Tuesday, November 10, 2020

...अन्यथा नीतीश की राजनीति की इतिश्री होगी

  


     राष्ट्र-चिंतन


       ‘ मोदी मैजिक ‘ से नीतीश कुमार को मिला जीवनदान
...अन्यथा नीतीश की राजनीति की इतिश्री होगी

                                विष्णुगुप्त  


अब नीतीश कुमार की परजीवी राजनीति आगे नहीं चलने     वाली है। नीतीश कुमार को अनैतिकता, अंहकार और अविश्वसनीयता की राजनीति छोडनी होगी। शराबबंदी से आगे की ओर सोचना होगा। बिहार को आधुनिक शिक्षा का हब बनाना होगा, बिहार में कृषि आधारित उघोगधंधे विकसित करने ही होंगे। अन्यथा नीतीश कुमार की राजनीति की भी इति श्री होगी।

 
नीतीश कुमार के खिलाफ बंवडर था, आक्रोश चरम सीमा पर था, कुशासन और भ्रष्टचार से पीड़ित लोग जंगलराज से भी दोस्ती करने के लिए तैयार थे। स्वयं के बल पर नीतीश कुमार में इतनी राजनीतिक शक्ति कतई नहीं थी कि वे अपने खिलाफ उठे चुनावी बवडंर को शांत कर सके, अपने कुशासन व भ्रष्टचार सी पीड़ित लोगों के विरोध को समर्थन में बदल सके। बिहार के कोने-कोने में लोग नीतीश कुमार के खिलाफ उबाल पर थे, कह रहे थे कि हमने कोई एक साल-दो साल नहीं बल्कि पूरे पन्द्र्रह साल दे दिये, फिर भी विकास कोसों दूर क्यों हैं, भ्रष्टचार पहले से बढा ही है, नौकरशाही बेलगाम होकर जनता को पीड़ित बनाती है, नौकरशाही के भ्रष्टचार के खिलाफ बोलने वाले सीधे जेल जाते हैं, या फिर उनकी जान जाती है। आखिर जंगलराज लौटने की डर से नीतीश कुमार के कुशासन, अंहकार और खुशफहमी के मंकडजाल में बिहार का भविष्य बार-बार बलिदान क्यों किया जाये? ले देकर शराबबंदी की कथित उपलब्धि भी चुनाव मैंदान में असरदार नहीं दिख रही थी, कहने का तात्पर्य यह है कि शराबबंदी की कथित उपलब्धि नीतीश कुमार को फिर से सत्ता दिलाने के लिए लोगों को प्रेरित नहीं कर पा रही थी। शराबबंदी के नाम पुलिस के अत्याचार और पुलिस व शराब माफिया की मिलीभगत का खुला खेल बिहारी जनता  देख ही थी। ऐसी स्थिति में बिहार की जनता आसानी से नीतीश कुमार को अपना जनादेश देने के लिए और एक बार फिर अपना भाग्यविधाता चुनने के लिए तैयार कैसे होती? यही कारण है कि नीतीश कुमार बिहार में चुनाव परिणामों के बाद तीसरे नंबर की पार्टी साबित हुई, बिहार की जनता ने लालू यादव की विरासत जंगलराज की वापसी नही चाही और लालू के पुत्र तेजस्वी को खारिज कर दिया पर नीतीश कुमार को भी तीसरे नंबर पर भेजकर कड़ा राजनीतिक संदेश भी दे दिया है। अब राजनीतिक परजीवी नीतीश कुमार को अपने कुशासन को सुशासन में बदलना ही होगा।
                                          हर कोई आश्चर्यचकित है। हर केई के आश्चर्यचकित होने का कारण क्या है? आश्चर्यचकित होने का कारण यह है कि विरोध में इतना बड़ा बंवडर होने और अति आक्रोश के कारण भी नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राजग गठबंधन को बहुमत क्यों मिला? अगर हम इस प्रश्न का विश्लेषण करते है तो इसका दो ही कारण स्पष्ट है। पहला कारण लालू की विरासत जंगलराज का डर और दूसरा कारण मोदी मैजिक। विहार विधान सभा चुनाव का यह परिणाम दर्शाता है कि बिहार की जनता पर अभी भी लालू के जंगलराज की डर कायम है। लालू के पुत्र भी अपने पिता की जंगलराज की विरासत का प्रतिनिधित्व करते है। हालांकि लालू पुत्र तेजस्वी ने अपने पिता की छ़त्रछाया से बाहर निकलने की पूरी कोशिश की थी। चुनाव प्रचार में तेजस्वी ने अपने माता-पिता यानी लालू और राबडी को दूर कर दिया था, बैनर-पोस्टर पर लालू, राबडी की तस्वीर तक नहीं लगी थी। लेकिन यह दांव भी असफल साबित हो गया। दरअसल जो पीढी लालू राज का जंगलराज देखी है वह आज भी जंगलराज को याद आते ही सिहर उठती  है। जब तक यह पीढी जिंदा रहेगी तब तक लालू या फिर उनकी विरासत को जंगलराज के अपराध से मुक्ति नहीं मिलने वाली है।
