Monday, September 15, 2025

सोनिया गांधी की वार रूम हुआ करती थी राज्यसभा टीवी

        

                                                      


सोनिया गांधी की वार रूम हुआ करती थी राज्यसभा टीवी 

 चीन और कांग्रेस पाल रही है सनातन विरोधी पत्रकारों को

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                                         आचार्य श्रीहरि 
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राज्यसभा टीवी सोनिया गांधी की वार रूम हुआ करती थी। उर्मिलेश यादव, अखिलेश सुमन, अरविन्द सिंह और कुर्बान अली जैसों की नियुक्ति प्रतिभा के आधार पर नहीं बल्कि उनकी मुस्लिम, हामिद अंसारी और कांग्रेस भक्ति के आधार पर हुई थी। राज्य सभा टीवी में उन सभी लोगो को नियुक्तियां मिलती थी और अन्य जगह जैसे बहस, सीरियल निर्माण आदि में मिलती थी जो हिन्दू विरोधी होते थे, जो इंडियन स्टेट के खिलाफ लडने की मानसिकता रखते थे, जिनका समर्पण मुस्लिम परस्ती और हज मानसिकता से जुडी होती थी। उर्मिलेश यादव, अरविंद सिंह, अखिलेश समुन सहित दर्जनों लोगों का कोई टीवी बैकग्राउंड नहीं था फिर भी इन्हें राज्य सभा टीवी में जगह मिली थी। राज्य सभा टीवी संसदीय मामलों पर कम ही ध्यान देती थी, घोडे और खच्चर की रिर्पोिटंग पर ज्यादा ध्यान देती थी, राज्यसभा टीवी के रिपोर्टर मनोरंजन लूटते थे और पानी की तरह पैसा बहाते थे। राज्यसभा टीवी आशिकी की भी जगह बन गयी थी। बहुत सारी बाते सही थी फिर भी न लिखने योग्य थी।चुनावी रिपोर्टिंग में करोड़ों रूपये स्वाहा किये गये थे। सबसे बडी बात यह थी कि राज्य सभा टीवी भाजपा और सनातन की कब्र खोदती थी। कांग्रेस के खिलाफ सुनना भी नहीं चाहती थी। राज्यसभा टीवी ही नहीं बल्कि अन्य संवैधानिक संस्थाओं में भी कांग्रेसी हस्तियां नियुक्ति पाकर सनातन की कब्र खोदती थी।
                राज्य सभा टीवी का पहला सीईए गुरदीप सप्पल को बनाया गया था। जो कांग्रेसी था। उसने कांग्रेसियों से राज्यसभा टीवी को भर दिया था। राज्यसभा टीवी के दफ्तर को कांग्रेस का दफ्तर बना दिया गया था। सोनिया गांधी और उसके बेटे और बेटियों का भाषण स्पीच लिखा जाता था, भाजपा के खिलाफ किस प्रकार से घृणा अभियान चलना चाहिए, उसकी नीतियां और व्यूह रचना तैयार होता था। राज्यसभा टीवी के पत्रकारों से संघ नेताओ की गुप्तचरी करायी जाती थी और संघ की रणनीतियों की जानकारी जुटाने के इस्तेमाल किया जाता था।  चर्चा होती थी कि दंगारोधी विधेयक भी राज्यसभा टीवी के दफ्तर मंे तैयार हुआ था। दंगारोधी विधेयक हिन्दू अस्मित पर अंतिम कील ठोकने वाला था, दंगा होने पर सिर्फ हिन्दू ही जेल जायेगा, सिर्फ हिन्दू ही अपराधी होगा, ऐसा था। दंगा रोधी विधेयक का व्यापक विरोध हुआ था। अगर 2014 में कांग्रेस वापस आती तो फिर दंगा रोधी विधेयक लागू हो जाता। खासकर राज्यसभा के सभापति और उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी का दखल कुछ ज्यादा ही था। हामिद अंसारी के कारण राज्यसभा टीवी के पत्रकारों और गैर पत्रकारों की कांग्रेस भक्ति, पाकिस्तान भक्ति और मुस्लिम भक्ति सिर चढकर बोलती थी। आईएसआई का एजेंट ने खुलासा किया था कि हामिद अंसारी कैसे भारत की कब्र खोदने में उनकी मदद करता था। भारत की कब्र खोदने की इच्छा रखने वाला हामिद अंसारी राज्यसभा टीवी के पत्रकारों और गैर पत्रकरों को मुस्लिम परस्ती और पाकिस्तान परस्ती दिखाने के लिए कैसे नहीं प्रेरित किया होगा? 
                भाजपा सत्ता में आयी फिर भी सोनिया गांधी के लिए काम करने वाले पत्रकारों का कोई बाल बांका नहीं हुआ और न ही उन्हें राष्ट्रभक्ति का पाठ पढाया गया और न ही उन्हें भारतीय कानूनों का पाठ पढाया गया। हामिद अंसारी की पाकिस्तान परस्ती पर भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया। कुछ परिवर्तन हुए। जैसे राज्यसभा टीवी और लोकसभा टीवी का एक कर दिया गया। बहुत सारे पत्रकारों ने अपनी सोनिया गांधी भक्ति छिपायी और भाजपाई बन गये, बहुत सारे पत्रकारों का टर्म पूरा हो गया और वे राज्यसभा टीवी से मुक्त हो गये। काग्रेस और सोनिया गांधी ने अपने पप्पू पत्रकारों को बेरोजगार नहीं होने दिया। राज्यसभा टीवी के पहले सीईओ गुरदीप सप्पल को सोनिया गांधी ने कांग्रेस का पदाधिकारी और प्रवक्ता बनवा दिया। जबकि अरविद सिंह ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का सलाहकार स्टाप की नौकरी पायी। इसके साथ ही साथ राज्सभा टीवी के अन्य स्टापों का भी प्रबंधन कांग्र्रेस ने कर दिया। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि कई पत्रकारों को विदेशों से फंडिंग भी करायी है, नौकरियां भी दिलवायी। न्यूज क्लिक का प्रकरण आपने सुना होगा। भारत को अस्थिर करने और नरेन्द्र मोदी की छबि को खराब कराने के लिए चीन ने अपना हथकंडा न्यूज क्लिक के तौर पर खडा किया था। न्यूज क्लिक को चीनी फंडिंग मिली थी। न्यूज क्लिक से उर्मिलेश यादव को लाखों रूपये मिले हैं। 
               चोरी और सीनाजोरी। आज गोदी मीडिया कहने वाले कौन लोग हैं? वही हैं जो कांग्रेस के पैसे और पद पर पलते थे, बढते थे और राज्यसभा टीवी जैसी जगहों पर मनोरंजन करते थे। अब नरेन्द्र मोदी के राज मंें कांग्रेसी पत्रकारों को पैसे और पद नहीं मिल रहे हैं तो अंगूर खट्टे हैं की परिभाषा पर सवार हो गये। अभी-अभी राहुल गांधी ने इंडियन स्टेट से लडने की बात की थी। उसने कहा था कि सभी संवैधानिक संस्थाओं में बीजेपी के लोग भरे पडे हैं। पर सच्चाई यह है कि नरेन्द्र मोदी के राज में भी कांग्रेसी चमचे ही पत्रकार के रूप में मलाई खा रहे हैं। कांग्रेस ने संवैधानिक संस्थाओं को किस प्रकार से अपने चंगूल में कैद कर रखा था उसका राज्यसभा टीवी एक उदाहरण मात्र हैं, ऐसे उदाहरण भरे पडे हैं।

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 *प्रेषक -
 आचार्य श्रीहरि 
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Thursday, September 11, 2025

‘जेन जी‘ विद्रोह के पीछे कोई अंतर्राष्ट्रीय साजिश तो नहीं ?

 राष्ट्र-चिंतन


‘ जेन जी ‘ विद्रोह के पीछे कोई अंतर्राष्ट्रीय साजिश तो नहीं ?
    

           
                 
