Saturday, February 27, 2010

जरा सेक्सुअली परवर्टेड ‘पैगम्बर हजरत मोहम्मद‘ के खिलाफ पैटिंग्स बनाकर दिखाओ

राष्ट्र-चिंतन
            मकबूल फिदा हुसैन की कतर नागरिकता पर सवाल
 जरा सेक्सुअली परवर्टेड ‘पैगम्बर हजरत मोहम्मद‘ के खिलाफ पैटिंग्स बनाकर दिखाओ
 
विष्णुगुप्त

भारत में सलमान रूशदी की पुस्तक ‘सेटेनिक वर्सेज‘ प्रतिबंधित हुई। डेनमार्क के कार्टूनिस्ट की पैगम्बर हजरत मुहम्मद वाली कार्टून प्रतिबंधित हुई। हजरत मुहम्मद की कार्टून छापने वाले पत्रकार आलोक तोमर जेल गये। पर क्या आप जबाव दे सकते हैं कि हिन्दू धर्म की खिल्ली उड़ाने वाली कोई पुस्तक या फिर पेंटिंग्स प्रतिबंधित हुई है? क्या आप बता सकते हैं कि मकबुल हुसैन की भारत माता और सरस्वती की सेक्सुएली पैंटिग्स प्रतिबंधित हुई है? आलोक तोमर की तरह कोई पत्रकार और संपादक भारत माता व सरस्वती के सक्सुएली पैंटिग्स छापने पर जेल गया? अगर मकबुल हुसैन ने इस्लाम-ईसायत पर आपत्तिजनक पैंटिग्स बनायी होती तो निश्चित तौर पर उनकी वह पैटिंग्स भारत में प्रतिबंधित होती। क्या कोई मुस्लिम देश सलमान रूशदी या फिर तस्लीमा नसरीन को मकबुल हुसैन की तरह नागरिकता देगा। आज तक सलमान रूशदी और तस्लीमा नसरीन की प्रतिबधित जीवन के खिलाफ हमारे देश के बुद्धीजीवियों का आंसू क्यो नहीं टपकता। देशी बुद्धीजीवियों का आंसू मकबुल हुसैन के पक्ष में ही क्यों टपकता है?
                    चित्रकार मकबुल हुसैन के कतर नागरिकता प्राप्त कर लेने पर देश में तूफान उठना और हिन्दू सांप्रदायिकता जैसे लांछनों का दौर चलना कहीं से भी अप्रत्याशित नहीं है। धर्मनिरपेक्ष भारत पर काला धब्बा जैसे विचार प्रक्रिया आगे बढ़ रही है। मकबुल हुसैन के कतर नागरिकता के लिए हिन्दूओं की सांप्रदायितकता को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। यह सही है कि हुसैन के चित्रों से हिन्दू संवर्ग की भावनाएं आहत हुई थी और वे हिन्दू धर्म की देवी-देवताओं की अश्लीलता से परिपूर्ण चित्रो की श्रृंखलाएं चलायी थी। एक तर्क यह दिया जाता रहा है कि ‘हिन्दू धर्म‘ के अंदर परमपरायें पुरानी हैं, इसलिए मकबुल हुसैन की हिन्दू देवी-देवताओं के साथ सेक्सुएली चित्र न तो आपत्तिजनक और न ही अश्लील है। इससे न तो हिन्दुओं की भावनाएं आहत होनी चाहिए और न ही आक्रोश होना चाहिएं। सवाल यह उठता है कि सिर्फ हिन्दू देवी-देवताओ पर ही सेक्सुएली चित्रांकन क्यों? क्या अन्य मजहब के देवी-देवताओं  या फिर अराधना के प्रतीक चिन्हों पर चित्रांकन क्यो नहीं? हुसैन साहब खुद धर्मनिरपेक्ष हैं क्या? अगर हैं तो फिर उन्होंने क्या कभी इस्लाम या ईसाईत के अराधना की प्रतीक शख्सियतों पर कुच्ची चलायी है? अगर चलायी होती तो निश्चिततौर पर मानिये कि आज जो लोग हायतौबा मचा रहे हैं वही लोग मकबुल हुसैन के खिलाफ में खड़ा होते और उनके कृत्य को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिरंजना बताते। इस देश में हिन्दुत्व की आलोचना करना और खिल्ली उड़ाना एक फैशन ही नहीं बल्कि बुद्धीजीवी और धर्मनिरपेक्षत होने का प्रेरक मान लिया गया है।
                   मकबुल हुसैन अगर हजरत मुहम्मद की अश्लील और सेक्सुएली चित्रांकन की होती तो क्या उहें कतर की नागरिकता मिल सकती थी। क्या कतर जैसे अन्य मुस्लिम देश मकबुल हुसैन को अपने देश में रहने की इजाजत दे सकते थे। कदापि नहीं। हजरत मुहम्मद के बारे कितने मिथक हैं? कितनी विभुतियां लगी हुई हैं। क्या इन पर कोई कुच्ची चलाने की हिम्मत कर सकता है। हजरत मुहम्मद ने वृद्धा अवस्था में ग्यारह साल की अल्पवयस्क बच्ची से शादी की थी। कोई भी स्वतंत्र चिंतक ग्यारह साल की अल्पव्यवस्क बच्ची के साथ शादी करने वाले को कोई पैगम्बर मान सकता है? क्या इसमें पैगम्बर की सेक्स के प्रति अति पागलपन नहीं सलझकता। कई पत्नियो के रहते एक बच्ची के साथ शादी करने की हजरत मुहम्मद को कभी कटघरे मे लाने की कोशिश होती है। जिस तरह से सरस्वती और भारत माता को सेक्स करते पैंटिंग में दिखाया उसी तरह हजरत मुहम्मद जैसे पागल पैगम्बर को क्या ग्यारह साल की बच्ची के साथ सेक्स करते हुसैन दिखा सकते हैं? डेनमार्क का काूर्टन प्रकरण भी चर्चा जरूरी है। डेनमार्क के एक कार्टूनिस्ट ने हजरत मुहम्मद की कार्टून बनायी थी। कार्टून के अखबार में छपते ही दुनिया में तहलका मच गया। मुस्लिम देशों मे तूफान मच गया। हजरत मुहम्मद के खिलाफ कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट के खिलाफ फतवों की बाढ़ आ गयी। सउदी अरब, इरान, पाकिस्तान आदि देशों में प्रर्दशनों की सिलसिला महीनों तक जारी रही। डेनमार्क से राजनीतिक-कूटनीतिक संबंध तोड़ डाले गये। भारत में  दिल्ली ही नहीं देश के अन्य शहरों में रोसपूर्ण प्रदर्शन हुए। लखनउ में मुसलमानो के प्रदर्शन में हिन्दुओं की जानें तक गयी। मुस्लिम देशों और मुसलमानों के आक्रोश के सामने इंटरनेट की दुनिया भी डर गयी। इंटरनेट को सूचना का मुक्त प्रवाह माना जाता है। पर इंटरनेट से हजरत मुहम्मद के खिलाफ बनी कार्टूनें हटा दी गयी।
