनिवार्यता पर विचार होना ही चाहिए।
शंघाई सहयोग संगठन का वर्तमन स्वरूप आतंकी है, हिंसक है, शांति विरोधी है और चीनी वर्चस्व वाला है। यह सब बेपर्द हो चुका है। क्योकि इसने भारत में विभत्स और खतरनाक आतंकी हमले पहलगाम का विरोध करने से इनकार कर दिया। जबकि पाकिस्तान के अंदर अस्मिताओं की लडाई को भी आतंक मानकर विरोध कर दिया गया। बलूचिस्तान में मानवाधिकार का घोर और हिंसक उल्लंघन के बाद भी पाकिस्तान की आतंकी अवधारणा को मान्यता मिली, प्रशंसित की गयी।
इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि शंघाई बैठक के बाद सामूहिक घोषणा पत्र सहमति नहीं बन सकी और भारत ने सामूहिक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सीधे तौर पर कह दिया कि पहलगाम आतंकी हमले का विरोध न करना और पाकिस्तान के आंतरिक अस्मिता की लडाई को भी आतंक की परिभाषा के अंदर देखना और मानना घोर आश्चर्य की बात है, शघाई सहयोग संगठन की मूल घोषणाओं और मान्यताओं के खिलाफ है।
ऐसे देखा जाये तो शंघाई सहयोग संगठन के इतिहास में यह कलंकित करने वाली घटना है और अपने द्वारा स्थापित विकास, उन्नति और शांति को दफन करने वाली घटना है। इसके पूर्व इस संगठन में कभी भी ऐसा नही हुआ था कि सामूहिक घोषणा पत्र जारी नहीं हो सका और न ही इस पर सहमति बन पायी। इसके पूर्व दुनिया की समस्याओं और जटिलताओं पर घंघाई सहयोग संगठन की बैठक में गंभीर और सकारात्मक बहसें हुई थी ओर बहसों में मतभिन्नता होने के बावजूद भी सहमति बनती रहती थी और दुनिया के जनमत को अपनी ओर आकर्षित करती रहती थी। अमेरिका ने कभी इस संगठन के खिलाफ अपना भडास निकाला था और इस संगठन को खतरनाक भी बताया था, अमेरिकी हितों के खिलाफ बताया था। सबसे बडी बात यह है कि शंघाई सहयोग संगठन ने कभी भी अपने सहयोग, शांति और विकास की रणनीति पर चला नहीं, क्योकि चीन और रूस खुद ही हिंसक देश है, जिन्होंने खुद अपने पडोसियों और दुनिया को दमन किया है, पीडित किया और संहार भी किया है फिर सहयोग और शांति की उम्मीद कहां से बनती है? सिर्फ और सिर्फ शंघाई सहयोग संगठन एक प्रहसन है, चीनी हितों की रक्षा करने वाला एक मोहरा है, हथकंडा है।
भारत इस संगठन का सदस्य ही क्यों बना था? भारत ने 2017 शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य बना था। इसके पूर्व भारत पर्यवेक्षक देश के रूप में शामिल होता रहा था। नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में ही यह आत्मघाती नीति बनी थी। नरेन्द्र मोदी को किसने यह सलाह दी थी कि शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होना एक श्रेयकर कदम होगा। यह एक आत्मघाती कदम था और भारत के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला कदम था। इसके लिए नरेन्द्र मोदी को दोषी ठहराया जा सकता है। शंघाई चीन का एक शहर है और इस शहर पर चीन बहुत ही नाज करता है और दुनिया को शंघाई के नाम पर चमत्कृत करता है। शंघाई को मैनचेस्टर भी कहा जाता है। यह एक औद्योगिक नगरी भी है, यहां पर सस्ती और व्यवस्थित फैक्टिरियां हैं जो उत्पादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण और अग्रणी मानी जाती है। शंघाई की फैक्टिरियां में बनने वाली वस्तुओं के लिए बाजार के निर्माण के लिए भी चीन की यह नीति थी। चीन दुनिया में सस्ती समानों के निर्माण में अग्रणी है। चीन अपने हितों की रक्षा के लिए शंघाई जैसे छोटे-छोटे समूहों में मोहरा और हथकंडा खडा करता रहा है।