आचार्य श्रीहरि
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दक्षिण ऐशिया का एक देश और ‘जेन जी‘ आंदोलन-विद्रोह का शिकार हो गया। ‘जेन जी‘ के पीछे कोई अंतर्राष्ट्रीय साजिश तो नहीं है? आखिर यूरोपीय देशों, अमेरिका में ‘जेन जी‘ जैसा कोई विद्रोह क्यों नहीं होता है? दुनिया भर में 60 से अधिक मुस्लिम देश है जहां पर मजहबी तानाशाही हिंसक तौर पर उपस्थित है पर वहां ‘जेन जी‘ की तरह कोई विद्रोह क्यों नहीं होता है? चीन अतिहिंसक और तानाशाही वाला देश है वहां पर ‘ जेन जी‘ जैसी क्रांति क्यों नहीं होती है। अगला निशाना भारत और नरेन्द्र मोदी होंगे? भारत के पडोसी देशों के अंदर ही ‘जेन जी‘ की लहर क्यों चल रही है? नरेन्द्र मोदी और भारत को कितना सावधान रहना होगा? अमेरिका की एक सरकारी एजेंसी अपने नापंसद देशों में सत्ता का तख्तापलट के लिए अरबों-खरब डॉलर खर्च करती है।
         ‘ जेन जी ‘ यानी नयी पीढ़ी ने नेपाल में भी क्रांति कर दी है और नेपाल का कम्युनिस्ट शासक ओपी शर्मा कोली ने इस्तीफा देकर भाग खडा हुआ, कोली के इस्तीफा देने के पहले रक्तपात खूब हुआ, हिंसा ऐसी कि 22 लोगों की मृत्यु हो गयी और पांच सौ ज्यादा लोग पुलिस की गोलियो से घायल हो गये। नेपाल में सरकारी संपत्ति का नुकसान कितना हुआ है, इसका आकलन अभी संभव नहीं है। लेकिन अनुमान लगाया जा सकता है। नेपाल की सरकारी संपत्ति का संहार नेपाल के उज्जवल भविष्य का भी संहार करता है। इसके पहले बांग्लादेश और श्रीलंका में भी जेन जी ने अपना कमाल दिखाया था और तख्तापलट किया था। बांग्लादेश में शेख हसीना को छात्रों के आंदोलन के बाद सेना ने बलपूर्वक भगाया जबकि श्रीलंका के शासक बोलबाया राजपक्षे भाग कर विदेश चला गया और वहीं से ही इस्तीफा भेज दिया था। ओपी शर्मा कोली, शेख हसीना और बोलबाया राजपक्षे के सत्ता संहार में एक ही समानता थी। तीनों देशों के तत्कालीन सरकार छात्रो और युवाओं के विद्रोह की शिकार हुई थी और कारण सिर्फ इतना प्रदर्शित हुआ है कि बेरोजगारी और अभाव के कारण आक्रोश पनपा है, जीवन संकट में खडा और महंगाई चरमसीमा पर पहुंच गयी, इस कारण छात्र और युवा हिंसा को थाम लिया, अपने हाथों में बम, पेट्रोल लेकर शासक का संहार करने के लिए कूद पडे और उसमें उन्हें सफलता भी मिली। यह बात तो उपर से ठीक लगती है। पर कुछ प्रश्न ऐसे हैं कि जिनके जवाब आप खोजेंगे और उसका विश्लेषण करेंगे तो पायेंगे कि जेन जी सिर्फ आक्रोश का कारण नहीं है, महंगाई का कारण नहीं है, बेरोजगारी का कारण नहीं है, जीवन संकटग्रस्त होना कारण नहीं है। साजिश भी है, षडयंत्र भी है, इसका एक अंतर्राष्टीय कुचक्र भी है।
            नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका ये तीनों देश भारत के पडोसी देश है जहां पर समस्याएं और राजनीतिक तकरार चरम पर जरूर थी। लेकिन ये तीनों देशों में चीन की कारस्तानी भी कम जिम्मेदार नहीं थी, चीनी कर्ज के मकडजाल में श्रीलंका फंस गया था, नेपाल भी चीनी कर्ज और कुचक्र में फंसा हुआ था। सत्ता गंवाने के कुछ दिन ही पूर्व शेख हसीना चीन गयी थी और अपने लिए समर्थन के साथ ही साथ सहायता मांगी थी। चीन दौरा अधूरा छोडना पडा था और बांग्लादेश वापस होना पडा था। फिर भी शेख हसीना की सरकार नहीं बची थी। लेकिन एक तथ्य पाकिस्तान के लेकर भी है। पाकिस्तान भी भारत का पडोसी है और दक्षिण ऐशिया का हिस्सा है। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति तो नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश से भी बूरी है, दयनीय है और लोमहर्षक है। पाकिस्तान दुनिया के सामने कटौरा लेकर सहायता और कर्ज की भीख मांग रहा है पर उसे भीख नहीं मिल रही है, पाकिस्तान की आर्थव्यवस्था बूरी तरह चौपट हो गयी है, खेती अब आजीविका प्रदान नहीं करती है, रोजगार का साधन नहीं है, बेरोजगारी चरम पर है। यह सिर्फ मेरी धारणा नहीं है बल्कि पाकिस्तान की सरकार की भी यही धारणा है, पाकिस्तान की राजनीति की भी यही धारणा है, दुनिया के नियामकों का भी यही धारणा है। ऐसी विकट, कठिन और लोमहर्षक स्थिति में होने के बाद भी पाकिस्तान में जेन जी क्रांति क्यों नहीं हुई, जनता सड़कों पर क्यों नहीं उतरी? छात्र और युवा भी सड़कों पर उतर कर पाकिस्तान की सरकार और सेना के खिलाफ बगावत क्यों नहीं किये? चीन एक कम्युनिस्ट तानाशाही वाला देश है। कम्युनिस्ट तानाशाही में जनता की कोई इच्छा नहीं होती है, जनता की इच्छा को बन्दूक की गोलियों से उडा दिया जाता है, कुचल दिया जाता है और संहार कर दिया जाता है। चीन की राजधानी बीजिंग के थ्यैन मेन चौक पर आज के पच्चीस साल पूर्व छात्रों ने विद्रोह किया था जिसे चीन ने रेल से कुचलकर, टेकों से मसलकर और मिसाइलें दाग कर दमन किया था। थ्यैन मेन चौक के नरसंहार के बाद पच्चीस साल गुजर गये पर फिर कोई बगावत क्यो नहीं हुई? चीन में जिस तरह से हायर और फायर की नीति है उसके दुष्परिणामों से जेन जी क्राति तो कब की हो जानी चाहिए थी?
       सबसे बडी बात यह है कि यूरोप और अमेरिका की स्थिति भी कोई खास नहीं है। वहां पर बेरोजगारी है और महंगाई है, वहां पर भी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कठिन परिस्थितियां है। अमेरिका और यूरोप भी अपनी जनता को उनकी इच्छानुसार शासन नहीं दे पा रहे हैं, सुविधाएं नहीं दे पा रहे हैं। लेकिन अमेरिका, ब्रिटन, फ्रांस, इटली, जर्मनी जैसे देशों में छात्र और युवाओं का कोई विद्रोह देखने को नहीं मिला है। अब आइये मुस्लिम दुनिया के स्थिति पर। मुस्लिम दुनिया भी अपनी जनता की इच्छानुसार समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहे हैं, मुस्लिम देशों में गरीबी पसर रही है, भूखमरी पसर रही है, बेरोजगारी और महंगाई चरप पर है। सबसे बडी बात यह है कि अधिकतर मुस्लिम देशों में तानाशाही पसरी हुई है, नदी की काई की तरह जमी हुई है, छिपकिली की तरह चिपकी हुई है। मुस्लिम तानाशाही हिंसक तो होती ही है, इसके अलावा जनहीन भी होती है, जनता का दमन भी खूब करती है। मुस्लिम तानाशाही से युक्त मुस्लिम देशों के शासक भ्रष्टचार और बईमानी की कमाई को यूरोप और अमेरिका में ले जाकर निवेश करते हैं, बैकंों में जमा करते हैं पर इसके खिलाफ मुस्लिम दुनिया में बगावत क्यों नहीं होती है, युवाओं और छात्रों का विद्रोह क्यों नहीं होता है? अरब के मुस्लिम देशों में श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश की तरह तख्तापटल क्यों नहीं होता है?
                     अगला निशाना कौन होगा? इस पर विचार करना होगा। अगला निशाना कोई और नहीं बल्कि भारत है। दुनिया की मुस्लिम और ईसाई शक्तियों और अस्मिताओं को नरेन्द्र मोदी की सरकार पंसद नहीं है, यह कहना भी सही होगा कि नरेन्द्र मोदी की सरकार दुनिया की मुस्लिम-ईसाई शक्तियों और अस्मिताओ की छाती पर बैठकर मूंग दलती है। नरेन्द्र मोदी की सरकार के दफन के लिए अंतर्राष्ट्रीय कुचक्र भी चलता रहा है। नरेन्द्र मोदी की सरकार के खिलाफ जनविद्रोह करने के लिए दुनिया भर से समर्थन आता है, पैसे आते हैं और वैचारिक सामग्रियां आती है। दुनिया भर के इस्लामिक और ईसाई नियामकें अपनी रिपोर्टो में भारत की गरीबी और स्वास्थ सहित महंगाई के बारे में भ्रामक बातें प्रकाशित कराती है, मनगढंत आकंडे प्रस्तुत करते हैं। इसक पीछे इनका मकसद नरेन्द्र मोदी की सरकार को अस्थिर करना और जनता को बगावत के लिए प्रेरित करना। बांग्लादेश में जब तख्तापलट हुआ था तब राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद ने भारत की जनता से विद्रोह करने के लिए अपीलें की थी और उनके बयान थे कि नरेन्द्र मोदी ने जनता की इच्छाओं का कब्र बना दिया है, भारत का नाम डूबा दिया है, गरीबी और महंगाई से जीना दुभर हो गया है, इसलिए आम जनता सडकों पर उतरे और नरेन्द्र मोदी का ताख्तापलट कर दे। पर भारत की समझदार जनता ने राहुल गांधी और उनकी पार्टी के नेताओं की ऐसी अपीलों पर कोई ध्यान ही नही दिया था। भारत की जनता समझदार है और नरेन्द्र मोदी की सत्ता नीति में सबका साथ और सबका विकाल निहित है। प्रतिमाह 80 करोड लोगों को मुफ्त राशन मिल रहा है, जिसके कारण गरीब अपना जीवन सक्रिय करने में सफल हो रहे हैं, साल में पांच लाख तक का मुफ्त इलाज जनका के लिए स्वास्थ्य कवच है। फिर  भारत की जनता नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विद्रोह क्यों करेगी?
          फिर भी नरेन्द्र मोदी को सावधान रहना चाहिए। खासकर अतंराष्टीय ईसाई और मुस्लिम  शक्तियां और संगठनों पर ध्यान देने की जरूरत होगी। उन एनजीओं को भी संज्ञान में रखने की जरूरत होगी जो विदेशी पैसों पर भारत में जनादेश को प्रभावित करती हैं और राष्ट्रवादी प्रतीकों के प्रति घृणा पैदा करती हैं। इसके अलावा राजनीतिक पार्टियों के झूठ और मनगढंत संवाद की प्रक्रिया को नियंत्रित करना होगा। हमारे लिए हर्ष की बात यह है कि हमारी पुलिस और सेना जिम्मेदार है और राष्ट्र की अस्मिता का पोषण करना जानती है।

