Tuesday, July 10, 2018

       
                        राष्ट्र-चिंतन
 
       तालिबानी संस्कृति की रही है सहचर / पाकिस्तानी डे का करती थी आयोजन
आसिया अंद्राबी की पाकिस्तानी परस्ती पर प्रहार
               
                   विष्णुगुप्त

 
आसियां अंद्राबी की गिरफ्तारी पर अलगाववादी, विखंडनकारी और पाकिस्तान परस्त बिलबिलाये पडे हैं, उल्टे-पुलटे आरोप जड रहे हैं, भारत सरकार को खलनायक बता रहे हैं, आसिया अंद्राबी को निर्दोष और अपने आप को पीडि़त भी बता रहे हैं, धमकियां दे रहे हैं, कि इसके खिलाफ दुष्परिणाम भयानक होंगे? उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी परस्ती और आतंकवाद का संरक्षण-समर्थन देने के आरोप में तालिबानी संगठन दुख्तरान ए मिल्लत की प्रमुख आसियां अद्राबी को एनआईए ने गिरफ्तार किया है। दुष्परिणाम भयानक क्या होंगे? अलगाववादी, विखंडनकारी और पाकिस्तान परस्त आतंकवादी आतंकवाद का कौन सा अवसर छोड़ते हैं, वे तो आतंकवाद व हिंसा का हर अवसर को लपकने के लिए तैयार होते हैं। उनके आरोप और उनकी चेतावनियां-धमकियां कोई ज्यादा असरकारी होंगी नहीं और न ही भारत सरकार अपना रूख बदलने वाली है, और न ही भारतीय सेना तथा अन्य भारतीय सुरक्षा एजेंसियां अलगाववादियों, विखंडनकारियों और पाकिस्तान परस्तों को कोई रियायत देने के लिए तैयार होंगी।मान-मनव्वल का समय समय समाप्त हो गया है, मान-मनव्वल के समय में अलगाववादियों, विखंडकारियों और पाकिस्तान परस्तों की हर मांग पर सहानुभूति पूर्वक विचार होता था, उनकी हर हिंसा को नजरअंदाज कर दिया जाता था। आखिर क्यों? इसलिए कि इन्हंें शंाति और वार्ता का अवसर दिया जाये। इसलिए सैकड़ों पत्थरबाजों को माफी दी गयी, रमजान के अवसर पर एक तरफा युद्ध विराम किया गया। पत्थरबाजों की माफी और रमजान के अवसर पर एक तरफा युद्ध विराम का दुष्परिणाम क्या निकला, यह कौन नहीं जानता है, आतंकवादी हिंसा बढी, पाकिस्तान की तरफ से फायरिंग बढी। विखंडकारी और पाकिस्तान परस्त यह खुशफहमी पाल रखे थे कि अब भारत सरकार तो कुछ करने ही वाली नहीं है।जब नाउम्मीदी उत्पन्न होती है तब सैनिक-पुलिस कार्यवाही का विकल्प बचता है, भारत सरकार इसी विकल्प का प्रयोग कर रही है। अब आतंकवादी समर्थक राजनीति कश्मीर में नहीं चल सकती है।
       जब-जब लोकतांत्रिक शासन कश्मीर के अंदर अस्तित्व में होता है-तब-तब आतंकवाद और हिंसा बढ जाती है, राष्ट्र विराधी अराजक हो जाते हैं, उनकी अराजकता शांति को भंग करती है, पुलिस और सेना पर हिंसक बन कर टूटती है। लोकतांत्रिक शासन में नरम रूख अख्यिार किया जाता है, सुधरने का अवसर दिया जाता है, इंतजार भी किया जाता है, समस्या के समाधन की पिच भी बनायी जाती है। पर कश्मीर का इतिहास यह कहता है कि जब-जब लोकतांत्रिक शासन ने कश्मीर समस्या के प्रति गंभीरता दिखायी है, समाधान के विन्दु तलाशे हैं, तब-तब पाकिस्तान की पैंतरेबाजी सामने आयी, पाकिस्तान की हिंसक कारस्तानी सामने आयी, पाकिस्तान ने अपने मोहरे संगठनों को हिंसक रूप से सक्रिय कर दिया, हिंसा और आतंकवाद की बर्बर सक्रियता दिखायी। भाजपा ने भी पीडीपी के साथ मिलकर लोकतांत्रित सरकार की स्थापना की