राष्ट्र-चिंतन
हेडली को भी ‘चिकन बिरयानी‘ खिलायेंगे क्या?
विष्णुगुप्त
‘ क्या चिकन बिरयानी खिलाने ‘ के लिए भारत हेडली को लाना चाहता है? अगर भारत अपने जेलों में रखकर ‘चिकन बिरयानी‘ खिलवाने के लिए लाना चाहता है तब देश भर में हेटली के प्रत्यर्पण पर उठ ज्वार और चिंता सही हो सकती है? क्या हमारी सरकार मुबंई हमले के आतंकवादी ‘कसाब‘ को ‘चिकन बिरयानी‘ नहीं खिला रही है? क्या संसद और लालकिला हमले के आतंकवादियों को मिली फासंी की सजा निलम्बित कर उन्हें जेलों में ‘चिकन बिरयानी‘ नहीं खिलायी जा रही है? किस आतंकवादी को अबतक कठोर सजा मिली है या फिर किस आतंकवादी को फांसी के फंदे पर चढ़ाया गया है? कुख्यात मुस्लिम आतंकवाद और पाकिस्तानी मूल के नागरिक हेडली के प्रत्यर्पण से अमेरिका के इनकार पर तरह-तरह के विचार और गुस्से सामने आ रहे हैं। कोई अमेरिकी इनकार पर उसकी दादागिरी कह रहा है तो कोई भारत के साथ उसकी दोस्ती पर सवाल उठा रहा है। अगर अमेरिका प्रत्यर्पण की भारतीय इच्छा की पूर्ति कर ही दे तो क्या भारत की कमजोर कानूनी प्रक्रिया और वोट की राजनीति के रक्षा कवज हेडली को नहीं मिलेगा? यकीन मानिये आज जो लोग हेटली को भारत लाकर उस पर मुकदमा चलाना चाहते हैं वही लोग कल भारतीय न्यायालय से हेडली को मिली सजा के खिलाफ उठ खड़े हो जायेंगे और मानवाधिकार सहित एक वर्ग विशेष को प्रताड़ित करने जैसी प्रक्रिया चलायेंगे? हेटली को सजा भारतीय कानूनों के तहत नहीं बल्कि अमेरिकी काूननों के तहत ही मिल सकती है। अमेरिकी काूननों के तहत हेडली को या तो मृत्यु दंड की सजा मिलेगी या फिर दो सौ से अधिक साल जेलों में सड़ने की सजा मिलनी तय है। प्रत्यर्पण पर अमेरिकी चुनौतियां व मजबूरी को हम नकार नहीं सकते हैं। भारतीय सुरक्षा व गुप्तचर एजेन्सियों कितनी दक्ष व गंभीर हैं? भारतीय सुरक्षा-गुप्तचर एजेन्सियों अंगभीता से अमेरिका को खतरा हो सकता है व अमेरिकी न्यायालय में सजा के लिए जुटाये गये ठोस सबूत प्रभावित हो सकते हैं। प्रत्यर्पण पर यह खतरा अमेरिका देख रहा है।
चाकचैबंद और गंभीर अमेरिकी काूननों के तहत ही हेडली-राणा की सजा संभव है। हेडली-राणा की सारी आतंकवादी प्रक्रिया का सबूत जुटा रही हैं। प्रत्यर्पण के खतरे कम नहीं है। अगर प्रत्यर्पण के बाद भारतीय गुप्तचर एजेन्सियां कुछ इत्तर और सबूत विहीन पिटारा बना ले तो फिर अमेरिकी सुरक्षा एजेन्सियां को अपने अदालतों से हेटली-राणा को सजा दिलाने में परेशानी होगी। भारतीय सुरक्षा और गुप्तचर एजेन्सियों की वीरता और चाकचैबंद कैसी है? क्या भारत आतंकवादियों को जेलों में रखकर ‘चिकन बिरयानी ‘ नहीं खिला रहा है।