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Monday, September 8, 2025

अब आया उंट (कनाडा) पहाड (भारत) के नीचे

 



                 राष्ट्र-चिंतन

     अब आया उंट (कनाडा) पहाड (भारत) के नीचे

                          आचार्य श्रीहरि

 

       कनाडा ने स्वीकार किया है उसकी जमीन पर खालिस्तानी समर्थकों की हिंसक सक्रियता है और राजनीतिक कारणों से उन्हें संरक्षण भी मिला हुआ है, इतना ही नहीं बल्कि इन्हें आर्थिक मदद भी मिल रही है। कनाडा की यह स्वीकारोक्ति बहुत देर से आयी हुई है, जब कूटनीतिक परिस्थितियां खतरनाक हुई और भारत अपने रूख से पीछे नहीं हटा तो फिर कनाडा के पास सच बोलने के अलावा कोई और रास्ता ही नहीं था। सबसे बडी बात यह है हिंसक, विखंडनकारी तत्व कभी भी शांति और सदभाव के पुजारी नहीं हो सकते हैं, समर्थक नहीं हो सकते हैं, ये हमेशा हिंसा मे विश्वास रखते हैं और हिंसा से अपनी मांगे मनवाना चाहते हैं। कनाडा की स्वीकारोक्ति तो है पर उसमें प्रतिबद्धता की कोई घोषणा नहीं है। कनाडा ने यह नहीं कहा कि वह खालिस्तानी तत्वों को शांति का पाठ पढायेंगे, उन्हें अपने देश के कानूनों का पाठ पढायेंगे, उनकी गतिविधियों का संहार करेंगे। जबतक उनकी हिंसा जारी रहेगी, उनकी हिंसक वैचारिक गतिविधियां जारी रहेंगी, जब तक कनाडा की सिख आबादी का समर्थन इन्हें जारी रहेगा तब तक कूटनीतिक तकरार जारी रहेगा, भारत और कनाडा के आपसी संबंधों में मिठास आ ही नहीं सकता है। क्योकि भारत और कनाडा के आपसी सबंधों में सिख खालिस्तानी ही अडचन है, बाधा है। उम्मीद की जानी चाहिये कि कनाडा का नया नेतृत्व आगे की राह को देखेगे, अपना भविष्य देखेगे और अपना हित देखेगे, खालिस्तानी तत्वों की हिंसा से कनाडा को कोई खास लाभ नहीं होने जा रहा है, उसकी कूटनीति मजबूत नहीं होने वाली हैं, उनके हित समृद्ध होने वाले नहीं है। जहां तक भारत की बात है तो भारत अपने दुश्मनों को साफ संकेत देता है कि उन्हें छोड़ा नहीं जायेगा, उन्हें हिंसा फैलाने और मनुष्यता का खून बहाने का कठोर दंड मिलेगा। भारत ने अपनी आतरिक सुरक्षा की संरचना को न केवल मजबूत किया है बल्कि चाकचैबंद भी किया है।

               राजनीतिक कारणों से खालिस्तानी समर्थक तत्वों को कनाडा में संरक्षण मिला। कनाडा की आबादी का एक बड़ा हिस्सा सिखों का है। सिख भारत से ही जाकर कनाडा मं बसे हुए हैं। जिस प्रकार से भारत में चुनावी राजनीति के कारण मुसलमानों के आतंक और हिंसा की मानसिकता को संरक्षण मिलता है, उस पर उदासीनता बरती जाती है, उसी प्रकार से कनाडा में भी वोटों की राजनीति, पार्टियों के सिर पर चढकर नाचती है। कनाडा में मुस्लिम और सिख आबादी मिलकर लोकतांत्रिक ढंाचे को प्रभावित करती हैं और अपना वर्चस्व स्थापित करती हैं। कनाडा अपनी राष्ट्रीय जरूरतों को पूरा करने के लिए अप्रवासियों को संरक्षण देता है, मदद देता है और स्वागत करता है। खासकर मुस्लिम देशों से अप्रवासी बहुत बडी संख्या में जाकर कनाडा में बसे हैं। मुस्लिमो की तरह सिख भी बडी संख्या में जाकर वहा पर बसे हुए हैं। उदारीकरण के बाद हिन्दू भी जाकर बसे हुए हैं। लेकिन हिन्दू जो वहां पर बसे हुए हैं वे काफी प्रशिक्षित है, इनमें डाॅक्टर, इंजीनियर और सूचना प्रौद्यागिकी के सहचर हैं। इसलिए कनाडा में हिन्दू उतने मुखर नहीं है जितने मुखर मुस्लिम और सिख हैं। मुस्लिम तो भारत के दुश्मन पहले से ही है, उन पर कश्मीर का प्रसंग पहले से प्रभाव डालता है, इसके अलावा मुगलों के आठ सौ साल के शासनकाल के बाद भारत कैसे नहीं मुस्लिम देश बना, इसकी ग्रथि मुसलमानों को उग्र करती है। कनाडा की राजनीतिक पार्टियो और राजनीतिक नेताओं की समझ यह है कि अगर हम भारत का विरोध करते हैं और हिन्दुत्व का विरोध करते हैं तो हमारे मुस्लिम मतदाता और सिख मतदाता खुश होंगे, सिर्फ खुश ही नहीं होंगे बल्कि सत्ता की चाभी भी उन्हें सौंपेगे।

                कनाडा में खालिस्तानी तत्वों के उग्र अराजकता और हिंसा के पीछे जस्टिन टुडों की विशेष कारस्तानी रही है। जस्टिन टुडांें कभी कनाडा के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। जस्टिन टूडों हद से ज्यादा अपने आप मानवतावादी घोषित करते थे और कहते थे कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन नही कर सकते हैं, हम किसी को भी विरोध दर्शाने से रोक नहीं सकते हैं। पर उनकी यह मानसिकता घातक थी ओर हिंसक भी थी। क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतगर्त हिंसा नहीं आती है, विखंडन नहीं आता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतगर्त किसी को हिंसा फैलाने की छूट नहीं दी जा सकती है ,किसी को भयभीत करने की छूट नही दी जा सकती है। जस्टिन टूडों के कार्यकाल में कई अप्रिय धटनाएं भी घटी थी और भारत-कनाडा के बीच कूटनीतिक युद्ध चरम पर पहुंच गया था। टूडों ने भारत पर हिंसा कराने और अपने नागरिकों की हत्या करने जैसे बेबुनियाद आरोप लगाये थे। जबकि भारत ने मजबूती के साथ इसका खंडन किया था और कहा था कि वह अतंराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का पालन करता है, कनाडा के सिख नेताओं की हत्या कनाडा का निजी मामला है, इसमें भारत की भूमिका नहीं है। कनाडा में समय-समय पर दो सिख खालिस्तानी नेताओं की हत्या हुई थी। खालिस्तानी नेताओं की हत्याएं अस्पष्ट थी, इसमें किसका हाथ था, यह स्पष्ट नहीं था। आतंकवादी संगठनों में वर्चस्व को लेकर शह-मात का खेल चलता ही रहता है, उनके अंदर हिंसा भी होती रहती है, एक-दूसरे को निपटाने का भी खेल होता रहता है। सबसे बडी बात यह है कि खालिस्तानी तत्वों के बीच मादक द्रव्यों की तस्करी को लेकर भी तनातनी रहती है। मीडिया रिपोर्ट कहती है कि कनाडा के खालिस्तानी तत्व मादक द्रव्यों की आपूर्ति और तस्करी में लगे हुए हैं। यह भी सच है कि आतंकी संगठनों को अपने आतंक को सफल करने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है, यह पैसा मादक द्रव्यों की तस्करी से ही आता है। फिर कनाडा इन थ्योेेेें को स्वीकार करने के लिए तैयार नही हुआ था। फिर कनाडा और भारत के बीच कूटनीतिक युद्ध भी हुआ था। भारत ने कनाडा के साथ कूटनीतिक संबंध सीमित कर सख्त संदेश दिये थे जवाब मे कनाडा ने भी कूटनीतिक संबंध सीमित कर दिये थे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कनाडा और भारत एक दूसरे के खिलाफ थे। अमेरिका भी चैधराहट दिखा रहा था। अमेरिका ने घोषणा की थी कि कनाडा के अंदर सिख नेताओं की हत्या को लेकर जांच प्रक्रिया पर निगरानी कर रहा है और इसका सच उगागर करने के पक्ष में है। अमेरिका ने भी कनाडा के पक्ष में खूब लाठियां भांजी थी। पर भारत के खिलाफ उन्हें कोई सबूत नहीं मिला, भारत की संलिप्तता उजागर नहीं हुई। क्योंकि कनाडा के सिख नेताओं की हत्या में भारत की कोई भूमिका ही नहीं थी।

