Sunday, January 17, 2010

कश्मीर की स्वायत्तता या फिर भारत विखंडन की नींव

राष्ट्र-चिंतन


कश्मीर की स्वायत्तता या फिर भारत विखंडन की नींव

विष्णुगुप्त

कश्मीर समस्या की बात जब होती है तब लद्दाख और जम्मू की आबादी के जनमत को क्यों नहीं शामिल किया जाता है? बोड़ो लैंड, नागालैंड, ग्रेटर मिजोरम, झारखंडमें कोल्हान जैसे आंदोलन चल रहे हैं जिन्हें भारतीय राष्ट्रव्यवस्था से इत्तर देश चाहिए। राष्ट्र में महाराष्ट्र की चिंतानी राजनीति की आग भी धधक रही है। ऐसे मे कश्मीर की स्वायत्तता क्या भारत विखंडन की प्रक्रिया नहीं चलायेगी? इस खतरे पर राजनीतिक भूचाल की जरूरत थी। लगातार जीतों से कांग्रेस अंहकारी हो गयी है। इसीलिए राष्ट्र की अस्मिता की चिंता उसकी है ही नहीं।
                           ‘कश्मीर समस्या‘ जवाहर लाल नेहरू की व्यक्तिगत पाप की गठरी है। ‘लैडी लार्ड मांउटबैटन‘ की प्यार में पागल जवाहर लाल नेहरू लार्ड माउंडबैटन की हर बात-हर इच्छा को राष्ट्र की अस्मिता व सुरक्षा ही नहीं बल्कि एकता व अखंडता से उपर समझते थे। इसका विवादहीन उदाहरण कश्मीर की समस्या है। सरदार पटेल का हाथ कौन बांधा था ? जब ‘कश्मीर‘ को हड़पने के लिए कबायलियों की वेश में पाकिस्तानी सेना कश्मीर में धुसी थी तब सरदार पटेल तत्काल भारतीय सेना कश्मीर की घाटियों में उतारना चाहते थे। लेकिन नेहरू-लार्ड माउंटबैटन की जोड़ी ने अड़गा डाली। पाकिस्तानी सेना श्रीनगर के पास तक पहुच गयी तब नेहरू की नींद टूटी और सरदार पटेल की बात मानी गयी। भारतीय सेना श्रीनगर पहुंच कर पाकिस्तानी सेना को श्रीनगर के पास से खदेड़ा। भारतीय सेना और सरदार पटेल की इच्छा पूरे कश्मीर से पाकिस्तानी सैनिकों की खदेड़ने की थी लेकिन लार्ड माउंटबैटन की सलाह पर जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल की इच्छा और भारतीय सैनिकों के हाथों में बैडिंया पहना दी। जिसका परिणाम यह निकला कि गुलाम कश्मीर के रूप में पाकिस्तान आधा कश्मीर को हड़पने मे कामयाब रहा। लार्ड माउंटबैटन की सलाह पर नेहरू कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गये। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जनमत संग्रह की सलाह दी थी जिसे पाकिस्तान ने ठुकरा दिया। उस समय कश्मीर की आबादी भारतीय पक्ष की इच्छाधारी थी और राजा हरि सिंह ने अपने कश्मीर रियासत को दबावविहीन भारत मे विलय किया था।
                  कश्मीर पर नेहरू की यह नीति राष्ट्र की अस्मिता पर कैसी छूरी चलायी है, यह भी जगजाहिर है। एक देश दो संविधान और दो व्यवस्था की नींव डाली गयी थी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान ने नेहरू की इस प्रपंच व राष्ट्रीय अस्मिता को तार-तार करने वाली नीति को जमींदोज किया था। शेख अब्दुला ने भारतीय संविधान में विश्वसा व्यक्त किया। तब से आज तक कश्मीर का शासन व्यवस्था भारतीय संविधान और कानून से चलता आया है। पाकिस्तान ने यह समझ लिया कि युद्ध या मजहबी आक्रोश भी भड़का कर कश्मीर को हड़पना आसान नहीं है। इसलिए उसने प्रपंच और आतंकवाद की राजनीति कश्मीर में परोसी। कश्मीरी पंडितों को जबरन धाटी से पलायन करने या फिर इस्लाम स्वीकार करने का रास्ता