Sunday, January 17, 2010

आतंकवाद की तीसरी शरणस्थली

आतंकवाद की तीसरी शरणस्थली



विष्णुगुप्त



पाकिस्तान, अफगानिस्तान के बाद अब अरब देश ‘यमन‘ आतंकवाद का नया घर बन गया है। पश्चिमी मीडिया का कहना है कि अलकायदा ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में ‘नाटो‘ सैनिकों के हमले से आक्रांत होकर अरब देश ‘यमन‘ में अपनी शरण स्थली बनायी हैं। दुनिया भर में आतंकवादी हमले की साजिश यमन से ही रची जा रही है। ब्रिटेन ने साफतौर पर कहा है कि ‘यमन‘ एक विफल देश बनने की ओर बढ़ रहा है। ब्रिटेन यमन को हर साल दस करोड़ डालर की सहायता देता है और पिछले कई सालों से आतंकवाद से लड़ने के लिए यमन के सैनिकों को प्रशिक्षित भी कर रहा था। अमेरिका ने अलकायदा के हमलों के डर से यमन स्थित अपना दूतावासा बंद कर दिया है और अपने नागरिको को यमन छोड़ने का भी फरमान थमा दिया है। कुछ दिन पूर्व ही सोमालिया का आतंकवादी संगठन ‘अल सबाब‘ ने यमन में अलकायदा की मदद करने की घोषणा की थी। अभी हाल ही में अमेरिकी विमान को उड़ाने का प्रयास कर रहा नाइजिरियाई मुस्लिम युवक ‘अब्दुल मुतालब‘ की ट्रैनिंग यमन में ही हुई थी। अब विश्व समुदाय को यमन में आतंकवाद के दमन के लिए जुझना पड़ेगा। क्या अमेरिका-ब्रिटेन यमन में भी अलकायदा के खिलाफ एक और जंग छेडेंगे? इसकी पृष्ठभूमि बन ही रही है।
               अरब देशों मे यमन सर्वाधिक निर्धन देश है। निर्धनता आतंकवादी संगठनों का एक बड़ा बाजार है। बेकार-बेरोजगार युवकों को आतंकवादी गतिविधियों की मानसिकता से आसानी से जोड़ लेते हैं। अलकायदा ने यमन की गरीबी का लाभ उठा कर यमन मे अपना नेटवर्क कायम किया है। अलकायदा के बडे-बड़े सरगना यमन में ही शरण लिये हुए हैं और यमन की आबादी उनके लिए रक्षा कवच है। इसलिए कि 9/11 की धटना के बाद अलकायदा सहित अन्य सभी आतंकवादी संगठन भूमिगत आतंकवादी गतिविधयों की नीति अपना रखी है। उन्हें यह मालूम हो गया है कि उनकी ‘ओपेन सक्रियता‘ अमेरिकी हमलों से दग्ध हो सकती है। अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता के कब्जा के बाद अधिकतर तालिबानी और अलकायदा के आतंकवादी पाकिस्तान के कबिलायी क्षेत्रों मे जाकर छिप गये गये थे। फिलहाल अमेरिका-पाकिस्तान मिलकर अलकायदा और तालिबान के खिलाफ सैनिक अभियान चला रहे हैं। अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान के कबिलायी इलाकों में अलकायदा-तालिबान को जबरदस्त क्षति पहुंचायी है। अमेरिकी हमलो के डर से अलकायदा और तालिबान ने यमन को अपना नया घर चुना है।
                अरब आबादी में अलकायदा और अन्य आतंकवादी संगठनों को वैचारिक संरक्षण मिलता है। मजहब के नाम पर आतंकवादी संगठनों की हिंसक और खूनी आतंकवादी कार्रवाइयों का व्यापक समर्थन भी मिलता है। सरकारें भी आतंकवादी मानसिकता के प्रचार-प्रसार रोकने की जगह प्रोत्साहन की प्रक्रिया चलाती हैं। अभी हाल ही ईरान ने इस्लामिक संगठनों के लिए करोड़ो डालर की वित्तीय सहायता की घोषणा की है जो अमेरिका के खिलाफ विश्व भर में मुहिम चलाती है। जाहिरतौर पर ईरान द्वारा घोषित वित्तीय सहायता आतंकवादी संगठनों के पास ही जायेगा। गरीब मुस्लिम देशों की वित्तीय सहायता करने की इनकी इच्छा होती नहीं पर इस्लाम के नाम फैले चरमपंथी संगठनों की सहायता करने में अरब देश जरूर आगे होते हैं। हमास का उदाहरण देख लें। हमास फिलिस्तीन का आतंकवादी संगठन है। सउदी अरब और ईरान जैसे मुस्लिम देश हमास को आतंकवाद की पाठशाला चलाने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों डालर की सहायता देते हैं पर गरीब फिलिस्तीन की आबादी की बेहतरी इनकी नीति से बाहर है। पश्चिमी देशों की आर्थिक सहायता पर ही फिलिस्तिनियों का चुल्हा जलता है।