                 सच तो यह है कि पश्चिम देश अभिव्यक्ति के नाम पर दुनिया भर के उग्र और हिंसक आतंकी संगठनों का पोषण करते हैं। खालिस्तानी उग्र तत्वों की हिंसा और सक्रियता की कसौटी पर आई 5 के अन्य देश भी गुनहगार है। आईफाइव में कनाडा के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आता है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन में भी खालिस्तानी समर्थकों की पूरी छूट मिली हुई है। इन जगहों पर खालिस्तानी तत्व समयसमय पर सक्रिय और हिंसक गतिविधियां संचालित करते हैं और इतना नहीं बल्कि हिन्दुओं के पूजा स्थलों पर भी हमला करते हैं, हिंसा को अंजाम देते हैं। हिन्दू मंदिरों पर हमले के कई घटनाएं हो चुकी हैं और इन सभी घटनाओं में सिख आतंकवादियों का हाथ रहा है। अमेरिका में पन्नू नामक खालिस्तानी तत्व की गतिविधियां भी अति खतरनाक है। पन्नू अमेरिका में बैठकर भारत में हिंसा फैलाने और भारत विखंडन की बात सरेआम करता है। अमेरिका ने आरोप लगाया था कि पन्नू की हत्या कराने के लिए भारतीय अधिकारी सकिय थे और निखिल गुप्ता ने आपराधिक भूमिका निभायी थी। अमेरिका ने निखिल गुप्ता को गिरफ्तार भी किया था। आज भी निखिल गुप्ता अमेरिकी जेल में बंद है पर अमेरिका अभी भी निखिल गुप्ता का अपराध साबित नहीं कर पाया है। निखिल गुप्ता का कहना है कि उसे बलि का बकरा बनाया गया है।

         उग्र खालिस्तानी तत्व कनाडा के हित साधक नहीं हो सकते हैं। कनाडा की आर्थिक समृद्धि के प्रतीक नहीं बन सकते हैं। भारत के कारण कनाडा की आर्थिक व्यवस्था मजबूत रहती है। हजारों भारतीय छात्र हर साल कनाडा में पढाई करने जाते हैं। इस कारण कनाडा की आर्थिक स्थिति मजबूत रहती है। सबसे बडी बात यह है कि भारत खुद के बल पर खालिस्तानी तत्वों को नियंत्रित करने में सक्षम है।

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Wednesday, September 3, 2025

तिरंगे का मजहबी अपमान

 


                                 राष्ट्र-चिंतन


                        तिरंगे का मजहबी अपमान

तिरंगे का अपमान कर फिलिस्तीन का झंडा फहराने, फिलिस्तीन जिंदाबाद और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने की बढती प्रवृति राष्ट्र के लिए घातक है

                            आचार्य श्रीहरि
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क्या किसी भारतीय के लिए तिरंगे झंडे से भी बड़ा फिलिस्तीन झंडा प्यारा हो सकता है, क्या कोई भारतीय तिरिगे झंडे का फेक कर, उतार कर, उसका अपमान कर सकता है, तिरंगे की जगह फलिस्तीन का झंडा फहरा सकता है? अगर ऐसी घटना किसी सरकारी भवन पर हुआ है तो यह प्रसंग न केवल देशद्रोह का बनता है बल्कि एक सभ्य और दायित्वपूर्ण नागरिक होने की अहर्तता का संहार भी करता है, क्योंकि भारतीय संविधान में अगर मौलिक अधिकार है तो फिर मौलिक कर्तव्य भी है। खासकर तिरंगे के प्रति समर्पण नहीं रखने वाले लोग, तिरंगे का अपमान करने वाले लोग, तिरंगे का फाड कर फेंकने वाले लोग, तिरंगे से नफरत करने वाले लोग संविधान से प्रदत्त मौलिक कर्तव्य का उल्लघन करते हैं और अपनी नागरिकता खोने का अपराध करते हैं। तिरंगे के प्रति समर्पण दिखाना मौलिक कर्तव्य है।
         तिरंगा सिर्फ एक कपडे का टूकडा मात्र नहीं है बल्कि देश का आन-बान शान है, न जाने कितने भारतीयों ने तिरंगे के सम्मान के लिए अपनी जानें बलिदान की थी, अंग्रेजो की गोलिया खायी थी, अपनी हंसती-खेलती और मुस्कराती जिंदगी समाप्त करने के लिए पीछे नहीं हटे थे। लेकिन तिरंगे के प्रति मुस्लिम समुदाय की नफरत और मजहबी सोच अब भयानक और घिनौना उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है, तिरंगे की जगह उनका इस्लाम और मजहब प्यारा, सर्वश्रेष्ठ होता जा रहा है, मजहब के आधार पर उनके लिए कभी इस्लाम का झंडा, कभी बांग्लादेश का झंडा तो कभी ईरान का झंडा, तो कभी फिलिस्तीन का झंडा महत्वपूर्ण होता जा रहा है। सिर्फ तिरंगे की ही बात नहीं है बल्कि अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति इनकी नफरत और हिेसक सोच सामने लोमहर्षक करतूत के तौर पर आ रही है। जन गन मन अधिनायक हमारा राष्ट्रीय गाण है, इस राष्ट्रीय गान के प्रति हमारा रझान और सम्मान सर्वश्रेष्ठ है पर मुस्लिम समुदाय इसके प्रति घृणा प्रस्तुत करते हैं। संसद के अंदर में कई बार देखा गया है कि मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले मुस्लिम सांसद जन गन मन के गान के समय खडे होने से भी बचते है।
             इस कसौटी पर उत्तर प्रदेश के खीरी की घटना ने हमें मुस्लिम समुदाय की भारत विरोधी हरकतांें पर संज्ञान लेने के लिए प्रेरित किया है, देश के नीति निर्धारकों और देश के संवैधानिक नियामकों को भी प्रतिक्रिया गत कदम उठाने के लिए प्रेरित करता है। लोमहर्षक घटना उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले की है। जहां पर एक सरकारी स्कूल के भवन पर लगे तिरंगे झंडे के साथ अपमान हुआ है, तिरंगे झंडे को फाड कर फेकने का अपराध हुआ है, तिरंगे की जगह फिलिस्तीन के झंडे को फहराया गया है। यह घटना सरेआम घटी है, एलानिया तौर पर हुई है। पहले से ही धमकी दी गयी थी कि स्कूल का इस्लामिककरण करो, नही ंतो इस्लामिक झडा लगा देंगे, फिलिस्तीन का झंडा लगा देंगे, पाकिस्तान का झंडा लगा देंगे। सरकारी स्कूल के शिक्षक और छात्र डरे हुए थे, वे तिरंगा हटाते तो क्यों? धमकियांें को अंजाम दिया गया। दर्जनों मुस्लिम युवक उस सरकारी स्कूल पर धावा बोलते हैं और तिरंगे का अपमान करते हैं, तिरंगे को नोच कर फेक देते हैं, उसके बाद फिलिस्तीन का झंडा लगा देंते हैं, फिलिस्तीन का झंडा फहराने के बाद फिलिस्तीन जिदाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद और इस्लाम जिंदाबाद के नारे लगते हैं। गांव वालों को धमकिया मिलती है कि इसका विरोध किया तो डायरेक्ट एक्शन वाली घटना को अंजाम दिया जायेगा। डायरेक्ट एक्शन का अर्थ हिन्दुओं को गाजर मूली की तरह काटना और इस्लाम का झंडा फहराना है। गांव वाले इस घटना से डरे हुए थे। फिर एक युवक की साहस असर दिखाता है। साहस कर एक युवक ने पुलिस के पास जाकर कंपलेन करता है। पुलिस एक्शन में आती है। तीन मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी होती है, शेष की पहचान और खोज जारी है। पुलिस की जांच संपूर्णता में होनी चाहिए। संपूर्णता में पुलिस जांच होने से यह बात सामने आयेगी कि इस लोमहर्षक घटना में कितनी बडी साजिश है और तिरंगा को निशाना बनाने के पीछे कहीं कोई अंतर्राष्टीय षडयंत्र तो नहीं है, किसी आतंकवादी संगठनों की इसमें सलिप्तता तो नहीं, क्योकि भारत में इस्लामिक कूरीतियों और हिंसक ग्रथियों का शासन लागू करने को लेकर जिहाद पहले से ही जारी है।
            फिलिस्तीन हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण हैं, फिलिस्तीन के लिए हम अपना राष्ट्रीय हित और सुरक्षा हित को बलिदान क्यों करें? फिलिस्तीन कोई देश नहीं है, फिलिस्तीन कभी भी मुसलमानों की धरती या फिर वर्चस्व नहीं रहा है। इस्लाम की स्थापना के पूर्व से ही फिलिस्तीन के अंदर यहूदियों और ईसाइयों की उपस्थिति और वर्चस्व था। क्योंकि ईसाई और यहूदियों के अस्तित्व के कई सौ साल बाद इस्लाम और मुसलमानों का अस्तित्व सामने आया था। इस्लाम तलवार के बल पर बढा हुआ है और विस्तार पाया है। इस्लाम ने फिलिस्तीन पर हमला बोला और कब्जा करने के लिए हिंसा को अपनायी। इतिहास कोई भी पढ सकता है। इतिहास मे दर्ज है कि इस्लाम के दूत मोहम्मद साहब के समय भी इस्लाम और यहूदियों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था और इस्लाम की घुसपैठ फिलिस्तीन में हुई थी। बाद में फिलिस्तीन के अंदर इस्लाम का वैसा ही प्रचार और प्रसार हुआ जैसा कि ईरान में इस्लाम का हुआ था, भारत में इस्लाम का हुआ था। जिस तरह से भारत में इस्लाम ने हिंसा फैलायी और धर्मातंरण करा कर अपनी पैठ बढायी, ईरान में जिस तरह से इस्लाम ने मूल निवासी पारसियों का सफाया कर अपना एकमेव वर्चस्व स्थापित किया उसी तरह से फिलिस्तीन में भी इस्लाम ने अपना वर्चस्व कायम किया। बाद में फिलिस्तीन इस्लाम, यहूदी और ईसाइयों की सांझी भूमि के तौर पर विख्यात हो गयी, स्थापित हो गयी, फिलिस्तीन में आज मुस्लिम, ईसाई और यहूदियों के धर्मस्थल हैं, जिनको लेकर संघर्ष और हिंसा होती है। दूसरे युद्ध की समाप्ति के बाद इस्राइल अस्तित्व में आया और यहूदियों को अपनी भूमि मिली।
              फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन हमास और हिज्जबुल्लाह हमारे लिए उतने ही खतरनाक हैं और हिंसक है जितने हमारे लिए पाकिस्तान के मुस्लिम आतंकवादी संगठन हैं। अभी-अभी भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुआ और सिंदुर आपरेशन के माध्यम से भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाया, मुस्लिम आतंकवादी संगठनों के ठिकानों को उड़ाया। इस प्रकरण में हमास और हिज्जबुल्लाह ने भारत का समर्थन नहीं किया, इसने पाकिस्तान का समर्थन किया था। कश्मीर के प्रश्न पर फिलिस्तीन के आतंकी संगठनों ने हमेशा पाकिस्तान और इस्लामिक कसौटी पर समर्थन किया है और भारत के इस्लामीकरण के प्रति अपनी आस्था जतायी है। इसकी जगह इस्राइल को देख लीजिये। इस्राइल हमारा पक्का दोस्त है, इस्राइल हमारा सुरक्षा साझेदार है, इस्राइल हमारी कूटनीति का समर्थक है। जब-जब भारत की संप्रभुत्ता और अस्मिता पर संकट आया है तब-तब इस्राइल ने भारत का समर्थन किया है और भारत की मदद की है। आगे भी इस्राइल हमारा समर्थन और हमारी मदद के प्रति असहिष्णुता प्रदर्शित नहीं कर सकता है। फिलिस्तीन में मुसलमानों को इस्राइल गाजर मूली की तरह काट रहा है पर इसके लिए हमास और हिज्जबुल्लाह और मुस्लिम देशों की भूमिका और करतूत को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।
        भारतीय मुसलमानों की गतलफहमियां टूटने वाली नहीं है। भारतीय मुसलमानों के इस्राइल मुर्दाबाद के नारे लगाने से, तिरंगा का अपमान करने से, तिरंगे की जगह फिलिस्तीन झंडे फहरा देने आदि की करतूत से कोई लाभ नहीं होने वाला है, इस्राइल को आप डरा धमका नहीं सकते हैं। इस्राइल को शांति का पाठ तभी पढाया जा सकता है जब हमाम और मुस्लिम गोलबंदी अपनी हिंसक और मजहबी नीतियां छोडने के लिए तैयार होंगे और फिलिस्तीन को सिर्फ मुस्लिम आधार पर देखने और समझने की नीति का त्याग करेंगे।
             तिरंगे का अपमान करने, फिलिस्तीन का झंडा फहराने, फिलिस्तीन जिंदाबाद और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने की बढती प्रवृति राष्ट्र के लिए घातक है और भविष्य के लिए खतरनाक संकेत हैं। हमें ऐसे लोगों और ऐसे समूहों को राष्ट्रदा्रेही घोषित कर उन्हें नागरिकता के अधिकार से वंचित करना ही होगा।

