Monday, August 17, 2020

मुस्लिम दुनिया में खिच गयी तलवारें

 



                                            राष्ट्र-चिंतन

मुस्लिम दुनिया में  खिच गयी तलवारें

          विष्णुगुप्त





इजरायल और यूएई के बीच हुए कूटनीतिक समझौते से मुस्लिम दुनिया में तलवारें .िखंच गयी हैं। मुस्लिम आतंकवादी संगठन,  इस्लामिक संगठन, मुस्लिम देश सभी तलवारें भांज रहे हैं। यह कहने से चूक नहीं रहें हैं कि यूएई ने दुनिया के मुसलमानों के साथ धोखा किया है, उस इजरायल के साथ कूटनीतिक समझौता किया है जिस इजरायल के खिलाफ दुनिया भर के मुसलमान वर्षो से लड़ते आये हैं। खासकर ईरान और तुर्की का विफरना बहुत ही चिंता की बात है और ईरान-तुर्की जैसे देश मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की भाषा ही बोल रहे हैं, ईरान का अखबार कायहान  लिखता है कि यूएई पर आक्रमण बोल देना चाहिए। जानकारी योग्य बात यह है कि कायहान अखबार इस्लाम की कट्टरवादी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता है और कायहान अखबार के संपादक की नियुक्ति ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातोल्लाह खेमनई करते हैं, उसके संपादकीय पर भी अयातोल्लाह खमेनई का नियंत्रण होता है। इसलिए कायहान अखबार के दृष्टिकोण को ईरान की इस्लामिक सरकार का दृष्टिकोण माना जाता है।
                               जहां तक मुस्लिम आतंकवादी संगठन अलकायदा, आईएस, हूजी और हमास तथा हिजबुल मुजाहिदीन आदि का प्रश्न है तो ये सभी मुस्लिम आतंकवादी संगठन न केवल आगबबूला हैं बल्कि इजरायल के खिलाफ पूरी मुस्लिम दुनिया को भड़काने और इजरायल के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने का आह्वान कर रहे है। ईरान-तुर्की जैसे कट्टरवादी मुस्लिम देशों की नाराजगी या फिर इनकी युद्ध जैसी धमकियां इजरायल के लिए कोई अर्थ नहीं रखती है और न ही इजरायल को चिंता में डालने जैसी हैं। इजरायल अपने दृष्टिकोण पर अडिग और अटल रहता है उसे कोई डिगा नहीं सकता है। ईरान, तुर्की और मलेशिया जैसे देश तो इजरायल के खिलाफ नियमित कूटनीतिक हिंसा पर सवार ही रहते हैं। हमास, हिजबुल मुजाहिदीन, हूजी और आईएस जैसे मुस्लिम आतंकवादी संगठन तो नियमित तौर पर इजरायल के खिलाफ आतंकवादी हिंसा के तौर पर सक्रिय ही रहते हैं। यूएई ने भी इस तरह की कट्टरपंथी मानसिकता को झेलने के लिए विचार कर ही लिया होगा। अगर ऐसा नहीं होता तो फिर यूएई कभी भी इजरायल के साथ कूटनीतिक समझौता करने का खतरा नहीं लिया होता?
यूएई और इजरायल के बीच कूटनीतिक साझेदारी का समझौता कई अर्थ रखते हैं। मुस्लिम दुनिया के साथ ही साथ शेष दुनिया के लिए कई गंभीर और लाभकारी अर्थ हैं, जिनकी अभी तक कोई व्याख्यता नहीं हुई हैं। कहने का अर्थ यह है कि यह समझौता सही में मील का पत्थर साबित होगा, मुस्लिम दुनिया की कट्टरपंथी मानसिकताओं पर चोट करने जैसा साबित होगा, मजहब के आधार पर बर्बर गोलबंदी के खिलाफ एक सशक्त हथियार बनेगा, सबसे बडी बात यह है कि दुनिया में जितने भी आतंकवादी संगठन हैं उन सबकी मजहबी मानसिकताएं भी कमजोर होंगी, उन मजहबी आतंकवादी संगठनो के हिंसा और नेटवर्क को भी जमींदोज करने का