Monday, August 25, 2025

मार्कंडेय काटजू की औरतखोरी की खुली पोल

                             


             

                      राष्ट्र-चिंतन


मार्कंडेय काटजू की औरतखोरी की खुली पोल

आंख मारने वाली महिला वकीलों के पक्ष में देते थे फैसले

                  ( आचार्य श्रीहरि ) 

मार्कंडेय    काटजू संघ-भाजपा विरोधियों के आईकाॅन हैं, उन सभी एनजीओ और संगठनों जो राष्ट्र की परिभाषा से अपने आप को परे समझने वाले हैं, के लिए प्रेरक और महान  भी है। आखिर क्यों? इसलिए कि इनकी भाषा और बयानबाजी से इस वर्ग-समूह को अतिरिक्त लाभ होता है, अतिरिक्त शक्ति मिलती है, अरिरिक्त पहचान मिलती है। मार्कंडेय काटजू ने अपने बयानों से जब चाहा तब तहलका मचाया, भारत की राजनीति में गर्माहट लाया और न्यायिक व्यवस्था को भी प्रभावित किया। सोशल मीडिया के इस आधुनिक दौर में बहुत सारे लोग अपने आप को महान ज्ञानी, परम परोपकारी, महान राजनीतिज्ञ, अतिरिक्त समाज सुधारक घोषित करने के लिए तरह-तरफ के प्रपंच करते रहते है, विवादित बोल, असत्य बोल, अफवाह युक्त बोल इनके प्रिय हथियार होते हैं। इन्ही श्रेणी में काटजू आते हैं। जब एक बहुत बडा समूह वर्ग अपने छिपे एजेंडे में किसी ऐसी शख्सियत को अपने साथ हसचर पाते हैं तो फिर उनका खेल आसान हो जाता है। जाहिरतौर पर इनके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ हिन्दुत्व रहा है, हिन्दुत्व के प्रतीक चिन्ह रहा है, भारत की पुरातन संस्कृति रही है, भारत का वैभव रहा है। नरेन्द्र मोदी ऐरा तो इनके लिए छोभ और घृणा बन गया, इन्हें यह स्वीकार ही नहीं है देश पर नरेन्द्र मोदी की सरकार है और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। मुस्लिम और ईसाइत के प्रतीक चिन्हों पर कोई ज्ञान नहीं देना, कोई टिका-टिपपणी न करना इनकी दोहरी मानसिकता का परिचायक है, इनके निष्पक्ष न होने, इनके स्वतंत्र न होने का प्रमाण पत्र है। इसके पीछे खबरों में बने रहना और अतिरिक्त लाभार्थी होना भी है। क्योंकि भारत की संस्कृति और हिन्दुत्व के खिलाफ लिखने और बोलने वालों को फायदे ही फायदे होते हैं, फेलोशिप मिलती है, दुनिया के टूर मिलते हैं, गोष्ठियों औेर कार्यशलाओं में वक्ता और मुख्य वक्ता के लिए कुर्सी मिलती है, फाइव स्टार की मनोरंजनकारी सुविधाएं भी मिलती हैं।
           लेकिन झूठ और बईमानी और अफवाह का बाजार, धंधा और अभियान हमेशा नही चलता है, हर बुरी आदत नकरात्मकता को ही जन्म देती है और उसका एक न दिन बेपर्द होना ही है, उसका एक न एक दिन बेनकाब होना ही ही, उसका एक न एक दिन सच आना ही है। जब मुखौटा हटता है, जब पर्दा उठता है, जब खोल उठता है तब वह सच्चाई का पात्र कभी नहीं रह पाता है, तब वह अपने आप को महान ज्ञानी कहलाने का पात्र नहीं रह पाता है, अपने आप को निष्पक्ष कहने की शख्सियत नहीं रह पाता है, अपने आप को प्रेरक कारक कहने का हकमदार नहीं रह पाता है, वह तो  बदनाम चेहरा बन जाता है, घृणित शख्सियत बन जाती है, झूठ और बईमानी का बदबूदार चेहरा बन जाता है, अपराध -कदाचार का अपराधी बन जाता है, समाज का दुश्मन मान लिया जाता है, दूर रहो और उससे बचो का प्रतीक बन जाता है। यह सब मार्कंडेय काटजू पर लागू हो गया। मार्कंडेय काटजू अब सच्चाई के प्रतीक नहीं रहे, सादगी के प्रतीक नहीं रहे, ईमानदारी के प्रतीक नहीं रहे, न्याय प्रिय भी नहीं रहे, न्याय के रखवाले भी नहीं रहे। वह सब कैसे और क्यों?
                 
