Sunday, January 24, 2010

राष्ट्र-चिंतन


पाकिस्तानी क्रिकेटरों का मजहबी व्यापार

दोस्ती, आतंकवाद और आईपीएल-थ्री साथ-साथ नहीं चल सकते

विष्णुगुप्त

पाकिस्तानी क्रिकेटर मजहबी व्यापार पर उतर आये हैं। पाकिस्तानी खिलाड़ी शाहिद अफरीदी के वक्तव्य पर संज्ञान लीजिए। शाहिद अफरीदी का कहना है कि भारत ने हमारे पूरे ‘ कोम ‘ को बदनाम किया है। उसका यथार्थ यही है कि भारत ने इस्लाम को बदनाम किया है। जबकि पाकिस्तान के गृहमंत्री ने इसका भारत से बदला लेने की धमकी दी है। पाकिस्तान के गृहमंत्री अपने खिलाड़ियों के नहीं चुनने पर भारत से किस प्रकार बदला लेंगे, इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया है। पाकिस्तान के राजनीतिज्ञ, मीडियाकर्मी और बुद्धीजीवी भी भड़के हुए हैं। इन सबों का एक ही राय है कि भारत ने अन्याय किया है, पाकिस्तान को बदनाम किया है। यह तो रही पाकिस्तान की बात। अब देशी मीडिया और बुद्धीजीवियों की बात देखिये। भारतीय मीडिया और बुद्धीजीवियो का कहना है कि भारत सरकार के दबाव में आइ्रपीएल- थ्री में पाकिस्तानी खिलाड़ियो की विक्री रोकी गयी और इसका दुष्परिणाम भारत-पाकिस्तान संबंधों पर पड़ेगा। यह भी कहा जा रहा है कि पीपुल्स टू-पीपुल्स की धारा भी रूक जायेगी। पाकिस्तानी -भारतीय मीडिया-बुद्धीजीवियों की जुगलबंदी में भारत सरकार और भारतीय की जनता खलनायक के के रूप में खड़ी है। यहां स्वतंत्र विचारण यह है कि क्या भारत ने इस्लाम को सही में बदनाम किया है? क्या अतीत में किये गये व्यवहारों और निर्दोष भारतीयों को खूनी प्रक्रिया से दग्ध बनाने की पाकिस्तानी नीति से मुंह चुरा लिया जाना चाहिए? भारत की दोस्ती पर पाकिस्तान ने कभी भी सकारात्मक चेहरा क्यों नहीं दिखाया? क्रिकेट को राजनीति से अलग रखने पर जोर दिया जा रहा है पर यह याद भी रखना चाहिए कि जब देश है तभी क्रिकेट है? आपीएल- थ्री के संदेश पर पाकिस्तान समाज और उनके रहनुमाओं को खुद का चेहरा देखना होगा? आतंकवाद, कूटनीति और क्रिकेट साथ-साथ नहीं चल सकता हैै? मजहबी सोच और आतंकवाद से दोस्ती और खुद की बेहत्तर तकदीर नहीं बनायी जा सकती है। इसी मजहबी सोच ने दुनिया में इस्लाम के प्रति कैसी सोच और दहशत फैलायी है यह जगजाहिर ही है। आज पूरी दुनिया में मुस्लिम समाज आतंकवाद के पर्याय हो गये हैं और उन्हें अन्य धार्मिक समूहों से धृणा जैसी बुराइयां भी घायल कर रही हैं।

पीपुल्स टू पीपुल्स टाॅक के विद्वान कौन लोग हैं? क्या ये सही में भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते हैं। फैशनपरती और हिन्दुत्व विरोध की इनकी राजनीतिक-कूटनीतिक प्रक्रिया क्या देश के हितों को नुकसान नहीं पहुंचाती है? याद कीजिए पीपुल्स टू पीपुल्स की धारा को । 9/11 की घटना के पूर्व पीपुल्स टू पीपुल्स के योद्धा कुलदीप नैयर बाधा बाॅर्डर पर शांति की मोमबती जलाने जाते थे लेकिन पाकिस्तान की तरफ से शांति की धारा नहीं बहती थी और न ही मोमबती जलाने के लिए बाधा बाॅर्डर पर पाकिस्तानी बुद्धीजीवी और मीडिया के लोग आते थे। कारगिल घुसपैठ हो या फिर इंडियन एयर लाइन्स का विमान अपहरण कांड, किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी और बुद्धीजीवियों ने अपनी जबान नहीं खोली थी। उस दौरान पाकिस्तान मीडिया और बुद्धीजीवियो का हीरो तो तालिबान और कश्मीरी आतंकवादी थे। इन्हें लगता था कि तालिबान भारत को तहस-नहस करने और भारत में इस्लाम का झंडा फहराने में पाकिस्तान कामयाब हो जायेगा। इनकी नीयत और जबान 9/11 की घटना ने बदली। अफगानिस्तान में तालिबान के पतन के बाद इनकी नींद टूटी और आतंकवाद व अमेरिका इनके लिए दुश्मन दिखने लगा। फिर शुरू हुई पाकिस्तान के बुद्धीजीवियों और मीडिया की शख्सियों का भारत में पीपुल्स टू पीपुल्स की कूटनीति और राजनीति। यह भी बात उठी है कि इस समय पाकिस्तान खुद आतंकवाद से घिरा हुआ है और उसके अस्तित्व के लिए खतरनाक पहलुू है। इसलिए भारत को पाकिस्तन की मदद करनी चाहिए। लेकिन पाकिस्तान अपनी आतंकवादी नीति और आतंकवादियों को कानूनी संरक्षण देने की प्रक्रिया क्यों नहीं बंद कर रहा है? इस प्रश्न का जवाब पाकिस्तानी पक्ष के खैवनहार भारतीय बुद्धीजीवियों को क्यों नहीं बतलाना चाहिए?

