राष्ट्र-चिंतन
‘पॉलटिक्स एनकांउटर‘ की खतरनाक राजनीति
कांग्रेस की शाखा बनी सीबीआई, भाजपा होगी आक्रामक
विष्णुगुप्त
कभी-कभी अतिरिक्त उत्साह और अति खतरनाक राजनीतिक नीतियां आत्मधाती भी साबित होती हैं और लेने के देने पड़ जाते हैं। कांग्रेस की गुजरात के प्रति अतिउत्साह दिखाना और नरेन्द्र मोदी को घेरेने के लिए गृह मंत्री अमित शाह पर सीबीआई की शक्ति दिखाना कर्ही न कहीं कांग्रेस की खतरनाक राजनीति की ओर इशारा करता है। गुजरात/ नरेन्द्र मोदी/ अमित शाह आदि पर कांग्रेस की यह खतरनाक राजनीति आत्मघाती होती है या नही? इस प्रसंग पर फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता है। पर इतना जरूर दिख रहा है कि देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में ‘पॉलटिक्सि एनकांउटर‘ की जमीन कांग्रेस ने तैयार कर दी है। अब लोकतंत्र में मताधिकार के माध्यम से हार-जीत का फैसला बाद में आयेगा, पहले सीबीआई-पुलिस और न्यायापालिका के माध्यम से राजनीतिक पार्टियों, और विरोधी राजनेताओं को निपटाने का ‘पालटिक्स एनकांउटर‘ का खेल होगा। माना कि कांग्रेस केन्द्र की सत्ता में है और इस लिए उसके पास सीबीआई और न्यायपालिका की शक्ति है। इसलिए कांग्रेस मौजूदा समय में पॉलटिक्स एनकाउंटर के खेल का अपने आप को चैम्पियन मान सकती है। पर कांग्रेस की इस नीति का भविष्य क्या हो सकता है? कांग्रेस शायद इस पर आत्मविश्लेषण नहीं कर रहे होंगे। वह भी वैसी परिस्थिति में जब कांग्रेस के पास सत्ता नहीं होगी और सत्ता बीजेपी के पास होगी? भाजपा भी क्वात्रोची को क्लीनचिट दिलाने में सोनिया गांधी-मनमोहन सिंह की भूमिका का पुलिसिया पॉलटिक्स एनकांउटर कर सकती है। सीधेतौर पर सोनिया-मनमोहन सिंह पर न्यायिक सक्रियता बढेगी और ये क्वात्रोची को सत्ता लाभ दिलाने के दोषी हो्रगे। कांग्रेस का यह कहना कि सिर्फ और सिर्फ न्यायापालिका की सक्रियता है और कांग्रेस व यूपीए सरकार का इसमें कोई भूमिका नहीं है। इन सभी तर्को का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। देश में फर्जी एकनाकाउंटर के हजारों मुकदमें सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है। उन मुकदमों पर सहराबुउीन की तहर सीबीआई को हवा की भी तेज गति से सक्रिय करने की प्रक्रिया चलती है क्या? इशरत को पाक साफ बताने की कांग्रेस और अन्य तथाकथित बुद्धीजीवियों की हेहडी रहस्योघाटन से पोल खुल चुकी है। न्यायापालिका भी इशरत प्रकरण में एक पार्टी के तौर पर खड़ी दिखी थी। सत्ता में आते ही सोनिया गांधी के घोर विरोधी जार्ज फर्नाडीस के दामन को दागदार करने की कांग्रेसी राजनीति चली थी? लालू/मायावती/मुलायम पर भी सीबीआई-कांग्रेस के निशाने पर खड़े रहे हैं।
मायावती/लालू/ मुलायम/ आदि पर भी सीबीआई की तलवार लटक रही है। आखिर अपनी राजनीतिक शक्ति की कीमत पर मायावती/लालू-मुलायम बार-बार संसद में कांग्रेस के समर्थकन के लिए क्यों बाध्य होते हैं? इसके पीछे कांग्रेस की ब्लैकमैंलिग राजनीति है। कांग्रेस ने सत्ता में आने के साथ सोनिया की घोर विरोधी जार्ज फर्नाडीस के दामन को दागदार करने की असफल कोशिश की थी। केन्द्रीय सत्ता की असली चाभी बिहार-उत्तर प्रदेश से निकलती है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश मंे अप्रत्याशित सफलता पायी थी पर बिहार के लोगों ने कांग्रेस को नकार ही दिया था। बिहार विधान सभा चुनावों में गुजरात/ अमित शाह/ नरेन्द्र मोदी के प्रसंग पर लाभ उठाना चाहती है कांग्रेस। कांग्रेस ने देश की राजनीति में तकरार और टकराव की जमीन तैयार तो की है इसके अलावा भाजपा को भी फिर से अपनी खोयी हुई जमीन तलाशने का सुनहरी अवसर दिया है।
दो दिन बनाम 30 हजार पेज...............................................
