राष्ट्र-चिंतन
कश्मीर में ‘आतंकवादी मनी‘ के प्रवाह पर चिंता मुक्त क्यों?
विष्णुगुप्त
हुर्रियत के सभी नेता कभी न कभी आतंकवादी रहे हैं और इनके हाथ कश्मीरी अवाम व सुरक्षा बलों के खूनों से रंगे हुए हैं। प्रत्यक्ष आतंकवाद की जगह जनसंगठन का बुर्का पहन कर हुर्रियत के नेता खड़े हो गये। उनकी इस चालाकी और पैंतरेबाजी का खाद-पानी हमारी सत्ता व्यवस्था की उदासीनता से मिला। हम कभी भी हुर्रियत के असली मंशा और उसकी आतंकवादी प्रक्रिया का सही आकलन और विश्लेषण नहीं की और कश्मीर सहित लद्दाख व जम्मू की जनता का भी असली प्रतिनिधि हुर्रियत को ही मान लिया गया। हुर्रियत की पाकिस्तान परस्ती नीति क्या ओझल है। सही तो यह है कि हुर्रियत के नेताओं ने पूरे कश्मीर में मुफ्तखोरी और आतंकवादी बन कर एसोआराम ही नहीं बल्कि भोग-बिलास की जिंदगी जीने की प्रक्रिया चलायी है। इस दुष्चर्क में हुर्रियत के साथ भारत सरकार बराबर का खलनायक है।
उदाहरण के लिए हुर्रियत के प्रायः सभी नेताओं का जीवन शैली देख लीजिए। उनके पास चमकीली और तड़क-भड़क जिंदगी के लिए आय के स्रोत कौन सा है? अधिकतर हुर्रियत नेताओ की आय का स्रोत शून्य है। फांकेकशी की जिंदगी जीने वाले हुर्रियत नेताओं की जिंदगी आतंकवादी बनते ही बदल गयी। उनके पास विदेशी वीवी, महंगी कारें, आलीशान आवास सहित भोग-बिलास की अन्य सभी सुख-सुविधाएं रातोरात मिल गयी। पाकिस्तान ही नहीं बल्कि अमेरिका-युरोप के दौरे पर आमंत्रित होने लगे। भारत सरकार द्वारा हुर्रियत के नेताओं की शान-शौकत बढ़ाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गयी। मीडिया में दिन-प्रतिदिन उनकी तस्वीरें लहलहाती हैं। मुबंई हमले में जिंदा पकड़ा गया आतंकवाद कसाब को भी पुरस्कार में लाखों रूपये देने के साथ ही साथ कश्मीरी लडक्रियों से संगत कराने का लालच दिया गया था। ऐसी स्थिति में कश्मीर के युवाओं ही नहीं बल्कि पूरे आवाम में हुर्रियत नेता उनके प्रतीक और प्रेरणास््रत्रोत बन जाते हैं। आज कश्मीर के युवा संवर्ग अपने मेहनत के बल पर अपनी जिंदगी चमकीली बनाने की जगह पत्थरबाजी जैसी खतरनाक-खूनी प्रक्रिया से जुड़ रहे हैं और हुर्रियत-आतंकवादियों के जाल में फंस कर अशांति के कारण बने हुए हैं।
फांकेकशी की जिंदगी जीने वाले हुर्रियत नेताओं की जिंदगी आतंकवादी बनते ही बदल गयी। उनके पास विदेशी वीवी, महंगी कारें, आलीशान आवास सहित भोग-बिलास की अन्य सभी सुख-सुविधाएं रातोरात मिल गयी। मीडिया में दिन-प्रतिदिन उनकी तस्वीरें लहलहाती हैं। ऐसे में कश्मीर के युवाओं में हुर्रियत नेता उनके प्रतीक और प्रेरणास््रत्रोत बन जाते हैं। आज कश्मीर के युवा संवर्ग अपनी मेहनत के बल पर अपनी जिंदगी चमकीली बनाने की जगह पत्थरबाजी जैसी खतरनाक-खूनी प्रक्रिया से जुड़ रहे हैं। हुर्रियत के नेताओ की भोग-बिलास की जिंदगी कानूनों के दायरे में क्यों नहीं लाया जाना चाहिए।
