Thursday, January 28, 2010

श्रीलंका में महेन्द्रा राजपक्षे को फिर मिली सत्ता

राष्ट्र-चिंतन



                श्रीलंका में महेन्द्रा राजपक्षे को फिर मिली सत्ता
तमिलों का विश्वास और विकास  के सौपान गढ़ने की चुनौती


विष्णुगुप्त
                                                                 
                   श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उभरी सभी चिंताएं निर्मूल साबित हुई और पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल फोनसेका कोई चमत्कार करने में असफल साबित हुए। महेन्दा्र राजपक्षे फिर से श्रीलंका के राष्ट्रपति चुने गये हैं। महेन्द्रा राजपक्षे 20 लाख से अधिक वोटों से जनरल फोनसेंका को हराया है। श्रीलंका में राजपक्षे की जीत के साथ ही विपक्ष की आशाओं पर भी पानी फिर गया। इसलिए कि विपक्ष ने जनरल फोनसेकंा को अपना उम्मीदवार बनाया था और लिट्टे के खिलाफ युद्ध में जनरल फोनसेंका के करिशमा पर विपक्ष को भरोसा था। श्रीलंका की जनता ने सत्ता की स्थिरता को चुना है। श्रीलंका की जनता ने यह महसूस किया कि सत्ता सैनिक के हाथों में सौंपने के खतरे गंभीर होंगे और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है? अब यहां सवाल उठता है कि महेन्द्रा राजपक्षे की जीत के मायने क्या है? क्या महेन्द्रा राजपक्षे तमिलों को राष्ट्र के मुख्यधारा में लाने और उनका विश्वास जीतने में सकरात्मक भूमिका अदा कर सकते हैं? इस समय श्रीलंका में विकास की धारा बहाने और अर्थव्यवस्था को मजबूती के लिए अंतर्राष्टीय सहायता और समर्थन की जरूरत होगी। वैश्विक समर्थन तभी हासिल हो सकता है जब श्रीलंका में राजनीतिक स्थिरता होगी और हिंसा की आशंकाएं नहीं होगी। गृहयुद्ध से श्रीलंका पहले से दयनीय व जर्जर स्थिति मे पहुंचा हुआ है।
                                           लिट्टे के सफाये में किसकी भूमिका थी? राष्टपति महेन्द्रा राजपक्षे या जनरल फोंनसेंका। यही चुनाव का मुख्य मुद्द था। ये दोनों शख्सियत तमिलों के सफाये मे हीरों होने का दावा कर रहे थे। इसी दावे के साथ जनरल फेंानसेंका ने सेनाध्यक्ष के पद से इस्तीफा देकर राष्टपति पद का चुनाव लड़ा था। जनरल फोनसेंका का कहना था कि लिट्टे के सफाये में उनकी भूमिका थी और सेना ने राजनीतिक ईकांई की अवसरवादिता व विसंगतियो से प्रभावित हुए बिना लिट्टे को पराजित किया है। लिट्टे के सफाये मे सेनाध्यक्ष फोंनसेंका की भूमिका अहम तो थी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन महेन्द्रा राजपक्षे की लिट्टे के खिलाफ कड़ी कूटनीतिक और दृढ़ इच्छाशक्ति को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। अकेले श्रीलंका की सेना में इतनी ताकत थी ही नहीं कि वह लिट्टे जैसे खूखार आतंकवादी संगठन को पराजित कर सके। महेन्द्रा राजपक्षे ने कूटनीतिक चतुराई दिखायी। चीन और पाकिस्तान जैसे देशो को लिट्टे के खिलाफ सैनिक कार्रवाई में मदद करने के लिए राजी किया। चीन ने श्रीलंका के सैनिक तंत्र को सटीक बमबारी करने औरी अन्य युद्ध कौशल के लिए प्रशिक्षित किया था। इतना ही नहीं बल्कि चीन का सैन्य तंत्र पूरी तरह लिट्टे के खिलाफ श्रीलंका सैनिकों के अभियान का निगरानी कर रहा था। पश्चिम समाचार माध्यमों ने यह भी रहस्योधाटन किया था कि लिट्टे से जीत में चीन और पाकिस्तान की भूमिका महत्वपूर्ण थी। चीन और पाकिस्तान की श्रीलंका में घुसपैठ से चिंतित भारत ने भी महेन्द्रा राजपक्षे की नीति को परवान चढ़ाया था और लिट्टे की गुप्तचर जानकारियां श्रींलंका को उपलब्ध कराया था। श्रीलंका के मतदाताओं को महेन्द्रा राजपक्षे की यह सफल कूटनीतिक सफलताएं प्रभावित किया।