 मार्कंडेय   काटजू अपनी छवि के आत्महत्यारे भी है। उन्होंने अपनी बईमानी और न्याय की हत्या को खुद उगागर किया है। इसका माध्यम उन्होंने सोशन मीडिया को बनाया। सोशल मीडिया एक्स पर उन्होंने ऐसा लिखा कि हंगामा मच गया और लोग आश्चर्यचकित हो गये, उनके विरोधियों को भी हैरान और परेशान कर दिया। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि उन्होंने ऐसा क्या लिख दिया? उन्होंने लिखा था कि जो महिला वकील उन्हें आंख मारती थी उसे मुकदमा जीता देते थे, उसके पक्ष में फैसला दे देते थे। उनके इस बयानबाजी और कथन के दो प्रमुख प्रश्न उठते हैं। क्या ये औरत खोर हैं और क्या के न्यायप्रिय नहीं थे। क्योकि कोई औरत खोर जज ही ऐसा कर सकता है, जो जज औरत खोर नहीं होगा, वह ऐसा कर ही नहीं सकता है, ईमानदार और न्यायप्रिय जज तो आखं मारने वाली महिला वकीलों पर न केवल टिप्पणी कर सकते हैं, उनकी घोर आलोचना कर सकते हैं, बल्कि उनकी वकालत की डिग्री और बार काउसिल की सदस्यता पर रोक लगा सकते हैं, बार काउंसिल की सदस्यता समाप्त करने के लिए निर्णय दे सकते हैं, कुछ साल की वकालत पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। आपने वरिष्ठ वकील आर के आनन्द का नाम सुना होगा, साथ ही साथ वकील आई यू खान का नाम भी सुना होगा। ये दोनों सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील थे, मिनटो-मिनट में ये जीत-हार तय करते थे, बईमानी में पकडे गये, सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें कुछ समय के लिए वकालत करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसी तरह काटजू औरत खोर नहीं होते तो फिर उसकी तुरंत रिपोर्ट करने की जिम्मेदारी बनती थी। आंख मारने की करतूत को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश तक पहुंचानी चाहिए थी। लेकिन काटजू ने ऐसा किया नहीं।
               सुप्रीम कोर्ट में सैकडों महिलाएं वकालत करती हैं। सुप्रीम कोर्ट में कानून के छात्र भी प्रशिक्षण के लिए जाते हैं। जब तक किसी महिला वकील को यह मालूम नहीं होगा कि इस जज की कमजोरी औरत है तब तक वह जज को आंख कदापि नहीं मार सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट में यह चर्चित जरूर होगा कि काटजू की कमजोरी महिला है, महिला वकील रखने और महिला वकील से आंख मरवाने से तुरंत फुरंत फैसला पक्ष् में मिलता है। एक अन्य घटना का उल्लेख करना यहां अति आवश्यक है। कुख्यात वकील अभिषेक मनु सिंघवी का प्रकरण कौन नहीं जानता है? एक महिला वकील के साथ उनका अश्लील और विभत्स तथा लोमहर्षक वीडीओ कांड बेपर्द हुआ था जिसमें एक महिला वकील अभिषेक मनु सिंघवी का मुख मैथुन करती है और कहती है कि जज कब बनाओगे, तुम्हारी इतना सेवा करती हूं और अपनी शरीर तक तुम्हें बार-बार सौपती हूं फिर भी जब बनाने के तुम अपने वायदे पूरे नहीं कर रहे हो। उस समय भी न्यायपालिका की छवि खराब हुई थी। न्याय पालिका पर प्रश्न चिन्ह खडा हुआ था।
                 आखं मारने वाली महिला वकीलों की करतूतों के कारण कितने लोग न्याय से वंचित हुए होंगे, कितने लोगों का समय जाया हुआ होगा, उनकी कितनी धन राशि का स्वाहा हुआ होगा, इसकी कल्पना कर सकते हैं। काटजू लंबे समय तक जज रहे हैं। वे हाईकोट्र से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जज रहे हैं। विचारण का एक पक्ष यह है कि महिला वकील द्वारा आंख मारने पर उसके पक्ष में फैसला देने की लत और आदत कब से चालू था। क्या वे हाईकोर्ट के जज के रूप में भी ऐसी करतूत को अंजाम देते थे और ऐसी आदम के शिकार थे? इसका आकलन कोई और नहीं कर सकता है, इसका आकलन सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही कर सकती है या फिर काटजू ही बता सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट तो खुद ही इसकी जांच कर नहीं सकती है। इसके लिए सीबीआई एनआईए जैसी जांच एजेंसियां ही सक्षम हैं। पर प्रश्न यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट सीबीआई और एनआईए जैसी जांच एजेंसियों का सहारा लेगी? अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसा कदम उठा सकती है तो निश्चित मानिये कि न्यायिक इंतिहास का प्रेरक प्रश्न बनेगा और न्यायप्रियता का आईकान भी बनेगा। पर ऐसी उम्मीद बनती ही नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट इसकी जांच सीबीआई और एनआईए से कराये और मार्कडेय काटजू को दंडित कर सके।
                 सुप्रीम कोर्ट की काॅलेजियम व्यवस्था की ही यह करतूत है, यह बदनामी है। सुप्रीम कोर्ट की काॅलोजियम व्यवस्था का प्रतिफल है कि अभिषेक मनु सिंघवी जो जज बनवाने के लिए महिला वकील की शरीर का सहचर बन जाता है को रातोरत सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिल जाता है, करतूत उजागर होने के बाद भी उसे सीनियर एडवोकेट के पद से नहीं हटाया जाता और काटजू जैसा घटिया और औरतखोर जज भी काॅलोजियम न्यायिक व्यवस्था में पैदा लेते हैं। अब काॅलोजियम व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो फिर इनके खिलाफ जनविद्रोह भी हो सकता है। काटजू प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट को अब जगना ही होगा।

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Monday, August 18, 2025

मेरी समझ के दायरे में राधाकृष्णन का मूल्याकंन

  



                          राष्ट्र-चिंतन

मेरी समझ के दायरे में राधाकृष्णन का मूल्याकंन

                     आचार्य श्रीहरि

गुजरात विधान सभा 2012 की बात है। गुजरात विधान सभा चुनाव के एक नियंत्रक, प्रवेक्षक और विश्लेषक मैं भी था। मेरी जिम्मेदारी चुनाव प्रचार की खामियां, कमजोरियां निकालना था और प्रचार के मुद्दे खोजने थे, चुनाव प्रचारको की उपियोगिता भी देखनी थी। साथ ही साथ मुझे हिन्दी अखबारों और सोशल मीडिया के लिए विश्लेषनात्मक आलेख भी प्रतिदिन लिखने थे। मेरा कार्य्र बहुत ही दुरूह था, भाषा की समस्या थीं, गुजराती से अनभिज्ञ था और अंग्रेजी में हाथ तंग थे। मेरी दिलचस्पी इस विषय में ज्यादा थी कि बाहर से आने वाले नेता कितना चाकचौबंद चुनाव प्रचार करते हैं या फिर हवाहवाई मनोरंजन करते हैं। इसी सर्वेक्षण के दौरान में मुझे सीपी राधाकृष्णन का नाम मालूम हुआ। सीपी राधाकृष्णन को मैं अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री कार्यकाल से जानता था, वे 1998 में संसद बने थे। सिर्फ नाम से जानता था और उनसे कभी नहीं मिला था।

