Friday, August 6, 2010

आईएसआई के फंदे में घाटी/ भारतीय सत्ता/ कूटनीति

राष्ट्र-चिंतन



आईएसआई के फंदे में घाटी/ भारतीय सत्ता/ कूटनीति


विष्णुगुप्त






                                                            आईएसआई के फंदे में भारतीय सत्ता/ कूटनीति पूरी तरह से फंस गयी है। कश्मीर घाटी पहले से ही आईएसआई के फंदे में फंसी हुई है। आईएसआई जो करना चाहती थी और जो उसका लक्ष्य था उसके आस-पास वह पहुंच ही गयी है। यानी की कश्मीर में हिंसा का जनतांत्रिककरण करना और कश्मीर की समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर भारत की राष्ट्रीय एकता पर कैंची चलाना। आईएसआई ने अपनी पूर्व नीति बदली और उसने नया रास्ता चुना। आईएसआई को यह मालूम था कि वर्तमान दौर में उसकी कश्मीर घाटी पर पुरानी आतंकवादी नीति नहीं चलेगी। अंतर्राष्ट्रीय दबावो और जनमत के बुलडोजर से उसे लहूलुहान होना पड़ सकता है। इसलिए उसने कश्मीर में आतंकवादियों को बंदूक की जगह पत्थर थमा दिया। हमारे गृहमंत्री पी. चिदम्बरम लोकसभा में यह स्वीकार कर चुके हैं कि पत्थरबाजी में आतंकवादी शामिल हैं और आतंकवादियों के उकसावे पर लोग सरकारी सम्पतियों को आग के हवाले कर रहे हैं। गृहमंत्री पी चिदम्बरम की यह स्वीकृति भी आईएसआई की जीत है। इसलिए कि आईएसआई ने भारतीय सत्ता/ कूटनीति/ गुप्तचर व्यवस्था को आंखों में घूल झोंककर बड़ी आसानी से पत्थरबाजी का जंजाल खड़ा किया है। आईएसआई ने पत्थरबाजी का जंजाल आसानी से खड़ा कर लिया और हमारी गुप्तचर/सुरक्षा एजेसिंयों को पता भी नहीं चल सका। राजनीतिक सत्ता में राष्ट्र की अस्मिता का भाव है ही नहीं जिसके सहारे आईएसआई और पाकिस्तान की प्रायोजित आतंकवाद और कूटनीति का जोरदार जवाब दिया जा सके। हाल ही में पाकिस्तान में हमारे विदेश मंत्री कृष्णा ने जिस तरह से पराजयवादी कूटनीति का परिचय दिया,उसके गंभीर परिणाम कैसे नहीं निकलेंगे। हमारी सत्ता में हिम्मत और राष्ट्रीयत्ता का भाव होता तो क्या हम आतंकवाद का आसान शिकार होते? कभी नहीं। आईएसआई और पाकिस्तान खुद अपने करतूतों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी संगठन-देश घोषित हो चूके होते। हेलडी खुलासे में पाकिस्तान को आतंकवादी देश धोषित कराने के सभी तथ्य और शर्ते हैं।
                                                   आईएसआई सिर्फ गुप्तचर एजेंसी भर नहीं है। आईएसआई पाकिस्तान की अगली पक्ति की सैनिक व्यवस्था है। हमारी सत्ता/ कूटनीति/गुप्तचर-सुरक्षा एजेंसियां आईएसआई से हमेशा पराजित होती रही हैं। कश्मीर घाटी में सिर्फ पत्थ्रबाजी का जंजाल खड़ा करने भर की बात नहीं है। आईएसआई ने मनचाहे तौर पर हमारी कूटनीति/गुप्तचर एजेंसियों को न केवल आंखों में घूल झोंका है बल्कि हमारी राष्ट्रीयता-स्वाभिमान को अपने पैरों से रौंदा है। 1971 तक पाकिस्तान और उसकी रक्तपिशाचु गुप्तचर एजेसी आईएसआई की कोई खास औकात नहीं थी और न ही वह अपने इरादों को लागू करने मे सफल थी। हमेशा उसे मात मिलती थी और भारतीय गुप्तचर एजेंिसयां आईएसआई के बूने जाल को तार-तार करने में सफल होती थी। पाकिस्तान ने 1971 की पराजय और बंागला देश निर्माण से सबक लिया और उसने भारत को टूकड़े-टूकड़े करने की दूरगामी कार्यक्रम और नीतियां बनायी। जिसमें अपनी गुप्तचर एजेंसी को खूंखार-रक्तपिशाचु बनाने और भारत के जरे-जरे मे आतंकवाद फैलाने की बात थी। इतना ही नहीं बल्कि उसने परमाणु बम की चुनौती भारत के सामने खड़ी करने की नीति बनायी थी। इन दोनो मोर्चे पर पाकिस्तान सफल रहा। इसमें