Monday, August 10, 2020

 


 
                      राष्ट्र-चिंतन
 
हिन्दुत्व को मिटाने में खुद कांग्रेस लगभग मिट गयी  


कांग्रेस के लिए ‘ हिन्दुत्व ‘ है मौत का रास्ता

          विष्णुगुप्त



हिन्दुत्व के महान विचारक वीर सावरकर  का कहना था कि जिस दिन हिन्दू एक हो गये उस दिन कांग्रेस के नेता कोर्ट के उपर भी जनेउ पहनना शुरू कर देंगे। अभी तक हिन्दू पूरी तरह से एक भी नहीं हुए हैं, अभी तक हिन्दू पूर्ण रूप से जाग्रत भी नहीं हुए हैं, अभी तक हिन्दू अपने हितों की सुरक्षा के लिए पूरी तरह से गंभीर भी नहीं हुए हैं, अभी तक हिन्दू उन राजनीतिक दलों को पूरी तरह से खारिज करने के लिए तैयार भी नहीं हैं जो राजनीतिक दल हिन्दुत्व की कब्र खोदते हैं, हिन्दुत्व को अपमानित करते हैं, हिन्दुत्व को लांक्षित करते हैं, अभी तक हिन्दू अल्पसंख्यक मुस्लिमों की तरह भीड़ खडी कर बवाल तक नहीं काटते हैं , अभी तक हिन्दू पूरी तरह से जाति बंधन से मुक्त भी नहीं हुए हैं, अभी तक हिन्दू एकजुटता की श्रेणी में खडें होकर पूरी तरह से भाजपा को सपोर्ट में भी नहीं होते हैं, अभी तक दक्षिण के क्षेत्र में रहने वाले हिन्दुओं के लिए राजनीतिक एकता कोई  अर्थ नहीं रखता है, यही कारण है कि हिन्दुत्व के नाम पर सत्ता में राज करने वाले नरेन्द्र मोदी को मात्र 36 प्रतिशत वोट ही हासिल होते हैं।
                            फिर भी कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियां जरूर हाशिये पर खडी हो गयी हैं और अपनी राजनीतिक चमक भी खो चुकी हैं। भाजपा के हिन्दुत्व के सामने इनकी हर राजनीतिक गतिविधियां और हर राजनीतिक रणनीतियां भी बेकार और विफल साबित हो रही हैं। इसका दुष्परिणाम अब यह सामने आ रहा है कि कल तक जो कांग्रेस हिन्दुत्व की कब्र खोदने के लिए सक्रिय रहती थी और उसके नेता सरेआम हिन्दुओं को अपमानित करते थे वह कांग्रेस और कांग्रेस के नेता हिन्दुत्व के समर्थन में खडे हो रहे हैं। कांग्रेस को राममंदिर पूजन समारोह का समर्थन करना पड़ा, राहुल गांधी-प्रियंका गांधी को यह कहना पड़ा कि भगवान राम सबके हैं, रामजन्म भूमि का ताला तो राजीव गांधी ने खुलवाया था। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि कांग्रेस के नेता कमलनाथ एक कदम और आगे बढ गये, मध्य प्रदेश कांग्रेस कमिटी के कार्यालय में भगवान राम की तस्वीर लगायी। भूमि पूजन के दिन कांग्रेस के कई कार्यालयो में दीप प्रज्वलित किये गये। यह दिखाने की कोशिश हुई कि कांग्रेस हिन्दुत्व का समर्थन करती है और कांग्रेस भगवान राम का सम्मान करती है। कांग्रेस की इस पलटीमार राजनीति से लोग अंचभित हैं। यह पल्टीमार राजनीति कांग्रेस के लिए मौत का रास्ता बनेगा क्या? इस पल्टीमार राजनीति को हिन्दुत्व में विश्वास करने वाला जनमानस कितना स्वीकार करेगा?
                                हिन्दुत्व विरोधी राजनीति और क्रियाकलाप की करतूत से कांग्रेस भरी पडी हुई है। कांग्रेस आज कह रही है कि राममंदिर का ताला राजीव गांधी ने खुलवाया था तो फिर कांग्रेस इतने सालों तक राममंदिर निर्माण के खिलाफ क्यों खडी रही, कांग्रेस के वकील लोअर कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक क्यों दौड लगाते रहे थे, सुप्रीम कोर्ट में राममंदिर पर फैसले रोकवाने के लिए कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल क्यों खडे थे? हिन्दुत्व में विश्वास करने वाले लोग कपिल सिब्बल के उस बयान को कैसे भूल जायेंगे जिसमें उन्होंने कहा था कि राममंदिर बन जायेगा