                   सलमान रूश्दी और तसलीमा नसरीन के उदाहरण भी हमारे सामने हैं। मकबुल हुसैन को अपने घर में जगह देने वाले मुस्लिम देश सलमान रूशदी या फिर तसलीमा नसरीन को क्या कभी अपने यहां जगह दी या भविष्य में जगह देंगे। उत्तर होगा नहीं। सलमान रूश्दी ने इस्लाम की कूरीतियों पर कलम चलायी थी। उनकी पुस्तक सेटेनिक वर्सेज पर कितनी तेज तलवरें भांजी थी मुस्लिम देशों ने ? ईरान का तत्कालीन शासक आयातुल्ला खुमैनी ने सलमान रूशदी पर मौत का फतवा जारी किया था। सलमान रूशदी की हत्या करने वालों को दौलत से भरने की पेशकश हुई थीं। आयातुल्ला खुमैनी की फतवा आज भी जारी है। फतवे के आतंक ने सलमान रूशदी के जीवन को नर्क बना दिया है। सुरक्षा घेरे मे सलमान रूशदी को अपना जीवन गुजारने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। सलमान रूश्दी की पुस्तक सेटेनिक वर्सेज प्रतिबंधित कर दी गयी। तस्लीमा नसरीन ने अपने देश में हिन्दुओं के साथ ज्यादती पर सवाल भर उठाया। तस्लीमा नसरीन आज मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा दुश्मन मान लिया गया। आज वह डर से एंकात और त्रासदपूर्ण जिंदगी गुजार रही है। कभी वह भारत तो कभी फंास में रहने को मजबूर है। भारत में रहने का स्थायी बीजा तक तस्लीमा नसरीन को नहीं मिल रही है।
धर्मनिरपेक्ष भारत की एक तस्वीर देख लीजिए। साथ में भारतीय बुद्धीजीवियो का भी एक चेहरा देख लीजिए। हिन्दू देवी-देवताओं के सेक्सुएली तस्वीर पर भारत में प्रतिबंध नहीं लगा पर दूसरी ओर सेक्सुएली पागल पैगम्बर हजरत मुहम्मद के खिलाफ डेनमार्क के कार्टूननिस्ट के कार्टूनो पर प्रतिबंध लगा। हजरत मुहम्मद पर बनायी गयी कार्टून को छापने पर आलोक तोमर जैसे पत्रकार को जेल की हवा खानी पड़ी। इतना ही नहीं बल्कि आलोक तोमर को कई दिनो तक घर से निकलना मुश्किल हो गया। भारत सरकार का फरमान जारी हो गया कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद के कार्टून छापना जुर्म माना जायेगां। इसका परिणाम यह हुआ कि अखबार और टेलीविजन से हजरत मुहम्मद वाली कार्टूनें छपनी बंद हो गयी।  मुस्लिम समुदाय की आक्रमकता और मजहबी कट्टरता से भारत सरकार डर गयी। भारत सरकार को यह डर हमेशा सताती रहती है कि उसे कहीं मुस्लिम वोट बैंक की थोक खरीददारी से हाथ न धोना पड़ा। इसी कारण मुस्लिम समुदाय की मजहबी कट्टरता का खाद-पानी देना सत्ता संस्थान की मजबूरी होती है।
               मकबुल हुसैन को लेकर हिन्दू सांप्रदायिकता को कोसने वाले यही बुद्धीजीवि हजरत मुहम्मद के कार्टून छापने वाले डेनमार्क के कार्टूनिस्ट की यह कहकर आलोचना करते थे कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अति है। यही भारतीय बुद्धीजीवी सलमान रूशदी की पुस्तक सेटेनिक वर्सेज पर देश में लगे प्रतिबंध के खिलाफ चुप्पी साध रखे थे। कभी इन्होंने सेटेनिक वर्सेज पुस्तक पर प्रतिबंध के खिलाफ आवाज नहीं उठायी। तस्लीमा नसरीन बार-बार भारत मे रहने का स्थायी बिजा मांग रही है।  भारत सरकार मुस्लिम समुदाय के डर से तस्लमा नसरीन को भारत मे स्थायी नागरिकता नहीं दे रही है। तस्लीमा नसरीन के पक्ष में कोई बुद्धीजीवी आगे आता है क्या? वास्तव में हिन्दू समाज का खिल्ली उड़ाना एक फैशन हो गया है। हिन्दू धर्म के प्रतीकों का हास्य उड़ाना धर्मनिरपेक्षता का निशानी भी हो गया है।
           आखिर हिन्दू धर्म के प्रतीकों के साथ ही खिलवाड़ क्यों होता है? सेटेनिक वर्सेज और हजरत हुसैन की कार्टून की तरह भारत माता और सरस्वती की सैक्सुएली रेखांकन पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगता। इसलिए कि हिन्दू समाज उदार से सहिष्णुता से परिपूर्ण है। इतना ही नहीं बल्कि हिन्दू समाज मे अपने अराध्य प्रतीकों के प्रति गौरव भाव नहीं रखता है। अगर हिन्दू समाज अपने प्रतीको के प्रति गौरव भाव रखता और उदार न होता तो कोई भी सत्ता और शख्सियत मकबुल हुसैन जैसा कृत्य करने का साहस नहीं कर सकता था। ऐसी स्थिति में सत्ता संस्थान को भी सत्ता जाने का डर होता। मकबुल हुसैन की सरस्वती और भारत माता की सेक्सुएली पैंटिंगें भी प्रतिबंधित भी हुोती?