हुर्रियत संवर्ग या फिर आतंकवादियों को अपनी जिंदगी भोग-बिलास में तब्दील करने या फिर आतंकवाद के लिए बैरोजगार युवाओं की भर्ती कराने के लिए मनी कहां से आती है? जाहिरतौर पर आईएसआई कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी ग्रुपों और हुर्रियत जैसे संगठनों को धन उपलब्ध कराती रही है। आईएसआई का खेल तो जाहिर है पर आतंकवादी मनी का खेल में सिर्फ आईएसआई या फिर पाकिस्तान की सैनिक-असैनिक सत्ता ही नहीं शामिल है। कई ऐसे सुरंग हैं जिस रास्ते से आतंकवादी मनी आती है। अप्रत्यक्षतौर पर सेवा भाव के नाम पर विदेशों से लाखों-करोड़ों डालर प्रतिवर्ष आते हैं। सेवा भाव के नाम पर आने वाली मनी का असली उपयोग राष्ट्र विरोधी हरकतों और दुनिया में देश की छवि बदनाम कराने में उपयोग होता है। सिर्फ कश्मीर में ही नहीं बल्कि देश के दूसरे भागों में भी आतंकवादी मनी आ रही है। केरल, त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में भी आतंकवादी मनी का अस्तित्व है। पिछले वर्ष ही दुनिया के शिया देशों ईरान,लीबिया जैसे मुस्लिम देशों ने केरल, त्रिपुरा और असम के मुस्लिम बहुल इलाकों में अपने पक्ष में वातावरण तैयार करने व अमेरिका विरोध के लिए राजनीतिक प्रक्रिया चलाने के नीयत से करोड़ों डालर खर्च किये थे। भारतीय गुप्तचर इंकाइयों के पास ईरान, लीबिया जैसे देशों द्वारा करोड़ों डालर बांटने के सबूत मौजूद हैं। पर भारतीय सरकार ने इस पर कोई एक्शन लेने की जरूरत नहीं समझी।
हुर्रियत की एक नेत्री का प्रसंग भी जानना जरूरी है। एनडीए सरकार के कार्यकाल में हुर्रियत की एक महिला नेत्री दिल्ली में गिरफ्तार हुई थी। हुर्रियत की उस महिला नेत्री एक हवाला एजेंट से लाखों रूपये लेते हुए रंगे हाथ पकड़ी गयी थी। चार साल तक जेलों में रहने के दौरान वह महिला सजा काट कर जेल से बाहर हो गयी। भारतीय गुप्तचर एजेेंसियों को उस महिला ने साफ तौर पर बताया था कि पाकिस्तान ही नहीं बल्कि खाड़ी देशों से भी पैसे जनसंगठनों के नाम फर सक्रिय आतंकवादी संगठनों को मिलते हैं। खाड़ी देशों की कश्मीर में रूचि जगजाहिर है। खाड़ी देश कश्मीर को मुस्लिम प्रश्न के तौर पर देखते हैं और हमेशा आतंकवादियों की खूनी राजनीति को आजादी का प्रश्न बताते हैं। सउदी अरब तो खुलकर पाकिस्तान का साथ देता है और कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी सगंठनों को मदद करता रहा है। सउदी अरब के संबंध में एक खतरनाक अध्याय भी जुड़ा हुआ है जिसे अमेरिका नजरअंदाज कर दिया। वह अध्याय ओसामा बिन लादेन को पालने और धन मुहैया कराने का है। ओसामा बिन लादेन सउदी अरब का नागरिक है। सउदी अरब ने लादेन के साथ एक गुप्त समझौता किया था और ओसामा बिन लादेन को सउदी अरब से दूर रहने के एवज में प्रतिमाह लाखों डालर देता था। यह बात सउदी अरब ने खुद स्वीकारी है। यूरोप और अमेरिका में बसे मुस्लिम संवर्ग के धनी लोग भी हवाला सहित अन्य माध्यमों से भारत में आतंकवादी मनी भेजते हैं। वर्ल्ड इस्लामिक बैंक की भूमिका ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संदिग्ध रही है।
