भोपाल गैस कांड फैसला
न्याय की हत्या, दोषी सरकारी-न्यायिक प्रक्रिया ?
वारेन एडरसन पर मेहरबानी क्यों?
विष्णुगुप्त
महत्वपूर्ण यह नहीं है कि भोपाल गैस कांड के आठ अभियुक्तों को न्यायालय ने दोषी ठहराया है, उन्हें दो-दो साल की सजा सुनायी है या अब भोपाल गैस कांड के पीड़ितों को न्याय मिल ही गया। महत्पूर्ण यह है कि भोपाल गैस कांड के अभियुक्तों दंडित करने में 25 साल का समय क्यों और कैसे लगा। न्याय की इतनी बड़ी सुस्ती और कछुआ चाल। क्या गैस पीड़ितों की इच्छानुसार यह न्याय हुआ है? क्या सीजीएम कोर्ट के फैसले से गैस पीड़ितों के दुख-दर्द और हुए नुकसान की भरपाई हो सकती है। मुख्य आरोपी ‘ यूनियन कार्बाइड कम्पनी के चैयरमैन वारेन एडरसन पर न्यायालय द्वारा कोई टिप्पणी नहीं होने का भी कोई अर्थ निकलता है क्या। भोपाल जिला के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने मोहन तिवारी द्वारा यूनियन कर्बाइड के आठ तत्कालिन पदाधिकारियों को दो-दो साल की सजा जरूर सुनायी गयी पर यूनियन कार्बाइड के मालिक वारेन एडरसन पर कोई टिप्पणी नहीं हुई है। वारेन एडरसन पिछले 25 साल से फरार घोषित है। सीबीआई अबतक वारेन एडरसन का पत्ता ढुढ़ने में नाकामयाब रही है।
सजा नरसंहारक धाराओं से नहीं बल्कि लापरवाही की धाराओं से सुनायी गयी है। भारतीय कानून संहिता की धारा 304 ए के तहत सुनायी गयी है जो लापरवाही के विरूद्ध धारा है। लापरवाही नहीं बल्कि जनसंहारक जैसा अपराध था। भोपाल गैस पीड़ितों की मांग भी थी कि यूनियन गैस कर्बाइड के खिलाफ हत्या का मामला चलाया जाये पर पुलिस और सरकार का रवैया इस प्रसंग में यूनियन गैस कार्बाइड की पक्षधर वाली रही है। यही कारण है कि 25 सालों से फरार युनियन गैस कर्बाइड के मालिक वारेन एडरसन की गिरफ्तारी तक संभव नहीं हो सकी है। गैस पीड़ितों का संगठन इस फैसले से कतई खुश नहीं हैं और इनकी मांग दोषियों की फांसी की सजा मुकर्रर कराना है। गैस पीड़ितों की लडाई लड़ने वाले अब्दुल जबार ने इस फैसले को न्यायिक त्रासदी करार दिया है और न्यायिक मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ और अभियुक्तों को फांसी दिलाने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खट-खटाने का एलान किया है।
भारतीय सत्ता व्यवस्था एडरसन के हित को सुरक्षित रखने में कितना संलग्न था और पक्षकारी था। इतने बड़े नरसंहारक घटना के लिए मुख्य दोषी को रातोरात जमानत कैसे मिल जाती है? घटना के बाद पांच दिसम्बर 1984 को एडरसन भारत आया था। पुलिस उसे गिरफतार करती है पर एडरसन को जेल नहीं भेजा जाता है। गेस्ट हाउस में रखा जाता है। गैस हाउस से ही उसे जमानत मिल जाती है। इतना ही नहीं बल्कि भोपाल से दिल्ली आने के लिए भारत सरकार हवाई जहाज भेजती है। भारत सरकार के हवाईजहाज से एडरसन दिल्ली आता है और फिर अमेरिका भाग जाता है। अभी तक एडरसन अमेरिका में ही रह रहा है। ज्ञात तौर पर उसकी सक्रियता बनी हुई है। विभिन्न व्यापारिक और औद्योगिक योजनाओं में न केवल उसकी सक्रियता है बल्कि उसके पास मालिकाना हक भी है। इसके बाद सीबीआई वारेन एडरसन का पत्ता नहीं खोज पायी है। अभी तक वह भारतीय न्यायप्रकिया के तहत फरार ही है।
दुनिया की सबसे बड़ी औद्याोगिक त्रासदी...................................................