मोबाइल- 09968997060

7 comments:

  1. ...प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!

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  2. गुप्त जी , अभी थोड़े देर पहले मैंने यह टिपण्णी दूसरे किसी ब्लॉग पर पोस्ट की थी यहाँ भी उसे पोस्ट कर रहा हूँ !

    एम्.ऍफ़ हुसैन- संघ प्रमुख से मेरा विरोध !
    आदरणीय मोहन भागवत जी,
    एक खरी सी बात आपसे और संघ से कहूंगा ! जहां तक चित्रकार एम्-ऍफ़ हुसैन का सवाल है, मैं मान सकता हूँ कि संघ की कार्यसूची के बाहर की कुछ राजनैतिक मजबूरियों के चलते, भले ही आप सदे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हों, लेकिन इस चित्रकार के स्वदेश वापसी के बारे में आपका हालिया बयान मुझे पसंद नहीं आया, और मैं उसका विरोध करता हूँ ! मैं समझता हूँ कि हम हिन्दुओ की यही सबसे बड़ी कमजोरी है कि हम बहुत जल्दी पिघल जाते है, और जिसका दूसरे लोग नाजायज फायदा उठाते है! जैसा कि मैंने किसी अन्य जगह पर पहले कहा कि अगर ये जनाव, इतने ही कला के धनी थे और इन्हें किसी देवी देवता के माध्यम से ही अपनी कला प्रदर्शित करनी थी तो इन्होने पैगम्बर मुहम्मद का वैसा ही चित्र क्यों नहीं बनाया, जैसा इन्होने हिन्दुओ के देवी-देवताओ का बनाया?