दिया गया। दोनों विकल्पों में से किसी का भी चयन नहीं करने पर गोली खाने का तीसरा विकल्प भी मिला। परिणाम यह निकला कि ‘कश्मीरी पंडित‘ घाटी छोड़ने में ही अपने आप को सुरक्षित समझे। भारतीय सत्ता व्यवस्था की उदासीनता और कमजोर नीति का लाभ पाकिस्तान ने जमकर उठाया। पूरे कश्मीर मे उसने भारत विरोधी मजहबी मानसिकता फैलायी। मजहबी राजनीतिक विचारधाराएं स्थापित हुई। मजहबी मानसिकता और राजनीतिक विचारधाराओ को पाकिस्तान कठपुतली की तरह नचाती है। कश्मीर में हमारी सेना किस प्रकार की चुनौतियां झेल रहीं हैं, यह सर्वविदित है।
                                    सत्ता व्यवस्था इतिहास से सबक लेती हैं और अपनी गलतियां-भूल सुधार कर आगे बढ़ती हैं। ऐसी सत्ता और व्यवस्थाएं ही प्रेरणा से ओत-पोत इतिहास बनाती हैं। क्या कांग्रेस ने इतिहास से कोई सबक लिया है? कांग्रेस ने अपने पूर्वज जवाहर लाल नेहरू की ना समझ और राष्ट्र को विखंडन की ओर ले जाने वाली नीतियों से कुछ भी सीखने के लिए राजी नहीं है। जिस प्रकार से जवाहर लाल नेहरू ने लार्ड माउंटबैटन की अनावश्यक और राष्ट्र अस्मिता के नुकसानकारक सलाह पर कश्मीर को पाकिस्तानी प्रपंच में डाला उसी तरह से कांग्रेस की वर्तमान सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी ने कश्मीर में स्वायत्तता का राष्ट्रविरोधी खेल-खेल रहे हैं। इस खेल का सीधा परिणाम देश की संधीय व्यवस्था पर पड़ेगा। इतना ही नहीं बल्कि भारत विखंडन की नींव भी पडेंगी। पूर्व न्यायाधीश सगीर अहमद वाली एक कमेटी ने कश्मीर को स्वायत्ता देने की सिफारिश की है। सगीर अहमद की स्वयत्तता वाली सिफारिश सीधेतौर पर असंवैधानिक है और मनगढंत के साथ ही साथ व्यक्तिगत सोच से निकली-स्थापित हुई सिफारिश है। केन्द्र-राज्य संबंधों पर आधारित पांच कमेटियां मनमोहन सिंह ने बनायी थी। पांचवी कमटी के अध्यक्ष थे पूर्व न्यायाधीश सगीर अहमद। सगीर अहमद वाली कमेटी में भाजपा, कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के सदस्य भी शामिल थे। इन सभी राजनीतिक दलों के विचार में भिन्नताएं और चिंताएं थीं। इस आधार पर सगीर अहमद वाली कमेटी कोई सिफारिश देने का अधिकार ही नहीं रखती थी। कमेटी में शामिल भारतीय जनता पार्टी के नेता अरूण जेटली शामिल थे। अरूण जेटली का आरोप है कि बिना बैठक, बिना विचार लिये यह सिफारिश हुई है। यानी पूर्व न्यायाधीश सगीर अहमद ने स्वयंभू सिफारिश की है। क्या कश्मीर पर सगीर अहमद भी मजहबी सोच और पाकिस्तानी प्रंपच का शिकार हो गये? इसकी पड़ताल और विश्लेषण होनी ही चाहिए।
                  स्वायत्तता की सिफारिश के खतरे क्या है? सिफारिश को अगर मान लिया गया तो एक देश में दो व्यवस्थाएं कायम हो जायेंगी। कश्मीर को स्वायत्ता दे देने पर राष्ट्र को सिफ विदेश-सुरक्षा और करेंसी पर ही एकाधिकार रहेगा। पिछले 60 सालों से जम्मू-कश्मीर की सत्ता भारतीय संविधान और कानून के तहत संचालित हो रहा है। 