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Monday, August 25, 2025

मार्कंडेय काटजू की औरतखोरी की खुली पोल

                             


             

                      राष्ट्र-चिंतन


मार्कंडेय काटजू की औरतखोरी की खुली पोल

आंख मारने वाली महिला वकीलों के पक्ष में देते थे फैसले

                  ( आचार्य श्रीहरि ) 

मार्कंडेय    काटजू संघ-भाजपा विरोधियों के आईकाॅन हैं, उन सभी एनजीओ और संगठनों जो राष्ट्र की परिभाषा से अपने आप को परे समझने वाले हैं, के लिए प्रेरक और महान  भी है। आखिर क्यों? इसलिए कि इनकी भाषा और बयानबाजी से इस वर्ग-समूह को अतिरिक्त लाभ होता है, अतिरिक्त शक्ति मिलती है, अरिरिक्त पहचान मिलती है। मार्कंडेय काटजू ने अपने बयानों से जब चाहा तब तहलका मचाया, भारत की राजनीति में गर्माहट लाया और न्यायिक व्यवस्था को भी प्रभावित किया। सोशल मीडिया के इस आधुनिक दौर में बहुत सारे लोग अपने आप को महान ज्ञानी, परम परोपकारी, महान राजनीतिज्ञ, अतिरिक्त समाज सुधारक घोषित करने के लिए तरह-तरफ के प्रपंच करते रहते है, विवादित बोल, असत्य बोल, अफवाह युक्त बोल इनके प्रिय हथियार होते हैं। इन्ही श्रेणी में काटजू आते हैं। जब एक बहुत बडा समूह वर्ग अपने छिपे एजेंडे में किसी ऐसी शख्सियत को अपने साथ हसचर पाते हैं तो फिर उनका खेल आसान हो जाता है। जाहिरतौर पर इनके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ हिन्दुत्व रहा है, हिन्दुत्व के प्रतीक चिन्ह रहा है, भारत की पुरातन संस्कृति रही है, भारत का वैभव रहा है। नरेन्द्र मोदी ऐरा तो इनके लिए छोभ और घृणा बन गया, इन्हें यह स्वीकार ही नहीं है देश पर नरेन्द्र मोदी की सरकार है और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। मुस्लिम और ईसाइत के प्रतीक चिन्हों पर कोई ज्ञान नहीं देना, कोई टिका-टिपपणी न करना इनकी दोहरी मानसिकता का परिचायक है, इनके निष्पक्ष न होने, इनके स्वतंत्र न होने का प्रमाण पत्र है। इसके पीछे खबरों में बने रहना और अतिरिक्त लाभार्थी होना भी है। क्योंकि भारत की संस्कृति और हिन्दुत्व के खिलाफ लिखने और बोलने वालों को फायदे ही फायदे होते हैं, फेलोशिप मिलती है, दुनिया के टूर मिलते हैं, गोष्ठियों औेर कार्यशलाओं में वक्ता और मुख्य वक्ता के लिए कुर्सी मिलती है, फाइव स्टार की मनोरंजनकारी सुविधाएं भी मिलती हैं।
           लेकिन झूठ और बईमानी और अफवाह का बाजार, धंधा और अभियान हमेशा नही चलता है, हर बुरी आदत नकरात्मकता को ही जन्म देती है और उसका एक न दिन बेपर्द होना ही है, उसका एक न एक दिन बेनकाब होना ही ही, उसका एक न एक दिन सच आना ही है। जब मुखौटा हटता है, जब पर्दा उठता है, जब खोल उठता है तब वह सच्चाई का पात्र कभी नहीं रह पाता है, तब वह अपने आप को महान ज्ञानी कहलाने का पात्र नहीं रह पाता है, अपने आप को निष्पक्ष कहने की शख्सियत नहीं रह पाता है, अपने आप को प्रेरक कारक कहने का हकमदार नहीं रह पाता है, वह तो  बदनाम चेहरा बन जाता है, घृणित शख्सियत बन जाती है, झूठ और बईमानी का बदबूदार चेहरा बन जाता है, अपराध -कदाचार का अपराधी बन जाता है, समाज का दुश्मन मान लिया जाता है, दूर रहो और उससे बचो का प्रतीक बन जाता है। यह सब मार्कंडेय काटजू पर लागू हो गया। मार्कंडेय काटजू अब सच्चाई के प्रतीक नहीं रहे, सादगी के प्रतीक नहीं रहे, ईमानदारी के प्रतीक नहीं रहे, न्याय प्रिय भी नहीं रहे, न्याय के रखवाले भी नहीं रहे। वह सब कैसे और क्यों?
                 