           यमन में अफ्रीकी देशों के मुस्लिम आतंकवादी संगठनों का नेटवर्क खतरनाक ढ़ंग से जुड़ा है। सोमालिया का आतंकवादी संगठन ‘ अल सबाब ‘ ने हाल ही में घोषणा की थी कि वह अफ्रीकी महासंघ की सीमा लांघ कर अरब में अलकायदा के साथ मिलकर जेहाद करेगा और उसका केन्द्र यमन होगा। ‘अल सबाब‘ की यह घोषणा दुनिया की शांति के लिए खतरे की घंटी थी। इसलिए कि ‘अल सबाब‘ अफ्रीका में अलकायदा से भी खतरनाक आतंकवादी संगठन है। संधर्षरत सोमालिया के बड़े भूभाग पर ‘अल सबाब‘ का कब्जा है। उसने अन्य अफ्रीकी मुस्लिम देश नाईजीरिया, युगांडा, आदि देशों में भी जेहाद के नाम पर खूनी आतंकवादी गतिविधियां चला रखा है। अफ्रीका भूभाग में निर्धनता पसरी हुई है। इस्लामिक संधर्ष का परिणाम यह निकला कि अफ्रीका में आजीविका का मुख्य आधार लूट-हत्या हो गयी। सोमालिया डाकूओं ने समुद्र में किस प्रकार भय-अपहरण का बाजार बनाया है? यह भी जगजाहिर है।
                  जिस नाइजीरियाई मुस्लिम आतंकवादी ‘अब्दुल मुतालब‘ ने अमेरिकी विमान को उड़ाने की कोशिश की थी और विस्फोटक सामग्री विमान में ले जाने मे कामयाब हुआ था उसकी आतंकवादी ट्रैनिंग ‘यमन‘ में ही हुई थी। अलकायदा के निशाने पर सिर्फ अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश नहीं है। बल्कि भारत,डेनमार्क और नार्वे जैसे देश हैं। डेनमार्क का कार्टून प्रकरण से अलकायदा आगबबुला है और इसका परिणाम वह दुनिया को बताना चाहता है। कुछ दिन पूर्व ही डेनमार्क में कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट के धर पर एक अफ्रीकी मुस्लिम युवक ने हमला करने की कोशिश की थी जिसे सुरक्षा बलो ने घायल कर पकड़ लिया था। अब्दुल मुतालब की गिरफ्तारी और खुलासे के बाद अमेरिका यमन को लेकर खासतौर पर चिंतित है।
        यमन एक विफल देश की ओर तेजी से बढ़ रहा हैं। ब्रिटेन के संसदीय ग्रुप के उप सभापति मार्क प्रिटचर्ड का साफ कहना है कि यमन की स्थिति अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसी ही होती जा रही है। आतंकवाद के दमन के लिए ब्रिटेन प्रतिवर्ष दस करोड़ डालर वित्तीय सहायता देता है और प्रशिाक्षण भी देता रहा है। यमन की सरकार का कहना है कि आतंकवादी संगठनों से लड़ने के लिए उसे और वित्तीय सहायता सहित हथियार भी चाहिए। अफगानिस्तान, पाकिस्तान के बाद यमन का आतंकवाद का शरणस्थली के तौर पर आना दुनिया में शांति और सदभाव के लिए खतरे की घंटी है। दुनिया को अब यमन में आतंकवाद के दमन पर जुझना होगा।


मोबाइल - 09968997060

3 comments:

  1. Aatankwaad pooree duniyake liye chunauti ban gaya hai..

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  2. Kshama se sahmat hun..bahut badi chunauti hai...

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

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