अवसर मिलेगा। सबसे बड़ा अवसर अरब दुनिया की सुरक्षा और विकास के क्षेत्र में है। अरब देश अभी भी अपनी सुरक्षा दृष्टिकोण के मायने में बेहद कमजोर हैं और उन्हें मेरा इस्लाम अच्छा और तुम्हारा इस्लाम खराब की मानसिकता का खतरा हमेशा रहता है। जानना यह भी जरूरी है कि यूएई और सउदी अरब जैसे सुन्नी मुस्लिम देशों के सामने ईरान-तुर्की और पाकिस्तान प्रायोजित मुस्लिम आतंकवाद का खतरा हमेशा खड़ा रहता है। सउदी अरब ने अपने यहां मजहबी कट्टरपंथियों को जमींदोज करने के लिए कठोर कानूनों का सहारा लिया है फिर मजहबी कट्टरपंथी अपनी आतंकवादी हिंसा से बाज नहीं आते हैं। इजरायल के पास सुरक्षा टैक्नोलाॅजी हैं, इजरायल के पास मुस्लिम आतंकवाद से लड़ने का सत्तर साल से भी अधिक समय का अनुभव है।
                                                         इस समझौते की गूंज सिर्फ मुस्लिम दुनिया में ही नहीं दिखायी दी है, इस समझौते की गूंज अमेरिका और यूरोप में दिखायी दी है। खासकर डोनाल्ड ट्रम्प की यह एक शानदार जीत के तौर पर देखा जा रहा है और फिलिस्तीन समस्या के समाधान के प्रति सकारात्मक पहलू की ओर बढने के लिए प्रेरित करता है। अब आप यह प्रश्न उठायेंगे कि समझौता इजरायल और यूएई के बीच हुआ है तो फिर डोनाल्ड ट्रम्प की शानदार जीत कैसे हुई है? अगर इस कूटनीतिक समझौते पर विचार करेंगे तो पायेंगे कि यह समझौता डोनाल्ड ट्रम्प की ही देन है, यह समझौता डोनाल्ड ट्रम्प ने ही कराया है। इस अर्थ में डोनाल्ड ट्रम्प बेहद ही सफल राजनीतिज्ञ साबित हुए हैं, डोनाल्ड ट्रम्प की वीरता यह है कि उसने अरब समूह के एक महत्वपूर्ण देश यूएई को इजरायल के खिलाफ बनी-बनायी अवधारणा को तोड़ देने और इजरायल के साथ समझौता करने के लिए प्रेरित किया । पिछले तीन-चार दशकों में अमेरिका मे कई राष्ट्रपति हुए जैसे जार्ज बुश, बिल क्लिंटन, बराक ओबामा आदि पर ये भी बडी कोशिश की थी कि इजरायल को लेकर अरब समूह के देशों का दृष्टिकोण बदले, इजरायल के साथ समझौते करें और इजरायल को अक्षूत मानने जैसी मुस्लिम देशों की कट्टर मानसिकताओ का पतन हो पर इस मामले में बिल क्लिंटन , जार्ज बुश और बराक ओबामा असफल ही साबित हुए थे। निश्चित तौर पर डोनाल्ड ट्रम्प एक पक्के राजनीतिज्ञ की भूमिका निभायी है। मीडिया और राजनीति में इसके पहले डोनाल्ड ट्रम्प को एक अति अगंभीर और भस्मासुर राजनीतिज्ञ माना जाता था। पर अब मीडिया और राजनीतिक क्षेत्र को भी डोनाल्ड ट्रम्प के प्रति दृष्टिकोण बदल लेना चाहिए। डोनाल्ड ट्रम्प अरब समूह के अन्य मुस्लिम देशों का नजरिया भी बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने यह संदेश देने में भी सफल हुए हैं कि युद्धकाल में अरब देशों को इजरायल की सुरक्षा शक्ति की जरूरत होगी। इजरायल के पास जो सुरक्षा शक्ति हैं उसका प्रयोग अरब समूह की सुरक्षा के लिए किया जा सकता है। अरब समूह पर ईरान, तुर्की जैसे देशों की युद्धक मानसिकता का खतरा मंडराता रहता है। ईरान और तुर्की जैसे देशों ने अरब समूह के कई देशों में हूजी और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे मुस्लिम आतंकवादी संगठनो को संरक्षण और सहायता देकर आतंकवाद की घटनाओं को अंजाम दिला रहे है। इस कारण अरब समूह के कई देशो की सुरक्षा चिंताएं भी बढी हैं। अमेरिका को भी कम लाभ नहीं होने वाला है। अरब समूह में चीन, उत्तर कोरिया, रूस और ईरान की सुरक्षा गठजोड़ के खिलाफ एक सशक्त पार्टनर की आवश्यकता थी। इजरायल के अरब समूह के देशों में सक्रियता बढने से अमेरिकी सामरिक शक्ति भी मजबूत होगी।