सीबीआई की विश्वसनीयता पर जो सवाल उठे हैं उसके पीछे कोई सतही नहीं बल्कि ठोस कारण है, तथ्य हैं। कारण और तथ्य यह साबित करने के लिए काफी हैं कि सीबीआई कहीं न कहीं मोहरे के रूप में काम कर रही है। सीबीआई को मोहरा कौन बनाता है? यह भी छुपी हुई बात नहीं हो सकती है। सीबीआई के प्रायः सभी रिटायर्ड प्रमुखों ने बार-बार स्वीकार किया है कि सही में सीबीआई दबाव और मोहरे के रूप में खड़ी रहती है। सत्ता हमेशा सीबीआई को कठपुतली की तरह नचाती रहती है। सहराबुउीन प्रकरण में सीबीआई की भूमिका संदेहास्पद रही है। सोहराबुउीन का एनकाउंटर पर न्यायिक फैसला आना बाकी है। न्यायिक फैसले तक पहुंचने में सीबीआई के तर्क और जुटाये गये तथ्य कितने ठोस होंगे उसका परीक्षण होगा। अमित शाह ने सीबीआई के सामने आत्मसमर्पण करने के पहले जो आरोप कांग्रेस और सीबीआई पर लगाये हैं उसका भी निष्पक्ष्ता के साथ परीक्षण होना चाहिए। सहराबुउदीन एनकाउंटर में अमित शाह सहित 15 नौकरशाहों पर आरोप लगाया गया हैं। आरोपित नौकरशाहों को अपना पक्ष रखने के लिए 15-15 दिनों का समय दिया गया पर अमित शाह को मात्र एक घंटा का समय दिया गया। एक घंटे के अंदर पेश नहीं होने पर सीबीआई ने अमित शाह को भगोड़ा घोषित कर दिया। अपना पक्ष रखने के लिए अमित शाह को सिर्फ एक घंटा का समय ही क्यों? अमित शाह अपना पक्ष रखने के लिए उन्होंने दो दिन का समय मांगा था। इतना ही नहीं बल्कि मात्र दो दिनों में सीबीआई ने 30 हजार पेज का आरोप पत्र दाखिल कर दिया। आखिर दो दिनों में सीबीआई ने 30 हजार पेज की आरोप पत्र कैसे तैयार की? आरोप पत्र पहले से ही सीबीआई ने तैयार कर रखी थी?
कांग्रेस की संकट मोचक बनी सीबीआई..................................
सीबीआई का दो चेहरा हमारे सामने है। एक चेहरे में सीबीआई मुख्य विपक्षी राजनीति भाजपा को बदनाम करने, हतोत्साहित करने और राजनीति शक्ति की कमजोर करने की औजार बनी है तो दूसरे चेहरे में सीबीआई सोनिया गाधी और कांग्रेस के लिए संकट मोचक बनी है। गुजरात/ नरेन्द्र मोदी/ अमित शाह प्रकरण को छोड़ दीजिए। इससे इत्तर कांग्रेस की भूमिका आप देख लीजिए। लम्बे वनवास के बाद 2004 में कांग्रेस सत्ता मे आयी थी। सत्ता में आने के साथ ही साथ कांग्रेस ने अपने और सोनिया गांधी के खानदान के पाप को सीबीआर्इ्र के माध्यम से धुलवाने की सफल कोशिश की। क्वात्रोचि प्रकरण की याद दिलाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। क्वात्रोचि की भूमिका सीधेतौर पर बोफोर्स डील कांड से जुड़ी हुई थी। उस समय क्वात्रोचि राजीव-सोनिया गांधी के अति निकट का चेहरा था। उसने बोफोर्स में दलाली खायी। सीबीआई के पास पर्याप्त सबूत भी था। पर कांग्रेस ने क्वात्रोचि को सीबीआई के माध्यम से क्लिन चिट दिला दिया। करोड़ों डालर विदेशी खातों में क्वात्रोचि के जमा धन को निकालने की छूट दिलायी गयी। इसलिए कि क्वात्रोचि ने सोनिया गांधी को बोफोर्स के पूरी तह खोलने व बदनाम करने की धमकी पिलायी थी। इसलिए सोनिया गांधी-मनमोहन सिंह की जुगलजोड़ी के पास क्वात्रोचि को क्लिनचिट दिलाने के अलाव और कोई चारा नहीं था। सीबीआई के माध्यम से कांग्रेस ने सिख दंगों में रक्तरंजित कांग्रेस चेहरों को बचाने जैसे करनामे भी कर दिखाये हैं।
मायावती/लालू/ मुलायम पर भी सीबीआई की तलवार...................................