तो वे आत्महत्या कर लेगे। आज जिस भगवान राम के प्रति कांग्रेस अथाह प्रेम दिखा रही है और भगवान राम का सम्मान कर रही है, भगवान राम को देश के सभी दिलों में राज करने वाले के रूप में प्रतिपादित कर रही है उस राम के प्रति कांग्रेस का असली दृष्टिकोण क्या है? यह कौन नहीं जानता है? इसी कांग्रेस ने भगवान राम के अस्तित्व को नकारा था। रामसेतु प्रकरण कौन भूल सकता है? रामसेतु तोडवाने के लिए कांग्रेस अग्रसित थी, किसी भी स्थिति में रामसेतु का विध्वंस कांग्रेस चाहती थी। सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस की सरकार ने एफीडेविट देकर कहा था कि रामसेतु को तोड़ना लाभकारी है, राम का कोई अस्तित्व नहीं है, राम कोई भगवान नहीं बल्कि काल्पनिक पात्र हैं। भगवान राम के अस्तित्व को नकार कर कांग्रेस ने एक तरह से अपने पैरों में कुल्हाडी मारी थी। उस समय कांग्रेस को यह उम्मीद नहीं होगी कि यही उसकी गलती उसके अस्तित्व के लिए काल बन जायेगी?
                                    दुनिया में कोई भी पार्टी अपनी मूल जड़ से कभी कटती नहीं है, अपनी मूल और निर्णायक-बहुमत वाली आबादी को कब्रगाह बनाने या फिर उसे हाशिये पर खडी करने की कोशिश नहीं कर सकती है। ऐसा करने वाली राजनीति पार्टी की जड़ खूद ही अस्तित्व से कट जाती है। आजादी के प्राप्ति के बाद ही कांग्रेस की यह हिन्दू विरोधी राजनीति जारी हुई थी जो अभी तक कांग्रेस के अंदर जारी है। ऐसी आत्मघाती राजनीति नहीं होती तो फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यह कहने का साहस नहीं होता कि देश के संसाधनों पर पहला और असली अधिकार मुसलमानों का है। राहुल गांधी को अमेरिकी प्रतिनिधि से यह कहने का साहस नहीं होता कि देश को असली खतरा हिन्दुत्व से है। कांग्रेस के दस साल के पिछले शासन के दौरान पी चिदम्बरम और सुशील कुमार शिंदे को हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी लाने-गढने की हिम्मत ही नहीं होती। हिन्दू आतंकवाद की प्रत्यारोपित थ्योरी ने भाजपा को अपने जनाधार वर्ग को फिर से एकत्रित करने और कांग्रेस की जड़ो में हिन्दुत्व का मठा डालने के लिए अवसर दिया था। मरी हुई भाजपा फिर से इसी कसौटी पर जिंदा हुई थी।
                           हिन्दुत्व को मिटाने में खुद कांग्रेस लगभग मिट गयी। सोनिया गांधी ने एक ऐसा विधेयक लाना चाहती थी कि किसी भी दंगें में दोषी हिन्दुओं को ही ठहराया जाता। इस विधेयक का नाम दंगा रोधी विधेयक था, यह विधेयक पाकिस्तान प्रायोजित बुद्धिजीवियांें और मुस्लिम-कम्युनिस्ट त्रिकोण के दिमाग की करतूत थी। तीस्ता सीतलवाड़ इस विधेयक की अगुआ थी। इस विधेयक की प्रस्तावना जैसे ही उजागर हुई थी वैसे ही देश में हाहाकार मच गया था। हिन्दूवादी संगठन का गुस्सा सातवे आसमान पर था। इस हिन्दू विरोधी विधेयक के खिलाफ हिन्दूवादी संगठनों ने पांच सालों तक अभियान चलाया था। अगर 2014 में भी कांग्रेस लौट जाती तो फिर उस विघेयक को कांग्रेस संसद से पास करा ही लेती। गाय के प्रति हिन्दू धर्म के लोगो के प्रति आस्था कैसी है, यह भी जगजाहिर है। जब हिन्दू संगठनों ने गौ रक्षा के प्रति अभियान चलाया तो फिर केरल में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सरेआम गाय के बछडे को काटा और गौ मांस की पार्टी की थी। ऐसी करतूत सिर्फ हिन्दुओ को भड़काने और हिन्दुओं की भावनाएं आहत करने के लिए की गयी थी। गौ हत्या को लेकर इन्दिरा गांधी की बर्बरता भी अब हिन्दुओं के सामने यक्ष प्रश्न बन गया है। इन्दिरा गांधी के राजकाज के समय 1970 के दशक में दिल्ली में निहत्थे साधुओं ने गौ रक्षा के लिए प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन पर बर्बर गोलियां चलायी गयी थी, कहा जाता है कि एक हजार से अधिक निहत्थे साधुओं की हत्या की गयी थी, दिल्ली की सड़के निहत्थे साधुओं की खूनों से रंग गयी थी।
