राष्ट्र-चिंतन
एक और सिख लड़की का अपहरण कर धर्म परिवर्तन कराकर निकाह
सिखों और हिन्दुओं के अस्तित्व पर लव जिहाद की कील
विष्णुगुप्त
पाकिस्तान अपने आप को इस्लामिक रिपब्लिक कहता है। इस्लामिक रिपब्लिक का अर्थ इस्लाम का शासन, कुरान का शासन, लोकतंत्र का कब्र, काफिरों के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह होता है। कुरान में गैर मुस्लिमों को काफिर कहा गया है और काफिरों के अस्तित्व नाश का फरमान दिया गया है। दुनिया में जो भी देश अपने आप को इस्लामिक रिपब्लिक कहता है वह देश काफिरों के लिए एक बर्बर, अमानवीय है, हिंसक और लहूलुहान वाली मानसिकताओं का सहचर होता है। जाहिरतौर पर पाकिस्तान अपने आप को न केवल इस्लामिक रिपब्लिक कहता है बल्कि कुरान के शासन के प्रति भी अपने आप को समर्पित करता है, सिर्फ पाकिस्तान में स्थापित सरकारें ही नहीं बल्कि वहां की सेना और गुप्तचर एजेंसी आईएसआई तो कुरान के एकमेव शासन को कड़ाई और हिंसक तौर पर लागू करने के लिए समर्पित ही है, इससे आगे बढकर एक पर एक ऐसे इस्लामिक संगठन भी हैं जो हिंसक तौर पर कुरान के शासन लागू कराने के लिए सक्रिय रहते हैं, इस्लामिक संगठन न केवल सक्रिय रहते हैं बल्कि कुरान के शासन लागू करने के लिए हिंसा और आतंकवाद का सहारा लेते हैं। कौन नहीं जानता है कि पाकिस्तान के अंदर में कुरान के शासन को लागू करने के लिए अलकायदा, तालिबान जैसे सैकडों इस्लामिक संगठन हैं जो सरेआम काफिर यानी हिन्दुओं और सिखों को जबरदस्ती मुसलमान बनने या फिर पलायन करने का विकल्प देते हैं। होशियार और सक्षम हिन्दू-सिख पाकिस्तान जैसे इस्लामिक रिपब्लिक देश से पलायन करना ही बेहतर समझता है। पाकिस्तान के हजारों सिख और हिन्दू भारत आकर अपनी व्यथा बताते हैं और स्थायी शरण के लिए विवश होते हैं। पाकिस्तान से आये हिन्दू और सिख जिस तरह से अपनी संवेदनाएं रखते हैं, अपनी उत्पीड़न की कहानी बताते हैं, पाकिस्तान की सरकार, सेना और आईएसआई सहित इस्लामिक आतंकवादी संगठनों की करतूत बताते हैं, उसे सुनकर रोंगटें खडे हो जाते हैं।
आतंकवाद, हिंसा और अपमान से भी पाकिस्तान के हिन्दू और सिख नहीं टूटे तथा मुसलमान बनना स्वीकार नहीं किये तो फिर एक अलग तरह का हथकंडा अपना लिया गया। वह हथकंडा है लव जिहाद का। अभी-अभी पाकिस्तान के अंदर में एक सिख लडकी का प्रश्न दुनिया में चर्चित हुआ है और दुनिया भर में यह भी प्रश्न उठा है कि एक इस्लामिक रिपब्लिक देश में गैर मुस्लिम लड़कियों को लव जिहाद से कैसे बचाया जाये और उनके मानवाधिकार को कैसे सुरक्षित किया जाये। सिख लडकी का अपहरण और जबरदस्ती निकाह की घटना लोमहर्षक है, बर्बर है और सिखों के अस्तित्व पर कुठाराघात है, सिखों के अस्तित्व पर कील ठोकने जैसा है। घटना पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के नजदीक हासन अब्दाल क्षेत्र की है। सिख लडकी किसी काम से घर से निकली थी। एक आतंकवादी मानसिकता का मुस्लिम युवक ने अपने साथियों के साथ उसका अपहरण कर लिया। इसके बाद उसका धर्म परिवर्तन कराया जाता है, फिर उसका निकाह पढाया जाता है। सिख लडकी को उसके परिवार सहित हत्या करने की धमकी दी जाती है। सिख लडकी के परिजन पुलिस के पास जाते हैं, प्रांतीय सरकार के मंत्रियों के पास जाते है फिर भी कोई सुनवाई नहीं होती है। पिछले साल भी गुरूद्वारा के एक ज्ञाणी की पुत्री का अपहरण कर निकाह पढाया गया था। उस घटना को लेकर पूरे पाकिस्तान में प्रदर्शन हुए थे, भारत सहित कई यूरोपीय देशों में प्रदर्शन हुए थे। अंतर्राष्ट्रीय दबाबों के बाद पाकिस्तान की सरकार ने न्याय की बात कही थी। पर उस ज्ञानी को न्याय नहीं मिला। उस सिख लडकी को एक साल तक पुलिस और इस्लामिक संगठनों की अभिरक्षा में रखा गया था। फिर उस लडकी को उसके कथित शौहर के साथ रहने के लिए भेज दिया गया।