                                                          दूसरा बड़ा कारण है मोदी मैजिक। जिस नरेन्द्र मोदी को कभी नीतीश कुमार ने दंगाई कहा था, जिस मोदी के विरोध में नीतीश कुमार ने भाजपा से दोस्ती तोड़ी थी, विश्वासघात कर लालू के जंगलराज से दोस्ती की थी, जिस मोदी के नाम पर खाने पर आमंत्रित कर अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी सहित पूरी भाजपा की टीम को बिना खाना खिलाये भगा कर अपमानित किया था उसी नरेन्द्र मोदी ने इस बार नीतीश कुमार की सत्ता बचायी, नीतीश कुमार की राजनीतिक नैया डूबने से बचायी। कितु-परंतु से यह परे की बात है कि इस बिहार विधान सभा चुनाव में सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी की छवि ने ही कमाल की है। नरेन्द्र मोदी की छवि ने ही बिहार के मतदाताओं को आकर्षित किया है। नरेन्द्र मोदी ने गठबंधन धर्म पर ईमानदारी दिखायी और कोई एक-दो नहीं बल्कि एक दर्जन से अधिक सभाओं को संबोधित किया था। नरेन्द्र मोदी का आक्रामक प्रचार से हवा बनी, तेजस्वी के महागठबंधन पक्ष में बहती हवा कमजोर हुई और मतदाताओं की गोलबंदी रूकी। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि नरेन्द्र मोदी का जादू बिहार की जनता के सिर पर चढकर क्यों बोली? खासकर कोरोना काल में नरेन्द्र मोदी की वीरता, उज्जवला योजना और स्वच्छता योजना का आकर्षण ने बडा काम किया है। कोरोना काल में आम गरीबों का जीवन किस प्रकार संकट में खडा हुआ है, यह भी जगजाहिर है। नरेन्द्र मोदी ने कोरोना काल में आम आदमी के जीवन को संकट से उबारने के लिए राहतकारी योजनाएं और कार्यक्रम दिये। आम गरीबों को हर माह पांच किलो गेहू, चावल, इसके अलावा दाल, चीनी के साथ ही साथ किरोसन तेल भी मिला। आम गरीबों को फ्री गैस सिलेडर मिला। आम गरीबों के खातों में सहायता राशि भी पहुंची। इस कारण कोरोना काल में आम गरीबों के जीवन संकट कम हुआ। सिर्फ आम आदमी ही नहीं बल्कि किसानों के खातों में घोषित राशि पहुंची। इस कारण नरेन्द्र मोदी की विश्वसनीयता चरम पर पहुंची है। नरेन्द्र मोदी की इसी विश्वसनीयता ने गरीबों को जंगलराज से दोस्ती करने से रोकी।
                                                     आप स्वीकार करें या नहीं करे पर यह सच है कि एक अन्य कारण राष्टवाद भी है, राष्टवाद का सीधा मतलब यहां हिन्दुत्व से है। हिन्दुत्व ने भी जंगलराज से दोस्ती करने से बिहार की जनता को रोकने का काम किया है। भाजपा के 90 प्रतिशत वोटर ऐसे हैं जो विकास या उपलब्धि के नाम पर कदापि वोट नहीं करते हैं, उन्हें कल्याणकारी योजनाएं भी प्रभावित नहीं करती हैं। ऐसे वर्ग के मतदाता सीधे तौर पर हिन्दुत्व को लेकर वोट करते हैं। बिहार की वैसी जनता जो हिन्दुत्व में विश्वास करती है वह सही में लालूराज की विरासत, टूकडे-टूकडे गिरोह का प्रतिनिधत्व करने वाली कम्युनिस्ट पार्टियों और हिन्दुत्व के जन्मजात विरोधी सोनिया खानदान का महागठबंधन की वापसी की डर से बचैन थी। हिन्दुत्व समर्थकों में यह डर बैठी थी कि अगर तेजस्वी मुख्यमंत्री बनेगा तो बिहार में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की पौबारह होगी, उन्हें राजनीतिक योजना के तहत बसाया जायेगा। रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों का भी एक बड़ा प्रश्न है। ओबैसी को जो बिहार में अभी-अभी पांच सीटें मिली है, उसके पीछे भी रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों को कारण के तौर पर देखा जा रहा है। बिहार में अवैध तौर पर लाखों रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाया गया है, जिनके पास अवैध तौर भारतीय नागरिक की सभी सुविधाएं उपलब्ध करा दी गयी हैं। इस खतरे को भांप कर हिन्दुत्व आधारित राजनीतिक धाराएं भाजपा-नीतीश कुमार को जीवन दान देने के लिए तैयार हुई, जिसका सुखद परिणाम सामने है।