थी। पीडीपी की करतूत और पीडीपी की हिंसक व विखंडन प्रक्रिया के साथ दोस्ती जगजाहिर थी , परन्तु भाजपा यह समझती भी थी कि पीडीपी और विखंडनकारियों की दोस्ती जल्द छूटने वाली नहीं है। फिर भी भाजपा ने पीडीपी के साथ मिल कर लोकतांत्रिक सरकार बनायी थी। भाजपा को उम्मीद थी कि अच्छी सरकार और अच्छा प्रशासन का लाभ उठाया जा सकता है, अच्छी सरकार और अच्छा प्रशासन देकर अलगाववादियों, विखंडनकारियों और पाकिस्तान परस्तों की सक्रियता तोडी जाये उनके समर्थन को तोड़ा जाये। पर पीडीपी के अघ्यक्ष महबूबा मुफ्ती की विखंडनकारी सोच टूटी नहीं। महबूबा की सोच हमेशा की तरह विखंडनकारियों के प्रति नरम रही। दरअसल पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की सोच गलत थी, वह सोचती थी कि भाजपा की मजबूरी के कारण उसकी अराजकता और आतंकवादी समर्थक नीति चलती रहेगी। सेना के अधिकारियों पर मुकदमा चलने लगे, पुलिस और सेना के अधिकारियों का मनोबल तोडा जाने लगा। फलस्वरूप लोकतांत्रिक सरकार दफन हुई। मोदी पर आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तान पर कड़ा प्रहार करने का दबाव था।
         आसिंया अंद्राबी जैसे हिंसक और विखंडनकारी और पाकिस्तान परस्त आतंकवादियों को तभी समझ में आ जाना चाहिए था जब भाजपा ने पीडीपी के साथ गठबंधन तोडा था और जम्मू-कश्मीर की सरकार गिरायी थी। नरेन्द्र मोदी सरकार के सामने और कोई दूसरा चारा भी नहीं था। अगर वह आतंकवादियों पर सख्त कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं होती तो फिर उनका आधार ही समाप्त हो जाता। खुद आतंकवादी अपने करतूतों से समर्थन नेटवर्क को जमींदोज किये हैं।आतंकवादी संगठन के पाकिस्तान परस्ती एक अहम प्रश्न है,पाकिस्तान परस्ती के कारण कश्मीर के आतंकवादी संगठनों की छवि हमेशा खराब रहती है। पाकिस्तान अब पहले की तरह मजबूत नहीं है, पहले की तरह वह अतंराष्ट्रीय स्तर पर भारत विरोधी भावनाएं नहीं भडका सकता है, क्योंकि उसकी छवि एक आतंकवादी देश की है, दुनिया यह जान चुकी है, दुनिया यह मान चुकी है कि पाकिस्तान दुनिया भर में आतंकवाद का आउटसोर्सिंग करता है, कश्मीर में पाकिस्तान ही आतंकवादी हिंसा की जड में है। भारत अब मजबूती के साथ दुनिया के नियामकों के अंदर में पाकिस्तान परस्त आतंकवाद का पोल खोलते रहा है और दुनिया को आईना दिखाता रहा है कि पाकिस्तान परस्त आतंकवाद सिर्फ भारत के लिए नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरनाक है।
          आसियंा अंद्राबी के आतंकवादी कारनामें कोई छोटे नहीं है, इनके आतंकवादी कारनामे नजरअंदाज करने वाले नहीं हैं। इनके कारनामे बडे हिंसक है, इनके कारनामें बडे खतरनाक हैं, इनके कारनामे मानवता के शर्मसार करने वाले हैं, इनके कारनामे तालिबानी हैं। इनकी मानसिकता आईएस की है, इनकी मानसिकता अलकायदा की है।  