 मार्कंडेय   काटजू अपनी छवि के आत्महत्यारे भी है। उन्होंने अपनी बईमानी और न्याय की हत्या को खुद उगागर किया है। इसका माध्यम उन्होंने सोशन मीडिया को बनाया। सोशल मीडिया एक्स पर उन्होंने ऐसा लिखा कि हंगामा मच गया और लोग आश्चर्यचकित हो गये, उनके विरोधियों को भी हैरान और परेशान कर दिया। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि उन्होंने ऐसा क्या लिख दिया? उन्होंने लिखा था कि जो महिला वकील उन्हें आंख मारती थी उसे मुकदमा जीता देते थे, उसके पक्ष में फैसला दे देते थे। उनके इस बयानबाजी और कथन के दो प्रमुख प्रश्न उठते हैं। क्या ये औरत खोर हैं और क्या के न्यायप्रिय नहीं थे। क्योकि कोई औरत खोर जज ही ऐसा कर सकता है, जो जज औरत खोर नहीं होगा, वह ऐसा कर ही नहीं सकता है, ईमानदार और न्यायप्रिय जज तो आखं मारने वाली महिला वकीलों पर न केवल टिप्पणी कर सकते हैं, उनकी घोर आलोचना कर सकते हैं, बल्कि उनकी वकालत की डिग्री और बार काउसिल की सदस्यता पर रोक लगा सकते हैं, बार काउंसिल की सदस्यता समाप्त करने के लिए निर्णय दे सकते हैं, कुछ साल की वकालत पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। आपने वरिष्ठ वकील आर के आनन्द का नाम सुना होगा, साथ ही साथ वकील आई यू खान का नाम भी सुना होगा। ये दोनों सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील थे, मिनटो-मिनट में ये जीत-हार तय करते थे, बईमानी में पकडे गये, सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें कुछ समय के लिए वकालत करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसी तरह काटजू औरत खोर नहीं होते तो फिर उसकी तुरंत रिपोर्ट करने की जिम्मेदारी बनती थी। आंख मारने की करतूत को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश तक पहुंचानी चाहिए थी। लेकिन काटजू ने ऐसा किया नहीं।
               सुप्रीम कोर्ट में सैकडों महिलाएं वकालत करती हैं। सुप्रीम कोर्ट में कानून के छात्र भी प्रशिक्षण के लिए जाते हैं। जब तक किसी महिला वकील को यह मालूम नहीं होगा कि इस जज की कमजोरी औरत है तब तक वह जज को आंख कदापि नहीं मार सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट में यह चर्चित जरूर होगा कि काटजू की कमजोरी महिला है, महिला वकील रखने और महिला वकील से आंख मरवाने से तुरंत फुरंत फैसला पक्ष् में मिलता है। एक अन्य घटना का उल्लेख करना यहां अति आवश्यक है। कुख्यात वकील अभिषेक मनु सिंघवी का प्रकरण कौन नहीं जानता है? एक महिला वकील के साथ उनका अश्लील और विभत्स तथा लोमहर्षक वीडीओ कांड बेपर्द हुआ था जिसमें एक महिला वकील अभिषेक मनु सिंघवी का मुख मैथुन करती है और कहती है कि जज कब बनाओगे, तुम्हारी इतना सेवा करती हूं और अपनी शरीर तक तुम्हें बार-बार सौपती हूं फिर भी जब बनाने के तुम अपने वायदे पूरे नहीं कर रहे हो। उस समय भी न्यायपालिका की छवि खराब हुई थी। न्याय पालिका पर प्रश्न चिन्ह खडा हुआ था।
                 आखं मारने वाली महिला वकीलों की करतूतों के कारण कितने लोग न्याय से वंचित हुए होंगे, कितने लोगों का समय जाया हुआ होगा, उनकी कितनी धन राशि का स्वाहा हुआ होगा, इसकी कल्पना कर सकते हैं। काटजू लंबे समय तक जज रहे हैं। वे हाईकोट्र से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जज रहे हैं। विचारण का एक पक्ष यह है कि महिला वकील द्वारा आंख मारने पर उसके पक्ष में फैसला देने की लत और आदत कब से चालू था। क्या वे हाईकोर्ट के जज के रूप में भी ऐसी करतूत को अंजाम देते थे और ऐसी आदम के शिकार थे? इसका आकलन कोई और नहीं कर सकता है, इसका आकलन सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही कर सकती है या फिर काटजू ही बता सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट तो खुद ही इसकी जांच कर नहीं सकती है। इसके लिए सीबीआई एनआईए जैसी जांच एजेंसियां ही सक्षम हैं। पर प्रश्न यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट सीबीआई और एनआईए जैसी जांच एजेंसियों का सहारा लेगी? अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसा कदम उठा सकती है तो निश्चित मानिये कि न्यायिक इंतिहास का प्रेरक प्रश्न बनेगा और न्यायप्रियता का आईकान भी बनेगा। पर ऐसी उम्मीद बनती ही नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट इसकी जांच सीबीआई और एनआईए से कराये और मार्कडेय काटजू को दंडित कर सके।
                 सुप्रीम कोर्ट की काॅलेजियम व्यवस्था की ही यह करतूत है, यह बदनामी है। सुप्रीम कोर्ट की काॅलोजियम व्यवस्था का प्रतिफल है कि अभिषेक मनु सिंघवी जो जज बनवाने के लिए महिला वकील की शरीर का सहचर बन जाता है को रातोरत सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिल जाता है, करतूत उजागर होने के बाद भी उसे सीनियर एडवोकेट के पद से नहीं हटाया जाता और काटजू जैसा घटिया और औरतखोर जज भी काॅलोजियम न्यायिक व्यवस्था में पैदा लेते हैं। अब काॅलोजियम व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो फिर इनके खिलाफ जनविद्रोह भी हो सकता है। काटजू प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट को अब जगना ही होगा।

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Monday, August 18, 2025

मेरी समझ के दायरे में राधाकृष्णन का मूल्याकंन

  



                          राष्ट्र-चिंतन

मेरी समझ के दायरे में राधाकृष्णन का मूल्याकंन

                     आचार्य श्रीहरि

गुजरात विधान सभा 2012 की बात है। गुजरात विधान सभा चुनाव के एक नियंत्रक, प्रवेक्षक और विश्लेषक मैं भी था। मेरी जिम्मेदारी चुनाव प्रचार की खामियां, कमजोरियां निकालना था और प्रचार के मुद्दे खोजने थे, चुनाव प्रचारको की उपियोगिता भी देखनी थी। साथ ही साथ मुझे हिन्दी अखबारों और सोशल मीडिया के लिए विश्लेषनात्मक आलेख भी प्रतिदिन लिखने थे। मेरा कार्य्र बहुत ही दुरूह था, भाषा की समस्या थीं, गुजराती से अनभिज्ञ था और अंग्रेजी में हाथ तंग थे। मेरी दिलचस्पी इस विषय में ज्यादा थी कि बाहर से आने वाले नेता कितना चाकचौबंद चुनाव प्रचार करते हैं या फिर हवाहवाई मनोरंजन करते हैं। इसी सर्वेक्षण के दौरान में मुझे सीपी राधाकृष्णन का नाम मालूम हुआ। सीपी राधाकृष्णन को मैं अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री कार्यकाल से जानता था, वे 1998 में संसद बने थे। सिर्फ नाम से जानता था और उनसे कभी नहीं मिला था।

           नरेन्द्र मोदी की विघान सभा क्षेत्र मणिनगर में अनुराग ठाकुर की सभा थी। उस समय अनुराग ठाकुर भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। मैं भी अंकेक्षण के लिए वहां उपस्थित था। उसी दौरान मुझे सीपी राधाकृष्णन के आने की सूचना मिली। मैं अनुराग ठाकुर की सभा में ही सीपी राधाकृष्णन से मिला। सीपी राधाकृष्णन हिन्दी नहीं जानते थे और न ही उन्हें गुजराती आती थी। दुभाषीय के माध्यम से मेरी उनसे बात होती है। इसी दौरान समाजवादी नेता और राजनारायण के शिष्य क्रांति प्रकाश मिल गये। क्रांति प्रकाश पहले से ही सीपी चन्द्रशेखर के घनिष्ठ मित्र थे। मेरीे तारीफ क्रांति प्रकाश ने जमकर की, इस कारण सीपी राधाकृष्णन हमसे प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी सभाओं के लिए मुझे आमंत्रित कर लिया। वे आमंत्रित नहीं करते तो भी मैं उनकी सभाओं में सक्रियता रखता ही, क्योंकि मेरी जिम्मेदारी में वह निहीत था। सीपी राधाकृष्णन की चुनावी दृष्टिकोण और तमिल लोगों को आकर्षित करने के कारक विन्दु को भी मुझे जानना था।