                                 अभी भी कांग्रेस हिन्दुत्व के प्रश्न पर कोई एक मत राय नहीं रखती है। हिन्दुत्व को लेकर कोई सर्वमान्य स्थिति उत्पन्न करने में कांग्रेस विफल रही है। कांग्रेस के अंदर में अभी हिन्दू विरोधी नेताओं की कोई कमी नहीं है। शशि थरूर अपने एक लेख में सरेआम दावा करते हैं कि धारा 370 का हटाना गैर संवैधानिक करतूत है और कांग्रेस केन्द्र में सत्ता की वापसी करेगी तो फिर से धारा 378 की वापस लायेगी। शशि थरूर रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण का भी विरोधी करते हैं।शशि थरूर कहते हैं कि सत्ता में जब हमारी वापसी होगी तब हम राममंदिर निर्माण कार्य बंद करा देंगे। कांग्रेसी सांसद टीएन प्रथापन ने राममंदिर निर्माण को देश का हिन्दूकरण करने वाला बताया है और सोनिया गांधी से राममंदिर निर्माण का समर्थन करना बंद करने की मांग की है। देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब राममंदिर निर्माण कोई रोक नहीं सकता है, राममंदिर रोकने वाली सरकार अब बनेगी, यह कहना भी मुश्किल है। धारा 370 की वापसी लाने वाली सरकार उसी तरह दफन होगी जिस तरह से कांग्रेस 2014 में दफन हुई थी। कांग्रेसी नेताओं के इस तरह की बयानबाजी और राजनीति करतूत से कांग्रेस ही कमजोर, अविश्वसनीय और आत्मघाती बन जाती है।
                          अब भारत की राजनीति की दशा-दिशा बदल चुकी है। अब भारत की राजनीति में भी मूल आबादी का प्रश्न महत्वपूर्ण हो गया है। मूल आबादी को खारिज कर मुस्लिम आबादी के समर्थन से कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं हो सकती है। हिन्दू विरोध की राजनीति से काग्रेस के हाथ इतने खून से रंगे हैं कि हिन्दू उसके साथ खड़ा होंगे, यह नहीं कहा जा सकता है। हिन्दुत्व का असली नायक नरेन्द्र मोदी हैं। नरेन्द्र मोदी के हिन्दुत्व के सामने सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी का हिन्दुत्व कहीं भी नहीं ठहरेगा। कांग्रेस को हिन्दुत्व के प्रश्न पर ईमानदारी दिखाने में वर्षो लग जायेगे फिर भी हिन्दू कांग्रेस को ईमानदार मानेंगे कि नहीं, यह कहना मुश्किल है। कांग्रेस को अब यह बात जरूर समझ लेनी चाहिए कि मूल आबादी की भावनाओं को कब्रगाह बना कर कोई भी पार्टी सत्ता हासिल नहीं कर सकती है। इसलिए मूल आबादी यानी हिन्दुओ की अस्मिता और गौरव चिन्हों का सम्मान करना जरूरी है।



संपर्क .....
विष्णुगुप्त
मोबाइल नंबर ...    9315206123

1 comment:

  1. यह एक भ्रम है कि 1986 में रामजन्मभूमि के ताले राजीव गांधी ने खुलवाए थे। केवल एक संयोग है कि वे उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे। फैजाबाद की जिला अदालत का फैसला था (कोई भी जिला जज प्रधानमंत्री के निर्देश पर फैसला देगा यह सोचना भी बचकाना है) और फैसले के बीस मिनट के भीतर ही जिला प्रशासन ने ताले खोल दिए थे। सब कुछ इतनी तुरत-फुरत हुआ कि प्रधानमंत्री को भी बाद में ही पता चला होगा। सन 1986 मोबाइल फोन और इंटरनेट का युग नहीं था। मैंने अपनी फेसबुक और ब्लॉग दोनों पर इस संबंध में विस्तार से लिखा है।
    सादर

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