Thursday, March 18, 2010

इंडियन मुजाहिदीन की खतरनाक मजहबी राजनीति को कुचलना जरूरी

इंडियन मुजाहिदीन की खतरनाक मजहबी राजनीति को कुचलना जरूरी


विष्णुगुप्त

आयातित आतंकवाद की चुनौतियां उतनी खतरनाक नहीं है जितनी आतंरिक आतंकवाद की चुनौतियां। हम बाहरी और आयातित आतंकवाद का तो सफाया करने में सफल हो सकते हैं और उनके खतरनाक मंसूबों को भी कुचला जा सकता है। पाकिस्तान संरक्षित और आयातित आतंकवाद को कुचलने में काफी हद तक हमें सफलता भी मिली है और कष्मीर को हड़पने के उसके नापाक इरादे सफल नहीं हुए हैं। पर आतंरिक आतंकवाद की जड़ों को कुचलना आसान नहीं होता है। इसलिए नहीं कि आंतरिक आतंकवाद की वीभिषीका कोई अपराजय होती है। इसलिए कि आंतरिक आतंकवाद की जड़ों को कुचलने की राह में कई अटकलें और रोड़ें होते है जो आंतरिक राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक विसंगतियों पर आधारित होती हैं। इंडियन मुजाहिदीन नामक आतंकवादी संगठन आतंरिक आतंकवाद का ही प्रतिनिधित्व करता है। यह सही है कि इंडियन मुजाहिदीन भी पाकिस्तान की आतंकवादी मानसिकता से निकला मजहबी संगठन है पर वह अपने आप को ‘इंडियन‘ परिधि की नीति में बांध रखा है। बटला हाउस कांड में इंडियन मुजाहिदीन की संलिप्तता उजागर हो चुकी है और उसके खतरनाक मंसुबों की क्रमवध सच्चाइयां बाहर आ रही हैं। दिल्ली में सिलसिलेवार बम विस्फोटों, जयपुर बम विस्फोट कांड और उत्तर प्रदेष में हुए अधिकतर बम विस्फोटों में इंडियन मुजाहिदीन के प्रमाणित संलिप्तता रही है। हाल के दिनों में इुंडियन मुजाहिदीन के कई खतरनाक आतंकवादी पकड़े गये हैं। इसमें दिल्ली पुलिस की भूमिका की तारीफ होनी चाहिए। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि इंडियन मंुजाहिदीन की जड़े सही में उखड़ गयी हैं। इंडियन मुजाहिदीन बांग्लादेष, पाकिस्तान और नेपाल में अपनी जड़े मजबूत कर रखी है और इन्ही देशों से भारत में आतंकवादी हमले कराने की साजिष चलती रहती है।
                                     आर्थिक या फिर राजनीतिक प्रश्न कदापि नहीं हैं। यह निष्चित प्रश्न मजहबी है। मजहबी आईने में ही इस प्रश्न को देखा जाना चाहिए। पर अबतक कथित उदारवादी परमपराएं और मानसिकताएं यह मानने के लिए तैयार ही नहीं होती कि यह मानसिकता मजहबी है। कथिततौर पर उदारवादी परमपराएं और मानसिकताएं यह मानती है कि आर्थिक विसमता और राजनीतिक-सामाजिक बईमानी के कारण ही ऐसी मानसिकता और परमपराएं बढ़ती हैं और खतरनाक परिणाम के लिए दोषी है। हिन्दू सांप्रदायिकता और हिन्दू कट्टवादी भी ऐसी मानसिकता के लिए खाद और पानी होती हैं। यानी कि इंडियन मुजाहिदीन की आतंकवादी मानसिकता के लिए हिन्दू संवर्ग जिम्मेदार हैं। यह समानता से परिपूर्ण सोच ही नहीं सकती है। बल्कि इस तरह संरक्षणवादी नीति से आतंकवादी मानसिकता बढ़ती है। हमारे देश में जो आतंकवाद की फसल लहरा रही है और प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में निर्दोष जिंदगियां शहीद होती हैं, इसके लिए जिम्मेदार कथिततौर पर उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष तबका भी है। सच तो यह है कि हिन्दुत्व की आलोचना करना एक फैशन हो गया है। यह स्थापित हो गया है कि जो शख्सियत हिन्दुत्व को जितना गाली देगा, जितनी आलोचनाएं करेगा वह शख्सियत उतना ही धर्मनिरपेक्ष समझा जायेगा। दुकानदारी भी इसे कह सकते हैं। बडी-बड़ी शख्सियतों की जिंदगी भी इसी दुकानदारी से चलती है। बटला हाउस कांड पर धर्मनिरपेक्ष मानसिकता ने कैसी दुकानदारी चलायी थी , यह सब जाहिर है। दिल्ली पुलिस की बहादुरी की खिल्ली उड़ायी गयी। फर्जी मुठभेड बताकर कहानियां पर कहानियां गढ़ी गयी। बटला कांड पर सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली पुलिस को क्लीनचिट दे चुका है फिर भी कथित धर्मनिरपेक्षता की मुस्लिम परस्त राजनीति समाप्त नहीं हो रही है।