भारत की सुरक्षा एजेन्सियों और सत्ता व्यवस्था को अमेरिका से सबक सीखना चाहिए। कैसे सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों के खिलाफ उठने वाली आतंकवादी प्रक्रिया को सुलझाया जा सकता है और उस पर सत्ता व कानून का सौटा चलाया जा सकता है। अमेरिकी एजेन्सियां अखबारों की सुर्खियां नहीं बनाती हैं और न ही हवा में तीर मारती हैं, बल्कि साक्ष्य जुटाने और काूननी घेरेबंदी पर कार्य करती हैं। हेटली का ही उदाहरण सर्वश्रेष्ठ है। हेटली को अमेरिकी सुरक्षा एजेन्सियों ने कोई आज नहीं बल्कि छह माह पहले गिर था। हेटली की गिरफतारी की खबर दुनिया को कानो-कान तक नहीं लगी। हेटली की गिरफतारी अमेरिकी ने तभी दुनिया को जाहिर की जब उसने हेटली और उसके कुनबे से जुड़ी आतंकवाद के जंजाल को पूरी तरह से खंगाल न लिया। राणा-हेटली के पाकिस्तानी संबंध को खंगालना अमेरिका के ही बस की बात थी। अमेरिकी एजेन्सयों ने हेडली और राणा के विश्व भर में यात्राओं और संपर्को का भी पूरी जांच की है। पहले यह बात फैली थी कि हेडली सही में अमेरिकी नागरिक है पर जांच में यह खुलासा हुआ कि हेडली अमेरिकी नागरिक नहीं बल्कि पाकिस्तानी राजनयिक का बेटा है और वह मूल रूप से पाकिस्तानी है। सबसे बड़ी बात यह है कि 9/1ा की घटना के बाद अमेरिका ने अपने कमजोर कानूनों को बदला। नये कठोर कानून लागू कियें। सुरक्षा और गप्तचर एजेन्सियों को असीमित अधिकार दिये। इस कारण सुरक्षा और गुप्तचर एजेन्सियां चाकचैबंद हुई और आतंकवादियों को मांद से निकालकर अमेरिकी अदालतों की दुरूह और गंभीर कानूनी प्रक्रिया की घेरेंबंदी में डाला। यहां तक की विदेशी राष्ट्राध्यक्षों और मंत्रियों की पूरी जांच प्रक्रिया से गुजारी। उसने परवाह नहीं कि जांच में विदेशी राष्ट्रध्यक्षों और मंत्रियों के उत्पीड़न से अमेरिका की छवि खराब होती है।
अमेरिका का शुक्र्रगुजार मानना चाहिए। हेडली और राणा को किसने पकड़ा? क्या यह हेटली और राणा को पकड़ने और उसके आतंकवादी जंजाल को खंगालने का श्रेय भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों का है? अगर अमेरिकी सुरक्षा एजेन्सियां राणा और हेडली को पकड़ा नहीं होता तो हम आज मुबंई आतंकवादी हमले की पूरी तह सामने नहीं आती। हेडली और राणा भारत में रह कर मुबंई आतंकवादी हमले को अंजाम दिया था। इन दोनो न सिर्फ मुबंई मे अपना जंजाल फैलाया था बल्कि देश के अन्य शहरों में भी शरणस्थली बनायी थी और आतंकवाद के लिए युवकों को तैयार किया था। मुबंई फिल्मी दुनिया में भी हेडली-राणा की पहुच थी। महेश भटट के बेटे तक हेडली का गाइड था। इसके बाद भी भारतीय सुरक्षा व गुप्तचर एजेन्सियों की भनक तक नहीं लगी थी। मुबंई हमले के बाद यह बात उठी थी कि बिना स्थानीय होमवर्क के इतना बड़ा आतंकवादी हमला हो ही नहीं सकता है। स्थानीय संपर्कों को खंगालने तक का काम नहीं हुआ। अगर मुबंई हमले के साथ ही स्थानीय संपर्को पर गुप्तचर एजेन्सियां काम करती तो शायद हेडली और राणा के नाम उजागर हो सकते थे। ऐसी स्थिति में हम हेडली और राणा को सौंपने पर हमारी नसीहतें कुछ और होती।
