Friday, May 21, 2010

अफजल गुरू की फांसी, कानून व्यवस्था और तुष्टिकरण की सत्ता

कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण से लहूलुहान राष्ट्र की संप्रभुता




विष्णुगुप्त


विश्व में भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां पर राष्ट्रहित-सुरक्षा पर तुष्टिकरण की राजनीति होती है। आतंकवाद जैसी आंच को बुझाने में भी वोट की राजनीति आड़े आती है। सत्ता ही नहीं बल्कि तथाकथित बुद्धीजीवी वर्ग भी देशद्रोहियों और आतंकवादियों के साथ खड़ा हो जाती है। अगर ऐसा नही ंतो फिर संसद हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी चार सालों से क्यों लटकी पड़ी हुई है। अफजल गुरू की फांसी पर क्या कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीतिक खेल खेल नहीं रही है? खासकर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अफजल गुरू की फांसी पर कानून व्यवस्था का सवाल उठाकर रोड़ा डाल दिया है। शीला दीक्षित ने अफजल गुरू की फांसी पर उप राज्यपाल तेजेन्द्र खन्ना को भेजे अपनी सिफारिश में कहा कि फांसी देने से पहले कानून व्यवस्था की स्थिति का आकलन किया जाना चाहिए। शीला दीक्षित के सिफारिश के दो अर्थ निकलते हैं। एक अर्थ में अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने का समर्थन है तो दूसरे अर्थ में विरोध भी है। दूसरे अर्थ ने अपना कमाल दिखाया। इसका परिणाम देखिये। दिल्ली के उप राज्यपाल तेजेन्द्र खन्ना फांसी की फाइल को वापस भेजने के लिए मजबूर हुए। फिर वापस फांसी की फाइल शीला दीक्षित के पास आ गयी। अब शीला दीक्षित दुबारा कब फांसी की फाइल को उप राज्यपाल के पास भेजेगी, इस संबंध मे कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। ऐसे भी शीला दीक्षित के सामने कोई संवैधानिक मजबूरी भी नहीं है। दिल्ली और केन्द्र में दोनों जगह कांग्रेस की सरकार है। इसलिए शीला दीक्षित के सामने कोई राजनीतिक संकट भी सामने नहीं आयेगा। कांग्रेस प्रारंभ से ही अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने के प्रसंग पर ईमानदार नहीं रही है। तीखे आलोचनाओं और राजनीतिक विरोध के निशाने पर कांग्रेस के रहने के बाद भी अभी तक अफजल गुरू की फांसी स्थायी रूप से स्थगित होने की स्थिति में रखने का सीधा मकसद मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति है। कांग्रेस सत्ता नीति और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति एक-दूसरे से गंभीरता के साथ जुड़ी हुई है। बाबरी मस्जिद के ढ़ाचे के ध्वस्तीकरण के बाद मुस्लिम जनमत कांग्रेस से अलग हो गया था। पिछले दो लोकसभा चुनावों में फिर से मुस्लिम जनमत कांग्रेस के साथ मजबूती के साथ जुड़ा। कांग्रेस को डर है कि अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने में उसका मुस्लिम समर्थन दूर हो जायेगा। अफजल गुरू संसद हमले का दोषी है और उसे देश का सर्वोच्च न्यायालय ने फांसी की सजा दी है। राष्ट्रहित और राष्ट्र की सुरक्षा के मद्देनजर अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने में देरी नहीं होनी चाहिए। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अफजल गुरू के फांसी पर लटकाने पर आतंकवादियों और उसके आका पाकिस्तान को एक कड़ा संदेश व सबक मिलेगा। भारत के नरम राष्ट्र होने की गलत फहमी भी टूटती।

अफजल गुरू की फांसी वाली फाइल चार सालों तक किस मकसद से कांग्रेस दबा कर रखी। क्या यह जानने का अधिकार देश की जनता को नहीं है। इंदिरा गाधी के हत्यारों का नजीर हमारे सामने मौजूद है। शीला दीक्षित जैसा ही तर्क दिया जा रहा था कि सिख हत्यारों को फांसी पर लटकाने से देश की संप्रभुता खतरे में होगी, सिख फिर से पाकिस्तान के मोहरे बनेंगे, पंजाब में आयी शांति दूर हो जायेगी, पंजाब में फिर से आतंकवाद चरम पर होगा। विदेशों में बसे सिखों की धममियां अलग से थीं। इन सभी अशांकाओं से अलग हटकर इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी दी गयी। कहीं से भी राष्ट्र की संप्रभुता पर कोई आंच नहीं आयी। इसी तरह अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने पर शीला दीक्षत की चिंताएं कोई पहाड़ नहीं तोड़ पायेगी। कश्मीर जैसे जगहों पर कुछ विरोध चिंगारियां जरूर फुटेंगी। वहां पर ऐसे भी शांति कब रही है। देश के सभी भागों से मुस्लिम संवर्ग इस सवाल से आंदोलित होगा, ऐसा भी नहीं है।
चार साल बनाम 16 रिमाइंडर -