           नरेन्द्र मोदी की विघान सभा क्षेत्र मणिनगर में अनुराग ठाकुर की सभा थी। उस समय अनुराग ठाकुर भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। मैं भी अंकेक्षण के लिए वहां उपस्थित था। उसी दौरान मुझे सीपी राधाकृष्णन के आने की सूचना मिली। मैं अनुराग ठाकुर की सभा में ही सीपी राधाकृष्णन से मिला। सीपी राधाकृष्णन हिन्दी नहीं जानते थे और न ही उन्हें गुजराती आती थी। दुभाषीय के माध्यम से मेरी उनसे बात होती है। इसी दौरान समाजवादी नेता और राजनारायण के शिष्य क्रांति प्रकाश मिल गये। क्रांति प्रकाश पहले से ही सीपी चन्द्रशेखर के घनिष्ठ मित्र थे। मेरीे तारीफ क्रांति प्रकाश ने जमकर की, इस कारण सीपी राधाकृष्णन हमसे प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी सभाओं के लिए मुझे आमंत्रित कर लिया। वे आमंत्रित नहीं करते तो भी मैं उनकी सभाओं में सक्रियता रखता ही, क्योंकि मेरी जिम्मेदारी में वह निहीत था। सीपी राधाकृष्णन की चुनावी दृष्टिकोण और तमिल लोगों को आकर्षित करने के कारक विन्दु को भी मुझे जानना था।

                 सीपी राधाकृष्णन जब हिन्दी, गुजराती नहीं जानते हैं तब उन्हें गुजरात विधान सभा चुनाव प्रचार के लिए आमंत्रित क्यों किया गया? मेरे मन में बहुत ही क्रोधित करने वाले प्रश्न खडे हो रहे थे। मैंने सीधे भाजपा कार्यालय को फोन लगा दिया। पता चला कि कुछएक वोट तमिल भाषाई लोगों के हैं। इसी कारण उन्हें प्रचार के लिए आमंत्रित किया गया है। सीपी राधाकृष्णन के साथ चुनाव प्रचार के लिए मैं जाता हूं। क्रांति प्रकाश भी साथ रहते हैं। एक तमिल भाषाई कालोनी में जाते हैं जहां पर उनकी सभा रखी गयी थी। पर वहां सभा नाम की कोई चिन्ह और तैयारी नहीं थी। एक मंदिर में बीस-पच्चीस लोग होते हैं। शायद ये तमिल भाषायी मछुआरे और मजदूर थे पर बहुत ही गरीब थे। बीस-पच्चीस लोगों के बीच भी उन्होंने आराम से अपना भाषण तमिल में दिया। मुझे याद है कि उन्होंने कहा था कि व्यक्तिगत लाभ के लिए देश को खतरे में नहीं डालना चाहिए और हमारे लिए देश महत्वपूर्ण है। चूंकि गुजरात सीमावर्ती प्रदेश हैे, इसीलिए पाकिस्तान के निशाने पर है, नरेन्द्र मोदी की वीरता को पराजित करने का अर्थ राष्ट्र की अस्मिता को कमजोर करना होगा। सभा समाप्त होने के बाद हमलोग गांधी आश्रम लौट गये, जहां पर राधाकृष्णन ठहरे हुए थें वहां पर उन्होंने रात में रूकने का आग्रह किया और साथ में खाना भी खाया। रात के काफी देर तक राधाकृष्णन, मैं और क्रांति प्रकाश देश की राजनीति और नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक वीरता और सत्यनिष्ठा पर बात करते रहे थे। उनकी बातों से मुझे समझ में आ गया था कि वे राष्ट्रीय स्तर के ज्ञान रखते हैं और हिन्दी नहीं जानने के कारण उनकी राजनीतिक उडान आसमान नहीं छुऐगी। मैने उन्हें महात्मा गांधी का पाठ पढाना जरूरी समझा। मैंने उन्हें सीधे तौर पर कह दिया कि बडा बनना है तो हिन्दी को जानिये, उदाहरण मैं महात्मा गांधी को देता हूं, महात्मा गंाधी हिन्दी भाषी नहीं थे, वे गुजराती थे, लेकिन उन्होंने गुजराती की जगह हिन्दी को अपने संवाद की भाषा बनायी। अगर आप हिन्दी-गुजराती जानते तो इस विधान सभा चुनाव में आपके विचार मीडिया के सिर चढ कर बोलते। यही कारण है कि आपकी सभा के भाषण मीडिया बाजार में धमाका नहीं कर सका। सीपी राधाकृष्णन ने मेरी इस सीख पर सिर्फ इतना कहा था यू आर राइट।

                 हिन्दी को लेकर उनकी राय स्पष्ट होने से मैं प्रसन्न था। सीपी राधाकृष्ण्न ने मुझसे कहा कि दक्षिण का हिन्दी विरोध आंदोलन आत्मघाती था, बेवहियात था और अदूरदर्शी था। उनका कहना साफ था कि हिन्दी विरोध का प्रश्न सस्ती राजनीति थी। अपने फायदे के लिए हिन्दी के खिलाफ वातावारण बनाया गया। हिन्दी नहीं जानने के कारण दक्षिण के युवाओं को उत्तर भारत में रोजगार नहीं मिल पाया। रजनीतिज्ञ भी इसका शिकार हुए हैं। हिन्दी नहीं जानने वाले राजनीतिज्ञ अखिल भारतीय स्तर पर अपना जनाधार विकसित नहीं कर पाये। तमिल के राजनीतिज्ञ हिन्दी इलाके मे तो क्या बल्कि कर्नाटक और आध्रप्रदेश में भी विख्यात नहीं हो सके, जहां पर कन्नड और तेलगू का प्रभाव है। उनकी यह समझ बहुत ही चाकचौबंद थी। दक्षिण में सिर्फ तमिल ही नहीं बल्कि कन्नड, मलयालम, तेलगू जैसी मजबूत भाषाएं हैं और इनकी पहचान भी अलग है। इसी के साथ ही साथ राधाकृष्ण्न अंग्रेजी के प्रति भी आग्रही हैं। अंग्रेजी भाषा का विरोध को भी वे असंगत मानते हैं। 