राजनीतिक गलियारे में एक बात हमेशा उठी है कि मायावती, लालू और मुलायम जैसी अन्य राजनीतिक हस्तियां कांग्रेस के सामने समर्थन करने के लिए विवश कैसी है? बार-बार ये वामपंथी राजनीतिक पार्टियों से अपना गठजोड़ तोड़ने के लिए क्यों बाध्य होते हैं। परमाणु मुुद्दे पर ही नहीं बल्कि अन्य मुद्दों पर भी लालू/मायावती/ मुलायम आदि का कांग्रेस के सामने आत्मसमर्पण क्यो होता है। पिछले बार बजट सत्र में कटौती प्रस्तावों पर कांग्रेस की सत्ता संकट में फंसी थी। महंगाई को लेकर विरोध चरम पर था। लेकिन मुलायम/मायावती/ लालू ने कटौती प्रस्तावों पर भाजपा-वामपंथी दलों का साथ नहीं दिये। कई राजनीतिक कोणों से यह बात सामने आयी कि सीबीआई के माध्यम से लालू/ मुलायम/ मायावती को कांग्रेस ब्लैकमेल कर समर्थन करने के लिए बाध्य करती है। मायावती जब-जब कांग्रेस के विरोध में खड़ी होती है तब-तब सीबीआई की जवानी चढ़ जाती है और कोर्ट में मायावती पर आय से अधिक सम्पति रखने का प्रसंग गर्मी पैदा करता रहता है। मायावती जैसे ही अंदरूणी तौर पर कांग्रेस की बातें मान लेती है वैसे ही सीबीआई कोर्ट में ठंडी पड़ जाती है।
कांग्रेस का मुख्य निशाना.................................
कांग्रेस का मुख्य निशाना कहां पर है? क्या सिर्फ अमित/नरेन्द्र मोदी तक ही कांग्रेस की घेराबंदी मानी जानी चाहिए? नहीं। कांग्रेस की पूरी नीति भाजपा को बदनाम करने और उसकी राजनीतिक शक्ति समाप्त करने की है। भाजपा को कांग्रेस जितना बदनाम करेगी, जितनी घेराबंदी करेगी उतनी ही उसे अल्पसंख्यक यानी मुस्लिम शक्तियां पास आयेंगी। वर्तमान समय में बिहार में विधान सभा चुनाव है। केन्द्र की सत्ता की चाभी बिहार और उत्तर प्रदेश से निकलती है। बिहार में कांग्रेस दो दशकों से मरना सन्न है। पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अप्रत्याशित सफलता मिली थी। पर बिहार में कांग्रेस को नकार दिया गया था। बिहार में होने वाले चुनाव में इस प्रसंग पर कांग्रेस लाभ उठाना चाहती है। बाबरी मस्जिद के विध्वंश के बाद मुसलमान कांग्रेस से दूर चले गये थे। कांग्रेस ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के माध्यम से मुस्लिमों को अपने पास खींचने की राजनीतिक सफलता पायी है।
राजनीतिक फलितार्थ......................................................
लोकतंत्र में जय-पराजय का माध्यम मत-समर्थन होता है। नीतियां और कार्यक्रम के सहारे लोकतंत्र में सत्ता की लड़ायी लड़ी जाती है। मुगलों की सत्ता संस्कृति में तलवार के बल पर सत्ता लूटा जाता था। बाप को बंधक बनाकर बेटा ख्द राजा बन जाता था। लोकतंत्र में ऐसी प्रक्रिया खतरनाक होती है। पहले कांग्रेस ने कारगिल युद्ध में भ्रष्टाचार को लेकर जार्ज फर्नाडील को बदनाम किया। जांच रिपोर्ट आने पर र्जाज फर्नाडीस के दामन पर लगाये गये रिपोर्ट कहीं नहीं ठहरे। अब कांग्रेस गुजरात में यह खेल खेल रही है। कल भाजपा भी सत्ता में आने पर सोनिया गांधी-मनमोहन सिंह आदि क्वात्रोचि-सिख दगों पर सीबीआई को मोहरा बनाकर घेराबंदी कर सकती है। लोकतंत्र में यह खेल खतरनाक मानी जा सकती है। इतना ही नहीं बल्कि भाजपा अपने अंदर के गतिरोधों और विसंगतियों से मरन्ना सन्न थी। अब उसे कांग्रेस ने जिंदा करने या आक्शीजन देने का काम किया है। अगर भाजपा ने उग्र हिन्दुत्व के रास्ते पर उतर आये तो देश में गतिरोध और टकराव का एक नया संकट खड़ा हो जायेगा। कांग्रेस को ऐसी खतरनाक राजनीति पर चिंतन करने की जरूरत होगी।
सम्पर्क..............
मोबाइल - 09968997060
Tuesday, July 27, 2010
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