Thursday, January 28, 2010

अतिवादी-हिंसक विचारों पर फांसी का प्रहार

अतिवादी-हिंसक विचारों पर फांसी का प्रहार



विष्णुगुप्त

                         बांग्लादेश के निर्माता शेख मजीबुर्रहमान की हत्या के दोषी पांच पाकिस्तान समर्थक अतिवादी-हिंसक विचार वाले पूर्व सैन्य अधिकारियों को फांसी की सजा को दक्षिण एशिया मे अमन व शांति के लिए जरूरी और साथ ही साथ अतिवादी-हिसक विचारों पर प्रहार के तौर पर देखा जा रहा है। जिन पांच सैन्य अधिकारियों को फांसी पर लटकाया गया है उनमें मेजर मजबूल हुदा, लेॅफटीनेंट जनरल मोहीउदीन अहमद, लेफिटनेंट कर्नल सैयद फारूख रर्हमान, लेफिटनेंट कर्नल सुत्तान राशिद खान और सेनानायक एकेएम मोहीउदीन शामिल हैं। इन पांचो सैन्य अधिकारियों पर बंग बंधु ‘शेख मजीबुर्रहमान‘ की हत्या का आरोप था। बांग्लादेश की राजधानी ढाका की सेंटंल जेल में जब पांचों अभियुक्तो को आधी रात के दौरान फांसी पर लटकाया जा रहा था उस समय हजारों की संख्या में लोग जमा थे और शेख मजीबुर्रहमान अमर रहें के नारे में लगा रहे थे। यह इस बात का द्योतक है कि मजीबुर्रहमान के प्रति अभी भी बांग्लादेश की वासियों में कितना प्रेम है और उनके हत्यारों के प्रति कितना आका्रेश है। यह भी सही है कि बांग्लादेश में अतिवाद की खेती लहरा रही है। पाकिस्तान की आईएसआई और दुनिया भर के इस्लामिक आतंकवादी यहां पनाह पाये हुए हैं जिसे दफन करना एक बड़ी चुनौती है। प्रधानमंत्री शेख हसीना बेहद सकारात्मक और उदारवादी सोच की प्रतीक हैं। वे सच्चाई जानती हैं। इसलिए अतिवादी विचारों के दमन का कोई अवसर वह गंवाना नहीं चाहती है। निश्चिततौर पर कहा जा सकता है कि शेख मजीबुर्रहमान के हत्यारों को फांसी पर लटकाने से दक्षिण एशिया में इस्लामिक अतिवादी-हिंसक विचारों के प्रवाह पर प्रहार हुआ है और बांग्लादेश में आजादी के विचारों को फिर से एक नयी दिशा और सम्मान भी मिला है।
               1971 में बांग्लादेश की आजादी को पाकिस्तान आजतक नहीं पचा पाया है। पाकिस्तान की साजिशें और इस्लामिक अतिवाद की नीति ने 1975 में दुष्परिणाम दिखायी थी। पाकिस्तान समर्थक सैन्य अधिकारियों ने 1975 में बंग बंधु शेख मजीबुर्रहमान सहित उनके 18 परिवारिक सदस्यों की हत्या कर दी। शेख मजीबुर्रहमान के परिवार में उनकी दो बेटियां ही जीवीत था जो उस समय ब्रिटेन में रह रही थीं। इसके बाद बनी सरकार ने शेख मजीबुर्रहमान की बेटियों शेख हसीना और रेहना को बांग्लादेश आने से प्रतिबंधित कर दिया था। शेख मजीबुर्रहमान की बड़ी बेटी शेख हसीना छह सालों तक भारत में रही और इस दौरान अपने देश बांग्लादेश में नागरिक स्वतंत्रता की लड़ाई लडती रही। इसके विपरीत बांग्लादेश में मजीबुर्रहमान की सभी निशानियां और आजादी के सभी स्तंभों को मिटाने की भरपुर कोशिश हुई। पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई लड़ने वाले लगातार हासिये पर ढकेले गये और उन्हें जेलों में डालने की अनगिनित कोशिशें हुई। शेख मजीबुर्रहमान के हत्यारों को सत्ता का संरक्षण मिला। हत्या से जुड़ी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तथ्य तहस-नहस किये गयें। नयी पीढ़ी को आजादी की लड़ाई से जोड़ने की जगह उनमें मजहब के अतिवाद और हिंसा की खेती उगायी गयी। जिसका परिणाम यह हुआ कि बांग्लादेश पूरी तरह इस्लामिक आतंकवाद-हिंसा पर आधारित राजनीतिक खेती लहरायी।
पहली सत्ता में शेख हसीना भी कुछ नहीं कर पायी थी। सेना और न्यायालय के डर से वह अपने पिता के हत्यारों और मजहबी अतिवादियों पर कानून का सोटा नहीं चला सकी। पर दूसरी सत्ता का अधिकार मिलने के बाद से ही शेख हसीना के तेवर काफी तीखे और प्रहारक हैं। उन्होंने यह महसूस कर लिया कि अितिवादी विचारों और हिंसक गतिविधियों का दफन किये बिना सुनहरी तस्वीर नहीं बनायी जा सकती है। उन्होंने सबसे पहले आईएसआई की गतिविधियों को रोका। सबसे बड़ी बात यह थी कि पाकिस्तान समर्थक तत्वों ने शेख मजीबुर्रहमान के योगदान पर सवाल खड़े किये थे। इन तत्वों का कहना था कि शेख मजीबुर्रहमान असल में बांग्लादेश के