ललित मोदी क्यों बने बलि का बकरा?
विष्णुगुप्त
सरकार की एजेंसियां अगर चाकचौबंद,निष्पक्ष-दबावहीन जांच करें तो बड़े-बडे राजनीतिज्ञ, अधिकारी और उझोगपतियो की जगह जेलों में होगी। ललित मोदी को आनन-फानन में इसलिए चलता किया गया ताकि काली और बेनामी संपतियों के उजागर होने से बचाया जा सके और बीसीसीआई के खिलाफ उठा राजनीतिक तूफान को शांत किया जा सके। बीसीसीआई ने एक तरह से देश में सामानंतर सत्ता व्यवस्था कायम कर रखी थी।यह भी छानबीन करना होगा कि फ्रैचायजी टीमों में लगी संपत्तियां कहीं राष्ट्रविरोधी तो नहीं हैं?े बीसीसीआई-आईपीएल का पूरा तंत्र अलोकतांत्रिक और फर्जीवाड़ा से जकड़ा हुआ है।
आईपीएल के कमिशनर ललित मोदी दोषी हैं या नहीं? उस स्थिति में जब ललित मोदी अपने बयानों मे बार-बार दोहरा रहे हैं कि अब तक जितने फैसले हुए हैं वे सभी सामूहिम जिम्मेदारी के तहत ही लिये गये हैं और आईपीएल गवर्निंग बोर्ड की स्वीकृति उनके पास है। ललित मोदी कितना सच बोल रहे है-कितना झूठ बोल रहे है? इस पर तत्काल कुछ भी कहना संभव नहीं है। पर सच यह है कि ललित मोदी को जिस तरह से आनन-फानन में निलम्बित किया गया उसके निहितार्थ गंभीर है और बीसीसीआई की नीयत पर प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है। बीसीसीआर्इ्र न सिर्फ लीपापोती के माध्सम से उठा तूफान को शांत करने के फिराक में है बल्कि बड़े खेलबाजों को बचाने की नीतियां बुन रही है। यह जाहिर हो चुका है कि फ्रैचायजी टीमों के शेयरों में बड़े-बड़े घोटाले हुए हैं, बेनामी सम्पतियां लगी हुई है और वे सम्पतियां राष्ट्रविरोधी भी हो सकती है? बीसीसीआई से जुड़े अधिकारियों और नेताओं की भी ब्लैकमनी फ्रैचायजी टीमो में लगी हुई है। नेताओं और अध्किारियों के पजिजनों की पहले शेयरों से सबंधित इनकार की सफाई और उसके बाद चुप्पी साध लेने पर शक की सुई और नुकुली हुई है। बीसीसीआई अब तक क्रिकेट के विकास के नाम पर आयकर, सर्विस टैक्स सहित अन्य करो का लाभ उठाता रहा है। क्रिकेट के विकास के नाम पर बीसीसीआई के खेलबाज अपनी-अपनी झोलियां ही भरी हैं। क्रिकेट गुलामीकाल की देन है और देशी खेलों के विकास पर कील। सरकार के पास अवसर है। सरकार बीसीसीआई की पूरी अनियमिताएं और फर्जीबाड़ा को सामने लाये और देश के कानूनो के घेरे में बीसीसीआई-आईपीएल की पूरी सक्रियता रहे। सरकार की एजेसिंया बड़े खेलबाजो की गर्दन मरोड़ सकेंगी? असली सवाल यही है?