चीन हमारा स्थायी दुश्मन है। चीन हमारा संहार चाहता है। चीन ने हमारे खिलाफ एक मजबूत गोलबंदी बनायी हुई है। दुनिया के हर मंच पर चीन हमारा विरोध करता है और हमें अपमानित करता है। शंघाई सिर्फ और सिर्फ चीनी वर्चस्व वाला संगठन है। फिर नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कैसे यह समझ लिया कि शंघाई सहयोग संगठन भारत के लिए एक अवसर है, समृद्धि के प्रतीक है, उन्नति के लिए सहायक सिद्ध होगा। चीन ने भारत को मूर्ख भी बनाया है। भारत भी मूर्ख बन गया और वह भी आसानी स ेमूर्ख बन गया। चीन ने प्रस्ताव दिया था कि भारत इस संगठन की अध्यक्षता करे। चीन की इच्छानुसार भारत 2023 में इस संगठन का अध्यक्ष था। चीन को यह मालूम था कि भारत की अध्यक्षता करने पर भी उसके हित सुरक्षित रहेंगे, क्योंकि भारत अध्यक्ष होने के बावजूद कुछ नहीं कर सकता है, शंघाई सहयोग संगठन के नियमावली और मूल चरित्र में कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है। वर्चस्व तो उनका ही है, मूल चरित्र पर परिवर्तन के लिए जरूरी वोट भी भारत के पास नहीं है। भारत तो अकेला है। अन्य सदस्य देश जैसे पाकिस्तान,कांजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान कभी भारत का साथ नहीं देंगे। पाकिस्तान, काजीकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान एक तरह से चीन के ही गुलाम है। जहां तक रूस का प्रश्न है तो फिर ब्लादमिर पुतिन की पैंतरेबाजी को कौन नही जानता है? सोवियत संघ की तरह रूस विश्वसनीय नहीं है। अभी-अभी पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में पुतिन ने भारत का नैतिक समर्थन करने से भी इनकार कर दिया था। जब भारतीय हित की सुरक्षा की बात आयेगी तब पुतिन और उनका रूस शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में चुप्पी साध साध लेंगे। रूस ने अभी-अभी समाप्त हुई शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भारत की चिंता का समर्थन करने की जरूरत भी नहीं समझी।
क्या भारत अपमानित होने के लिए शंघाई समूह की सदस्या बनाये रखें हुए है? शंघाई सहयोग संगठन में पाकिस्तान की उपस्थिति भी चिंताजनक है, मूल भावना और मूल चरित्र के विपरीत है और दोहरे चरित्र का परिचायक है। यह कैसी मूल भावना है कि एक हिंसक और आतंकी देश को सदस्य बना देना। कौन नहीं जानता है कि पाकिस्तान का असली चरित्र कैसा है, उसकी भूल भावना और मूल चरित्र कैसा है? पाकिस्तान एक आतंकी देश है, एक हिंसक देश है। यह सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में आतंक की आउटसोर्सिंग की है, आतंक की आउट सोर्सिंग कर दुनिया की शांति और सदभाव को नुकसान पहुंचाया है। अभी-अभी ज्ञात हुआ है कि चीन ने पाकिस्तान की जासूसी मदद की थी। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने रहस्योदघाटन किया है कि चीन ने सेटेलाइट जानकारी पाकिस्तान को उपलब्ध करायी थी और पाकिस्तान ने इस जानकारी को हमले में उपयोग किया था। अभी-अभी पाकिस्तान और चीन की एक और जुगलबंदी देखने को मिली है। शघाई सहयोग संगठन की बैठक में चीन ने पाकिस्तान को साथ दिया और कह दिया कि पाकिस्तान के अंदर होने वाले आतंकी घटना घातक और मानवता के प्रति अपराध है। जबकि पाकिस्तान एक खुद आतंकी देश है। पाकिस्तान और चीन की जुगलबंदी का ही प्रमाण है कि पहलगाम की आतंकी घटना के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने शंघाई सहयोग संगठन ने इनकार कर दिया था। जबकि भारत ने पहलगाम आतंकी घटना पर निंदा प्रस्ताव पारित कराने की पूरी कोशिश की थी, पर किसी सदस्य देश ने भारत का साथ नहीं दिया।
भारत को अपमान से बचना है, भारत को अपने हितों को सुरक्षित रखना है, भारत अगर पाकिस्तान को बेनकाब करना चाहता है और उसे आईना दिखाना चाहता है तो फिर चीन और पाकिस्तान के खिलाफ तन कर खडा होना होगा। शंघाई समूह जैसे चीनी और पाकिस्तानी मूल भावना के प्रतीकों से अलग होना ही चाहिए। शंघाई चीनी समूह से भारत को अलग हो जाना चाहिए। भारत अपना पैसा और समय शंघाई चीनी समूह पर बेअर्थ खर्च कर रहा है
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