             लंबे समय तक राजनीति के मुख्य धारा में होने के बाद भी इनकी पहचान राष्ट्रीय नेता की नहीं बन सकी थी। कारण उपर के तथ्यों में निहित है। एकाएक इनके भाग्य का पिटारा खुलता है और ये राज्यपाल बना दिये जाते हैं। मुझे यह खबर सुनकर अच्छा लगा। सौभाग्य से ये हमारे गृह प्रदेश झारखंड के राज्यपाल थे। लेकिन मैं ठहरा संत और फक्कड संस्कृति का मनुष्य। किसी के पीछे भागना मुझे अच्छा लगता नहीं है, यह मेरी कार्य संस्कृति का हिस्सा नहीं है। मैंने गुजरात के बाद फिर कभी सीपी राधाकृष्ण्न से मिलने और बात करने की जरूरत ही नहीं समझी। जब ये झारखंड के राज्यपाल थे तब भी मुझे इनसे बात करने की इच्छा नहीं हुई और न ही मैं कभी गुजरात प्रसंग के इतिहास पर चर्चा करने की जरूरत समझी।

          अब ये उप राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। भाजपा ने इन्हें उप राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। भाजपा के पास बहुमत है। इसलिए ये निश्चित तौर पर उपराष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। सीपी राधाकृष्ण्न को उपराष्ट्रपति बनाना भाजपा की नीति दूरदष्टि हैं और नरेन्द्र मोदी का मास्टर पोलिटकल स्ट्रोक हैं। निशाना दक्षिण की राजनीति है, तमिल की राजनीति है। तमिलनाडु की राजनीति में इसका प्रभाव पडने वाला है। तमिलनाडु की राजनीतिक सत्ता द्वार पर भाजपा दस्तक दे रही है, जनाधार लगातार मजबूत हो रहा है। तमिल भाषाई आबादी के बीच नरेन्द्र मोदी और भाजपा के प्रति हमदर्दी बढी होगी और भविष्य में बढेगी। ऐसी उम्मीदो को खारिज करना मुश्किल है। 

           सीपी राधाकृष्ण्न को दूरदर्शिता दिखाने की जरूरत होगी। इसके पहले भी भाजपा ने बैेंकेया नायडू को उपराष्ट्रपति बनाया था। लेकिन नायडू ने अपनी कोई पहचान नहीं छोड पाये और दक्षिण में भाजपा का कोई लाभ नहीं दिला सके। सीपी राधाकृष्ण्न को अति महत्वाकांक्षा से मुक्त होना होगा, आत्मघाती बनने की मानसिकता से दूर रहना होगा। राज्य सभा के संचालन में शक्ति प्रदर्शन करने की जरूरत होगी। नरमी घातक होगी। सख्ती की भाषा से ही सदन की गरिमा बचेगी, शांति की उम्मीद बनेगी। इस मंत्र को अपना कर्म बनाना होगा।

        हमें गर्व है कि उप राष्ट्रपति के पद पर बैठने जाने वाले सीपी राधाकृष्ण्न कभी मेरे चुनावी सहचर्य और संवाद की शख्सियत रहे है, मैंने उन्हें हिन्दी की अनिवार्यता और स्वीकारता का पाठ भी पढाया थां। पर मैं जिस तरह गुजरात के बाद फिर कभी सीपी चन्द्रशेखर से मिलने और बात करने की जरूरत नहीं समझी उसी तरह से मैं आगे भी उनसे शायद ही मिल पाउंगा या फिर कोई बात कर पाउंगा। क्योंकि मेरा कर्म राजनीति नहीं बल्कि सनातन है। ऐसे भी जब कोई बडी कुर्सी पर बैठ जाता है तो फिर उसकी दृष्टि उपर की ओर हो जाती है, आसमान की ओर होती है, सफल बनना है तो पीछे नहीं आगे देखों की मानसिकता पर सवार हो जाती है। संघर्ष के साथी, संवाद के सहचर उन्हें बोझ और फालतू लगने लगते हैं। ऐसी मानसिकता राजनीति के बडे नेताओं से लेकर राजनीति के कीडे-मकौडों पर भी लागू होती है।

             मेरी शुभकामनाएं और आशीर्वाद सीपी राधाकृष्ण्न के साथ जरूर है। पर ध्यान यह रखना होगा कि कोई बडी कुर्सी मिलने से महान नहीं होता है बल्कि महान राष्ट्र के प्रति समर्पण और सत्य निष्ठा के प्रदर्शन से होता है।


आचार्य श्रीहरि

नई दिल्ली।

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Saturday, August 16, 2025

भारत विभाजन पर मजहबी दृष्टिकोण बेनकाब

                                



                            राष्ट्र-चिंतन

       भारत विभाजन पर मजहबी दृष्टिकोण बेनकाब

                भारत विभाजन के लिए नेहरू और कांग्रेस जिम्मेदार ?