जब सरकार और शासन इस्लामिक रिपब्लिक का होगा तब न्याय के स्तंभ भी इस्लामिक दृष्टिकोण के ही होंगे, उन पर इस्लामिक संविधान और काफिर मानसिकता की कसौटी पर ही न्याय करने की बाध्यता होती हैं, न्याय करने वाला व्यक्ति भी इस्लामिक कानून और शासन का प्रशिक्षित होता हैं, उसका समर्पण भी कुरान की काफिर मानसिकताओं के प्रति होता है। यह पाकिस्तान के अंदर में ही नहीं बल्कि उन सभी मुस्लिम देशों में सरेआम परिलक्षित होता है जो मुस्लिम देश अपने आप को इस्लामिक रिपब्लिक कहते हैं और जहां पर कुरान की काफिर मानसिकताओं पर आधारित सरकारें होती हैं। सबसे पहले यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अभियोजन चलाने वाली पुलिस भी इस्लामिक रंग में रंगी होती हैं। इस्लामिक देश की पुलिस भी न तो उदारवाद होती है और न ही उसके लिए गैर मुस्लिम संवर्ग के लोगों के लिए कोई सम्मान। इस्लामिक न्यायपालिका अभिरक्षा में किसी हिन्दू, सिख या फिर ईसाई लड़की को भेजती है तो फिर इस्लामिक मानसिकता से स्थापित संस्थाओं में ही उसे रहने के लिए बाध्य किया जाता है। ऐसे अभिरक्षा इस्लामिक संस्थाओं में रखे जाने वाली हिन्दू, सिख और ईसाई लडकियों को इस्लाम की शिक्षा दी जाती है, इस्लाम की प्रशंसा बतायी जाती है, डर भी आतंकवाद और ंिहंसा की दिखायी जाती है। ऐसे में पीडित गैर मुस्लिम लडकियां अपनी नियति मान कर इस्लाम स्वीकार कर लेने के लिए बाध्य होती हैं और फिर न्याय की उम्मीद भी दफन हो जाती है। इस्लामिक न्याय व्यवस्था यह देखने तक कोशिश नहीं करती है कि पुलिस अभिरक्षा में इस्लामिक संस्थाओं में रखी गयी लडकी पर दबाव और भय का हथकंडा चलाया गया था।
हिन्दू, सिख और ईसाई लडकियो का अपहरण, निकाह तथा धर्म परिवर्तन के आंकडे लोमहर्षक हैं। यूनाइटेड स्टेटस आॅन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम के आंकडे कहते हैं कि हर साल एक हजार से अधिक हिन्दू, सिख और ईसाई लडकियों का अपहरण होता है, उसका धर्म परिवर्तन कराया जाता है फिर निकाह पढाया जाता है। सबसे बडी चिंता की बात यह है कि 12 साल की लडकियों का अपहरण, उसका धर्म परिवर्तन और निकाह को सही ठहराया जाता है। 15 साल से नीचे की लडकियों का अपहरण और जबरदस्ती निकाह की संख्या बढती जा रही है।
इस्लामिक रिपब्लिक पाकिस्तान में सिखों, हिन्दुओं और ईसाइयों की संख्या निरंतर धट रही है। यह संख्या क्यों घट रही है? यह संख्या इसलिए घट रही है कि जबरन मुसलमान बनाया जा रहा है और मुसलमान नहीं बनने पर पाकिस्तान छांेडकर पलायन करने के लिए मजबूर किया जाता है। 