Thursday, November 7, 2019

भाजपा के पैरासूट नेताओं ने झारखंड को तबाह किया

 
राष्ट्र-चिंतन

भाजपा के पैरासूट नेताओं ने झारखंड को तबाह किया
 

     विष्णुगुप्त





झारखंड राज्य भाजपा की देन है, सर्वाधिक समय तक सत्ता की चाभी भाजपा के हाथों में रही है, इसलिए यह कहना सही होगा कि झारखंड को एक विकसित राज्य बनाना, झारखंड के नागरिको के भविष्य को सुंदर और प्रेरणादायी बनाना, वनांचल आंदोलन के महारथियों व संघर्षरत योद्धाओं का सम्मान करना ,खनिज संपदाओं का अंधाधुध दोहन रोकना, पर्यावरण की सुरक्षा करना, भ्रष्टचार का दमन करना, मूल निवासियों के अधिकारों और हितों को संरक्षित करने जैसै जिम्मेदारियां भाजपा की ही थी। अब यहां यह प्रश्न खडा किया जाना चाहिए कि भाजपा इन सभी जिम्मेदारियों का निर्वाहन ईमानदारी और वैज्ञानिक तथा नैतिकता की कसौटियों पर किया है या नहीं? अगर नहीं तो फिर भाजपा अंनत काल तक सत्ता में रहने की वीरता कैसे और क्यों दिखाती रहेगी?
                          निश्चित तौर पर झारखंड एक पूर्ण विकसित राज्य नहीं बन सका है, आदर्श और प्रेरक राज्य भी नहीं बन सका। मूल निवासियों की कल्पना-इच्छा की कसौटी पर झारखंड की कोई अच्छी तस्वीर खडी नहीं हुई है, विकास एक छलावा है, भ्रमित करने वाला है, झारखंड में बाहरी संस्कृति की घुसपैठ खतरनाक तौर पर हुई है, बाहरी संस्कृति का अर्थ झारखंड की मूल संस्कृति की घेराबंदी, लुटेरी संस्कृति का खतरनाक तौर पर उपस्थिति, भ्रष्टाचार का बोलबला, भष्टचार से आम जीवन का त्राहीमाम करना, झारखंड के मूल निवासियों का जीवन कठिन बना कर लहूलुहान करना, नौकरशाही को शासक का रूप देना, खनिज संपदाओं का अंधाधुध दोहन करना, झारखंड के खनिज संपदाओं की तस्करी को संरक्षित करना, जैसे अनेकानेक वर्जित कार्यों को प्राथमिकता मिली है।
लोमहर्षक,खतरनाक व तेजाबी संस्कृति का राजनीतिक प्रत्यारोपण है। बाहरी और पैरासूट नेताओं को सत्ता और पार्टी संगठन के केन्द्र विन्दु मे उपस्थित करना, प्रत्यारोपित करने का खेल खेला गया। इस खेल ने सबसे ज्यादा नकरात्मक प्रभाव झारखंड के मूल नेताओं पर पडा। सत्ता और पार्टी के केन्द्र में लुटरी और बाहरी तथा पैरासूट संस्कृति के नेताओं के प्रत्यारोपण के कारण झारखंड के मूल नेताओ की ईमानादारी, नैतिकता, कर्मठता और समर्पण निरर्थक बन गयी, उनकी राजनीतिक संभावनाओं को पूर्ण अवस्था में पहुंचने से पूर्व ही निरर्थक बना दिया गया, एक साजिश पूर्ण राजनीतिक कुकृत्य है। झारखंड की सत्ता पर इनके कब्जे स्पष्ट तौर देखा जा सकता है।
झारखंड-वनांचल आंदोलन में एक पर एक नेता थे जो ईमानदारी, कर्मठता और देशज संस्कृति के वाहक थे, जिन्होंने अलग झारखंड राज्य बनवाने में अपनी भूमिका निभायी थी। पर दो तरह के संकटों ने झारखंड और वनांचल आंदोलन के नेताओ को निरर्थक बनाया है। झारखंड आंदोलन के जो नेता थे, वे आपसी फूट के शिकार हो गये, भ्रष्टचार के आंकठ में डूब गये, वंशवाद के आंकठ में डूब गये। भ्रष्टचार के आरोप में शिबू सोरेन बार-बार जेल गये। मुख्यमंत्री रहते हुए शिबू सोरेन विधान सभा के चुनाव हार गये। शिबू सोरेन को उंचाइयों तक पहुंचाने वाले सूरज मंडल वंशवाद के मोह में निपटा दिये गये। शिबू सोरेन ने अपने बेटों के कारण सूरज मंडल को पार्टी से निकाल कर हाशिये पर चढा दिया। दुष्परिणाम यह हुआ कि सूरज मंडल तो निपट ही गये, इसके साथ ही साथ शिबू सोरेन का परिवार और झारखंड मुक्ति मोर्चा भी अपनी पुरानी शक्ति से हाथ धो बैठे। फलस्वरूप झारखंड की राजगद्दी पर भाजपा को बार-बार बैठने का अवसर प्रदान हुआ।
