Monday, February 1, 2021

बजट में किसानों की खुशहाली का सपना ?

 


 

         राष्ट्र-चिंतन

       ऐसे में कैसे होगी किसानों की आय दोगुनी ?

बजट में किसानों की खुशहाली का सपना ?

        विष्णुगुप्त




इस बार का केन्द्रीय बजट छह स्तंभों पर आधारित है। पहला स्तंभ है स्वास्थ्य और कल्याण, दूसरा भौतिक-वित्तीय पूंजी, तीसरा समावैशी विकास, चैथा मानव पूंजी का संचार करना , पाचवां नवाचार व अनुंसंधान और छठा न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन। किसानों की खुशहाली की व्यवस्था को केन्द्रीय सरकार अपनी बजट की विशेषताएं बता रही है। केन्द्रीय बजट में किसानों की खुशहाली और उनकी हितसाधक नीतियां कहीं से भी अअपेक्षित नहीं कही जा सकती थी, यह तो अपेक्षित ही है। केन्द्रीय सरकार किसानों के बीच अपनी विश्वसनीयता और साख को बनाये रखने के लिए एक संदेश देना चाहती थी, क्योंकि पिछले दिनों के घटनाक्रम से केन्द्रीय सरकार की नीतियां किसानों के बीच अविश्वसनीयता उत्पन्न कर रही थी, केन्द्रीय सरकार की साख को घून की तरह चाट रही थी, हालांकि इसके आयाम भी नकरात्मक थे। वर्तमान केन्दी्रय सरकार की यह कोशिश जरूर रही है कि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ अन्नदाता किसानों की आमदनी बढें और लागत से उपर मूल्य मिले। इस कोशिश में केन्द्रीय सरकार ने कई नीतियां लायी और किसानों के बीच साख उत्पन्न करने के लिए कई योजनाओं का श्रीगणेश किया है। किसानों के खातों में प्रतिवर्ष छह हजार रूपये देने और खाद पर सब्सिडी जारी रखने के साथ ही साथ किसानों के विभिन्न उत्पादन पर समर्थन मूल्य घोषित करना और समर्थन मूल्य पर किसानों के उत्पादन का क्रय करना भी शामिल है। यह कहना गलत नहीं होगा कि समर्थन मूल्य पर सरकार द्वारा क्रय के कारण किसानों का बहुत बड़ी राहत मिली है। फिर भी किसानो की मांगें और उनकी इच्छाएं अभी तक पूरी नहीं हुई हैं। खासकर छोटे किसान जो सरकारी झंझटों से पार नहीं पाते हैं, नौकरशाही की जाल और उनकी रिश्वतखोरी की आदतों को संतुष्ट नहीं कर पाते हैं को अभी भी केन्द्रीय सरकार की नीतियों और योजनाएं एक छलावा से कम नहीं हैं। केन्द्रीय सरकार ही क्यों बल्कि राज्य सरकारों जब तक सरकारी झंझटों और नोकरशाही की रिश्वतखोरी की जाल को समाप्त नहीं कर पाती हैं तब तक उनकी कोई भी नीति और कोई भी योजनाएं लघुतम किसानों के लिए कोई अर्थ नहीं रखती हैं। इसलिए बजट में किसानों की बातें करने से या फिर किसानों के लिए खुशहाली और हितसाधक घोषणाएं करने या फिर व्यवस्थाएं करने का कोई खास अर्थ नहीं रखते हैं। कृषि टेक्नोलाॅजी को सस्ता करने की घोषनाएं नहीं होने से किसानों की समस्याएं कम नहीं होगी।
                                                   अब हमें गौर करना चाहिए कि वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने बजट में ऐसी कौन सी घोषणाएं की है, बजट में ऐसी कौन सी व्यवस्थाएं की है जिसे हम किसान के हित साधक मानने के लिए बाध्य हुए हैं और इस घोषनाओं और व्यवस्थाओं के माध्यम से केन्द्रीय सरकार अपनी विश्वसनीयता और साख किसानों के बीच बढाना चाहती हैं? क्या सही में केन्द्रीय सरकार की यह घोषणा और व्यवस्था से किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी, किसानों