                           आचार्य श्रीहरि

एनसीईआरटी के भारत विखंडन पर नये कंटंेट को लेकर नया विवाद उत्पन्न हो गया है। कांग्रेस और उनकी समर्थक जमात आग बबूला है, गलत तथ्य प्रस्तुत करने का आरोप लगाया है और उक्त कंटेंट को हटाने की मांग की है। आगे भी इस प्रश्न पर विवाद गहराने की उम्मीद है। जहां तक केन्द्रीय सरकार के जवाब और तर्क की बात है तो उसने कंटेंट को सही बताया है और कहा है कि कंटेंट चाकचैबंद है और तथ्यों पर आधारित है, भारत विखंडन की प्रक्रिया पूरी तरह से त्रासदीपूर्ण थी और त्रासदी पूर्ण स्थिति बनाने के लिए साजिशें चली गयी थी। इतिहास को सुधारने, ठीक करने और पठनीय बनाने की हमारी कोशिशें जारी रहेंगी। हालांकि यह कंटेट सिर्फ स्पेशल मोडयूल है जो नियमित पाठयक्रम की पुस्तकों की हिस्सा नहीं होते हैं। ये कंटेंट सिलेबस में शामिल नहीं होते हैं। इसे पोस्टर्स चर्चाओं, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं और जेनरल नाॅलेज के रूप में बच्चों को पढाया जाता है, बताया जाता है।

        राजनीतिक परिस्थितियां यह बताती हैं कि जब-जब इतिहास पर सुधार की कोशिश होती है, इतिहास को वर्तमान स्थिति मे देखने की कोशिश होती है तो फिर राजनीतिक विवाद हो जाता है। अगर सुधार की कोशिशों में कांग्रेस और इस्लाम के किसी भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारकों पर कैंची चलाने या फिर उस पर टीका-टिप्पणी करने का प्रयास होता है तो फिर राजनीति और भी गर्म हो जाती है। मुस्लिम उत्पीडन का भी प्रश्न खड़ा कर दिया जाता है। इसलिए कांग्रेस और उसके समर्थक जमात मुस्लिम कार्ड खेल रहे हैं। इसमें कौन पराजित होगा और कौन जीत दर्ज करेगा? नरेन्द्र मोदी का स्पष्ट संदेश है, स्पष्ट एजेंडा है। वह संदेश और एजेंडा अपने समर्थक समूह को संतुष्ट करना और रखना, उन्हें यह अहसास दिलाना कि हम अपने एजेंडे पर सक्रिय हैं और सक्रिय रहेंगे। इस कसौटी पर नरेन्द्र मोदी की सरकार को वैम्पियन माना जाना चाहिए।

              एनसीईआरटी के भारत विखंडन पर नये कंटेंट में ऐसा क्या है जो कांग्रेस, कम्युनिस्टों और मुस्लिम जमात को आगबबूला कर दिया है? वास्तव में केन्द्रीय सरकार ने जिन्ना और नेहरू की विभाजन नीति को स्पष्ट कर दिया है। कंटेंट में सीधे तौर पर कह दिया गया है कि भारत विंखंडन के लिए जिन्ना और नेहरू जिम्मेदार हैं, इनकी निजी कारस्तानी के कारण भारत का विखंडन हुआ और लाखों हिन्दुओं को गाजर-मूली की तरह काट दिया गया। ऐसे लार्ड मांउटबेटन को भी दोषी ठहराया गया है। लेकिन इसमें कुछ नाम ओझल कर दिये गये हैं, छिपा दिये गये हैं, उस पर चर्चा करने की जरूरत नहीं समझी गयी। सबसे पहले शायर और जिहादी मोहम्मद इकबाल का नाम गायब है। क्योंकि दो काॅम और दो देश की पहली थ्योरी मोहम्मद इकबाल ने दी थी। इकबाल ने ही कहा था कि हिन्दू और मुसलमान दो काॅम है जो एक साथ नहीं रह सकती हैं, मुसलमानों ने इस देश पर आठ सौ सालों से ज्यादा समय तक राज किया है, इसलिए मुसलमान इस देश के शासक हैं। भारत आजाद हुआ तो फिर भारत में लोकतंत्र की स्थापना होगी। लोकतंत्र में जिसकी आबादी होगी अधिक वही शासक बनेगा। इसलिए भारत पर हिन्दुओं का शासन होगा। इकबाल ने पाकिस्तान का नाम दिया था और कहा था कि मुसलमानों के लिए पाकिस्तान देश बनाना ही होगा। मोहम्मद इकबाल ने ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दू सत्ता हमारा‘ गाया था पर जब उस पर मुस्लिम जिहादी मानसिकता चढी तो गाया था ‘हम हैं मुस्लमां और सारा जहां हमारा‘। यानी की पूरी धरती मुसलमानों का है। जिन्ना दोषी कैसे नहीं है? जिन्ना भारत विखंडन का दोषी है, भारत विखंडन का उसका एजेंडा था, भारत विखंडन के लिए वातावरण बनाने के लिए हिंसक सभाएं करते थे, हिंसक भाषण देते थे, दंगे कराते थे और धमकियां देते थे। भारत विखंडन के पूर्व ही विखंडन के लिए दंगे हो रहे थे। इन सभी दंगों के पीछे जिन्ना का विखंडन एजेंडा ही जिम्मेदार था। 

                  मोहम्मद इकबाल-जिन्ना के साथ ही साथ महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू भी भारत विखंडन के जिम्मेदार थे। महात्मा गांधी की सहमति के बिना भारत का विखंडन संभव नहीं था। महात्मा गाधी का व्यक्तित्व महान और विशाल बन चुका था। अंग्रेजों के लिए महात्मा गांधी के व्यक्तित्व को खारिज करना मुश्किल था। इस कारण लार्ड माउंटबेटन की नीति तब तक परवान नहीं चढ सकती थी जब तक महात्मा गांधी की सहमति नहीं मिलती। अंग्रेजों ने महात्मा गांधी की सहमति ली थी। बाद में एक तथ्य यह भी सामने आया था कि मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा गलतफहमी पैदा करने और झूठ प्रस्तुत करने की कसौटी पर महात्मा गांधी ने भारत विखंडन की सहमति लार्ड मांगट बेटन को दी थी। जवाहरलाल नेहरू तो भारत विखंडन के पक्षधर ही थे। अप्रत्यक्ष तौर पर नेहरू ने जिन्ना की कारस्तानी से दोस्ती की थी और जिन्ना को अपने एजेंडे पर कायम रहने के प्रोत्साहित किया था। क्योंकि भारत का विखंडन नहीं होता और जिन्ना पाकिस्तान नहीं जाते तो फिर नेहरू का प्रधानमंत्री बनना मुश्किल था फिर नेहरू का यह सपना भी डूब जाता। नेहरू ने विखंडन के पक्ष में एक भाषण भी दिया था। नेहरू ने कहा था कि हम एक ऐसी स्थिति में आ गये हैं जहां हमें या तो विभाजन को स्वीकार करना होगा या फिर निरंतर संघर्ष और अराजकता का सामना करना होगा। संघर्ष और अराजकता फैलाने वाले कौन लोग थे? जिन्ना और उनकी दंगाई मुस्लिम आबादी ही संघर्ष कर रहे थे और अराजकता फैला रहे थे। भारत विभाजन हुआ और नेहरू समर्थन नहीं होने के बाद भी प्रधानमंत्री बन गये। जबकि नेहरू के पास समर्थन भी नही था, उनके पास सिर्फ महात्मा गांधी की इच्छा थी।