                             इंडियन मुजाहिदीन की मुख्य मजहबी नीति है क्या? खुद इंडियन मुजाहिदीन के सरगनाओं के बयान हैं कि वे भारत में मुसलमानों के साथ हो रहे आर्थिक या फिर राजनीतिक बेईमानी के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं बल्कि उनकी लड़ाई तो भारत में इस्लामिक सत्ता व्यवस्था कायम करने को लेकर है। इंडियन मुजाहिदीन कहता है कि उसे भारत में इस्लामिक व्यवस्था कायम करने के लिए एक और मुहम्मद गोरी चाहिए। उन्हे वही मुहम्मद गोरी चाहिए जिसने भारत 16 बार आक्रमण किया था और भारत की अस्मिता को रौंदा था। इतना ही नहीं बल्कि मुस्लिम सत्ता भी मुहम्मद गोरी ने स्थापित किया था। अंग्रेेजों के आने के बाद भारत में मुस्लिम सत्ता का अवसान हुआ और आजादी मिलने के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हुई। वर्तमान भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था धर्मनिरपेक्ष है। सभी धर्मो को आगे बढ़ने और अपनी संस्कृति को संरक्षित करने या फिर विकसित करने की छूट है। भारत में इस्लाम फला-फुला। इस्लाम के विकास में कहीं से कोई रूकावटें भी नहीं हुई। फिर भी वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था की जगह इस्लामिक व्यवस्थाएं की मांग का अर्थ क्या हो सकता है? इसके पीछे की मानसिकता कैसी होगी? इसके दुष्परिणाम क्या होंगे? सबसे बड़ी बात तो यह है कि क्या हम इंडियन मुजाहिदीन जैसे विभाजनकारी और खूनी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं? उत्तर कदापि नहीं। इंडियन मुजाहिदीन की खतरनाक मंसुबों को कुचलने में हमारी राजनीतिक-सामजिक और मजहबी विसंगतियां हैं जिसे तोड़ने की कहीं से कोई उम्मीद भी तो नहीं दिखती है।
                                             आखिर इंडियन मुजाहिदीन जैसे सभी आतंकवादी संगठनों के खूनी पंजों को मरोड़नें में राजनीतिक, सामाजिक विसंगतियां क्या है। वास्तव हमारे देश में वोट की राजनीति के कारण राष्ट की अस्मिता के साथ खिलवाड़ होता रहा है और मुस्लिम आतंकवाद का संरक्षण मिलता रहा है। बटला हाउस कांड में उत्तर प्रदेष के आजमगढ़ जिले के मुस्लिमों की संलिप्तता जाहिर हुई। आजमगढ आतंकवाद की ष्षरणस्थली ही नहीं बल्कि कारखाना है। आजमगढ में आतंकवाद की जड़ों को खंगालने और उसे नेस्तनाबुद करने की जगह संरक्षण दिया जा रहा है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का आजमगढ़ की वोट यात्रा क्या किसी से छिपी हुई बात है? आजमगढ़ में दिग्विजय सिंह ने जिस तरह की तान छेड़ी उससे क्या हम आतंकवाद से लड़ सकते हैं। कांग्रेस आज सत्ता में है। कांग्रेस को यह मालूम है कि उसकी सत्ता का स्थायीकरण तभी संभव है जब मुस्लिम समुदाय का एकपक्षीय रूझान उनके पक्ष में जाये। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की यह नीति सफल रही है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से मुस्लिम समुदाय की नाराजगी भी दूर हुई है। पिछड़ी और दलित जातीय राजनीतिक पार्टियां कभी मुस्लिम वोटों की खरीददार थी। अब वे खुद हासिये पर खड़ी हैं या फिर आज की राजनीतिक सत्ता संतुलन की परिधि से बाहर है। आज की तारीख में कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक का थोकखरीदार है और मुस्लिम समुदाय भी कांग्रेस के साथ खड़ी है। ऐसी स्थिति में आतंकवाद पर अकुश लग ही नहीं सकता है?
                     राष्ट्र सर्वोपरी है। राष्ट्र की अस्मिता के साथ खिलवाड़ होना ही नहीं चाहिए। वोट की राजनीति पर राष्ट्र की अस्मिता के साथ समझौता करना खतरनाक राजनीति है। कालांतर मे हम इसके परिणाम से दो-चार हो चुके है। इंडियन मुजाहिदीन की आतंकवादी चुनौती को गंभीरता से क्यो नहीं लिया जा रहा है? इंडियन मुजाहिदीन भारत में इस्लामिक व्यवस्था कायम करना चाहता है। इसलिए उसके साथ किसी भी प्र्रकार का नरमी बरतने के मतलब क्या है? यह सही है कि राजनीतिक बंदिषों के बाद भी इंडियन मुजाहिदीन के बड़े-बड़े सरगना पकड़े गये हैं और वे जेलों में कानूनी बंधन में कैद है। लेकिन उसकी जड़े न तो समाप्त हुई है और न ही कमजोर हुई है। नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेष में बैठकर इंडियन मुजाहिदीन के सरगना भारत मे आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने की साजिशें रचने में लगे रहते हैं। इंडियन मुजाहिदीन के खिलाफ कठोर राजनीतिक नीति की जरूरत होगीं। गुप्तचर व्यवस्थाओं को मजबूत करने के साथ ही साथ कानूनी घेरेबंदी को भी मजबूत करना होगा, तभी इंडियन मुजाहिदीन की खतरनाक शरीयत चुनौतियों को नेस्तनाबुत किया जा सकेगा।


मोबाइल - 09968997060

2 comments:

  1. गुप्त साहब, अब किस किस को कुचलेंगे, बहुत देर हो गई क्योंकि अब बहुत सारे इंडियन मिजाहिदीन हो गए ! हाँ, १९४७ में था सदा के लिए छुटकारा पाने का वो भी इन तथाकथित सेक्युलरों की वजह से गँवा दिया !

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  2. bhai sahb roj aap ka roj bda kam dekhne ko milta hai is se hi lgta hai ki abhi aash baki hai
    bhut bhut bdhai

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