96 प्रतिशत से अधिकतर आबादी मुस्लिमों की है जबकि हिन्दुओं, सिखों और ईसाइयों की आबादी चार प्रतिशत से भी कम है। पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने 2017 में एक आंकडा जारी किया था जिसमें हिन्दुओं की संख्या 14 लाखर, 98 हजार बतायी थी, सिखों की संख्या 6 हजार 193 बतायी थी और ईसाईयों की संखा 13 लाख 25 हजार बतायी थी। अभी तक धर्म आधारित जनगणना के आंकडे पाकिस्तान प्रस्तुत ही नहीं करता है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि पाकिस्तान के हिन्दू, सिख और ईसाई किसी मुस्लिम उम्मीदवार को हराने-जीताने के लिए वोट नहीं कर सकते हैं सिर्फ अल्पसंख्यकों के लिए कुछ सीटें निर्धारित हैं, उन्हीं सीटों के उम्मीदवारों के लिए ये वोट कर सकते हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियां किसी भी स्थिति अल्पसंख्यकों की कोई खास चिंता नहीं करती है।
लव जिहाद से हिन्दू, ईसाई और सिख लडकियों को न्या दिलाना एक मुश्किल काम है। जब तक कुरान की काफिर मानसिकता रहेगी तब तक मुस्लिम देशों में लव जिहाद से मुक्ति पाना या फिर गैर मुस्लिमों के मानवाधिकार से सुरक्षा की उम्मीद ही बेकार है। क्या दुनिया को यह पता नहीं है कि इसी काफिर मानसिकता से इराक में हजारों यजिदी लडकियों को इस्लामिक संगठन आईएस ने गुलाम नहीं बना रखा था? मुस्लिम आतंकवादी संगठन यह बार-बार कहते हैं कि काफिर लडकियों को गुलाम बनाना उनका मजहबी अधिकार है और सभी अच्छे मुसलमानों को इसका पालन करना अनिवार्य हैं। लव जिहाद के प्रश्न पर या फिर हिन्दू, ईसाई, खि लडकियों के मानवाधिकार के प्रश्न पर दुनिया के मानवाधिकार संगठन भी खामोश रहते है। पाकिस्तान के अंदर में अभिरक्षा में रखी जाने वाली हिन्दू , सिख और ईसाई लडकियों को इस्लामिक मानसिकता वाले संस्थाओं में रहने की अनिवार्य बाध्यता दूर होगी तो फिर भयमुक्त होकर हिन्दू, सिख और ईसाई लडकियां अपने आप की जिंदगी का निर्णय वीरता के साथ कर सकती हैं।
संपर्क .....
विष्णुगुप्त
मोबाइल नंबर ... 9315206123
-- पाकिस्तान अपने आप को इस्लामिक रिपब्लिक कहता है। इस्लामिक रिपब्लिक का अर्थ इस्लाम का शासन, कुरान का शासन, लोकतंत्र का कब्र, काफिरों के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह होता है। कुरान में गैर मुस्लिमों को काफिर कहा गया है और काफिरों के अस्तित्व नाश का फरमान दिया गया है। दुनिया में जो भी देश अपने आप को इस्लामिक रिपब्लिक कहता है वह देश काफिरों के लिए एक बर्बर, अमानवीय है, हिंसक और लहूलुहान वाली मानसिकताओं का सहचर होता है। जाहिरतौर पर पाकिस्तान अपने आप को न केवल इस्लामिक रिपब्लिक कहता है बल्कि कुरान के शासन के प्रति भी अपने आप को समर्पित करता है, सिर्फ पाकिस्तान में स्थापित सरकारें ही नहीं बल्कि वहां की सेना और गुप्तचर एजेंसी आईएसआई तो कुरान के एकमेव शासन को कड़ाई और हिंसक तौर पर लागू करने के लिए समर्पित ही है, इससे आगे बढकर एक पर एक ऐसे इस्लामिक संगठन भी हैं जो हिंसक तौर पर कुरान के शासन लागू कराने के लिए सक्रिय रहते हैं, इस्लामिक संगठन न केवल सक्रिय रहते हैं बल्कि कुरान के शासन लागू करने के लिए हिंसा और आतंकवाद का सहारा लेते हैं। कौन नहीं जानता है कि पाकिस्तान के अंदर में कुरान के शासन को लागू करने के लिए अलकायदा, तालिबान जैसे सैकडों इस्लामिक संगठन हैं जो सरेआम काफिर यानी हिन्दुओं और सिखों को जबरदस्ती मुसलमान बनने या फिर पलायन करने का विकल्प देते हैं। होशियार और सक्षम हिन्दू-सिख पाकिस्तान जैसे इस्लामिक रिपब्लिक देश से पलायन करना ही बेहतर समझता है। पाकिस्तान के हजारों सिख और हिन्दू भारत आकर अपनी व्यथा बताते हैं और स्थायी शरण के लिए विवश होते हैं। पाकिस्तान से आये हिन्दू और सिख जिस तरह से अपनी संवेदनाएं रखते हैं, अपनी उत्पीड़न की कहानी बताते हैं, पाकिस्तान की सरकार, सेना और आईएसआई सहित इस्लामिक आतंकवादी संगठनों की करतूत बताते हैं, उसे सुनकर रोंगटें खडे हो जाते हैं।