हमारी सत्ता की उदासीनता और देश की सुरक्षा के सामने समर्पण का भाव जिम्मेदार रहा है। सही तो यह है कि हमने 1971 के जीत से कुछ ज्यादा अंहकार भर लिया था। यह मान लिया था कि पाकिस्तान अब कभी भी हमारे सामने खड़ा ही नहीं हो सकता है। अगर हमारी सत्ता थोड़ी सी भी दूददृष्टि से परिपूर्ण होती तो कश्मीर समस्या का समाधान उसी समय निकल जाता जब हमारी जेलों में 90 हजार पाकिस्तानी सैनिक बंद थे और हमारी नौ सेना लाहौर पर कब्जा कर बैठी थी। पर इंदिरा गांधी ने दूरदृष्टि नहीं दिखायी। इसके पीछे कारण था कि 1971 की जीत से इंदिरा गांधी और उनकी सलाहकार मंडली कुछ ज्यादा ही खुशफहमी से ओत-प्रोत हो गयी थी।
                                                                                   इस खुशफहमी और उदासीनता का परिणाम भारत को जल्दी ही भुगतने के लिए विवश होना पड़ा। 1974 में आईएसआई ने बांग्लादेश में अपना जाल फैलाया और बांग्लादेश के निर्माता शेख मुजीबुरर्हमान की हत्या कराने और भारत विरोधी सत्ता के साथ ही साथ वातावरण भी तैयार करने में सफल हो गयी। कई सालों तक बांग्लादेश में आईएसआई की पहुंच का परिणाम हम भुगतते रहे। न केवल बांग्लादेश में हमारे हित प्रभावित हुए बल्कि पूर्वोत्तर भारत में आईएसआई ने हमारे खिलाफ आग भड़काई। आज पूर्वोतर में देश जो लहूलुहान है उसके पीछे आईएसआई की भूमिका है। आईएसआई पंजाब में आतंकवाद की आग फैलायी। केपीएस गिल और स्वर्गीय बेअंत सिंह के दूरदृष्टि और कठोर नीति से हमने पंजाब में शांति जरूर लायी पर इस शांति के लिए कितनी बड़ी कीमत भी हमें चुकानी पड़ी है? यह भी जगजाहिर है। कारगिल हजारों-हजार फीट उंची चोटियों पर आईएसआई ने अपने सैनिको को कब्जा कराने में सफल हो गयी। हमारी कूटनीति और गुप्तचर एजेंसिंयों को इसकी भनक तक नहीं लगी। कारगिल में पाकिस्तान सैनिको को भगाने में पांच सौ से अधिक सैनिकों की कुर्बानी हुई। कारगिल कब्जे के तुरंत बाद आईएसआई ने इंडियन एयर लाइंस विमान अपहरण की साजिश बुनी। लज्जा जनक बात ही नहीं बल्कि राष्ट्र की अस्मिता भी तार-तार हुई। राष्ट्र को अपमान भरी परिस्थितियां झेलनी पड़ी। तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह को तीन खूंखार आतंकवादियों को छोड़ने के लिए काबुल जाना पड़ा। मुबंई में आईएसआई ने समुद्र मार्ग से हमला कराने की साजिश रची और सफल भी हुई। मुबंई हमले में किस तरह आईएसआई ने अंजाम दिया उससे भी क्या बताने की जरूरत है। मंुबई हमले में आईएसआई और पाकिस्तान की सेना की सीधी करतूत थी। इसके प्रमाण हमारे पास मौजूद है।
                                       कश्मीर घाटी आज जिस तरह से आतंक और पत्थरबाजी जैसी हिंसा से ग्रस्त है,उसके पीछे सिर्फ और सिर्फ आईएसआई की करतूत है। आईएसआई को मालूम हो गया है कि बंदूक और बम के सहारे वह उतना सफल नहीं हो पायेगा जितना कि हिंसा की पत्थरबाजी की नीति से। पत्थरबाजी के लिए आईएसआई ने सटीकता के साथ जाल बुनी। उसने आतंकवादियों के हाथों में बंदूक-बमों की जगह पत्थर थमायी। उसने आतंकवादियो के साथ ही साथ घाटी के युवकों के साथ समन्वय तैयार कराया। पैसे और सोहरत प्राप्त करने का लालच दिया गया। घाटी के विभिन्न जिलों मे पत्थरबाजी के लिए युवकों की फौज खड़ी की गयी। तथ्य यह भी सामने आये है कि पत्थरबाजी के लिए युवकों की भर्ती और भुगतान के लिए भी नायाब तरीका चुना गया है। कश्मीर स्थित विभिन्न बैंकों से क्रेडित कार्ड से सैकड़ों करोड़ रूपये की निकासी हुई है। वह भी विदेशी क्र्रेडिट कार्डो का सहारा लेकर। नेपाल