बीसीसीआई-आईपीएल को सामानंतर सत्ता व्यवस्था बनाने की पूरी छूट मिली ही क्यों? क्या यूपीए-मनमोहन सिंह सरकार ने बीसीसीआई-आईपीएल को देश के कानूनाों से खेलने और राष्ट्रवाद की भावना को दफन बरने की छूट नहीं दी थी। क्या बीसीसीआई-आईपीएल ने देश में एक तरह से सामानंतर सत्ता व्यवस्था कायम नहीं कर रखी थी। बीसीसीआई ने यह नहीं कहा था कि खिलाड़ी भारत के लिए नही बल्कि बीसीसीआई के लिए खेलते है? क्या पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान भारत सरकार के सुरक्षा मुहैया कराने पर मना करने पर आईपीएल-2 को दक्षिण अफ्रीका नहीं ले जाया गया था। आईपीएल-2 को दक्षिण अफ्रीका ले जाने का अर्थ भारत सरकार को आईना दिखाना था। यह भी अहसास करना था कि हम भारत सरकार के दया पर निर्भर नहीं है। सार्वजनिक जगहो पर धूम्रपान करना मना है। इसके अलावा सार्वजनिक जगहों पर अश्लीलता फैलना भी कानूनी तौर पर अपराध है। आईपीएल मैचों के दौरान स्टेडियमो में खुलकर शराब बेची गयी। चीयर्स रीडरों ने अश्लीलता आधारित कानूनों को धजियां उड़ाने की कोई कसर नहीं छोड़ी। स्टेडियमों में सरेआम शराब परोसने और चीयर्स रीडरों के अश्लील नाच से देश भर में आक्रोश पनपा था। पर बीसीसीआई-आईपीएल ने भारतीय कानूनों की धजियां उड़ाने से बाज नहीं आयी और न ही सरकार ने बीसीसीआई-आईपीएल को ऐसा करने से रोका। ऐसे में बीसीसीआई-आईपीएल को ममनर्जी फैलाने और अराजक होने में प्रोत्साहन ही मिला।
बीसीसीआई और आईपीएल का पूरा तंत्र अलोकतांत्रिक और फर्जी बाड़ा पर निर्भर है। आईपीएल चैयरमैन ललित मोदी का निलंबन का प्रश्न भी कम गंभीर नहीं है? जाहिरतौर पर ललित मोदी पर पहले इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया। ललित मोदी के इस्तीफा नहीं देने पर सीधेतौर पर उन्हें निलम्बित कर दिया गया। जबकि ललित मोदी को निलम्बन के पहले नोटिस दिया जाना चाहिए था। नोटिस दिया नहीं गया। खुद ललित मोदी ने अपने उपर अलिखित तौर पर उठाये गये आरोपों के जबाव के लिए पांच दिन का समय मांगा था। वे आईपीएल के गवर्निंग बोर्ड की बैठक में हिस्सा लेने के लिए तैयार थे। आईपीएल के चैयरमैन की हैसियत से ललित मोदी ने बैठक का एजेन्डा भी जारी कर दिया था। आधी रात में ही बिना कोई बैठक किये ही निलम्बन का ईमेल भेज दिया गया। अब यहां सवाल यह उठता है कि आईपीएल की गवर्निंग बोर्ड की बैठक में मोदी को हिस्सा लेने से क्यो रोका गया? बीसीसीआई और अन्य आईपीएल बोर्ड के सदस्यों की परेशानी क्या थी। जबकि फ्रैचायजी टीमें सीधे तौर पर मोदी के समर्थन में थी। जाहिरतौर पर मोदी अगर आईपीएल गवर्निंग बोर्ड की बैठक में होते तो अपने उपर लगे आरोपों का जवाब दे सकते थे और सबकी पोल खोल कर रख सकते थे। ऐसी स्थिति में बीसीसीआई की और बदनामी होती।
बीसीसीआई के अध्यक्ष शंशाक मनोहर का एक बयान काफी कुछ कह देता है। शंशाक मनोहर ने अपने एक बयान में कहा कि ललित मोदी ने शशि थरूर के शेयरों की बात उजागर कर गलती की है और आईपीएल के नियमों को तोड़ा है। शशि थरूर की अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी की बात उजागर होने के बाद ही आईपीएल के खिलाफ देश की राजनीति में उफान उठा था और शथि थरूर को मंत्री पर गंवानी पड़ी थी। विदेश राज्य मंत्री जैसे जिम्मेवार पद पर रहने के बावजूद शशि थरूर द्वारा ललित मोदी पर दबाव डालना एक बड़ा अपराध था। अगर ललित मोदी चुप बैठ गये होते तो शायद आईपीएल के अंदर खाने में क्या कुछ हो रहा है यह बात भी सामने नहीं आती। शंशाक मनोहर के उक्त बयान का सीधा अर्थ यह है कि ललित मोदी ने शशि थरूर के कोच्चि टीम में अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी का प्रश्न उठाकर बीसीसीआई को संकट में डाला है। इसलिए ललित मोदी दंड के अधिकारी हैं।