                 सीपी राधाकृष्णन जब हिन्दी, गुजराती नहीं जानते हैं तब उन्हें गुजरात विधान सभा चुनाव प्रचार के लिए आमंत्रित क्यों किया गया? मेरे मन में बहुत ही क्रोधित करने वाले प्रश्न खडे हो रहे थे। मैंने सीधे भाजपा कार्यालय को फोन लगा दिया। पता चला कि कुछएक वोट तमिल भाषाई लोगों के हैं। इसी कारण उन्हें प्रचार के लिए आमंत्रित किया गया है। सीपी राधाकृष्णन के साथ चुनाव प्रचार के लिए मैं जाता हूं। क्रांति प्रकाश भी साथ रहते हैं। एक तमिल भाषाई कालोनी में जाते हैं जहां पर उनकी सभा रखी गयी थी। पर वहां सभा नाम की कोई चिन्ह और तैयारी नहीं थी। एक मंदिर में बीस-पच्चीस लोग होते हैं। शायद ये तमिल भाषायी मछुआरे और मजदूर थे पर बहुत ही गरीब थे। बीस-पच्चीस लोगों के बीच भी उन्होंने आराम से अपना भाषण तमिल में दिया। मुझे याद है कि उन्होंने कहा था कि व्यक्तिगत लाभ के लिए देश को खतरे में नहीं डालना चाहिए और हमारे लिए देश महत्वपूर्ण है। चूंकि गुजरात सीमावर्ती प्रदेश हैे, इसीलिए पाकिस्तान के निशाने पर है, नरेन्द्र मोदी की वीरता को पराजित करने का अर्थ राष्ट्र की अस्मिता को कमजोर करना होगा। सभा समाप्त होने के बाद हमलोग गांधी आश्रम लौट गये, जहां पर राधाकृष्णन ठहरे हुए थें वहां पर उन्होंने रात में रूकने का आग्रह किया और साथ में खाना भी खाया। रात के काफी देर तक राधाकृष्णन, मैं और क्रांति प्रकाश देश की राजनीति और नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक वीरता और सत्यनिष्ठा पर बात करते रहे थे। उनकी बातों से मुझे समझ में आ गया था कि वे राष्ट्रीय स्तर के ज्ञान रखते हैं और हिन्दी नहीं जानने के कारण उनकी राजनीतिक उडान आसमान नहीं छुऐगी। मैने उन्हें महात्मा गांधी का पाठ पढाना जरूरी समझा। मैंने उन्हें सीधे तौर पर कह दिया कि बडा बनना है तो हिन्दी को जानिये, उदाहरण मैं महात्मा गांधी को देता हूं, महात्मा गंाधी हिन्दी भाषी नहीं थे, वे गुजराती थे, लेकिन उन्होंने गुजराती की जगह हिन्दी को अपने संवाद की भाषा बनायी। अगर आप हिन्दी-गुजराती जानते तो इस विधान सभा चुनाव में आपके विचार मीडिया के सिर चढ कर बोलते। यही कारण है कि आपकी सभा के भाषण मीडिया बाजार में धमाका नहीं कर सका। सीपी राधाकृष्णन ने मेरी इस सीख पर सिर्फ इतना कहा था यू आर राइट।

                 हिन्दी को लेकर उनकी राय स्पष्ट होने से मैं प्रसन्न था। सीपी राधाकृष्ण्न ने मुझसे कहा कि दक्षिण का हिन्दी विरोध आंदोलन आत्मघाती था, बेवहियात था और अदूरदर्शी था। उनका कहना साफ था कि हिन्दी विरोध का प्रश्न सस्ती राजनीति थी। अपने फायदे के लिए हिन्दी के खिलाफ वातावारण बनाया गया। हिन्दी नहीं जानने के कारण दक्षिण के युवाओं को उत्तर भारत में रोजगार नहीं मिल पाया। रजनीतिज्ञ भी इसका शिकार हुए हैं। हिन्दी नहीं जानने वाले राजनीतिज्ञ अखिल भारतीय स्तर पर अपना जनाधार विकसित नहीं कर पाये। तमिल के राजनीतिज्ञ हिन्दी इलाके मे तो क्या बल्कि कर्नाटक और आध्रप्रदेश में भी विख्यात नहीं हो सके, जहां पर कन्नड और तेलगू का प्रभाव है। उनकी यह समझ बहुत ही चाकचौबंद थी। दक्षिण में सिर्फ तमिल ही नहीं बल्कि कन्नड, मलयालम, तेलगू जैसी मजबूत भाषाएं हैं और इनकी पहचान भी अलग है। इसी के साथ ही साथ राधाकृष्ण्न अंग्रेजी के प्रति भी आग्रही हैं। अंग्रेजी भाषा का विरोध को भी वे असंगत मानते हैं। 

             लंबे समय तक राजनीति के मुख्य धारा में होने के बाद भी इनकी पहचान राष्ट्रीय नेता की नहीं बन सकी थी। कारण उपर के तथ्यों में निहित है। एकाएक इनके भाग्य का पिटारा खुलता है और ये राज्यपाल बना दिये जाते हैं। मुझे यह खबर सुनकर अच्छा लगा। सौभाग्य से ये हमारे गृह प्रदेश झारखंड के राज्यपाल थे। लेकिन मैं ठहरा संत और फक्कड संस्कृति का मनुष्य। किसी के पीछे भागना मुझे अच्छा लगता नहीं है, यह मेरी कार्य संस्कृति का हिस्सा नहीं है। मैंने गुजरात के बाद फिर कभी सीपी राधाकृष्ण्न से मिलने और बात करने की जरूरत ही नहीं समझी। जब ये झारखंड के राज्यपाल थे तब भी मुझे इनसे बात करने की इच्छा नहीं हुई और न ही मैं कभी गुजरात प्रसंग के इतिहास पर चर्चा करने की जरूरत समझी।

          अब ये उप राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। भाजपा ने इन्हें उप राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। भाजपा के पास बहुमत है। इसलिए ये निश्चित तौर पर उपराष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। सीपी राधाकृष्ण्न को उपराष्ट्रपति बनाना भाजपा की नीति दूरदष्टि हैं और नरेन्द्र मोदी का मास्टर पोलिटकल स्ट्रोक हैं। निशाना दक्षिण की राजनीति है, तमिल की राजनीति है। तमिलनाडु की राजनीति में इसका प्रभाव पडने वाला है। तमिलनाडु की राजनीतिक सत्ता द्वार पर भाजपा दस्तक दे रही है, जनाधार लगातार मजबूत हो रहा है। तमिल भाषाई आबादी के बीच नरेन्द्र मोदी और भाजपा के प्रति हमदर्दी बढी होगी और भविष्य में बढेगी। ऐसी उम्मीदो को खारिज करना मुश्किल है। 

           सीपी राधाकृष्ण्न को दूरदर्शिता दिखाने की जरूरत होगी। इसके पहले भी भाजपा ने बैेंकेया नायडू को उपराष्ट्रपति बनाया था। लेकिन नायडू ने अपनी कोई पहचान नहीं छोड पाये और दक्षिण में भाजपा का कोई लाभ नहीं दिला सके। सीपी राधाकृष्ण्न को अति महत्वाकांक्षा से मुक्त होना होगा, आत्मघाती बनने की मानसिकता से दूर रहना होगा। राज्य सभा के संचालन में शक्ति प्रदर्शन करने की जरूरत होगी। नरमी घातक होगी। सख्ती की भाषा से ही सदन की गरिमा बचेगी, शांति की उम्मीद बनेगी। इस मंत्र को अपना कर्म बनाना होगा।

        हमें गर्व है कि उप राष्ट्रपति के पद पर बैठने जाने वाले सीपी राधाकृष्ण्न कभी मेरे चुनावी सहचर्य और संवाद की शख्सियत रहे है, मैंने उन्हें हिन्दी की अनिवार्यता और स्वीकारता का पाठ भी पढाया थां। पर मैं जिस तरह गुजरात के बाद फिर कभी सीपी चन्द्रशेखर से मिलने और बात करने की जरूरत नहीं समझी उसी तरह से मैं आगे भी उनसे शायद ही मिल पाउंगा या फिर कोई बात कर पाउंगा। क्योंकि मेरा कर्म राजनीति नहीं बल्कि सनातन है। ऐसे भी जब कोई बडी कुर्सी पर बैठ जाता है तो फिर उसकी दृष्टि उपर की ओर हो जाती है, आसमान की ओर होती है, सफल बनना है तो पीछे नहीं आगे देखों की मानसिकता पर सवार हो जाती है। संघर्ष के साथी, संवाद के सहचर उन्हें बोझ और फालतू लगने लगते हैं। ऐसी मानसिकता राजनीति के बडे नेताओं से लेकर राजनीति के कीडे-मकौडों पर भी लागू होती है।

             मेरी शुभकामनाएं और आशीर्वाद सीपी राधाकृष्ण्न के साथ जरूर है। पर ध्यान यह रखना होगा कि कोई बडी कुर्सी मिलने से महान नहीं होता है बल्कि महान राष्ट्र के प्रति समर्पण और सत्य निष्ठा के प्रदर्शन से होता है।


आचार्य श्रीहरि

नई दिल्ली।

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Saturday, August 16, 2025

भारत विभाजन पर मजहबी दृष्टिकोण बेनकाब

                                



                            राष्ट्र-चिंतन

       भारत विभाजन पर मजहबी दृष्टिकोण बेनकाब

                भारत विभाजन के लिए नेहरू और कांग्रेस जिम्मेदार ?