               जहां तक लार्ड माउंट बेटन का प्रश्न है तो उसका भारत विभाजन का एजेंडा स्पष्ट था। भारत विभाजन के लिए ही उन्हें भारत भेजा गया था। लार्ड मांउटबेटन की पत्नी और नेहरू दोनों दोस्त थे और एक साथ पढे थे। इस कारण लार्ड माउंट बेटन ने नेहरू का इस्तेमाल तास के पत्तों की तरह खूब किया और जिन्ना की हिंसा और दंगाई भूमिका के पीछे भी लार्ड माउंट बेटन की इच्छा और सहयोग था। बाद में नेहरू और लार्ड माउंटबेटन की पत्नी रंगरेलियां भी आम हो गयी। 

               एनसीईआरटी के इस स्पेशन माॅडयूल की प्रस्तावना में नरेन्द्र मोदी के विचारों को प्राथमिकता दिया गया है। नरेन्द्र मोदी का भारत विभाजन पर विचार बहुत ही संवेदनशील हैं और भविष्य के लिए भी प्रेरक हैं। नरेन्द्र मोदी का कहना है कि भारत विभाजन के दर्द और पीडा के साथ ही साथ क्षति को भुलाया नहीं जा सकता है, लाखों लोगों के जीवन का संहार हुआ, लाखों लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर होना पडा। नफरती एजेंडे के कारण भारत का विभाजन हुआ। विभाजन की त्रासदी और भारत विखंडन में बलिदान हुए लाखों लोगों की याद में हम 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनायेंगे। नरेन्द्र मोदी और भाजपा आज भी पाकिस्तान के अस्तित्व को नहीं मानते हैं, संघ भी भारत विभाजन को नहीं मानता है और इन सभी समूहो का आईकाॅन अखंड भारत है। अखंड भारत का सपना देखने वालों की आज केन्द्र्र में सरकार है। नरेन्द्र मोदी से वह समूह अखंड भारत की उम्मीद करता है जो पाकिस्तान की नींव को हिंसक और काफिर विरोधी मानता है।

            इतिहास का पुर्नलेखन क्यों जरूरी है। क्योंकि भारत का इतिहास छिन्न-भिन्न है, अंग विहीन है। क्योंकि इतिहास लेखन की जिम्मेदारी कम्युनिस्टों और मुस्लिमों के समर्थक जमात पर थी। नेहरू खूद कहते थे कि मैं गलती से हिन्दू धर्म में पैदा लिया हूं, कर्म और आचरण से मैं मुसलमान हूं। इसी मानसिकता से नेहरू ने भारतीय इतिहास का मुस्लिमकरण किया था। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भी हिन्दुत्व पीडा और हिन्दुत्व कत्लेआम पर पर्दा डालने का काम किया था। आजादी तीस सालों तक भी देश का शिक्षा मंत्री मुस्लिम ही क्यों बनते थे? उम्मीद है कि मोदी सरकार भारत को इस्लामिक-अलतकिया जिहाद से जुडे सभी विषयों को पाठयक्रमों में शामिल कर राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करेंगे और भारत के इतिहास को इस्लामिक, कम्युनिस्ट व कांग्रेसी कुचक्र से मुक्त करेंगे।

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Wednesday, August 6, 2025

 हरिनारायण की करतूत भी तो जानिये...

              आचार्य श्रीहरि


मैंने हरिनारायण सिंह का जिहादी चेहरा देखा है, लवजिहादी समर्थक उसकी गतिविधियां देखी है, कैसे वह एक लवजिहादी परिवार को बचाया था और संरक्षण दिया था।

         कोयला तस्करी में उसका नाम आया था यह कौन नहीं जानता है? आयकर विभाग ने उसके घर छापा मारा था और कई रिश्वतखोरी और भ्रष्टचार में उसका नाम चर्चा में था।

           रांची की पत्रकारिता में जातिवाद करने की करतूत हरिवंश और हरिनारायण की जोडी को है। इसके पहले रांची की पत्रकारिता में जातिवाद था ही नहीं? 

           मैंने अगर हिन्दुत्व से बईमानी की होती तो फिर आज मेरी पत्रकारिता शिखर पर होती, शायद बडे पद भी मिल जाता। न तो मैंने जातिवाद किया और न ही हिन्दुत्व से बईमानी की। देशद्रोही लोग आज मुझे लाखों देने के लिए तैयार हैं।

           मैंने अपने 64 साल की जिंदगी में 35 साल भूखे रहा है। आज भी मेरे पास खाने के लिए पैसे नहीं है, दवा के पैसे नहीं है। फिर भी मैंने अपनी पत्रकारिता नहीं बेची, बईमानी का धन स्वीकार नहीं किया।

          भगवान अपराधी को कभी पुरस्कृत करता नही। सजा देता है। इसलिए कोई अपराधी मरने के बाद स्वर्गीय हो ही नहीं सकता है।

सनातन का संहार आज इसीलिए हो रहा है कि वह अपने दुश्मनों को याद करता नहीं है, दुश्मनों के मरने के बाद भी उसे स्वर्गीय कहता है।