अफजल गुरू की फांसी की फाइल चार सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की अलमारियों की धूल फांकती रही। चार साल पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने संसद हमले में अफजल गुरू को फांसी की सजा सुनायी थी। जिस समय सुप्रीम कोर्ट ने अफजल गुरू को फांसी की सजा सुनायी थी उस समय भी अफजल गुरू देश की संप्रभुता के खिलाफ सरेआम आग उगला था। संसद हमले में अफजग गुरू के साथ ही साथ दिल्ली के एक कश्मीरी मूल के प्राध्यापक की भी संलिप्तता थी पर पुलिस की लचर जांच व्यवस्था का लाभ उसे मिला था। सुप्रीम कोर्ट ने उस प्राध्यापक को तो बरी किया था पर यह भी कहा था कि उस प्राध्यापक की भूमिका संदिग्ध जरूर थी। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार अफजल गुरू ने फांसी की सजा पर माफी की मांग राष्ट्रपति से की थी। राष्ट्रपति ने केन्द्र सरकार से अफजल गुरू की फांसी पर राय मांगी। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार को फांसी वाली फाइल भेजी। फांसी की फाइल पर शीला दीक्षित कुंडली मार कर बैठ गयी। कोई एक दो दिन नहीं बल्कि पूरे चार सालों तक वह फाइल को दबाये बैठी। इस दौरान गृहमंत्रालय ने 16 बार रिमाइंडर भेजी। 16 रिमाइंडरों पर शीला दीक्षित ने फांसी वाली फाइल दबाये जाने का कोई कारण नहीं बतायी। शीला दीक्षित की सिफारिश के कुछ दिन पूर्व ही केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने इस पर नाखुशी जतायी थी। इस नाखुशी पर स्वयं शीला दीक्षित ने केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम से मुलाकात की थी। जाहिर तौर पर पी चिदम्बरम ने शीला दीक्षित को फांसी की फाइल की सक्रियता बढ़ाने का निर्णायक सलाह दी होगी। शीला दीक्षित मजबूरी में फांसी वाली फाइल उप राज्य पाल को भेजी। यह राजनीतिक तौर पर प्रमाणित बात है।

कानूनी अड़चनों से घबरायी सरकार-

कानूनी प्रावधानों का भी सवाल उठ खड़ा था। खासकर केन्द्रीय गृहमंत्रालय की परेशानी इस प्रसंग पर बढ़ी थी। विपक्षी दल भाजपा की बौखलाहट भी कम नहीं थी। भाजपा लोकसभा और राज्य सभा में कई बार तीखे प्रश्न उठा कर अफजल गुरू पर मुस्लिम तुष्टिकारण का कार्ड खेलने का आरोप लगायी थी। राष्ट्रपति जैसे गरिमापूर्ण पद पर लांछन लग रहा था। सुप्रीम कोर्ट मे भी अफजल गुरू की फांसी पर दया की मांग का प्रसंग जा सकता था। आखिर कितने दिनों तक कोई सरकार अपने सत्ता नीति और स्वार्थ में एक राष्ट्रद्रोही और आतंकवादी को फांसी पर चढ़ाने से रोक सकती है। कानून और संविधान में समयबद्धता का बंधन नहीं है पर सर्वोच्च न्यायालय का संविधान पीठ इस प्रसंग पर नयी व्याख्या दे सकती है। कई ऐसे मामले पहले भी आये जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने नयी व्यवस्था दी है। अगर यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में जाता तो यूपीए सरकार की फजीहत होती और उस पर मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनाने जैसे आरोप लगते। ऐसी स्थिति से बचने के लिए ही कांग्रेस ने अफजल गुरू की फांसी वाली फाइल को सक्रिय करने के लिए तैयार हुई है। यह सही माना जाना चाहिए कि शीला दीक्षित ने जो कानून व्यवस्था का अड़चन डाला है वह भी कांग्रेस की एक सोची समझी नीति का हिस्सा है। ऐसा इसलिए कि कांग्रेस को अफजल की फांसी को अधर में लटकाने का और समय मिल जायेगा।