भोपाल गैस कांड दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी थी। 02 दिसम्बर 1984 को भोपाल की आबादी पर यूनियन गैस कार्बाइड का कहर बरपा था। घोर लापरवाही के कारण भोपाल गैस काबाईड से मिथाइल आइसोसायनाइट गैस का रिसाव हुआ था। मिथाइल आइसोसायनाइट के रिसाव ने न सिर्फ फैक्टरी के आस-पास की आबादी को अपने चपेट मे लिया था बल्कि हवा के झोकों के साथ दूर-दूर तक निवास करने वाली आबादी तक अपना कहर फैलाया था। गैस रिसाव से सुरक्षा का इंतजाम तक नहीं था। दो दिन तक फैक्टरी से जहरीली गैसो का रिसाव होता रहा। फैक्टरी के अधिकारी गैस रिसाव को रोकने के इंतजाम करने की जगह खुद भाग खड़े हुए थे। गैस का रिसाव तो कई दिन पहले से ही हो रहा था। फैक्टरी के आसपास रहने वाली आबादी कई दिनों से बैचेनी महसूस कर रही थी। इतना ही नहीं बल्कि उल्टी और जलन जैसी बीमारी भी घातक तौर पर फैल चुकी थी। उदासीन और लापरवाह कम्पनी प्रबंधन ने इस तरह मिथाइल गैस आधारित बीमारी पर गौर ही नहीं किया था।
मिथाइल आइसोसायनाइट गैस की चपेट में आने से करीब 15 हजार लोगो की मौत हुई थी। पांच लाख से अधिक लोग घायल हुए थे। जहरीली गैस के चपेट में आने से प्रभावित सैकड़ो लोग बाद में मरे हैं। इतना ही नहीं बल्कि आज भी हजारों पीड़ित ऐसे हैं जो जहरीली गैस के प्रभाव से मुक्त नहीं है। भोपाल गैस कर्बाइड की आस-पास की भूमि जहरीली हो गयी है। पानी में मिथाइल गैस का प्रभाव गहरा है। सबसे बड़ी बात यह है कि भोपाल गैस कांड के बाद में जन्म लेने वाली पीढ़ी भी मिथाइल गैस के प्रभाव से पीड़ित हैं और उन्हें कई खतरनाक बीमारियां विरासत में मिली हैं।
म्ुाुआबजा के नाम पर धोखाधड़ी....................................................................................
म्ुाुआबजा के नाम पर धोखाधड़ी हुई है। इस धोखाधड़ी में भारत सरकार और मध्य प्रदेश के तत्कालीन सरकारों के हाथ कालें हैं। यूनियन कार्बाइड कम्पनी के साथ सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थतता में मुआबजा के लिए एक समझौता हुआ था। समझौते में एक तरह से भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के साथ अन्याय ही नहीं हुआ था बल्कि उनके संघर्ष और भविष्य पर भी नकेल डाला गया था। जबकि यूनियन कार्बाइड को कानूनी उलझन से मुक्त कराने जैसी शर्त को माना गया था। शर्त के अनुसार यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन,यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड,यूनियन कार्बाइल हांगकांग और वारेन एडरसन के खिलाफ चल रही सभी अपराधिक न्यायिक प्रक्रिया को समाप्त मान लिया गया। इसके बदले में भोपाल गैस कांड के पीड़ितो को क्या मिला, यह भी देख लीजिए? 713 करोड़ रूपये मात्र मुआबजे के तौर पर यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन ने दिये थे। दुनिया की सबसे बड़ी औधोगिक त्रासदी और 15 हजार से ज्यादा जानें छीनने वाली व पांच लाख से ज्यादा की आबादी को पीड़ित करने वाली इस नरसंहारक घटना की मुआबजा मात्र 713 करोड़ रूपये। भारत सरकार की अतिरूचि और यूनियन गैस कार्बाइड कारपोरेशन के प्रति अतिरिक्त मोह ने गैस पीड़ितों के संभावनाओं का गल्ला घोट दिया। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस नरसंहारक घटना में सैकड़ों लोग ऐसे मारे गये थे जिनके पास न तो कोई रिहायशी प्रमाण थे और न ही नियमित पत्ते का पंजीकरण था। ऐसे गरीब हताहतों के साथ न्याय नहीं हुआ। उन्हें मुआबजा भी नहीं मिला। सरकारी कामकाज के झंझटों के कारण भी मुआबजा की राशि दुर्बल और असहाय लोगों तक नहीं पहुंची।
एडरसन को मिला सरकारी रक्षाकवच..........................................................................