          आप मेरे अनुज के सम्मान हैं। आपने कभी रांची में मेरी सहायता की थी। लेकिन क्या आप मुझे अपना गुलाम बना कर रखना चाहते हैं? मेरा समर्पण हिन्दुत्व के प्रति है। मैं हिन्दुत्व की कसौटी पर ही सभी को रखता हू और अपना विचार प्रकट करता हूं। लाभ और हानि से मै मुक्त हू। 

           ऐसे भी मैं मरने वाला हूं, मेरी शरीर कुत्ते और कौआ  खायेगा। इसलिए मुझे किसी के समर्थन प्रशंसा की परवाह नहीं है।


आचार्य श्रीहरिद्ध

नई दिल्ली


Saturday, August 2, 2025

पाक के लिए ‘मौत का फंदा‘ बना रहा है ट्रम्प

 

 

    


                            राष्ट्र-चिंतन

     पाक के लिए ‘मौत का फंदा‘ बना रहा है ट्रम्प

              आचार्य श्रीहरि


डोनाल्ड ट्रम्प के पाकिस्तान प्रेम से लाभ किसको है और हानि किसको है? किसका हित सर्वाधिक नुकसान में होगा? क्या अमेरिका फिर से अपनी मूर्खता दोहराने जा रहा है? क्या अमेरिका फिर से अपनी अर्थव्यवस्था को संकट में डालने जा रहा है? क्या अमेरिका फिर से पाकिस्तान में इस्लामिक आतंकवाद की आग को लहराना चाहता है? क्या अमेरिका फिर से पाकिस्तानी कट्टरपंथियों को अपने लिए आत्मघाती बनाना चाहता है? क्या अमेरिका अपने घर में पाकिस्तान मुसलमानों को आश्रय देकर अपनी सभ्यता और संस्कृति को संकट में डालना चाहता है? क्या अमेरिका का लोकतंत्र भी इस्लामिक तंत्र में बदलेगा? क्या डोनाल्ड ट्रम्प के मुस्लिम कट्टरता का विरोध समाप्त मान लिया जाना चाहिए? ट्रम्प की पाकिस्तान के अंदर में तेल और गैस की खोज के रास्ते में चीनी प्रोजेक्ट प्रभावित होगे और दायरे में आयेंगे? चीन का हित प्रभावित होगा तो फिर किस तरह की हिंसक वैश्विक परिस्थितियों का निर्माण होगा? चीन और अमेरिका मे अपने-अपने हितो की रक्षा को लेकर कोई घातक युद्ध शुरू हो सकता है क्या? पाकिस्तान में बैठकर अमेरिका रूस को भी नियंत्रित कर सकता है क्या? भारत पर कितना प्रभाव पडेगा? क्श्मीर का प्रश्न कितनी सुर्खियां हासिल करेगा? पाकिस्तान के आतंकवाद से भारत कितनी हिंसा झेलेगा? फिर भारत को इस्लामिक आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिए कौन-कौन सी नयी नीतियां अपनानी होगी? भारत को अपनी सेना भी मजबूत करनी होगी क्या? भारत को अपनी आतंरिक सुरक्षा की चुनौतियों पर भी ध्यान देना होगा क्या? पाकिस्तान एक भूखड और कटोरे लेकर भीख मांगने वाला देश है, एक ऐसा असफल देश जो दुनिया के लिए खतरे की घंटी और बोझ-संकट जैसा है।

                   झूठ है या सच? गारंटी नहीं है। सिर्फ अफवाह है, शिगूफा है या फिर सच्चाई भी है? कोई नही जानता था कि पाकिस्तान के पास तेल का भंडार है, गैस का भंडार है, उसके पास खनिज संपदाओं का भंडार है। उसके पास तो भारत से भी कम तेल और गैस संसाधन है। भारत तो अपने अधिकार वाले समुद्र से तेल निकालता है पर पाकिस्तान का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसका दोहन कर तेल और गैस निकाला जाता है। पाकिस्तान पहले भी और आज भी तेल और गैस के लिए विदेशियों की चरणवंदना करता रहा है। कहने का अर्थ यह है कि पाकिस्तान भी गैस और तेल के लिए अरब के देशों पर निर्भर रहा है। पाकिस्तान ने तेल और गैस के लिए ईरान के साथ एक संधि किया था। हालांकि उस योजना में भारत भी शामिल होना चाहता था। उस योजना का नाम था भारत पाकिस्तान ईरान गैस और तेल पाइय लाइन योजना। यह एक बडी गैस-तेल पाइप लाइन योजना थी। ईरान इस गैस-तेल पाइप लाइन योजना के माध्यम से कच्चा तेल भारत और पाकिस्तान तक पहुंचाना चाहता था। भारत भी इस पाइप योजना को लेकर बहुत आशान्वित था और उत्साहित था। इस पर भारत लाखों डाॅलर का निवेश करना चाहता था। क्योंकि भारत इससे लाभान्वित होना चाहता था और भारत को वैश्विक दर से कम दर पर गैस और तेल मिलने की उम्मीद थी, ढुलाई खर्च बचने की उम्मीद भी थी। इसके कारण भारत अपने यहां सस्से दर पर गैस और तेल की आपूर्ति कर सकता था। लेकिन पाकिस्तान के मुस्लिम आतंकवाद को देख कर भारत गैस-तेल पाइप लाइन योजना से बाहर हो गया। लेकिन पाकिस्तान आज भी उस योजना से बंधा हुआ है। लेकिन अभी तक पाकिस्तान-ईरान गैस पाइप लाइन योजना पूरी नहीं हुई है क्योंकि पाकिस्तान उस पर निवेश करने की स्थिति में नहीं है और ईरान दानदाता बनने के लिए तैयार नहीं है, ईरान को भी पाकिस्तान की मुस्लिम आतंकवाद की मानसिकता से डर है। मुस्लिम आतंकी गैस-पाइप लाइन योजना को कभी भी बाधित कर सकते हैं और अपनी हिंसा का शिकार बना सकते हैं। पाकिस्तान का सुन्नी आतंकवाद ईरान की शिया आबादी पर संहारक की स्थिति मे धावा बोलता है।

