Thursday, June 19, 2025

जिहाद की डाॅक्टरी पढाता है ईरान







               जिहाद की डाॅक्टरी पढाता है ईरान
                                  जिहाद पढ़़कर आते हैं और बनते हैं जिहादी


             
                              ( आचार्य श्रीहरि )


ईरान से पन्द्रह सौ मुस्लिम छात्रों को भारत सरकार वापस ला रही है। कई विमान आ चुके हैं। कई आने वाले हैं। इनको लाने के लिए करोडों रूपये खर्च होंगे। ये सभी मुस्लिम छात्र ईरान के अंदर खतरे में थे और इन पर इस्राइल की मिसाइलें गिरने का डर था। इस्राइल से इनके जान को खतरा था। इस्राइल के मिसाइल हमलों से ईरान की राजधानी तेहरान और अन्य प्रमुख शहर कब्र बन रहे हैं। किसी भी देश का फर्ज बनता है कि वह अपने नागरिकों को खतरे की जगह से सकशुल बाहर निकाले और उनको सुरक्षित जगह पहुंचाये। इस सिद्धांत पर भारत सरकार का कदम सराहनीय है। पर एक प्रश्न यह उठता है कि क्या भस्मासुरों को वापस लाना, क्या हिंसक और आतंकी मानसिकता के लोगों को वापस लाना जैसे कदम मुसीबतों का आमंत्रण देना नहीं है, अपना ही संहार करने जैसा नहीं है, हिंसा और आतंकवाद को समृद्ध करना नहीं है? सच तो यह है कि ईरान जिहाद की डाॅक्टरी पढाता है और ईरान के विश्वविद्यालयों से निकले डाॅक्टर धारी जिहाद जैसे इस्लामिक कार्यो में सक्रिय रहते हैं, हमास, हिजबुल्लाह और हूती, आईएस जैसे मुस्लिम आतंकी संगठनो के लिए हथियार का काम करते हैं।
                  भारत ही दुनिया का एक मात्र देश है जो अपने भस्मासुरों, आतंकियों और हिंसकों तथा मजहबी तौर पर पागल मानसिकता के लोगों को विदेशों से वापस लाने और उनकी चरणवंदना करने में लगा रहता है, करोडों और अरबों रूपये खर्च कर देता है। यह विचारण करने की जरूरत भी नहीं समझा जाता कि जिनको वापस देश लाया जा रहा है उनकी पृष्ठभूमि क्या है, जिनकी कहीं कोई आतंकी और हिंसक काफिर मानसिकता तो नहीं है, कहीं ये भारत विरोधी अभियान और मानसिकता के सहचर तो नहीं रहे हैं। ईरान से भारत लाये जा रहे पन्द्रह सौ छात्रों में अधिकतर कश्मीरी छात्र हैं जो कश्मीर से इस्लामिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए ईरान गये थे। कश्मीर ही वह जगह है जहां से मुसलमानों ने हिंसा के बल पर हजारों हिन्दुओं को कत्ल कर दिया और लाखों हिन्दुओं को कश्मीर से भगा दिया। कश्मीर में इस्राइल विरोधी मानसिकताओं का बाजार लगा हुआ है। कश्मीर में इस्राइल के खिलाफ रोज प्रदर्शन हो रहे हैं और मुस्लिम यूनियन की हिंसक जिहाद जारी है। मुस्लिम देशों से पढकर आने वाले मुस्लिम छात्र भारत विरोधी गतिविधियों और पाकिस्तान परस्ती अभियानों में लगे रहते हैं।
             ईरान पढने जाते ही क्यों हैं? ईरान की एमबीबीएस डिग्री और अन्य डिग्रियां कौन सी समृद्ध होती हैं? एक जिहाद की मानसिकता से ग्रसित देश में शिक्षा का कौन सा वतावरण समृद्ध होता है? जिहाद की मानसिकता से ग्रसित देश में आधुनिक ज्ञान और विज्ञान की उम्मीद ही बेकार है, बैमानी है, खुशफहमी है। मालूम यह हुआ कि जो पन्द्रह सौ छात्र लाये जा रहे है वे अधिकतर मेडिकल की शिक्षा लेने गये थे। कहने का अर्थ यह है कि पे सभी एमबीबीएस की डिग्री लेने गये थे। ये एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद भारत में डाॅक्टर बन जायेंगे। अधिकतर छात्र जम्मू कश्मीर का प्रतिनिधित्व करते हैं। जम्मू-कश्मीर में एक तरह से जिहाद चल रहा है, अपने बच्चों को ईरान सहित अन्य मुस्लिम देशों में भेजों और इंजीनियर-डाॅक्टर बनाओ। ईरान और अन्य मुस्लिम देशों में भारत के मुस्लिम बच्चों को रियायती दर पर मेडिकल शिक्षा उपलब्ध कराया जाता है। एक सूत्र का कहना है कि मुश्किल से 20 लाख रूपये में मेडिकल की शिक्षा हासिल हो जाती है। सबसे बडी बात यह है कि कई मुस्लिम संगठन ऐसे हैं जो ईरान और अन्य मुस्लिम देशों में मेडिकल-इंजीनियरिगंग करने वाले मुस्लिम छात्रों को धन उपलब्ध करते हैं। मेडिकल शिक्षा के लिए भारत में कमसे कम एक करोड तो फिर अमेरिका और यूरोप में करोड़ों रूपये खर्च करने पडते हैं।
