राष्ट्र-चिंतन
हिन्दू आतंकवाद की प्रत्यारोपित कहानी
विष्णुगुप्त
हिन्दू धर्म सदियों से धार्मिक हमले झेलते और उत्पीड़ित होते आये हैं। इसके बाद भी पर दूसरी धार्मिक आबादी को शरण देने और विकास-विस्तार के साथ ही साथ फलने-फुलने की आजादी दी है। मुस्लिम आतंकवाद की भयानक त्रासदी और परिणाम बहुसंख्यक समाज ने ही झेला है फिर भी बदले की भावना नहीं पाली।हिन्दू धर्म को राजनीतिक निशाना इसीलिए बनाया जाता है कि ये प्रतिक्रिया वादी नहीं हैं। मुस्लिम समाज की तरह हिन्दू समाज भी प्रकिक्र्रियावादी होते तो गृहमंत्री पी चिदम्बरम की चीभ नहीं चलती। उनकी जीभ जनादेश की राजनीति की धेरेबंदी में मिमियाने लगती।
केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने हाल ही में कहा है कि देश में ‘ हिन्दू आतंकवाद‘ की आग भी सुलगायी जा रही है जो राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक है। आतंकवाद या कोई भी हिंसा मानवजाति के लिए खतरनाक मानी जायेगी। राष्ट्रीय गृहमंत्री ने जिस ‘हिन्दू आतंकवाद‘ का खतरा देख रहे हैं उसका सही अर्थों में कोई अस्तित्व है भी की नहीं? अभी तक हिन्दू आतंकवाद के रूप मात्र दो घटनाएं सामने आयी हैं जिसकी सत्यता पर प्रश्नचिन्ह पहले से ही लगे है और इसमें राजनीतिक दबाव और जनादेश की चिंता से निकली हुई और प्रत्यारोपित हुई घटनाएं ही परिलक्षित हुई है। पहली धटना में साध्वी प्रज्ञा और दूसरी घटना में गोवा में पाटिल नामक की शख्सियत पर ‘हिन्दू आतंकवाद‘ फैलाने के आरोप हैं। गोवा के बम विस्फोट में पाटिल पर अभी न्यायिक प्रक्रिया तेज नहीं हुई है और उसके संलिप्तता पर वर्तमान में कुछ भी कहना मुश्किल हैं। पर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का प्रसंग की सच्चाई अब सामने आ चुकी है। अभी तक कोई ठोस सबूत मिला भी नहीं है। न्यायालय भी सबूतों पर उंगली उठा चुकी है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की जमानत इसलिए ठहरी हुई है कि उस पर महाराष्ट्र अपराध नियंत्रण कानून लगा हुआ है जो गैर जमानती है और लम्बे समय तक जमानत को प्रतिबंधित करता है। इन दो कथित और मनगढंत संलिप्तता को छोड़कर ऐसी कोई अन्य धटना सामने नहीं आयी है। इसके उपरांत भी राष्ट्रीय गृहमंत्री का ‘हिन्दू आतंकवाद‘ की आग वाली बयान देना खतरनाक है ही इसके अलावा हिन्दू समाज की शांतिप्रियता-संप्रभुता पर गहरी चोट है। जब हमारे गृहमंत्री ही हिन्दू आतंकवाद की बात प्रचारित करेंगे तब पाकिस्तान अन्य विरोधी देश क्या कहेंगे? पाकिस्तान को इसीलिए कहने का मौका मिलता है कि आतंकवाद हम नहीं बल्कि भारत फैला रहा हैं और हिन्दू भी आतंकवादी हैं।
हमारे राष्ट्रीय गृहमंत्री को शायद महाराष्ट्र आतंकवादी विरोधी दस्ते की कारस्तानी याद नहीं है? प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद महाराष्ट्र आतंकवादी विरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे दिन-प्रतिदिन नये-नये और आश्चर्यचकित करने वाले तथ्य का रहस्योघाटन कर रहे थे। दस्ते के अनुसार मालेगांव के बम विस्फोट की घटना ही नहीं बल्कि हरियाण में पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में हुए बम विस्फोट और जयपुर में हुए बम विस्फोटों में प्रज्ञा