निर्माता नहीं है। उन्होंने सबसे पहले आजादी का स्वर नहीं दिया था। यह मामला न्यायालय तक पहुंचा। बांग्लादेश की सुप्रीम न्यायालय ने पिछले साल ही फैसला सुनाया था कि बांग्लादेश का असली निर्माता शेख मजीबुर्रहमान ही हैं। यह फैसला शेख हसीना की जीत थी। इसके बाद उन्होंने अपने पिता के हत्यारों को फांसी पर लटकाने के लिए कमर कसी। शेख हसीना सरकार ने न्यायालय में पूरे तथ्य रखने में सफल हुई और न्यायपालिका ने भी उस लोमहर्षक हत्याकांड के दोषियो को सजा देकर अतिवाद और हिंसा की प्रायोजित राजनीति पर अंकुश लगाया। शेख मजीबुर्रहमान के हत्यारे पाकिस्तान की इस्लामिक व्यवस्था से प्रभावित थे और वे शेख मजीबुर्रहमान की सत्ता को इस्लाम विरोधी मानते थे।
                     विरासत वाली पीढ़ी धीरे-धीरे अवसान की ओर है। 1971 की आजादी में शामिल होने वाले लोग अब कम बचे हैं और उनमें विरासत को संरक्षण देने के लिए राजनीतिक प्रक्रिया चलाने की अब उतनी ताकत भी नही बची है। इसका दुष्परिणाम यह निकला कि बांग्लादेश में पाकिस्तान समर्थक और हिंसा-अतिवाद से लैश वैचारिक दृष्टि फैल गयी। नयी पीढ़ी में विरासत की वैचारिक सरोकार और दृष्टि है ही नहीं। बैरोजगारी और बेकारी जैसी स्थिति से ऐसे भी राष्टवाद मजबूत नहीं हो सकता है और दूसरी राजनीतिक-मजहबी प्रक्रियाएं घर जमायेगी ही। इससे इनकार नहीं किया जा सकता हैं। यह सब बांग्लादेश मे देखा जा सकता है। नयी पीढी को अतिवादी-हिंसक विचारों के प्रवाह से बचाना एक बड़ी चुनौती है। पर सुखद स्थिति यह है कि बांग्लादेश की वर्तमान सत्ता और न्यायपालिका का दृष्टिकोण सकारात्मक है। खासकर न्यायपालिका ने बांग्लादेश को पाकिस्तान या अफगानिस्तान बनने से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। न्यायपालिका ने अब तक नफरत और हिंसा का व्यापार करने वाले दर्जनों आतंकवादियों को फांसी पर लटकाने का फैसला सुनाया है और अतिवादी-आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने जैसी सक्रियता दिखायी है।
                 दक्षिण एशिया में शांति की लौ पर अतिवादी विचारों और हिंसाओं का पहरा है। बांग्लोदश ही नहीं बल्कि भारत भी ऐसे मजहबी अतिवादी से संक्रमित है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने पूरी दखिण एशिया को लहुलहुान कर छोड़ा हैं। चीन जैसे कम्युनिस्ट देश में भी मुस्लिम आतंकवाद राष्टवाद पर भारी पड़ रहा है। लिट्टे का सफाया होना जरूर शांति की उम्मीद श्रीलंका में जगाती है। लेकिन पाकिस्तान खलनायक के तौर पर दक्षिण एशिया के लिए अभी भी अभिश्राप है। पाकिस्तान से जबतक आतंकवाद की खेती लहराती रहेगी और उसके बीज का आउटसोर्सिंग होता रहेगा तब तक दक्षिण एशिया में क्या पूरी दुनिया में शांति की बात नहीं कही नहीं जा सकती है। इसीलिए अमेरिका-ब्रिटन का आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक प्रक्रिया दम तोड रही हैं। अलकायदा जैसी आतंकवादी प्रक्रिया और मजबूत हो रही है।
                  शेख मजीबुर्रहमान के हत्यारों को फांसी पर लटकाने का संदेश क्या है। संदेश अतिवादी’-हिंसक विचारों पर प्रहार है। निश्चिततौर पर शेख हसीना ने अपने पिता के हत्यारों को फांसी पर लटकवा कर अतिवादी-हिंसक विचारों के प्रवाह पर बुलडोजर चलाया है। आतंकवादी और आतंकवादी संगठनों को नसीहत मिली है। अतिवादी-हिंसक खेती करने वाले देशों के लिए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेंख हसीना एक नजीर है। खासकर भारत को भी सीख लेने की जरूरत है। आतंकवादियों और आतंकवादी संगठनों को भारत में मिल रहे समर्थन क्या आतंकवादी विचारों को और प्रवाहित नहीं करता है? भारत में आतंकवादियो को फांसी पर लटकाने की जगह जेलों में रखकर चिकन बिरयानी खिलाया जा रहा है। पर क्या भारत शेख हसीना से कुछ सीख लेने के लिए तैयार है और आतंकवादियों के खिलाफ कड़े कदम उठायेगा भारत। असली सवाल यही है। शेख हसीना को मजहबी अतिवादी विचारों को कुचलने के लिए सलाम।

मोबाइल - 09968997060

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