                                जहां तक भाजपा के मूल नेताओं की बात है तो उन्हें भाजपा के केन्द्रीय कृत और झारखंड की लुटेरी मानसिकता से ग्रस्त नेताओं ने ही निरर्थक और कमजोर बना कर हाशिये पर खडा कर दिया गया। कडिया मुंडा जैसे वरिष्ठ, ईमानदारी और राजनीति में विरले नेता को छोडकर , उन्हें दरकिनार कर बाबू लाल मरांडी को प्रथम मुख्य मंत्री बना दिया गया? कडिया मंुडा जैसे वरिष्ठ, ईमानदार और राजनीति के प्रेरक पुरूष को नजरअंदाज क्यों किया गया, उन्हें हाशिये पर क्यों ढकेला गया, उनकी प्रशासनिक और देशज संस्कृति की विशेषज्ञता क्यों नहीं सत्ता का साथ मिला ? इस प्रश्न का कोई जवाब आज की राजनीति में कोई खोजने की कोशिश ही नहीं करता? सच्चाई बडी ही खतरनाक है, साजिश की सुई भाजपा के बिहारी संस्कृति के नेताओं और भाजपा के केन्द्रीयकृत नेताओ की ओर घूमती है। बिहार से जब झारखंड अलग हुआ था तब भी बिहार के नेताओं ने अपनी लुटेरी मानसिकता को जारी रखने के लिए न केवल साजिश रची थी बल्कि मकडजाल भी बूने थे। इसकी पीछे की कहानी भी कम राजनीतिक लोमहर्षक नहीं है। भाजपा की बिहारी संस्कृति के नेताओं और केन्द्रीय नेताओं ने यह सोच विकसित की थी कि अगर झारखंड की सत्ता पर कोई मूल संस्कृति के समर्पित नेता या फिर कडिया मुंडा जैसे नेता की ताजपोशी हुई तो फिर उनकी लुटेरी मानसिकताएं जमीन पर नहीं उतर सकती हैं? झारखंड के पर्यावरण और खनिज संपदाओं के दोहन करने का अवसर नहीं मिलेगा, टाटा जैसी तमाम निजी कंपनियों की लूट की संस्कृति जारी नहीं रखी जा सकती है। इसी उददेश्य से बाबू लाल मरांडी की ताजपोशी हुई थी और कडिया मुंडा जैसे नेताओं को सत्ता से दूर रखा गया था। बाद में बाबू लाल मरांडी की कहानी भी सबके दृष्टांत में है ही। एक समय भाजपा में इन्दर सिंह नामधारी जैसे नेताओं की धाक होती थी जो भाजपा से बाहर जाने के लिए विवश हुए थे।
                                  भाजपा की सत्ता और पार्टी पर विराजमान प्रथम श्रेणी के नेताओं का आकलन कर लीजिये, आपको ज्ञात हो जायेगा कि झारखंड के साथ कितना अन्याय हुआ है और झारखंड की आज तो दुर्गति है, झारखंड देश का सबसे प्रेरक और आदर्श स्टेट क्यों नहीं बन पाया, इसकी पूरी कहानी, पूरी साजिश और पूरी लुटेरी मानसिकताएं आपको समझ में आ जायेगी? आज स्थिति यह है कि भाजपा में या तो मोहरे संस्कृति के नेता है या फिर बाहरी यानी पैरासूट संस्कृति के नेता है। अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया गया था और आज केन्द्र में अर्जुन मुंडा मंत्री भी है, पर उनका वनांचल आंदोलन में कोई भूमिका नहीं थी, भाजपा को गांव-गांव तक ले जाने में उनकी कोई भूमिका नहीं थी, ये झारखंड मुक्ति मोर्चा में थे और दलबदल कर भाजपा में आ गये। झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास बाहरी है, ये जमशेदपुर में टाटा कंपनी में नौकरी करने आये थे और भाजपा के शिखर तक पहुंच गये। सरयू राय की कहानी और भी राजनीतिक बर्बर है, सरयू राय एक समय लालू के किचन कैबिनेट के सदस्य हुआ करते थे, ये भाजपा विरोधी थे, बिहारी संस्कृति के बाहुबली है। सरयू राय अचानक बिहार छोड कर झारखंड की राजनीति में आ गये, झारखंड की जातीय और झारखंड की लुटेरी मानसिकताओं पर सवार लोगों ने सरयू राय को चमका दिया। आज सरयू राय की झारखंड की राजनीति में मजबूत और सत्ता निर्धारण में भूमिका निभाने वाले नेता के रूप में गिनती होती है, बिहार में यही सरयू राय कोई चुनाव जीतता या नहीं पर आज झारखंड में इनकी धाक है।
                           झारखंड की मूल राजनीतिक संस्कृति की कसौटी पर भाजपा के सांसदों और विधायकों की पृष्ठभूमि जांच कर लीजिये, राजनीतिक लोमहर्षक कहानियां सामने आयेंगी। अनेकानेक झारखंड के भाजपा सांसद और विधायक बाहरी है। उदाहरण देख लीजिये। पलामू से सांसद बीडी राम मूल रूप से कांग्रेसी और बाहरी हैं, गोडा से सांसद निशिकांत दुबे, रांची से सांसद संजय सेठ, हजारीबाग के सांसद यशवंत सिंन्हा का बेटा, धनबाद का सांसद पशुपति नाथ सिंह, चतरा के सांसद सुनील सिंह, आदि बाहरी हैं। झारखंड में भाजपा को स्थापित करने वाले सूरज मनि सिंह, प्रवीण ंिसंह श्रवण कुमार, निर्भय कुमार सिंह जैसे सैकडो नेता आज हाशिये पर खडे हैं, इन्हें कभी विधायक और सांसद बनने का अवसर ही नहीं दिया गया। पार्टी के लिए चंदाखोरी करने वाले नेता गुलशन आजमानी भी गुमनामी में कैद हैं।