की आय में वृद्धि होगी? किसानों की कृषि जरूरतों को पूरा करेंगी? जो किसान लागत मूल्य भी नहीं मिलने के बाद किसानी छोडने के लिए बाध्य हुए हैं या फिर किसानी छोडने के लिए अग्रसर हो रहे हैं वैसे किसानों को किसानी या कृषि कार्य के लिए प्रेरित करेगी? किसान क्या सही में महाजनी कर्ज से मुक्त होंगे? सरकारी बैंकों की नीतियां और व्यवहार किसानों के हित में होंगी? सरकारी बैंक क्या छोटे किसानों को कर्ज देने के लिए अपनी पूर्वाग्रह छोडने के लिए प्ररेति होंगे? क्या सरकारी बैंक कर्ज देने के लिए छोटे किसानों के द्वार तक दस्तक देंगे? जानना यह भी जरूरी है कि केन्द्रीय सरकार खुद किसानों को कर्ज उपलब्ध नहीं कराती है, केन्द्रीय और राज्य सरकारों की इसमें कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती है, केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों की अप्रत्यक्ष भूमिका ही होती है। केन्द्रीय सरकार बैकों के माध्यम से ही किसानों को कर्ज उपलब्ध कराती हैं। छोटे किसानों के बीच सरकारी बैंकों की भूमिका कैसी है, यह कौन नहीं जानता है। किसानों के बीच सरकारी बैंकों की भूमिका साक्षात यमराज के तौर पर होती है छोटे किसानों का शोषण करने, उन्हे उपेक्षित रखने में सरकारी बैंक कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
                                                 केन्दी्रय बजट में किसानों के लिए कई विशेषताएं हैं, उनमें एक सबसे बडी विशेषता है जिसकी पड़ताल करने की जरूरत होगी, जिस पर देश के अंदर चर्चा जरूरी है, गंभीरता के साथ मूल्यांकन करने की जरूरत है। केन्द्रीय बजट में किसानों के लिए 16: 5 लाख करोड़ कृषि लोन की व्यवस्था की गयी है। केन्द्रीय बजट प्रस्तुत करते हुए वित मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि केन्द्रीय बजट में किसानों के लिए 16: 5 लाख करोड़ कृषि लोन की व्यवस्था कर सरकार ने एक महत्ती कार्य किया है, किसानों की इच्छाओं का पंख लगाया है, इस व्यवस्था से किसानों की जिंदगी में खुशहाली आयेगी, किसानों की आर्थिक आय बढेगी और किसानों का कृषि कार्य से पलायन रूकेगा, इसके साथ ही साथ किसानों को महाजनी लूट से रक्षा करेगी। ऐसे देखा जाये तो वित मंत्री निर्मला सीतारमन की बातें कोई अलग या फिर अहम की श्रेणी मे नहीं रखी जा सकती है, आखिर क्यों? यह तो एक सरकारी परमपरा है, सरकारी खानापूर्ति है। केन्द्रीय बजट की योजनाओं, नीतियों या फिर व्यवस्थाओं की ही बात नहीं है बल्कि राज्य सरकारों की कोई भी योजना, कोई भी नीतियां और कोई भी व्यवस्थाएं सामने आती हैं या फिर इस तरह की घोषणाएं होती है तो फिर सरकार द्वारा इसके पक्ष में गुणगान करने का विचार प्रवाह जन्म लेता ही है, सरकार प्रशंसा में लम्बी-चैडी बात ही करती है, सफलता की लम्बी-चैडी रेखा दिखाने की कोशिश होती है। यह अलग बात है कि पूर्व में इसके हस्र भी कैसा हुआ है, यह भी हमें मालूम है। आज तक न तो देश में गरीबी हटी और न ही बैरोजगारी हटी जबकि पूर्व की केन्द्रीय सरकारों ने गरीबी हटाओ, बैरोजगारी हटाओं के नाम पर दर्जनों योजनाओं, नीतियों और व्यवस्थाओं को जन्म दिया था, इन योजनाओं, घोषनाओं और व्यवस्थाओं के पक्ष में भी लंबी-चैडी बातें हुई थी, बड़े-बडे सपने दिखाये गये थे।