                                                      यूएई ऐसा तीसरा मुस्लिम देश बन गया है जिसका कूटनीतिक संबंध इजरायल के साथ है। इसके पहले मिश्र और सीरिया का कूटनीतिक संबध इजरायल के साथ बने है। खासकर मिश्र में इजरायल गैस और तेल उत्खनन में बहुत बडी भूमिका निभा रहा है। सीरिया और मिश्र भी कभी इजरायल के खिलाफ ईरान, तुर्की, मलेशिया जैसे मुस्लिम देशों की ही मानसिकता से ग्रसित थे। सीरिया और मिश्र भी अपने आप को मुस्लिम दुनिया का बादशाह बनने का सपना देखा था। फिलिस्तीन के प्रश्न पर सीरिया और मिश्र ने इजरायल के साथ युद्ध मोल ले लिया था। उस काल में पूरी मुस्लिम दुनिया मिश्र और सीरिया के साथ खडी थी तथा इजरायल का सर्वनाश चाहती थी। पर इजरायल ने अकेले मिश्र और सीरिया सहित पूरी मुस्लिम दुनिया को पराजित कर दिया था। मिश्र और सीरिया के एक बडे भूभाग पर कब्जा कर लिया था। मिश्र और सीरिया ने इजरायल के प्रति आत्मसमर्पण कर अपने इलाके वापस लिये थे। सीरिया तो आज खुद गृह युद्ध में फंसा हुआ है पर मिश्र जरूर इजरायल के साथ आपसी साझेदारी से लाभार्थी है। मिश्र ने इस समझौते का स्वागत भी किया है।
                                             इजरायल का नरम होना, अरब समूह के देशों के साथ समझौते की राह पर खड़ा होना दुनिया के लिए एक अच्छी कूटनीतिक पहल है। फिलिस्तीन समस्या के प्रति भी रूख सकारात्मक है। इजरायल ने वायदा किया है कि फिलिस्तीन की मुस्लिम बस्तियों को इजरायल मे मिलाने का कार्य स्थगित कर देगा।  हाल के वर्षो में मुस्लिम दुनिया की मजहबी रूख को प्रदर्शित करते रहने पर इजरायल भी कड़ा रूख अपना लिया था। इजरायल ने विवादित मुस्लिम बस्तियो को अपने में मिलाने का कार्य तेज कर दिया था। इस कारण फिलिस्तीन और इजरायल के बीच हिंसा चरम पर पहुंच गयी थी। यह हिंसा शांतिपूर्ण दुनिया के लिए भी चिंता के विषय थी। फिलिस्तीन समस्या का हिंसक समाधान कभी भी नहीं हो सकता है। हिंसा के बल पर इजरायल को डराया नहीं जा सकता है। इजरायल के साथ समझौते की कसौटी पर ही फिलिस्तीन समस्या का समाधान संभव है। आज यूएई समझौते के राह पर आया है कल अन्य अरब समूह के देश भी इजरायल के साथ समझौते की राह पर बैठेगे। इजरायल के प्रति अरब समूह के देशों का बढता रूझान और बदलती नजरिया दुनिया की कूटनीति और शांति के लिए मिसाल बनेगी। ईरान, तुर्की और मलेशिया जैसे मुस्लिम देशों और हमास हिजबुल मुजाहिदीन, हूजी, अलकायदा और आईएस जैसे मुस्लिम आतंकवादी संगठन का नेटवर्क और इनकी कट्टपंथी मानसिकताएं भी कमजोर होगी।



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विष्णुगुप्त
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VISHNU GUPT
COLUMNIST
NEW DELHI
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