    इसे भी छोडिये, यह सब करने के बावजूद भी इस इंसान ने एक बार भी सार्वजनिक तौर पर अपने किये पर क्षमा नहीं माँगी ! अगर कोई सच में महान व्यक्तित्व होता है तो उसे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की बात का पता चलते ही, वह खेद व्यक्त कर लेता है! लेकिन इस अहसान फरामोश ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, उलटे दबाव के लिए क़तर की नागरिकता का तीर छोड़ दिया! किसी दूसरे देश की नागरिकता लेना किसी भी व्यक्ति का अपना व्यक्तिगत मामला होता है और जो लोग अपने रोजगार के लिए विदेश जाते है वे ऐंसा करते है और उसमे मुझे कोई बुराई भी नजर नहीं आती , मगर जिस तरह की हरकते करके इस इंसान ने अपना गुनाह कबूलने के बजाये, उलटे देश पर ही आरोप मड दिया, क्या उसके बाद भी इसके प्रति इस तरह की नरमी दिखाना उचित है? इस देश को तो कुछ लोगो ने अपने धंधे का एक पड़ाव मात्र समझ लिया है, एक निम्न स्तर की फ़िल्म को हिट कराना हो तो देश को ही औजार बना लेते है, और फिर अपने किये पह क्षमा मांगना भी अपनी शान के खिलाप समझते है! और हम है कि इनके सातो खून माफ़ करने को राजी है, यह कैसी विचारधारा है ? कृपया मेरी बात को अन्यथा न लें !

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  3. जो ये सेकुलरवादी हुसैन के लिए छाती पीट रहे हैं ,मैं आपके माध्यम से उनसे पूछना चाहता हूँ कि यदि हुसैन उनकी माँ कि ऐसी ही पेंटिंग बनाए ,वे उसे अपने ड्राइंग रूम में लगायेंगे ? शैतान कि आयतें तो बिना पढ़े ही बैन कर दी गई।

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  4. jahan suvidhabhogi buddhijeevee aur kaayar samaj hoga vahan yahi haal hoga - hamari soch yah ho gai hai hame kya farq padta hai - ham kyon jhamele men pade

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  5. maine bhi yah tippani kahin aur ki thi...use bhi yahi post kar rahi hun..

    हैरान हूँ !!
    एक मानसिक रूप से विकृत अवसत दर्जे के चित्रकार का इतना ऊपर उठाना और इतना अहमियत पाना...
    ९५ साल का यह घटिया कलकार कुछ भी कर गुजरा और लोगों ने इसे हाथों में ही उठाये रखा...देवी-देवताओं की पेटिंग की बात तो अपनी जगह है की...कभी माधुरी दीक्षित, कभी उर्मिला और कभी अमृता राव के बारे में जो दिल में आया कह जाना और उसपर से तुर्रा यह कि अभेनेत्रियाँ भी फूल कर कुप्पा हुई, हिन्दुओं को कोई फर्क नहीं पड़ा और इस्लाम से भी कोई पाबन्दी नहीं...
    यह सब कुछ भारत में ही हो सकता है...अब वो क़तर में किसी शेख की बेटी के बारे में बोल के दिखाए तो देखेंगे उसकी हिम्मत....
    और हिन्दुओं के तो यही लछन हैं...जो हिन्दू के पक्षधर हैं वो कट्टरवादी और जो मुसलमानों के पक्षधर उनको सेकुलर कहा जाता है...आजकल यही फैशन है...
    अच्छा है एक गलीज गई भारत से अब वो बुड्ढा कतर में कतरा बन कतरानशीन हो जाए...आमीन...

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  6. Mr. Visnugput ji aapne bahut accha likha hai. Aap jaise Patrakaron se hi loktantra ka chautha khamha tika hai.
    Ye desh ka durbhagya hai ki aaj bharat maa ki nangi tasbir banane walo ka paksh liya jaata hai. Hindu dharma ko gali dena dharma nirpeksta hai.
    aapne ies tarah ka lekh likh kar sacchai ko ujagar kar diya hai. Ies desh ka bhagya aap jaise patrakaron per hi tika hai.

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  7. ksoor husen ka nhi hai ksoor to hmare jai chndon ka hai jo apni maa ko nnga hote dekh kr bhi us ki himayt kr rhe hain ya use bhart aane ki ya lane ki bat kr rhe hain kisi trh ilaj to in ka hona chahiye pta nhi ye kb tk aur gali kha kha kr khush hote rhenge pta nhi inhe gali khane me kyon mja aata hai
    in ki durbudhi ka jroor koi kargr ilaj dhoondhna hi pdega
    dr. ved vyathit

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