                    ट्रम्प ने एकाएक दुनिया को चैंका दिया, आश्चर्य में डाल दिया, पाकिस्तान के बल्ले-बल्ले कर दिया, पाकिस्तान की मार्केटिंग कर दी, पाकिस्तान की छवि को चमका दिया। कह दिया कि पाकिस्तान के पास तेल और गैस का विशाल भंडार है। पाकिस्तान के पास इतना गैस और तेल का भंडार है जितना किसी अन्य देश के पास नहीं है। ट्रम्प ने घोषणा कर दिया कि पाकिस्तान के उस तेल और गैस के विशाल भंडार का दोहन अमेरिका करेगा। अमेरिका अपनी तकनीकी के माध्यम से पाकिस्तान में तेल और गैस का भंडार खोजेगा। पूरी दुनिया पाकिस्तान की चरणवंदना करेगी, दुनिया भर की कंपनियां पाकिस्तान की ओर भागेगी, पाकिस्तान का गुणगान करेगी। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि दुनिया के देश और कंपनियां पाकिस्तान के साथ हिस्सेदारी करने के लिए आगे बढेगी। उसने खासकर भारत पर तंज कसा है। भारत पर उसने तंज क्या कसा है? डोनाल्ड ट्रम्प ने अंहकार दिखाया और कहा कि एक दिन भारत भी पाकिस्तान से गैस और तेल खरीदेगा फिर पाकिस्तान की शर्ते भारत को परेशान करेगे और अपमान करेंगे। गैस और तेल की कसौटी पर भारत को भय और चुनौती दिखाने वाले डोनाल्ड ट्रम्प की भारत के खिलाफ पीडा क्या है? भारत के खिलाफ ट्रम्प की पीडा बहुत ही असहनीय है, भारत पीडा में उसने अपनी मानसिक स्थिति बिगाड ली है, उसका मानसिक संतुलन कमजोर हो गया है। ट्रम्प भारत को अपना गुलाम और टूल बनाना चाहता था। भारत ने टूल और गुलाम बनना स्वीकार नहीं किया, अपनी स्वतंत्रता और निष्पक्षता को भारत ने सर्वश्रेष्ठ समझा। ट्रम्प के कहने पर भारत ने चीन और रूस का विरोध करना स्वीकार नहीं किया, भारत ने रूस और ईरान से तेल और गैस खरीदना बंद नहीं किया। अभी-अभी नरेन्द्र मोदी ने अप्रत्यक्ष तौर पर अमेरिका को करारा थप्पड मारा है, कह दिया कि किसी के कहने पर हम रूस और ईरान से तेल और गैस खरीदना बंद नहीं करेंगे। टैरिफ हिंसा से भी नरेन्द्र मोदी ने डरने से इनकार कर दिया। ईरान और रूस से तेल और गैस खरीदना भारत के लिए लाभकारी सौदा है, इसका लाभ कुरबान क्यों करेगा भारत? भारत को अमेरिकी हित नहीं बल्कि अपना हित और अपने देश की जनता के कल्याण की भावनाएं महत्वपूर्ण है। भारत ने पाकिस्तान के साथ युद्ध रोकने का श्रेय डोनाल्ड ट्रम्प को नहीं लेने दिया था और कह दिया था कि पाकिस्तान की इच्छा पर हमने युद्ध रोका था। अब ट्रम्प ने भारत को डराने के लिए पाकिस्तानी तेल-गैस का हथकंडा अपनाया है, भारत के खिलाफ पाकिस्तानी हथकंडा कोई करिश्मा दिखाने वाला नही है।

                   भारत को नुकसान कम है। अधिक नुकसान चीन को है, थोडा नुकसान और चुनौतियां रूस को है। चीन को सर्वाधिक नुकसान होगा। पाकिस्तान खुद चीन और अमेरिका के हितों के बीच पिसेगा। अमेरिका और चीन के सामने पाकिस्तान के लिए मौत का फंदा झुलेगा, उसे खांई और कुंए के बीच चलना होगा। चीन की कई रेल और सडक परियोजनाएं पाकिस्तान के अंदर चल रही हैं। चीन पाकिस्तान के अंदर आर्थिक गलियारा भी बना रहा है। ग्वादर बंदरगाह भी बना रहा है चीन। इन सभी चीनी परियोजनाओं का विरोध अमेरिका करता रहा है। चीनी परियोजनाओं का विरोध पाकिस्तान के अंदर भी शुरू हो चुका है। बलूच क्षेत्र में अलग राष्ट्र का आंदोलन भी चल रहा है। अलग राष्ट्र के आंदोलन का निशाना चीन है। चीनी नागरिकों की सुरक्षा भी अहम प्रश्न बना हुआ है। अमेरिका जब तेल और गैस दोहन में उतरेगा तो फिर उसे अलग-अलग राष्ट्रीयताओं का प्रबल विरोध झेलना पडेगा। इसके साथ ही साथ पाकिस्तान के लिए मौत का फंदा भी तैयार होगा। पाकिस्तान किसका हित सुरक्षित करे और किसका हित सुरक्षित न करे, इस चुनौती से घिरेगा। इसके अलावा अमेरिका और चीन के बीच अपने-अपने हितों को लेकर शहमात का खेल होगा। रूस को भी अमेरिका पाकिस्तान में बैठकर नियंत्रित कर सकता है। युद्धक स्थिति में अमेरिका पाकिस्तान को टूल बना कर अपने लहाकू विमानों से रूस पर हमला भी कर सकता है।

              जहां तक भारत का प्रश्न है तो अब भारत को अपनी सुरक्षा चुनौतियां और गुप्तचर चुनौतियों को दूर करना होगा। चाकचैबंद सुरक्षा नीतियां बनानी होगी। डोनाल्ड ट्रम्प की किसी भी धमकी और कदम से भारत क्यों डरेगा? डरना तो पाकिस्तान, चीन और रूस को पडेगा।


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आचार्य श्रीहरि

नई दिल्ली


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