यूनियन गैस कार्बाइड कारपोरेशन के मालिक वारेन एडरसन के साथ भारत सरकार का विशेषाधिकार जुड़ा हुआ था। पुलिस-प्रशासन और न्यायपालिका भी वारेन एडरसन के प्रति नरम रूख जताया था। पुलिस-प्रशासन, केन्द्र-मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकारें और न्यायपालिका का नरम रूख नहीं होता और पक्षकारी भूमिका नहीं होती तो क्या वारेन एडरसन भारत से भागने में सफल होता। ऐसे तथ्य हैं जिससे साफ झलकता है कि भारतीय सत्ता व्यवस्था एडरसन के हित को सुरक्षित रखने में कितना संलग्न था और पक्षकारी था। इतने बड़े नरसंहारक घटना के लिए मुख्य दोषी को रातोरात जमानत कैसे मिल जाती है? घटना के बाद पांच दिसम्बर 1984 को एडरसन भारत आया था। पुलिस उसे गिरफतार करती है पर एडरसन को जेल नहीं भेजा जाता है। गेस्ट हाउस में रखा जाता है। गैस हाउस से ही उसे जमानत मिल जाती है। इतना ही नहीं बल्कि भोपाल से दिल्ली आने के लिए भारत सरकार हवाई जहाज भेजती है। भारत सरकार के हवाईजहाज से एडरसन दिल्ली आता है और फिर अमेरिका भाग जाता है। अभी तक एडरसन अमेरिका में ही रह रहा है। ज्ञात तौर पर उसकी सक्रियता बनी हुई है। विभिन्न व्यापारिक और औद्योगिक योजनाओं में न केवल उसकी सक्रियता है बल्कि उसके पास मालिकाना हक भी है। इसके बाद सीबीआई वारेन एडरसन का पत्ता नहीं खोज पायी है। अभी तक वह भारतीय न्यायप्रकिया के तहत फरार ही है।
फैसले को न्यायिक त्रासदी दिया करार...................................
गैस पीड़ितों के लिए लडाई लड़ने वाले हरेक संगठन ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के इस फैसले को न्यायिक त्रासदी करार दिया है। अव्दुल जबार कहते है कि पीड़ितों पर पहले औद्योगिक त्रासदी का नरसंहार हुआ और अब न्यायिक त्रासदी हुई है। जिम्मेवार और लापरवाह अभियुक्तों को फांसी मिलनी चाहिए थी लेकिन उन्हें मात्र दो-दो साल का जेल की सजा हुई है और एक-एक लाख का जुर्माना हुआ है। यह सजा कुछ भी नही है। क्या 15 हजार से ज्यादा गंवायी गयी जान और पांच लाख से ज्यादा हुए अपाहिज लोगों की पीड़ा को यह सजा कम कर पायेगी? इसका उत्तर कदापि में नहीं है। गैस पीडितों की नाराजगी समझी जा सकती है। गैस पीड़ित न्यायिक मजिस्ट्रेट के इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करने का एलान कर चुके हैं। जहां से न्याय की उन्हें उम्मीद तो होगी पर संधर्ष भी कम नहीं होगा। सबसे अधिक चिंताजनक बात यह है कि न्यायिक मजिस्टेट के फैसले में मुख्य दोषी वारेन एडरसन पर कोई टिप्पणी नहीं है। एडरसन पर टिप्पणी न होना भी गैस पीड़ितों की पीड़ा और संधर्ष की राह मुश्किल करता है।
एडरसन को सजा क्यों न मिले..............................................