आतंकवाद, हिंसा और अपमान से भी पाकिस्तान के हिन्दू और सिख नहीं टूटे तथा मुसलमान बनना स्वीकार नहीं किये तो फिर एक अलग तरह का हथकंडा अपना लिया गया। वह हथकंडा है लव जिहाद का। अभी-अभी पाकिस्तान के अंदर में एक सिख लडकी का प्रश्न दुनिया में चर्चित हुआ है और दुनिया भर में यह भी प्रश्न उठा है कि एक इस्लामिक रिपब्लिक देश में गैर मुस्लिम लड़कियों को लव जिहाद से कैसे बचाया जाये और उनके मानवाधिकार को कैसे सुरक्षित किया जाये। सिख लडकी का अपहरण और जबरदस्ती निकाह की घटना लोमहर्षक है, बर्बर है और सिखों के अस्तित्व पर कुठाराघात है, सिखों के अस्तित्व पर कील ठोकने जैसा है। घटना पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के नजदीक हासन अब्दाल क्षेत्र की है। सिख लडकी किसी काम से घर से निकली थी। एक आतंकवादी मानसिकता का मुस्लिम युवक ने अपने साथियों के साथ उसका अपहरण कर लिया। इसके बाद उसका धर्म परिवर्तन कराया जाता है, फिर उसका निकाह पढाया जाता है। सिख लडकी को उसके परिवार सहित हत्या करने की धमकी दी जाती है। सिख लडकी के परिजन पुलिस के पास जाते हैं, प्रांतीय सरकार के मंत्रियों के पास जाते है फिर भी कोई सुनवाई नहीं होती है। पिछले साल भी गुरूद्वारा के एक ज्ञाणी की पुत्री का अपहरण कर निकाह पढाया गया था। उस घटना को लेकर पूरे पाकिस्तान में प्रदर्शन हुए थे, भारत सहित कई यूरोपीय देशों में प्रदर्शन हुए थे। अंतर्राष्ट्रीय दबाबों के बाद पाकिस्तान की सरकार ने न्याय की बात कही थी। पर उस ज्ञानी को न्याय नहीं मिला। उस सिख लडकी को एक साल तक पुलिस और इस्लामिक संगठनों की अभिरक्षा में रखा गया था। फिर उस लडकी को उसके कथित शौहर के साथ रहने के लिए भेज दिया गया।
जब सरकार और शासन इस्लामिक रिपब्लिक का होगा तब न्याय के स्तंभ भी इस्लामिक दृष्टिकोण के ही होंगे, उन पर इस्लामिक संविधान और काफिर मानसिकता की कसौटी पर ही न्याय करने की बाध्यता होती हैं, न्याय करने वाला व्यक्ति भी इस्लामिक कानून और शासन का प्रशिक्षित होता हैं, उसका समर्पण भी कुरान की काफिर मानसिकताओं के प्रति होता है। यह पाकिस्तान के अंदर में ही नहीं बल्कि उन सभी मुस्लिम देशों में सरेआम परिलक्षित होता है जो मुस्लिम देश अपने आप को इस्लामिक रिपब्लिक कहते हैं और जहां पर कुरान की काफिर मानसिकताओं पर आधारित सरकारें होती हैं। सबसे पहले यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अभियोजन चलाने वाली पुलिस भी इस्लामिक रंग में रंगी होती हैं। इस्लामिक देश की पुलिस भी न तो उदारवाद होती है और न ही उसके लिए गैर मुस्लिम संवर्ग के लोगों के लिए कोई सम्मान। इस्लामिक न्यायपालिका अभिरक्षा में किसी हिन्दू, सिख या फिर ईसाई लड़की को भेजती है तो फिर इस्लामिक मानसिकता से स्थापित संस्थाओं में ही उसे रहने के लिए बाध्य किया जाता है। ऐसे अभिरक्षा इस्लामिक संस्थाओं में रखे जाने वाली हिन्दू, सिख और ईसाई लडकियों को इस्लाम की शिक्षा दी जाती है, इस्लाम की प्रशंसा बतायी जाती है, डर भी आतंकवाद और ंिहंसा की दिखायी जाती है। ऐसे में पीडित गैर मुस्लिम लडकियां अपनी नियति मान कर इस्लाम स्वीकार कर लेने के लिए बाध्य होती हैं और फिर न्याय की उम्मीद भी दफन हो जाती है। इस्लामिक न्याय व्यवस्था यह देखने तक कोशिश नहीं करती है कि पुलिस अभिरक्षा में इस्लामिक संस्थाओं में रखी गयी लडकी पर दबाव और भय का हथकंडा चलाया गया था।