भारत की जनता ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों, गायकों, कलाकारों और बुद्धीजीवियों को सर-आंखों पर बैठाया है। दर्जनों पाकिस्तानी गायक मुबंई फिल्म बाजार मंें गुलजार हैं। पाकिस्तान के कई कलाकारो की पहचान तो इसी भारतीय जनता के समर्थन से बनी है। भारतीय टेलीविजन शो में पाकिस्तानी गायकों और हंसोडों को तरजीह और मौका देने में भारतीय जनता ने कभी भी कंजूसी नहीं बरती। पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता आस्मा जहांगीर सहित अन्य सभी बुद्धीजीवियों को भारत में न केवल सम्मान मिला है बल्कि समर्थन भी मिला है। क्रिकेट में भी भारत ने काफी नरमी बरती है। कश्मीर में पिछले तीन दशकों से जारी पाकिस्तानी आतंकवाद के बाद भी भारत ने पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेला। मुबंई हमले के बाद भारत ने जरूर अपनी क्रिंकेट नीति की समीक्षा की और पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैचो के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद भी पाकिस्तानी खिलाड़ियों को भारत आते रहे और भारतीय जनता का सम्मान पाते रहे। वसीम अकरम इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। वसीम अकरम शाहरूख खान की कोलकात्ता टीम के गेंदबाजी कोच हैं। उनकी नियुक्ति का कही्र भी विरोध नही हुआ। अकरम की क्र्रिकेट से जुड़ी हुई बयानों और सुझावों की हमेशा से सकरात्मक प्रतिक्रिया होती है।

मजहब का सहारा लेना कोई नयी बात नहीं है। शाहिद अफरीदी का यह कहना कि भारत ने पूरे इस्लाम को बदनाम किया है, यह उसका मजहबी सोच का ही परिणाम है। मजहब के आधार पर क्या कोई भेदभाव हुआ है? क्या आपीएल-थ्री में उन सभी की खरीददारी इसलिए नही हुई कि वे सभी मुसलमान है? अगर यह आधार होता तो क्या वसीम अकरम को आपीएल की कोलकात्ता टीम का गेंदबाजी कोच बनाया जाता? भारत सरकार ने पहले ही यह बता दिया है कि उनकी कोई भूमिका आईपीएल-थ्री की खरीददारी में नहीं रही है। अब यहां सवाल उठता है कि अफरीदी और अन्य खिलाड़ियों ने इस्लाम को बदनाम करने जैसे आरोप क्यों लगाये? इसके निहितार्थ क्या है? पाकिस्तान या अन्य सभी मुस्लिम देशों में मजहब का सहारा लेना आम बात है। मजहब की विसंगतियां उनके सिर पर चढ़कर बोलती है। याद कीजिए जब यूनिस खान के नेतृत्व में पाकिस्तान की टीम भारत आयी थी। उस समय यूनिस खान ने कहा था कि भारत के मुसलमान पाकिस्तान का साथ देंगें। इसलिए कि हम मुसलमान हैं और हमारा मुकाबला हिन्दुओं से है। उस समय भारतीय टीम में जहीर खान, इरफान पठान सहित तीन मुस्लिम थे। सीधेतौर पर अफरीदी के इस मजहब के मोहरे का अर्थ भारतीय मुसलमानों की मजहबी भावनाएं अपने पक्ष में करने की है। ताकि भारत सरकार इसका परिणाम भुगते और भविष्य में ऐसी उपेक्षाओं से तोबा करें। इस्लाम के नाम पर पूरी दुनिया किस तरह की खूनी प्रक्रिया झेल रही है? यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। भारत की जनता ने इस्लाम के नाम पर होने वाली अंतहीन खूनी प्रक्रिया झेली है। इसलिए अफरीदी द्वारा इस्लाम का सहारा लेने से कोई लाभ होगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। अफरीदी पाकिस्तान की मजहबी जनता में जहर घोल जरूर दिया है। पाकिस्तानी समाज खुद मजहबी आग में जल रही है। इसलिए ऐसे विचारों से शाहिद अफरीदी पाकिस्तानी समाज का भी भला नहीं करेगें।

पाकिस्तान हमारा कौन सा अच्छा दोस्त है? पाकिस्तान के हिमायती भारतीय बुद्धीजीवियों को यह बताना चाहिए? पिछले तीन दशक से हम पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की कीमत चुका रहे हैं। मुंबई हमले के आतंकवादियो को उसने आज तक सजा नहीं दिया है और न ही उसने भारत की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है। कश्मीर में पहले जैसा ही घुसपैठ और आतंकवाद की प्रक्रिया चल रही हैं। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान के साथ दोस्ती का क्या मतलब रह जाता है? पाकिस्तान के गृहमंत्री का यह कहना भी आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के नहीं चुनने पर भारत को सबक सिखाया जायेगा, हस्यास्पद ही है। पाकिस्तान को पहले अपने घर की चिंता करनी चाहिए। पाकिस्तान को अब समझ में आ ही जाना चाहिए कि आतंकवाद, दोस्ती और क्रिकेट एक साथ नहीं चल सकती है। अब तक पाकिस्तान ने भारत की सत्ता का उदार रूख का फायदा उठाया है। आईपीएल-थ्री विवाद से पाकिस्तान को सबक लेना चाहिए। पाकिस्तानी खिलाड़ियो, कलाकारों, बुद्धीजीवियों को सोचना होगा कि आखिर भारत कब तक अपनी जनता के जीवन की कीमत पर पाकिस्तान के साथ दोस्ती की नीति पर चलेगा?



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