                                                     कृषि लोन के कुछ नये आयाम तय किये गये हैं, कुछ नयी प्राथमिकताएं तय की गयी है, कुछ परमपराएं तोडी गयी है। अब तक की परमपराएं थी कि सिर्फ अन्न उत्पादन को ही कृषि कार्य माना जाता था। वह भी अन्न में दाल, चावल , गेंहू आदि। बागवानी या फिर सब्जी उत्पादन पहले कृषि कार्य नहीं माना जाता था। फिर बागवानी और सब्जी उत्पादन को कृषि कार्य माना गया। यह कहने में हर्ज नहीं है कि बागवानी और सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में विकास होने और किसानों की रूचि बढने से एक तरह से क्रांति हुई और किसानों को इसका लाभ भी मिला, किसानों की आय बढी, किसानों के सामने अतिरिक्त विकल्प भी मिला। अतिरिक्त विकल्प का अर्थ यह था कि चावल, दाल, गन्ना और गेहूं का उत्पादन जो महंगा था और कम लाभकारी था उसकी जगह बागवानी और सब्जी का उत्पादन लाभकारी साबित हुआ। अब कृषि कार्य में दो नये आयाम तय किये गये हैं, प्राथमिकताओं में रखे गये हैं। ये दो नये आयाम और प्राथमिकताएं मछली उत्पादन और दूघ उत्पादन को लेकर है। वर्तमान केन्द्रीय सरकार की अपनी मान्यताएं हैं कि देश में मछली उत्पादन बढा कर और दूध उत्पादन बढा कर नयी क्रांति लायी जा सकती है, हरित क्रांति जो अब मृत प्राय है, उसमें जान फूंकी जा सकती है।यह सही है कि देश के अंदर में मछली उत्पादन और दूध उत्पादन में बढोतरी हुई है, किसानों को नये विकल्प भी मिले हैं। दूध उत्पादन और मछली उत्पादन में छोटे किसान भी आसानी के साथ सक्रियता दिखाने में सक्षम है, इसमें लागत भी कम है। खासकर दूध उत्पादन के लाभ असीमित है। सिर्फ दूध ही क्यों बल्कि गाय का गोबर और गाय के मूत्र का कारोबार बढा है, गाय के मूत्र से दवाइयां बन रही हैं, गाय के गोबर से दीवाल पेंट बनाया जा रहा है, गाय के गोबर से मोमबतियां बनायी जा रही है। इसके अलावा गाय के गोबर से प्राकृतिक खेती होती है, इसलिए गाय के गोबर का मूल्य भी बढा है। सबसे बडी बात मछली उत्पादन को लेकर है। गांव में छोटे-छोटे किसान भी छोटे-छोटे तलाबों में भी मछली उत्पादन आसानी से कर सकते हैं। केन्द्रीय वित मंत्री का कहना है कि केन्द्रीय बजट में 16: 5 लाख करोड का जो कृषि कर्ज घोषित किया गया है उसमें से अधिकतर हिस्सा मछली और दुग्ध उत्पादन करने वालों को मिलेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि मछली और दुग्ध उत्पादक किसानों को कर्ज उपलव्ध कराने की प्राथमिकता होगी।
                                             हमें सिर्फ बजट में भारी-भरकम राशि रखने से चमत्कृत होने की आवश्यकता नहीं है। हम तब चमत्कृत होंगे जब बजट की घोषणाओं को जमीन पर सही ढंग से लागू करने की वीरता टिखायी जायेगी। देखा यह जाता है कि बडे किसान तो सरकारी बैंकों से अपनी पहुंच के बल पर कर्ज ले लेते हैं पर रघुतम किसान सरकारी बैंकों के तिरस्कार का शिकार हो जाते हैं। अतः लघु किसान महाजनी लूट का शिकार हो जाते हैं। हमें तो छोटे किसानों के हित संरक्षण की चिंता है। क्या केन्द्रीय सरकार छोटे किसानों को भी आसान कर्ज उपलब्ध कराकर उनकी आमदनी बढाने की वीरता दिखा पायेगी?




संपर्क .....
विष्णुगुप्त
मोबाइल नंबर ...    9315206123

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