इस्लाम की हिंसा भूत बन कर इनके सिर पर नाचता रहा है। कश्मीर के अंदर वह तालिबानी शासन लागू करना चाहती थी, इसके लिए वह हिंसा का सहारा लेती थी। बुर्का पहनना वह अनिवार्य करना चाहती थी, बुर्का के समर्थन में वह अभियान भी चलायी थी। वह किसी भी स्थिति में कश्मीर के अंदर कैफे संस्कृति विकसित नहीं होने देना चाहती थी, कैफे जाने वाली लड़कियों पर हमला कराने का आरोप भी उस पर लगा था। वह कहती थी कि हर स्त्री को बुर्का पहनना अनिवार्य है और इस्लाम के अनुसार स्वीकार है। बुर्का न पहनने वाली महिलाएं और लडकिया इस्लाम विरोधी हैं, वह यह भी कहती थी कि जो महिलाएं और जो लडकियां इस्लाम का आदेश न मानकर बुर्का नहीं पहनती है वे सभी महिलाएं और लडकियां सजा की लायक हैं। आसियां आद्राबी के अभियान से प्रेरित होकर कई युवकों ने बुर्का न पहलने वाली लडकियों पर हिंसा भी बरपायी थी। आसिया की इस तालिबानी करतूत की कश्मीर में बडी आलोचना भी हुई थी। उदार संस्कृति के पक्षधर लोगों के बीच आसिया आद्रांबी डर पैदा करती थी। 
           आसिया अंद्राबी पर पाकिस्तान परस्ती हमेशा हावी रहती है। वह कहती है कि उसे पाकिस्तान में मिलना है, उसका संघर्ष पाकिस्तान के लिए है। पाकिस्तान में उसे मजहबी शांति मिलेगी। वह भारत को काफिर देश कहती है। काफिर की मानसिकता क्या है? काफिर की मानसिकता बड़ा ही खतरनाक और जहरीली है। गैर मुस्लिमों को काफिर कहा गया है। इस्लाम में काफिर का नामोनिशान मिटाने का आदेश है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि वह हर साल पाकिस्तान डे मनाती है। पाकिस्तान डे पर वह न केवल पाकिस्तान की प्रशंसा करती है बल्कि भारत के खिलाफ आग उगलती है। भारत को वह हिंसक देश कहती है। 
          अब तक उसे पाकिस्तान डे मानाने की आजादी कैसे मिली? भारत सरकार की कमजोरी का लाभ उसने खूब उठाया है। भारत में रहकर पाकिस्तान परस्ती किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं है। एनआईए ने आसियां आद्राबी को गिरफ्तार कर प्रहारक संदेश दिया है। विखंडनकारी और हिंसक आतंकवादियों को इसके संदेश समझ लेना चाहिए। अब उनकी पाकिस्तान परस्ती चलने वाली नहीं है। दुनिया भी अब उनकी पाकिस्तान परस्ती पर संज्ञान लेने वाली नहीं है। दुनिया अब कश्मीर की आतंकवादी हिंसा की जड समझ चुकी है। कश्मीर में पाकिस्तान परस्त आतंकवादी संगठनों की सबसे बडी शक्ति भारत और दुनिया के मानवाधिकार संगठन रहे हैं। पर मानवाधिकार संगठन अब खूद ही संदेह के घेरे में हैं। दुनिया की जनमत मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट पर विश्वास नहीं कर रही है। मानवाधिकार संगठन यह कहते हैं कि आतंकवादियों के भी मानवाधिकार हैं पर दुनिया की जनमत अब कहती है कि आतंकवादियों द्वारा मारे गये निर्दोष लोगों और आतंकवादियों की हिंसा से प्रभावित लोगो के भी मानवाधिकार हैं। इसीलिए आसिया आद्राबी की गिरफ्तारी पर कोई बडा देश या बडा नियामक विरोध में सामने नहीं आये हैं।
सेना और पुलिस के दबाव से पाकिस्तान परस्त आतंकवादी संगठनों के हौसले पस्त हैं। कई कुख्यात आतंकवादी सरगानाए मारे गये हैं। भारत सरकार को अब किसी भी स्थिति में विखंडनकारियों को कोई अवसर नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि ये विखंडनकारी शांति और सदभाव की बात सुनते ही नहीं है। अब पाकिस्तान परस्त आतंकवाद पर अंतिम कील ठोकने की जरूरत है। इसकी शुरूआत आसिया आद्राबी की गिरफ्तारी से हो चुकी है।


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