                                    राष्टपति का चुनाव परिणाम ने पूर्व राष्टपति कुमारतुंगा की प्रसिद्धि-प्रभाव पर भी बुलडोजर चला दिया। कभी महेन्द्रा राजपक्षे कुमारतुंगा की वैशाखी पर राष्टपति बने थे। महेन्द्रा राजपक्षे ने राष्टपति बनने के बाद कुमारतुंगा की छत्रछाया में रहने की बात कबूली नहीं और अलग राह बनाने की राजनीतिक बिसात बिछायी। कुमारतुंगा परिवार की श्रीलंका की राजनीति में पैठ और दबदबा वैसा ही है जैसा कि भारत में नेहरू खानदान और पाकिस्तान में भूट्टों खानदान की है। कुमारतुंगा महेन्द्रा राजपक्षे की अलग राह चलने से बौखलायी हुई थीं। जाहिरतौर पर वह नहीं चाहती थी कि महेन्द्रा राजपक्षे फिर से श्रीलंका का राष्टपति बनें। इसलिए उन्होंने जनरल फोनसेंका को समर्थन दिया था। कुमारतुंगा का समर्थन मिलने के बाद जनरल फोंनसेंका की चुनावी स्थिति मजबूत मानी जा रही थी। यह भी कहा जा रहा था कि महेन्दा राजपक्षे की हार निश्चित है। लेकिन श्रीलंका के मतदाताओ ने कुमारतुंगा के जनरल फोंनसेंका पर विश्वास जताने को लेकर भरोसा और विश्वास नहीं किया। महेन्द्रा राजपक्षे के पक्ष में गए चुनाव परिणाम ने एक तरह से पूर्व राष्टपति कुमार तुंगा की राजनीतिक आभा मंडल को घूल में मिला दिया। अब श्रीलंका की जनता पर महेन्द्रा राजपक्षे का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है।
                          जनरल फोंनसेंका की जीत होती तो श्रीलंका में अधिनायकी कामम हो सकती थी। जनरल फोंनसेंका की सैनिक मिजाज और सरोकार से चिंताएं उभरनी लाजमी थी। यह भी खतरा था कि श्रीलंका में फिर से जातीय समस्या विकराल हो सकती थी। जनरल फोंनसेंका घोर राष्टवादी हैं। सिघली राष्टीयता का उफान भी उनके साथ जुड़ा है। सिघली समुदाय श्रीलंका की बहुवत वाली धार्मिक इंकाई है। सिंघली समुदाय का घोर व एकमेव राष्टीयता ने ही श्रीलंका की जातीय समस्या के उपज के लिए जिम्मेदार थी। श्रीलंका का तमिल और मुस्लिम वर्ग अपने आप को असुरक्षित औैर उपेक्षित महसूस करता रहा है। लिट्ेटे की ताकत के पीछे यही तथ्य थे।
                   तमिल समुदाय आज घोर संकट के दौर गुजर रहा हैं। लिट्टे के सफाये के बाद उन पर सैनिक-पुलिस अत्याचार-उत्पीड़न की अंतहीन त्रासदी है। लगभग पांच लाख तमिल परिवार बेघर हो गये हैं। सैनिक-पुलिस के घेरे मे रहने के लिए वे मजबूत है। सैनिक-पुलिस की घेरेबंदी में राहत शिविरों की स्थिति के बारे में संयुक्त राष्टसंघ ने भी सवाल उठाये हैं। राहत शिविरों में तमिलों के साथ व्यवहार बुरा है। महिलाओं के खिलाफ सैक्स हिंसा भी चिंता जनक है। ऐसी स्थिति में वैश्विक स्तर पर श्रीलंका की छवि खराब होगी ही। तमिल समुदाय ने इस चुनाव में स्वतंत्र होकर मतदान किया है और उनका झुकाव महेन्द्रा राजपक्षे की ओर ही था। तमिल समुदाय अपना पुर्नवास चाहते हैं। शांति और विकास उनका मकसद है। महेन्द्रा राजपक्षे को तमिलो के विकास और शाति की चाहत पूरी करनी होगी। अन्यथा फिर से तमिल उग्रवाद पनप सकता है और अन्य कोई प्रभाकरण पैदा हो सकता हैं।
              गृहयुद्ध के लम्बे काल ने श्रीलंका को जर्जर बना दिया है। अर्थव्यस्था की बूरी स्थिति है। गरीबी और बेकारी पसरी है। यह वैश्विक दौर है। वैश्विक दौर में प्रगति का एकमात्र रास्ता शांति और राजनीतिक स्थिरता है। श्रीलंका की जनता ने शांति और राजनीति स्थिरिता को चुना है। अब जिम्मेदारी महेन्द्रा राजपक्षे की हैं। श्रींका के पुनर्निर्माण में विदेशी सहायता और समर्थन की जरूरत होगी। विदेशी सहायता और समर्थन तभी संभव है जब श्रीलंका में मानवीय अधिकार सुरक्षित होंगे और तमिलों पर अत्याचारों की शिकायतें बंद होगी। इसके लिए महेन्द्राराजपक्षे को पुलिस व सैनिक तंत्र में मानवाधिकार के प्रति संवेदना जगानी होगी। श्रीलंका में लोकतंत्र की धारा कायम रही यह भारत के लिए भी सकारात्मक स्थिति है। भारत को तमिलों के हित सुरक्षित रखने के लिए महेन्द्रा राजपक्षे पर दबाव बनाना होगा। महेन्द्रा राजपक्षे राजनीति के चुतर खिलाड़ी हैं। उन्हे इस मंत्र को समझना ही होगा।

मोबाइल- 09968997060

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