दुनिया में अन्य कोई जगह पर ऐसी नरसंहारक औद्योगिक त्रासदी हुई होती तो निश्चित मानिये की एडरसन इस तरह अबाधित और निश्चित होकर अपनी सक्रियता नहीं दिखा सकता था। उसकी जगह जेल होती। लेकिन भारत जैसे देश की सरकार जनता के प्रति नहीं बल्कि औद्योगिक घरानो के हित को साधने ज्याद तत्पर रहती है। भारत सरकार को अब अपनी सोच बदलनी चाहिए। भोपाल गैस कांड के पीड़ितों को न्याय मिलें। ऐसी सरकारी प्रक्रिया क्यों नहीं चलनी चाहिए? अमेरिका पर कूटनीतिक दबाव डालना चाहिए कि एडरसन को पकड़कर भारत को सौंपा जाये। अमेरिका भारत के साथ मधुर सबंधों की रट रोज लगाता है। लेकिन भोपाल गैस कांड के मुख्य आरोपी को उसने एक तरह से संरक्षण दिया हुआ है। हेडली का प्रकरण भी हमें नोट करने की जरूरत है। ऐसे में दोस्ती का क्या मतलब रह जाता है। भारत सरकार को खरी-खरी बात करनी होगी। अमेरिका से कहना होगा कि एडरसन भारतीय न्यायपालिका से फरार घोषित है। इसलिए उसकी जगह भारतीय जेल है। सीबीआई एडरसन पर तभी सक्रियता दिखा सकती है जब भारत सरकार ऐसी इच्छा रखेगी। क्या भारत सरकार एडरसन को भारत लाने के लिए कूटनीतिक पहल फिर से करेगी? शायद नहीं। ऐसी स्थिति में गैस पीड़तों की संघर्ष की राह और चौड़ी होगी।
सम्पर्क............
मोबाइल - 09968997060
Tuesday, June 8, 2010
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kaun saja dega anderson ko???
ReplyDelete...नो कमेंटस !!!
ReplyDeleteभारत का हिरोशिमा
ReplyDeleteहमें जरुरत नहीं है,
किसी
पड़ोसी ताकत की
जो
हमें बर्बाद करने के लिए
खुद बर्बाद हो जाए
हमारे लिए तो
हमारे चुने हुए
प्रतिनिधि ही
किसी
परमाणु बम से
कम नहीं है
ये
किसी एंडरसन को
भोपाल तो दे सकते है
पर
भोपाल को
एंडरसन देना
इनकी औकात नहीं है
वैसे
औकात से पहले
इनकी नियत पे
शक होता है
और
नियत तक तो बात
तब पहुँचे जब
किसी के
इंसान होने की
भी
थोड़ी संभावना हो
भोपाल सबक है
विकास के पीछे
अंधी दौड़ में
शामिल
तथाकथित
विकासशील देशों के लिए
जो
अमेरिका
और
जापान
से
होड़ में
ऐसे कितने
हिरोशिमा
और
नागासाकी
लिए
बैठे है
भोपाल में
गैस अब भी
रिस रही है
तब इसमे
इंसान मरे थे
अब
इंसानियत
मर रही है !
Tarun K Thakur
www.whoistarun.blogspot.com
doshi vo bhi hain jo inhe stta tk phunchate hain
ReplyDeletedr.vedvyathit
Udarikaran ke is daur mai audhugik roop se itna aage hone ke bad bhee hamari nayayk bayastha itni nikammi kyoun hai? Hum viktoriya youg mai kyoun jee rahe hai? Hum kiske bharose baithe hai jo cheejo ko sudhare? Aage badhkar cheejo ko theek karne ki himmant hum kyoun nahi dikhate? Kya hamari siksha kayaro ki fauj taiyar kar rahi hai jo kuch karne ke bajaye sirf babasi ke aansu bahate hai.
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