                           आचार्य श्रीहरि

एनसीईआरटी के भारत विखंडन पर नये कंटंेट को लेकर नया विवाद उत्पन्न हो गया है। कांग्रेस और उनकी समर्थक जमात आग बबूला है, गलत तथ्य प्रस्तुत करने का आरोप लगाया है और उक्त कंटेंट को हटाने की मांग की है। आगे भी इस प्रश्न पर विवाद गहराने की उम्मीद है। जहां तक केन्द्रीय सरकार के जवाब और तर्क की बात है तो उसने कंटेंट को सही बताया है और कहा है कि कंटेंट चाकचैबंद है और तथ्यों पर आधारित है, भारत विखंडन की प्रक्रिया पूरी तरह से त्रासदीपूर्ण थी और त्रासदी पूर्ण स्थिति बनाने के लिए साजिशें चली गयी थी। इतिहास को सुधारने, ठीक करने और पठनीय बनाने की हमारी कोशिशें जारी रहेंगी। हालांकि यह कंटेट सिर्फ स्पेशल मोडयूल है जो नियमित पाठयक्रम की पुस्तकों की हिस्सा नहीं होते हैं। ये कंटेंट सिलेबस में शामिल नहीं होते हैं। इसे पोस्टर्स चर्चाओं, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं और जेनरल नाॅलेज के रूप में बच्चों को पढाया जाता है, बताया जाता है।

        राजनीतिक परिस्थितियां यह बताती हैं कि जब-जब इतिहास पर सुधार की कोशिश होती है, इतिहास को वर्तमान स्थिति मे देखने की कोशिश होती है तो फिर राजनीतिक विवाद हो जाता है। अगर सुधार की कोशिशों में कांग्रेस और इस्लाम के किसी भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारकों पर कैंची चलाने या फिर उस पर टीका-टिप्पणी करने का प्रयास होता है तो फिर राजनीति और भी गर्म हो जाती है। मुस्लिम उत्पीडन का भी प्रश्न खड़ा कर दिया जाता है। इसलिए कांग्रेस और उसके समर्थक जमात मुस्लिम कार्ड खेल रहे हैं। इसमें कौन पराजित होगा और कौन जीत दर्ज करेगा? नरेन्द्र मोदी का स्पष्ट संदेश है, स्पष्ट एजेंडा है। वह संदेश और एजेंडा अपने समर्थक समूह को संतुष्ट करना और रखना, उन्हें यह अहसास दिलाना कि हम अपने एजेंडे पर सक्रिय हैं और सक्रिय रहेंगे। इस कसौटी पर नरेन्द्र मोदी की सरकार को वैम्पियन माना जाना चाहिए।

              एनसीईआरटी के भारत विखंडन पर नये कंटेंट में ऐसा क्या है जो कांग्रेस, कम्युनिस्टों और मुस्लिम जमात को आगबबूला कर दिया है? वास्तव में केन्द्रीय सरकार ने जिन्ना और नेहरू की विभाजन नीति को स्पष्ट कर दिया है। कंटेंट में सीधे तौर पर कह दिया गया है कि भारत विंखंडन के लिए जिन्ना और नेहरू जिम्मेदार हैं, इनकी निजी कारस्तानी के कारण भारत का विखंडन हुआ और लाखों हिन्दुओं को गाजर-मूली की तरह काट दिया गया। ऐसे लार्ड मांउटबेटन को भी दोषी ठहराया गया है। लेकिन इसमें कुछ नाम ओझल कर दिये गये हैं, छिपा दिये गये हैं, उस पर चर्चा करने की जरूरत नहीं समझी गयी। सबसे पहले शायर और जिहादी मोहम्मद इकबाल का नाम गायब है। क्योंकि दो काॅम और दो देश की पहली थ्योरी मोहम्मद इकबाल ने दी थी। इकबाल ने ही कहा था कि हिन्दू और मुसलमान दो काॅम है जो एक साथ नहीं रह सकती हैं, मुसलमानों ने इस देश पर आठ सौ सालों से ज्यादा समय तक राज किया है, इसलिए मुसलमान इस देश के शासक हैं। भारत आजाद हुआ तो फिर भारत में लोकतंत्र की स्थापना होगी। लोकतंत्र में जिसकी आबादी होगी अधिक वही शासक बनेगा। इसलिए भारत पर हिन्दुओं का शासन होगा। इकबाल ने पाकिस्तान का नाम दिया था और कहा था कि मुसलमानों के लिए पाकिस्तान देश बनाना ही होगा। मोहम्मद इकबाल ने ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दू सत्ता हमारा‘ गाया था पर जब उस पर मुस्लिम जिहादी मानसिकता चढी तो गाया था ‘हम हैं मुस्लमां और सारा जहां हमारा‘। यानी की पूरी धरती मुसलमानों का है। जिन्ना दोषी कैसे नहीं है? जिन्ना भारत विखंडन का दोषी है, भारत विखंडन का उसका एजेंडा था, भारत विखंडन के लिए वातावरण बनाने के लिए हिंसक सभाएं करते थे, हिंसक भाषण देते थे, दंगे कराते थे और धमकियां देते थे। भारत विखंडन के पूर्व ही विखंडन के लिए दंगे हो रहे थे। इन सभी दंगों के पीछे जिन्ना का विखंडन एजेंडा ही जिम्मेदार था। 

                  मोहम्मद इकबाल-जिन्ना के साथ ही साथ महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू भी भारत विखंडन के जिम्मेदार थे। महात्मा गांधी की सहमति के बिना भारत का विखंडन संभव नहीं था। महात्मा गाधी का व्यक्तित्व महान और विशाल बन चुका था। अंग्रेजों के लिए महात्मा गांधी के व्यक्तित्व को खारिज करना मुश्किल था। इस कारण लार्ड माउंटबेटन की नीति तब तक परवान नहीं चढ सकती थी जब तक महात्मा गांधी की सहमति नहीं मिलती। अंग्रेजों ने महात्मा गांधी की सहमति ली थी। बाद में एक तथ्य यह भी सामने आया था कि मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा गलतफहमी पैदा करने और झूठ प्रस्तुत करने की कसौटी पर महात्मा गांधी ने भारत विखंडन की सहमति लार्ड मांगट बेटन को दी थी। जवाहरलाल नेहरू तो भारत विखंडन के पक्षधर ही थे। अप्रत्यक्ष तौर पर नेहरू ने जिन्ना की कारस्तानी से दोस्ती की थी और जिन्ना को अपने एजेंडे पर कायम रहने के प्रोत्साहित किया था। क्योंकि भारत का विखंडन नहीं होता और जिन्ना पाकिस्तान नहीं जाते तो फिर नेहरू का प्रधानमंत्री बनना मुश्किल था फिर नेहरू का यह सपना भी डूब जाता। नेहरू ने विखंडन के पक्ष में एक भाषण भी दिया था। नेहरू ने कहा था कि हम एक ऐसी स्थिति में आ गये हैं जहां हमें या तो विभाजन को स्वीकार करना होगा या फिर निरंतर संघर्ष और अराजकता का सामना करना होगा। संघर्ष और अराजकता फैलाने वाले कौन लोग थे? जिन्ना और उनकी दंगाई मुस्लिम आबादी ही संघर्ष कर रहे थे और अराजकता फैला रहे थे। भारत विभाजन हुआ और नेहरू समर्थन नहीं होने के बाद भी प्रधानमंत्री बन गये। जबकि नेहरू के पास समर्थन भी नही था, उनके पास सिर्फ महात्मा गांधी की इच्छा थी।

               जहां तक लार्ड माउंट बेटन का प्रश्न है तो उसका भारत विभाजन का एजेंडा स्पष्ट था। भारत विभाजन के लिए ही उन्हें भारत भेजा गया था। लार्ड मांउटबेटन की पत्नी और नेहरू दोनों दोस्त थे और एक साथ पढे थे। इस कारण लार्ड माउंट बेटन ने नेहरू का इस्तेमाल तास के पत्तों की तरह खूब किया और जिन्ना की हिंसा और दंगाई भूमिका के पीछे भी लार्ड माउंट बेटन की इच्छा और सहयोग था। बाद में नेहरू और लार्ड माउंटबेटन की पत्नी रंगरेलियां भी आम हो गयी। 

               एनसीईआरटी के इस स्पेशन माॅडयूल की प्रस्तावना में नरेन्द्र मोदी के विचारों को प्राथमिकता दिया गया है। नरेन्द्र मोदी का भारत विभाजन पर विचार बहुत ही संवेदनशील हैं और भविष्य के लिए भी प्रेरक हैं। नरेन्द्र मोदी का कहना है कि भारत विभाजन के दर्द और पीडा के साथ ही साथ क्षति को भुलाया नहीं जा सकता है, लाखों लोगों के जीवन का संहार हुआ, लाखों लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर होना पडा। नफरती एजेंडे के कारण भारत का विभाजन हुआ। विभाजन की त्रासदी और भारत विखंडन में बलिदान हुए लाखों लोगों की याद में हम 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनायेंगे। नरेन्द्र मोदी और भाजपा आज भी पाकिस्तान के अस्तित्व को नहीं मानते हैं, संघ भी भारत विभाजन को नहीं मानता है और इन सभी समूहो का आईकाॅन अखंड भारत है। अखंड भारत का सपना देखने वालों की आज केन्द्र्र में सरकार है। नरेन्द्र मोदी से वह समूह अखंड भारत की उम्मीद करता है जो पाकिस्तान की नींव को हिंसक और काफिर विरोधी मानता है।

            इतिहास का पुर्नलेखन क्यों जरूरी है। क्योंकि भारत का इतिहास छिन्न-भिन्न है, अंग विहीन है। क्योंकि इतिहास लेखन की जिम्मेदारी कम्युनिस्टों और मुस्लिमों के समर्थक जमात पर थी। नेहरू खूद कहते थे कि मैं गलती से हिन्दू धर्म में पैदा लिया हूं, कर्म और आचरण से मैं मुसलमान हूं। इसी मानसिकता से नेहरू ने भारतीय इतिहास का मुस्लिमकरण किया था। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भी हिन्दुत्व पीडा और हिन्दुत्व कत्लेआम पर पर्दा डालने का काम किया था। आजादी तीस सालों तक भी देश का शिक्षा मंत्री मुस्लिम ही क्यों बनते थे? उम्मीद है कि मोदी सरकार भारत को इस्लामिक-अलतकिया जिहाद से जुडे सभी विषयों को पाठयक्रमों में शामिल कर राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करेंगे और भारत के इतिहास को इस्लामिक, कम्युनिस्ट व कांग्रेसी कुचक्र से मुक्त करेंगे।

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