इंदिरा गांधी के हत्यारों की फांसी एक नजीर-

इंदिरा गाधी के हत्यारों का नजीर हमारे सामने मौजूद है। इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी देने के समय भी कानून व्यवस्था का सवाल उठा था। सिख हत्यारों को फांसी पर लटकाने का देश भर में विरोध हुआ था। शीला दीक्षित जैसा ही तर्क दिया जा रहा था कि सिख हत्यारों को फांसी पर लटकाने से देश की संप्रभुता खतरे में होगी, सिख फिर से पाकिस्तान के मोहरे बनेंगे, पंजाब में आयी शांति दूर हो जायेगी, पंजाब में फिर से आतंकवाद चरम पर होगा। इत्यादि-इत्यादि। विदेशों में बसे सिखों की धममियां अलग से थीं। राजनीतिक बहादुरी दिखायी गयीं। इन सभी अशांकाओं से अलग हटकर इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी दी गयी। कहीं से भी राष्ट्र की संप्रभुता पर कोई आंच नहीं आयी। संदेश गहरे थे और सबके कड़े थे। इस गहरे संदेश और सबक को सिख समाज ने सकारात्मक रूप से लिया। सिख समाज ने खुद आतंकवाद से लड़ने का काम किया। सिख समाज की बहादुरी से आज पंजाब फिर से देश का सिरमौर है। इसी तरह अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने पर शीला दीक्षत की चिंताएं कोई पहाड़ नहीं तोड़ पायेगी। कश्मीर जैसे जगहों पर कुछ विरोध चिंगारियां जरूर फुटेंगी। वहां पर ऐसे भी शांति कब रही है। देश के सभी भागों से मुस्लिम संवर्ग इस सवाल से आंदोलित होगा, ऐसा भी नहीं है।

कड़े सबक-संदेश की जरूरत

भारत की छवि एक नरम राष्ट्र की है। पाकिस्तान और आतंकवादी यह समझते हैं कि भारत एक कायर और डरपोक राष्ट्र है। भारत सिर्फ बयानों और कागजों में ही वीरता दिखा सकता है। इस छवि छुटकारा पाना निहायत ही जरूरी है। हमने विगत मे आतंकवादियो को छोड़कर और उनसे समझौते कर एक राष्ट्र की सबलता-जीवंतता पर कुल्हाड़ी मारी है। खूखांर आतंकवादियों को काबूल ले जाकर छोड़ना हमारे राष्ट्र के उपर एक कंलक के समान है। इसीलिए हम आतंकवाद का आसान शिकार है और हमारी संप्रभुता लहूलुहान भी है। आतंक के बल पर कश्मीर छीनने की कोशिश जारी है। आतंकवादी यह मान बैठे हैं कि भारत की राजनीतिक स्थितियां और कमजोर कानून से उनका कुछ भी नहीं बिगड़ सकता है। आतंकवादियों के आका पाकिस्तान भी कुछ ऐसे दिलासे और आश्वासन आतंकवादियों को देता रहा है। अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने से आतंकवादियों के बीच डर कायम होगा। भारत के खिलाफ अघोषित युद्ध और खूनी राजनीति पर अंकुश लगेगा। सही यह भी है कि हमें अपने घर के तथाकथित बुद्धीजीवियों का प्रबंधन करना होगा। देश का तथाकथित बुद्धीजीवी संवर्ग हमेशा राष्ट्रहित की कीमत परहित की फसल लहलहहाते हैं। आतंकवाद का समर्थन करने में भी इन्हें गुरेज नहीं होता। देश में आतंकवाद और पाकिस्तान समर्थक बुद्धीजीवियों की एक बड़ी फौज खड़ी हो गयी। बुद्धीजीवियों की इस फौज को उर्जा कहां से मिलती है। सिगरेट कहां से मिलती है? कीमती गाड़िया, जीन्स और पंचसितारा सुविधाएं कहां से मिलती हैं। अब इस पर भी गौर करना होगा। क्या कांग्रेस अफजल गुरू को फांसी पर लटकायेगी? असली सवाल यही है। कांग्रेस और यूपीए सरकार को इस प्रसंग में दबाव बनाने के लिए जनमत की सक्रियता की जरूरत होगी।


मोबाइल - 09968997060

4 comments:

  1. ....प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!

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  2. कल को यह भी कहेंगे कि माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई से चीन के नाराज होने का अंदेशा है.

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  3. विस्तृत और विचारणीय लेख !
    सब कुछ माता जी की कृपा पर निर्भर है आजकल !

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  4. यह भी कह सकते हैं कि बलात्कारी और हत्यारे को फांसी देने से उसके गांव में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है..

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