ठाकुर की संलिप्तता थी। प्रज्ञा ठाकुर के सम्पर्को और उनके गिरोह मे शामिल लोगों के बारे में भी थोक के भाव में खुलासा हो रहे थे। मीडिया के लिए हेमंत करकरे और उनकी टीम खबर की खान थी। महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते ने मीडिया में जिन तथ्यों और साजिशो का खुलासा की थी आज उसकी सच्चायी कहां गुम हो गयी? पी चिदम्बरम की सरकार उन सच्चाइयों पर चुप क्यों है? न्यायालय में मीडिया में उछाले गये सबूतों और अन्य तथ्यों के साथ साजिश में शामिल अन्य लोगों की भूमिका क्यों नहीं उपस्थित की गयी? महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ता कितना चुस्त-दुरूस्त था उसका उदाहरण तो मुबंई आतंकवादी हमले के दौरान मिल गया। महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे आतंकवादियों का सामना किये बिना ही आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गये। जिस समय मुबंई में आंतकवादी निर्दोष लोगों का निशाना बना रहे थे उस समय हेमंत करकरे आतंकवादियों द्वारा हुए हमले की जगहो पर ऐसे मुआयना कर रहे थे जैसे कोई फिल्मों में शुटिंग की भूमिका निभा रहें हों। बिना वीरता दिखाये ही वे मारे गये। इसके वाबजूद भी हेमंत करकरे को वीरता का ‘अशोक चक्र ‘ क्यों दिया गया? बिना लड़े हुए पुलिस अधिकारी को अशोक चक्र मिलना आजाद भारत की पहली घटना थी। क्या प्रज्ञा ठाकुर को मालेगांव बम विस्फोट कांड में फंसा कर हिन्दुओं को अपमानित करने का पुरस्कार हेमंत करकरे को ‘अशोक चक्र‘ के रूप में मिला था।
सच भी यही था कि हेमंत करकरे केन्द्र व महाराष्ट्र की यूपीए सरकार का मोहरा था। एक पर एक आतंकवादी घटनाओं से यूपीए को दुबारा सत्ता में आने की संभावनाएं कम थी। भारतीय जनता पार्टी आतंकवाद के प्रसंग पर कांग्रेस की घेरेंबंदी कर रखी थी। देश के बहुसंख्यक समाज मे ‘मुस्लिम आतंकवाद‘ को लेकर जबरदस्त नाराजगी थी। नाराजगी इस बात को लेकर भी थी कि कांग्रेस और उनका कुनबा मुस्लिम आतंकवाद पर नियंत्रण को लेकर उदासीनता की नीति ओढ़ रखी है। इसके अलावा कांग्रेस की नीति मुस्लिम मानसिकता को तुष्ट करने की थी। आतंकवाद को लेकर मुस्लिम आबादी पर जिस तरह से हमले तेज हो रहे थे और राजनीतिक बाधताएं टूट रही थीं उस से मुस्लिम समुदाय कांग्रेस की ओर झुक रहा था। पिछले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर भाजपा को लाभार्थी बनने से रोकने की नीति बनी। इसी नीति से ‘हिन्दू आतंकवाद‘ का शगूफा निकला। मालेगांव विस्फोट कांड में प्रज्ञा ठाकुर की संलिप्तता प्रत्यारोपित की गयी। इसका परिणाम यह निकला कि मुस्लिम समुदाय पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में खड़ा हो गया। हिन्दू समुदाय में भी भाजपा और हिन्दूवादी संगठनों के खिलाफ बदनाम करने की राजनीतिक प्रक्रिया चलायी गयी। यह स्थापित करने में कांग्रेस को सफलता मिली कि देश में ‘हिन्दू आतंकवाद‘ का फैलाव तेजी से हो रहा है। जाहिरतौर पर इससे हिन्दुओ की शांतिप्रियता और संप्रभुता की खिल्ली उड़ायी गयी। इसी कारण पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का आतंकवाद का मुद्दा नहीं चला और कांग्रेस अप्रत्याशित ढंग से सत्ता में आ गयी।