हिन्दू, सिख और ईसाई लडकियो का अपहरण, निकाह तथा धर्म परिवर्तन के आंकडे लोमहर्षक हैं। यूनाइटेड स्टेटस आॅन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम के आंकडे कहते हैं कि हर साल एक हजार से अधिक हिन्दू, सिख और ईसाई लडकियों का अपहरण होता है, उसका धर्म परिवर्तन कराया जाता है फिर निकाह पढाया जाता है। सबसे बडी चिंता की बात यह है कि 12 साल की लडकियों का अपहरण, उसका धर्म परिवर्तन और निकाह को सही ठहराया जाता है। 15 साल से नीचे की लडकियों का अपहरण और जबरदस्ती निकाह की संख्या बढती जा रही है।
इस्लामिक रिपब्लिक पाकिस्तान में सिखों, हिन्दुओं और ईसाइयों की संख्या निरंतर धट रही है। यह संख्या क्यों घट रही है? यह संख्या इसलिए घट रही है कि जबरन मुसलमान बनाया जा रहा है और मुसलमान नहीं बनने पर पाकिस्तान छांेडकर पलायन करने के लिए मजबूर किया जाता है। 96 प्रतिशत से अधिकतर आबादी मुस्लिमों की है जबकि हिन्दुओं, सिखों और ईसाइयों की आबादी चार प्रतिशत से भी कम है। पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने 2017 में एक आंकडा जारी किया था जिसमें हिन्दुओं की संख्या 14 लाखर, 98 हजार बतायी थी, सिखों की संख्या 6 हजार 193 बतायी थी और ईसाईयों की संखा 13 लाख 25 हजार बतायी थी। अभी तक धर्म आधारित जनगणना के आंकडे पाकिस्तान प्रस्तुत ही नहीं करता है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि पाकिस्तान के हिन्दू, सिख और ईसाई किसी मुस्लिम उम्मीदवार को हराने-जीताने के लिए वोट नहीं कर सकते हैं सिर्फ अल्पसंख्यकों के लिए कुछ सीटें निर्धारित हैं, उन्हीं सीटों के उम्मीदवारों के लिए ये वोट कर सकते हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियां किसी भी स्थिति अल्पसंख्यकों की कोई खास चिंता नहीं करती है।
लव जिहाद से हिन्दू, ईसाई और सिख लडकियों को न्या दिलाना एक मुश्किल काम है। जब तक कुरान की काफिर मानसिकता रहेगी तब तक मुस्लिम देशों में लव जिहाद से मुक्ति पाना या फिर गैर मुस्लिमों के मानवाधिकार से सुरक्षा की उम्मीद ही बेकार है। क्या दुनिया को यह पता नहीं है कि इसी काफिर मानसिकता से इराक में हजारों यजिदी लडकियों को इस्लामिक संगठन आईएस ने गुलाम नहीं बना रखा था? मुस्लिम आतंकवादी संगठन यह बार-बार कहते हैं कि काफिर लडकियों को गुलाम बनाना उनका मजहबी अधिकार है और सभी अच्छे मुसलमानों को इसका पालन करना अनिवार्य हैं। लव जिहाद के प्रश्न पर या फिर हिन्दू, ईसाई, खि लडकियों के मानवाधिकार के प्रश्न पर दुनिया के मानवाधिकार संगठन भी खामोश रहते है। पाकिस्तान के अंदर में अभिरक्षा में रखी जाने वाली हिन्दू , सिख और ईसाई लडकियों को इस्लामिक मानसिकता वाले संस्थाओं में रहने की अनिवार्य बाध्यता दूर होगी तो फिर भयमुक्त होकर हिन्दू, सिख और ईसाई लडकियां अपने आप की जिंदगी का निर्णय वीरता के साथ कर सकती हैं।
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VISHNU GUPT
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