                    ईरान सहित अन्य मुस्लिम देशों में मेडिकर और इंजीनियरिंग की शिक्षा के दौरान जिहाद की भी शिक्षा दी जाती है। इस्लाम में जिहाद अनिवार्य है। काफिर मानसिकता भी जागजाहिर है। इस्लाम और कुरान कहता है कि काफिरों के प्रति निष्ठुर रहो, उनसे दोस्ती कर विश्वासघात करो, उनकी हत्या करो, इनकी पत्नियों को रखैल बनाओ। काफिर उसे कहते हैं जो इस्लाम को नही मानते हैं। एक मुसलमान के लिए हिन्दू, ईसाई यहूदी सब काफिर हैं। इसीलिए काफिर देश में इन्हें इस्लाम का शासन चाहिए। दुनिया में हर जगह सिर्फ मुसलमानों को ही अन्य सभी धर्मो से समस्या भी इसी कारण होती है, इनका आतंक और हिंसा के पीछे की कहानी भी यही है। ईरान एक घोर इस्लामिक मान्यताओं का देश है। ईरान अपने देश में पढने वाले हर छात्र को इस्लाम की हिंसक मान्यताओं पर सौ प्रतिशत खरा उतरने का संदेश देता है और पालन करने की अनिवार्यता भी सुनिश्चित करता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि ईरान से वापसी करने वाले छात्र पूरी तरह से जिहादी रंग में रंगे होंगे।
                        ये मुस्लिम छात्र कोई पढाकू भी नहीं होते हैं, कोई ज्ञानी भी नहीं होते हैं। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के भी सहचर नहीं होते हैं,  कोई विशेष प्रतिभाशाली भी नहीं होते हैं। फिर क्या होते हैं? ये सिर्फ और सिर्फ अनपढ होते हैं, मुल्ला संस्कृति के होते हैं। अधकचरे दिमाग के होते हैं। जिन्हें भारत में मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में जगह नहीं मिल पाती हैं, योग्य नहीं समझा जाता है वैसे ही छात्र मुस्लिम इेशों में जाते हैं। जहां पर प्रतियोगिता का कोई स्थान नही होता है, प्रतिभा का कोई स्थान नहीं होता है, चयन की कोई मानक प्रक्रिया नहीं होती है। शैक्षणिक योग्यता का भी कोई परीक्षण नही होता है। शैक्षनिक योग्यता के कागजों को बिना परीक्षण कराये स्वीकार कर लिया जाता है। भारत में मेडिकर-इंजीनियरिंग शिक्षा के लिए अयोग्य छात्र मुस्लिम देशों में योग्य कैसे बन जाते हैं। इस पर भारत सरकार को संज्ञान लेने की जरूरत है।
                 सबसे बडी बात यह है कि ये मुस्लिम देशों में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान भारत की ही कब्र खोदते हैं, भारत को एक हिंसक देश बताते हैं, भारत में इस्लाम खतरे का नारा लगाते हैं, पाकिस्तान परस्ती दिखाते हैं। ऐसा कई उदाहरण सामने हैं। शेख अतीक का प्रकरण बहुत ही घातक और जिहादी है। यह प्रकरण सुषमा स्वरराज से भी जुडा हुआ है। सुषमा स्वराज उस समय भारत के विदेश मंत्री थी। फिलिपीन से शेख अतीक नामक मुस्लिम छात्र ने सुषमा स्वराज से मदद मांगी थी और नया पासपोर्ट जारी करने की मांग की थी। शेख अतीक ने अपनी राष्ट्रीयता कश्मीरी बतायी थी, उसकी सोशल मीडिया प्रोफाइल पाकिस्तान परस्ती से भरी पडी थी। इस पर सुषमा स्वराज ने उससे कहा था कि भारतीय पासपोर्ट सिर्फ और सिर्फ भारतीय राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करने वालों के लिए होता है। फिर जान बचाने के लिए शेख अतीक ने अपने आवेदन में भारतीय लिखा था फिर सुषमा स्वराज ने उसकी मदद की थी। ईरान से वापसी करने वाले मुस्लिम छात्रों को भी भारत तभी याद आता है जब वे संकट में होते हैं, नही ंतो ये शायर मोहम्मद इकबाल की तरह जिहादी होते हैं और कहते हैं कि हम हैं मुसलमां और सारा जहां हमारा। शायर मोहम्मद इकबाल ने लिखा था कि सारे जहां से अच्छा हिन्दूस्ता हमारा, जब उस पर जिहादी रंग चढा तब उसने लिखा था कि हम हैं मुसलमां और सारा जहां हमारा। यानी कि यह धरती और आसमान सिर्फ मुसलमानों के लिए है।
                      छात्र भारत लौट कर करेंगे क्या? ये इस्लामिक जिहाद के ही सहचर बनेंगे। ईरान में मजहबी शिक्षा और मानसिकता से ग्रसित ज्ञान का दुरूपयोग हिन्दुओं के संहार  में करेंगे और इस्लाम के प्रचार में लगायेंगे। अमेरिका में पढने वाले कई भारतीय मुस्लिम छात्र इस्राइल के खिलाफ हिंसक गतिविधियो में शामिल रहे हैं और अमेरिका के हितों का नुकसान पहुंचाने के साथ ही साथ भारत के हितों की भी कब्र खोदते हैं। इस्राइल के साथ हमारी सामरिक दोस्ती है, समझदारी भी है। अमेरिका ने ऐसे मुस्लिम छात्रो को निकालना शुरू कर दिया है, दंडित करना शुरू कर दिया है। भारत को भी अब मुस्लिम छात्रों के लिए कोई न कोई बंधन बनाना होगा और निर्देश देना होगा। खासकर मुस्लिम देशों की शिक्षा को मान्यता से वंचित करना होगा। उचित चयन प्रक्रिया का पालन नहीं करने वाले देशों के शिक्षा को शून्य घोषित करना होगा।


संपर्क:
आचार्य श्रीहरि
नई दिल्ली
Mobile        9315206123

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