60 सालों में जम्मू-कश्मीरी में जितने भी केन्द्रीय कानून लागू हुए हैं उन सभी का स्वतः विलोप हो जायेगा। यह कश्मीर को आजाद करने का एक पड़ाव होगा। इसका परिणाम सिर्फ कश्मीर तक ही नहीं रहेगा? देश की संधीय व्यवस्था लहुलूहान होगी। कश्मीर में ही नहीं बल्कि देश के अन्य भागों में भी विभाजनकारी शक्तियां आंदोलित हैं। जैसे पूवोत्तर में बोड़ो लैंड, नागालैंड, ग्रेटर मिजोरम, झारखंडमें कोल्हान जैसे आंदोलन चल रहे हैं जिन्हें भारतीय राष्ट्रव्यवस्था से इत्तर देश चाहिए। राष्ट्र में महाराष्ट्र की चिंतानी राजनीति की आग भी धधक रही है। उपेक्षा और अन्याय के नाम पर देश के अन्य राज्य भी अपने लिए स्वायत्तता जैसी शक्तियां क्यो नहीं पाना चाहेंगे? ऐसी स्थिति में मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी क्या राष्ट्र को विखंडन की ओर नहीं ले जायेंगे? इस खतरे की नींव पर राजनीतिक भूचाल की जरूरत थी।
                            कश्मीर समस्या पर विचार करते हुए सिर्फ मजहबी बातें ही क्यो सुनी जाती है? पाकिस्तान परस्त मुट्ठी भर अतिवादी राजनीतिक संगठनो के सामने आखिर हमारी केन्द्रीय सत्ता कबतक झुकती रहेगी? सिर्फ घाटी में रहने वाली आबादी का नहीं है कश्मीर है। कश्मीर की बाज जब होती है तब हम लद्दाख और जम्मू की आबादी का जनमत क्यों नहीं शामिल किया जाता है। लद्दाख अपने लिए कश्मीर से अलग प्रदेश मांगता है। लद्दाख की बौद्ध आबादी कश्मीर की मजहबी राजनीति मे पिस रही है। बौद्ध आबादी को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए जुझ रही है। मजहबी धर्मातंरण से वे दग्ध हैं। जम्मू के लोग कदापि धाटी यानी कश्मीर की आबादी की सोच से सामनता नहीं रखते हैं। ऐसी स्थिति में कश्मीर पर कोई भी फैसला लेने के समय लद्दाख और जम्मू की आबादी का विचार क्यों प्रमुख नहीं होना चाहिए? क्या शांति से रहने वाले लद्दाख की बौद्ध आबादी और जम्मू की हिन्दू आबादी का जनमत कोई मायने नहीं रखता? क्या सत्ता सिर्फ आतंकवाद की ही बात सुनेगी वह भी पाकिस्तान परत आतंकवादी संगठनों की। फिर पाकिस्तान ने जिन भूभागों पर कब्जा कर रखा है वहां की आबादी के विचार क्यों नहीं सुना जाना चाहिए। गुलाम कश्मीर में पाकिस्तान के प्रति आक्रोश पनपा है। पाकिस्तान की सैनिक व्यवस्था और आतंकवादी बंदूको की नोक पर गुलाम कश्मीर के जनमत को बंधक बना छोड़े है। गिलगित-ब्लास्तितान के लोग अपने को पाकिस्तान से अलग करना चाहते हैं? पाकिस्तान क्या गुलाम कश्मीर और गिलगित-ब्लास्तिान को आजाद करने के लिए तैयार हैं। इधर हाल ही में पाकिस्तान ने गिलगित-ब्लास्तिान को अपना पाचवां राज्य धोषित किया है। गिलगित-ब्लास्तिान जम्मू-कश्मीर का हिस्सा रहा है। इस पर भारतीय चुप्पी खतरनका है।
                स्वायत्तता के इस सिफारिश का सीधा लाभ पाकिस्तान और आतंकवादी उठायेंगे। इन्हें भारत विरोधी भावनाएं भड़काने में मदद मिलेगी? कश्मीर को हड़पने की उनकी नीति और आगे बढ़ेगी। भारत पर वैश्विक दबाव और बढ़ेगा। यह सब हमारी सत्ता की उदासीन और राष्ट्र अस्मिता के विरूद्ध वाली नीति के कारण होगा। कांग्रेस लगातार जीत से अहंकारी हो गयी है। इसी कारण भारत विखंडन की नींव डाल रही है। यह खेल राष्ट्र की एकता के लिए तत्काल बंद होनी चाहिए। कश्मीर में पाकिस्तान परस्त राजनीति का दमन जरूरी है।

मोबाइल - 09968997060

1 comment:

  1. jai hind , sare kashmiri aatankwadi ko pak border par goli mar do....

    ReplyDelete