               लालू के जंगलराज की तुलना में हम नीतीश कुमार के कुशासन, अनैकिता और खुशफहमी को नजरअंदाज कर देते हैं। बिहार में सृजन घोटाला की कहानी कितना लोमहर्षक है, यह जगजाहिर है। यह 1600 करोड का घोटाला है। मेधा घोटाला जिसमें अनपढ सरीखे छात्रों को बिहार टाॅपर बना दिया गया। परीक्षाओं में सरेआम कदाचार रूका नहीं है। शिक्षा की तस्वीर बदली नहीं। अस्पताल मरनासन्न स्थिति में हैं। शहरी सडकें जरूर ठीक-ठाक है। अधिकतर शहरी सडके केन्द्रीय सरकार की सहायता की देन है। बिहार को आधुनिक टेक्नीकल शिक्षा का हब बनाया जा सकता था, कृषि आधारित उघोग घंधे विकसित हो सकते थे। नौकरशाही और पुलिस कितनी बेलगाम और उत्पीड़क है, अमानवीय है, इसका उदाहरण मुंगेर गोलीकांड है। मुंगेर में निहत्थे लोगों पर पुलिस गोली चलाती है, एक लडके की मौत होती है, दर्जनों लोग घायल होते हैं। इस गोलीकांड को तेजस्वी यादव और चिराग पासवान ने  जालियावाला कांड की संज्ञा दी थी।मुगेर गोलीकांड की खलनायक पुलिस अधीक्षक लिपि सिंह नीतीश कुमार की चहैती रिश्तेदार थी। फिर भी नीतीश कुमार इस गोलीकांड पर कोई पचतावा प्रदर्शित नहीं किया।
                                      नीतीश कुमार में अनैतिकता और अविश्वसनीयता कितनी है? यह भी देख लीजिये। लालू के जंगलराज से मुक्ति के नाम पर जनादेश मांग कर सत्ता में आये और फिर लालू से ही दोस्ती कर ली। फिर लालू के साथ विश्वासधात कर उसी भाजपा के साथ दोस्ती कर ली जिससे पहले उसने विश्वासघात किया था। भाजपा की कमजोरी कहिये या फिर राजनीतिक दरियादिली कहिये कि उसने एक बार पहले ही विश्वासघात करने वाले नीतीश कुमार को फिर से गले लगाने का काम किया। अपने राजनीतिक गुरू जार्ज फर्नाडीस के साथ भी नीतीश कुमार ने विश्वासघात किया था। शरद यादव को भी अलोकतांत्रिक ढंग से जद यू से बाहर कर दिया था।
                                                          नीतीश कुमार राजनीतिक रूप से परजीवी प्राणी है। कभी लालू तो कभी भाजपा के सहारे ही सत्ता में स्थापित होते हैं। जद यू का कोई समृद्ध कैडर भी नहीं बनाया है। पूरे बिहार की भी जद यू पार्टी नहीं है। बिहार में जद यू से बडी पार्टी हमेशा राजद रही है। राजनीतिक रूप से परजीवी होने के बावजूद नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देखते हैं और चाहते हैं कि सभी पार्टियां मिलकर उन्हें प्रधानमंत्री बना दे। नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने की अति इच्छा जरूर रखें पर अपनी पार्टी को बिहार से बाहर जैसे यूपी, एमपी, हरियाणा, महराष्ट, कर्नाटक आदि तक विस्तार करने का साहस तक क्यों नहीं करते हैं?
                                            अब नीतीश कुमार की परजीवी राजनीति नहीं चलने वाली है। नीतीश कुमार को अनैतिकता, अंहकार और अविश्वसनीयता की राजनीति छोडनी होगी। शराबबंदी से आगे की ओर सोचना होगा। बिहार को आधुनिक शिक्षा का हब बनाना होगा, बिहार में कृषि आधारित उघोगधंधे विकसित करने ही होंगे। अन्यथा नीतीश कुमार की राजनीति की भी इतिश्री होगी।


संपर्क .....
विष्णुगुप्त
मोबाइल नंबर ...    9315206123



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VISHNU GUPT
COLUMNIST
NEW DELHI
09968997060

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