                            झारखंड राज्य बनाने का जो उद्देश्य था वह तो शायद अब कभी पूरा होगा? अगर झारखंड की सत्ता पर
झारखंड के लिए लडने वाले शिबू सोरेन जैसे नेता अपनी ईमानदारी नहीं छोडते और वीरता के साथ समर्पण प्रदर्शित करते रहते तो फिर झारखंड में भाजपा के बाहरी और पेरासूट नेताओं की सत्ता पर पहुंच बन ही नहीं सकती थी। झारखंड आंदोलनकारियों की विफलता और बईमानी ने भाजपा के बाहरी और पैरासूट नेताओं को झारखंड लुटने की गारंटी प्रदान की है। इसका दुष्परिणाम तो झारखंड आंदोलन के नेताओं ने भी झेला है। आज झारखंड मुक्ति मोर्चा स्वयं के बल पर सत्ता स्थापित करने की शक्ति ही प्रदान नहीं कर सकता है। आजसू भाजपा के पिछलग्गू बन गया। बाबू लाल मरांडी टिटही पंक्षी की तरह खुशफहमी के शिकार हो गये, बाबू लाल मरांडी लोकसभा से लेकर विधान सभा चुनाव हार गये पर अभी भी बाबू लाल मरांडी स्वयं के बल पर झारखंड की सत्ता पर स्थापित होने का दुस्वपन देखना बंद नहीं किये है।
                           भाजपा भी दीर्धकालिक तौर पर झारखंड की जनता को मूर्ख नहीं बना सकती है, जनता को लोकलुभावन नारे के साथ ही साथ विकास और उन्नति भी चाहिए। हिन्दुत्व हमेशा सत्ता की चाभी नही बन सकता है। नरेन्द्र मोदी का चमत्कार तो लोकसभा चुनाव में चल सकता है पर विधान सभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी के चत्मकार की बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं होनी चाहिए। विकास और उन्नति की कसौटी पर भाजपा का भुतहा चेहरा ही है। विकास और उन्नति के नाम पर सिर्फ भवन खडे कर दिये गये हैं, सरकारी कर्मचारी और नौकरशाही जनता के लिए यमराज बन गये हैं। शिक्षा की स्थिति चैपट है, स्कूल हैं पर शिक्षक पढाने जाते नहीं हैं, अस्पताल है पर डाॅक्टर बैठते नहीं, पूरा वन विभाग है पर वन का सर्वानाश हो चुका है, खनिज संपदाओं के लिए निजी सेना खडी कर दी गयी है, खनिज संपदाओं की लूट रोकने वालों को देशद्रोही बनाकर जेलों में डाल दिया जा रहा है, झारखंड के निवासी होने के बावजूद इस तरह के संघर्षरथियों को झारखंड में रहने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।
                         आंदोलन से सत्ता जब कोई निकलती है, आंदोलन से जब कोई राज्य निकलता है तो फिर सत्ता की चाभी आंदोलनकारियों के हाथो में ही होनी चाहिए। झारखंड राज्य आंदोलन की उपज है पर झारखंड राज्य की स्वतंत्र चाभी आंदोलनकारियों के हाथों में नहीं रही है। अगर भाजपा में कडिया मुंडा जैसे नेता हाशिये पर खडे नहीं होते और झारखंड में भाजपा को स्थापित करने वाले नेताओं को साजिशपूर्ण ढंग से जमींदोज नहीं किया गया होता तो फिर आज झारखंड राज्य की तस्वीर कुछ अलग ही होती। झारखंड के पास देश के अनुपातिक तौर पर 46 प्रतिशत मिनरल है, यहां के खनिज और वन पर पूरा देश राज करता है, झारखंड अपने पैसों से एक आदर्श और प्रेरक राज्य बन सकता था। अगर भाजपा फिर भी मूल संस्कृति को खारिज करती रहेगी, मूल नेताओं को हाशिये पर भेजती रहेगी तो फिर भाजपा अंनत काल तक सत्ता की चाभी हासिल करने की वीरता नहीं दिखा सकती है।


संपर्क ........
विष्णुगुप्त
मोबाइल नंबर ......... 9315206123


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VISHNU GUPT
COLUMNIST
NEW DELHI
09968997060

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