से जारी हुए क्रेडित कार्डो से ज्यादा निकासी हुई है। विदेशी क्रेडिट कार्डो से हुई बेहिसाब निकासी से साफ हो जाता है कि विदेशी पैसों पर ही पत्थरबाजी का जंजाल खड़ा किया गया है। अब यहंा सवाल यह उठता है कि क्रेडिट कार्ड से पैसो निकालने वाले कौन लोग हैं और किन देशों और संगठनों से पैसे कश्मीर में आये।? जाहिरतौर पर यह काम आईएसआई और उसके समर्थक मुस्लिम देशों की बैंकिंग प्रणाली की यह करतूत है। जब आईएसआई पत्थरबाजी की जाल बुन रही थी और क्रडिट कार्डो के माध्यम से बेहिसाब पैसे बांट रही थी तक हमारी गुप्तचर एजेंसिंया क्या कर रही थी। हमारी गुप्तचर एजेंसियां/कूटनीति और सत्ता को चाकचौबंद क्यों नहीं होना चाहिए था?
                                                  इतिहास गवाह है। हम जब-जब पाकिस्तान पर विश्वास किया और शांति के लिए आगे हाथ बढ़ाया तब-तब हम घोखे खाये हैं। अपनी राष्ट्रीयता और स्वाभिमान को खूनी आतंकवाद से लहूलुहान होते हमने देखा है। नेहरू ने विश्वास किया। उसका परिणाम यह हुआ कि हमनेें आधा कश्मीर खो दिया। अटल बिहारी वाजपेयी शांति का संदेश लेकर लाहौर गये। इसका परिणाम हम कारगिल युद्ध के तौर पर भुगता। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पाकिस्तान के भरोसे का परिणाम मुंबंई हमले में देख लीजिए। पर भारतीय सत्ता इतिहास से सबक लेने के लिए तैयार ही नहीं है। भारतीय सत्ता को लगता है कि बातचीत के माध्यम से ही पाकिस्तान को सही रास्ते पर लाया जा सकता है। पाकिस्तान में हमेशा से लोकतंत्र का अभाव रहा है। पाकिस्तान का मौजूदा सत्ता लोकतांत्रिक न होकर आईएसआई और सेना द्वारा नियंत्रित है।
                                                   आईएसआई पर कैसे नकेल डाला जा सकता है? आईएसआई को नकेल डालना कोई मुश्किल काम नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की एक संहिता है जिसमें आतंकवाद फैलाने वाले देशों आतंकवादी देश घोषित करने का प्रावधान है। आईएसआई और पाकिस्तान को आतंकवादी संगठन और आतंकवादी देश धोषित कराने के लिए भारत के पास सारे तर्क और तथ्य मौजूद है। पुराने तथ्यों और परिस्थितियों को छोड़ दीजिये। मात्र मुबंई हमले में आईएसआई की भूमिका पर ही हम पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करा सकते है। हेडली ने सीधेतौर पर स्वीकार किया है कि मुबंुई हमला आईएसआई द्वारा नियंत्रित था और उसने धन सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराये थे। हेडली के खुलासे अमेरिका के न्यायालय में दर्ज हैं। जाहिरतौर पर हेडली के खुलासे हमारे लिए एक महत्वपूर्ण हथियार साबित हो सकता था। इसके सहारे हम पाकिस्तान को आसानी से आतंकवादी देश घोषित करा सकते हैं। पर हमारी सत्ता अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान पर यह हथियार चलाया ही नहीं। पाकिस्तान में जिस तरह से हमारे विदेश मंत्री कृष्णा ने समर्पण किया उससे भी पाकिस्तान-आईएसआई के हौसले बुलंद हुए होंगे। हमें अमेरिका पर आश्रित रहने की जरूरत क्या है? खुद की कूटनीतिक-सामरिक शक्ति से हम आईएसआई-पाकिस्तान को नियंत्रित कर सकते हैं और उसे शांति का पाठ पढ़ा सकते हैं। इसके लिए चाकचौबंद और राष्ट्र की अस्मिता से परिपूर्ण कूटनीति होनी चाहिए। सौ आने सही है कि जब तक हम आईएसआई के खूनी पंजों को नहीं मरोड़ेंगे और जैसा का तैसा नीति-व्यवहार पर नही चलेंगे तबतक कश्मीर में शांति या पत्थरबाजी जैसी प्रब्रिया रूकेगी ही नहीं।


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