पत्थरबाजी में आंतकवादी मनी का निवेश है। पत्थरबाजों को मोटी रकम मिलती है। हुर्रियत और आतंकवादी संगठन इसके लिए प्रेरित करते हैं। यह भी सही है कि कश्मीर में युवाओं और अन्य लोगों को मुफ्तखोरी और हंगामा खड़ा करने की आदत पड़ गयी है। एक तो भारत सरकार की कई रियायतों और सुविधाओं से कश्मीरियों में मुफ्तखोरी करने की लालच बढ़ी है और दूसरे मेंु हुर्रियत के नक्शे पर चल कर अपनी जिंदगी चमकीली ही नहीं बल्कि भोगभिलास में तब्दील करने की प्रक्रिया सिर पर चढ़कर बोलती है। कश्मीर के युवा देखते हैं कि जब हुर्रियत के नेता खूनी राजनीति करने के बाद भी जेलों में नहीं सड़ते और न ही उनकी जिंदगी फांकेकशी में गुजरती है बल्कि उनका जीवन भोग-बिलास में गुजरता है तो फिर हम क्यों नहीं ऐसा कर सकते हैं? पाकिस्तान, आईएसआई, यूरोप और अमेरिका तो हुर्रियत नेताओं को सिर पर उठाता ही है, इसके अलावा भारत सरकार भी हुर्रियत के शान-शौकत में हमेशा नतमस्तक रहती है। जम्मू कश्मीर में तीन संभाग हैं। एक कश्मीर, दूसरा लद्दाख और तीसरा जम्मू। हुर्रियत के नेता सिर्फ कश्मीर का ही प्रतिनिधित्व करते हैं पर भारत सरकार हुर्रियत को पूरे जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधि मानकर बात करती है। इससे हुर्रियत की हुजतबाजी बढेगी तो क्यों नहीं?
आतंकवादी मनी को रोकने की अंतर्राष्ट्रीय संहिता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने आतंकवादी मनी के प्रवाह करने वालों को प्रतिबंधित करने की संहिता बनायी है। आतंकवादी मनी प्रवाह करने वाले कई संगठनों पर प्रतिबंध भी लग चुका है। अमेरिका-यूरोप ने अपने यहां यह प्रक्रिया चाकचौबंद बनायी है।। अमेरिका-यूरोप की तुलना में भारत अभी तक आतंकवादी मनी के प्रवाह को रोकने में गंभीर रूचि तक नहीं दिखायी है। जाहिर सी बात है कि जब तक आतंकवादी मनी का प्रवाह नहीं रोका जायेगा तबतक हम आतंकवाद को रोक नहीं सकते हैं और खूनी राजनीति की प्रक्रिया चलती ही रहेगी। हाल के वर्षों में कश्मीर की स्थिति सुधरी थी और लोकतांत्रित प्रक्रिया मजबूत भी हुंई थी। मनमोहन ंिसह की सरकार ने उदसीनता अपनायी। मनमोहन सरकार ने दूरदर्शिता दिखायी होती तो आज कश्मीर की स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती और हुर्रियत को फिर से खड़े होने का मौका शायद ही मिलता। हुर्रियत को मिलने वाली तरजीह बंद होनी चाहिए। हुर्रियत के पास आने वाला आतंकवादी मनी का स्रोत पर कानून का सोंटा चलना चाहिए। आतंकवादी मनी के प्रवाह करने वाले देशों और संगठनों पर संयुक्त राष्ट्रसंघ की संहिता के तहत कार्रवाई कराने की प्रक्रिया चलनी चाहिए। हुर्रियत के नेताओं के भोग-बिलास की जिंदगी पर भारतीय कानूनों का सोंटा चलना चाहिए।
सम्पर्क
मोबाइल - 09968997060
Thursday, July 15, 2010
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