बीसीसीआई पर कब्जा किये लोगों पर आप एक नजर डाल लीजिये। शरद पवार जैसे राजनीतिज्ञ के कब्जे में पूरी तरह से बीसीसीआई है। शरद पवार ने अपनी राजनीतिक ताकत और फर्जीबाड़ा कर जगमोहन डालमिया से बीसीसीआई को कब्जे में लिया था। जगमोहन डालमियां ही वह शख्त थे जिन्होंने बीसीसीआई को मालोमाल किया। इतना ही नहीं बल्कि डालमिया ने क्र्रिकेट पर अग्रेजों के प्रभाव को महत्वहीन किया था। शरद पवार ने बीसीसीआई को अपने अनुसार जमकर नचाया और बाजारू बनाया। शरद पवार ने अपना टर्म पूरा होने पर बीसीसीआई को अपने लट्टु शंशाक मनोहर को सौंप दिया। शंशाक मनोहर पूरी तरह से शरद पवार के छत्रछाया में बीसीसीआई को संचालित कर रहे हैं। आईपीएल के गड़बड़ झाला में शरद पवार भी दूध को धोये हुए नहीं हैं। शरद पवार की बेटी सुप्रीया के पति पर आईपीएल की एक फ्रैचायजी टीम के शेयर होने के आरोप हैं। शरद पवार की पार्टी के मंत्री प्रफुल्ल पटेल पहले ही आईपीएल विवाद में फंस चुके हैं। प्रफुल्ल पटेल की बेटी पूर्णा पटेल ने अपने पिता के मंत्री पद का नाजायत लाभ उठाया है और अधिकारों का दुरूप्रयोग किया है।
ललित मोदी को आनन-फानन में इसलिए चलता किया गया ताकि बड़े खेलबाजों को बचाया जा सके। बड़े खेलबाज राजनीतिज्ञों, उघोगपतियों और अधिकारियों के कालेधन के उजागर होने से बचाया जा सके। शशि थरूर प्रकरण उठने के बाद आये राजनीतिक तूफान ने मनमोहन सरकार को घेरा। जन दबाव में आकर मनमोहन सिंह सरकार सक्रिय हुईं। सरकार की विभिन्न एजेसिंयों से जांच कराने की सक्रियता भी बढ़ी। आयकर विभाग, पर्वतन निदेशालय के साथ ही साथ गृह मंत्रालय की आईपीएल घोटाले की जांच कर रहा है। संसद में आईपीएल घपलेबाजी की पूरी तह खोलने की वायदा भी मनमोहन सरकार कर चुकी है। प्रारंभिक जांच में यह साबित हो चुका है कि आयकर की चोरी हुई है। सर्विस टैक्स सहित अन्य टैक्सों पर अनियमितता बरती गयी है। खिलाडियों के शर्तनामे भी विवादास्पद हैं। ललित मोदी के निलम्बन मात्र से मनमोहन सरकार को संतुष्ट नहीं होना चाहिए बल्कि बीसीसीआई और आईपीएल की फ्रैचायजी टीमों के बैनामी हिस्सेदारी और लगी ब्लैकमनी को उजागर करना चाहिए। यह भी छानबीन करना होगा कि फ्रैचायजी टीमों में लगी संपत्तियां कहीं राष्ट्रविरोधी तो नहीं हैं?े
m - 09968997060
Saturday, May 1, 2010
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Money transfers have taken place through dozens of entities set up in Nigeria, Mauritius, Hong Kong and in some of the British overseas territories and Crown dependencies such as British Virgin Islands, Isle of Man and Jersey.
ReplyDeleteAll this may be true but what is suspect is that how Indian investigative agencies
become so smart all of a sudden. Within a week of blowing this controversy Mody
has been fired and they have already figured out where the money go.
har shaakh pe ullu baitha hai
ReplyDeleteanjaame gulistan kya hogaaaa...
इब्दिता-ए-इश्क है रोता है क्या.
ReplyDeleteआगे आगे देखिये होता है क्या.