सबसे ज्यादा चिंतित और राष्ट्रहित को तिलांजलि देने जैसी प्रक्रिया पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में प्रज्ञा ठाकुर द्वारा किये गये बम विस्फोट की झूठी और प्रत्यारोपित खबर उड़ाने की थी। इसका असर कैसा हुआ। यह जानना भी जरूरी है। पाकिस्तान को मौका मिला। पाकिस्तान ने कहना शुरू कर दिया कि ट्रेन में विस्फोट कर पाकिस्तानी नागरिकों की हत्या करने वाले हिन्दू आतंकवादियो को हमें सौंपो। तभी हम मुबंई आतंकवादी हमले में शामिल पाकिस्तानी नागरिकों पर कार्रवाई करने की बात सोचेंगे? पाकिस्तान ने दुनिया में यह स्थापित करने की पूरी कोशिश की कि ‘हिन्दू‘ भी आतंकवादी है और भारत मे हिन्दू आतंकवादियों के सफाये के लिए विश्व समुदाया को सैनिक अभियान चलाना चाहिए। आखिर पाकिस्तान को मौका तो भारत ने ही दिया। राष्ट्रीय हितों को लेकर ियूपीए सरकार कितना गंभीर है? इसका एक उदाहरण सर्वश्रेष्ठ है। भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मिश्र में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री गिलानी के साथ समर्ग वार्ता में यह मानलिया कि पाकिस्तान के अराजक-अशांत क्षेत्रो में आतंकवाद के विस्तार में भारत की भूमिका है। इस भूल के उजागर होने पर मनमोहन सिंह को न फजीहत झेलनी पड़ी बल्कि झूठ पर झूठ बोलना पड़ा।
हिन्दू समाज स्वभाव से शांति प्रिय हैं। दूसरे धर्म की संप्रभुता का आदर और सम्मान हिन्दू धर्म की विश्ेाषता रही हैं। हिन्दू धर्म सदियों से धार्मिक हमले झेलते और उत्पीड़ित होते आये हैं। इसके बाद भी दूसरी धार्मिक आबादी को शरण देने और विकास-विस्तार के साथ ही साथ फलने-फुलने की आजादी दी है। मुस्लिम आतंकवाद की भयानक त्रासदी और परिणाम बहुसंख्यक समाज ने ही झेला है फिर भी बदले की भावना नहीं पाली। कश्मीर में मुस्लिम आतंकवादियों ने पांच लाख हिन्दुओं को पलायन करने के लिए मजबूर किया। यह सब हिन्दू धर्म की शांतिप्रियता के उदाहरण हैं। हिन्दू आतंकवाद की कहानी मनगढंत और प्रत्यारोपित है। मात्र दो घटनाओं को आधार मानकर हिन्दू आतंकवाद की आग सुलगने जैसे बयान या फिर राजनीतिक प्रक्रिया को गति देना खतरनाक है। इन दोनों घटनाओ की सच्चाई भी सामने आ चुकी है। हिन्दू धर्म को राजनीतिक निशाना इसीलिए बनाया जाता है कि ये प्रतिक्रिया वादी नहीं हैं। मुस्लिम समाज की तरह हिन्दू समाज भी प्रकिक्र्रियावादी होते तो गृहमंत्री पी चिदम्बरम की चीभ नहीं चलती। उनकी जीभ वोट की राजनीति की धेरेबंदी में मिमियाने लगती।
मोबाइल - 09968997060
Sunday, January 17, 2010
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aapki baton se poori tarah se sahmat hoon , hindu aatankvaad jaise koi cheej nahi , darsal ye congres ke secularism ka natiza hai . p chitambaram kisi bhi roop mein secular nahi hai .
ReplyDeleteसादर वन्दे
ReplyDeleteसच्चाई के करीब या यूँ कहे सच.
रत्नेश त्रिपाठी
विचारणीय परंतु आंखें खोलने वाला आलेख।
ReplyDeleteशब्द पुष्टिकरण हटाना जरूरी है।
ये तो सावरकर, भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद को भी आतंकवादी कहते हैं.
ReplyDeleteकृपया शब्द पुष्टिकरण हटा दें
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