मान लीजिए कि अमेरिका हेडली ही नहीं राणा को भी भारत सौंप दे। इसके अलावा हेडली और राणा पर भारत में ही मुकदमा चलाने व सजा देने के लिए छोड़ दे। क्या हम हेडली और राणा को सजा दिला सकेंगें? क्या हमारी कानूनी और अदालती प्रक्रिया इतनी मजबूत व कड़ी है जिस आधार पर हेडली और राणा को कड़ी-सबककारी सजा दिलाने के लिए सफल होगी? अगर फांसी की सजा हो भी गयी तो क्या राजनीतिक नेतृत्व फांसी की सजा पर मुहर लगा सकता है। कदापि नहीं। एक तो हमारे देश में एक भी ऐसा कानून नहीं है जिसे आतंकवादियो को कड़ी और सबककारी सजा की धेरेबंदी में ला सकें। टाडा-पोटा कानून था जिसे कथित धर्मनिरपेक्षता के नाम पर शहीद कर दिया गया। प्रत्यारोपित यह किया गया कि टाडा-पोटा कानून से एक वर्ग विशेष का प्रतांडना होती है। वर्ग विशेष आधारित हमारी राजनीतिक व्यवस्था है। इसका उदाहरण संसद और लालकिला कांड है। लालकिला और संसद आतंकवादी हमले के आरोपियो को जेल में रखकर चिकन बिरयानी खिलाया जा रहा है। कसाब को एसोआराम के सभी अवसर दिये जा रहे हैं। फांसी की सजा पर राजनीतिक नेतृत्व उदासीन है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुना चुकी है। राष्ट्रपति फांसी की सजा पर मुहर नहीं लगा रहे हैं। इसलिए कि राजनीतिक नेतृत्व फांसी की सजा देने पर मुस्लिम वोट बिदकने के डर से ग्रसित है। क्या हमारा राजनीतिक नेतृत्व हेडली और राणा पर भी संसद और लालकिला हमले के आतंकवादियों जैसी राजनीतिक उदासीनता नहीं दिखायेगी?
चाकचैबंद और गंभीर अमेरिकी काूननों के तहत ही हेडली-राणा की सजा संभव है। अमेरिकी गुप्तचर एजेन्सियां सही रास्ते पर चल रहीं है। हेडली-राणा की सारी आतंकवादी प्रक्रिया का सबूत जुटा रही हैं। सबूत को अदालत में प्रस्तुत करना उनकी एक गंभीर चुनौती हो सकती है। प्रत्यर्पण के खतरे कम नहीं है। अगर प्रत्यर्पण के बाद भारतीय गुप्तचर एजेन्सियां कुछ इत्तर और सबूत विहीन पिटारा बना ले तो फिर अमेरिकी सुरक्षा एजेन्सियां को अपने अदालतों से हेटली-राणा को सजा दिलाने में परेशानी होगी। भारतीय सुरक्षा और गुप्तचर एजेन्सियों की वीरता और चाकचैबंद कैसी है , यह बताने की जरूरत नहीं हैं। अमेरिका प्रत्यर्पण पर खतरा यही देख रहा है। इसीलिए वह प्रत्यर्पण से इनकार कर रहा है। भारन में जो चिंता पसरी हुई है वह जरूरी नहीं हैं। भारत को यह देखना चाहिए कि अमेरिकी अदालत से राणा-हेडली को सकककारी सजा मिले। इसके अलावा अमेरिकी गुप्तचर एजेन्सियों से मिली जानकारी के अनुसार भारतीय गुप्तचर व सुरक्षा एजेसिंयों को स्थानीय सूत्रधारों को दबोचने में भूमिका निभानी चाहिए।
मोबाइल- 09968997060
Friday, January 29, 2010
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