Wednesday, May 5, 2010

प्रेमी प्रियभांषु को सजा कौन दिलायेगा?

राष्ट्र-चिंतन



प्रेमी प्रियभांषु को सजा कौन दिलायेगा?

ऑनर किलिंग से बच सकती थी महिला पत्रकार निरूपमा


विष्णुगुप्त


सिर्फ प्रियभांषु को मालूम था कि निरूपमा ऑनर किलिंग का ग्रास बनने जा रही है। क्या उसने निरूपमा की जान बचाने के लिए पुलिस और हाईकोर्ट में गुहार लगायी ? वह चुपचाप निरूपमा को ऑनर किलिंग के ग्रास में जाते देखता रहा।   कब चिल्लाया? वह महिला आयोग और पत्रकार संगठनों का दरवाजा कब खट-खटकाया? मीडिया में अपनी खतरनाक प्रेम कहानी कब खोली? जब निरूपमा की हत्या हो चुकी थी। निरूपमा के परिजनों को सजा हो ही जायेगी पर निरूपमा की जान वापस आयेगी क्या? विवाह पूर्व असुरक्षित-खतरनाक यौन संबंध का ी दोषी है प्रियभांषु।

ऑनर किलिंग से महिला पत्रकार निरूपमा बच सकती थी। निरूपमा पाठक और प्रियभांषु रंजन की खतरनाक, असुरक्षित, लापरवाह और गैरजिम्मवार प्रेम कहानी के कई ऐसे पत्रडाव थे जहां पर दिल नहीं दिमाग और नैतिकता सक्रिय होती तो ऑनर किलिंग की नौबत आती नहीं या फिर ऑनर किलिंग के रास्ते अपनाने से पहले ही उसके परिजनों को कानून का पाठ पत्रढाया जा सकता था। परिजनों के चुंगुल से निरूपमा मुक्त ी हो सकती थी। खतरनाक, असुरक्षित, लापरवाह, गैरजिम्मेदार और नैतिकहीन प्रेम कहानी की संज्ञा देने में यहां कोई पूर्वाग्रह नहीं है बल्कि यर्थाथ है, सच्चाई है। इस सच्चाई और यथार्थ में निरूपमा के प्रेमी पत्रकार प्रियभांषु ी कहीं न कहीं दोषी के रूप में खत्रडा है। हालांकि अ ी तक सच्चाई और यथार्थ के दृष्टिकोण से प्रेमी प्रिय ाषु रंजन ी दोषी है, मीडिया या अन्य चिंतक वर्ग ने ंिचंतन ही नहीं किया है। जबकि पूरे तथ्य इस प्रकरण में सूक्षमता और गहणता के साथ चिंतन की माग जरूर करता है। क्या महिला पत्रकार निरूपमा गर् वती नहीं थी। उसके गर् में एक-दो नहीं बल्कि चार माह से अधिक का शिशु पल रहा था। यह गर् जाहिरतौर पर असुरक्षित यौन संबध का परिणाम था। क्या नैतिकता शादी के पूर्व असुरक्षित यौन संबंध की इजाजत देती है?प्रियभांषु रंजन यह कहकर इस दोष से बच नहीं सकते हैं कि वह अज्ञानी था, मजदूर या अन्य अशिक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था। प्रियभांषु रंजन देश का सबसे बत्रडी समाचार एजेन्सी में पत्रकार है। इसलिए वह समाज का सबसे बत्रडा जागरूक वर्ग से जुत्रडा हुआ है। रेडियो, टेलीविजन और अखबारों में असुरक्षित यौन संबंधों से संबंधित विज्ञापन और उसके परिणामों की चेतावनी सालों-साल से जारी है। यहां तक कि दीवार और होल्डिंगों पर ी ी यह चेतावनी नियमित प्रसारित होती है,अंकित होती है। क्या ऐसे विज्ञापन और चेतावनी एक पत्रकार के लिए कोई मायने नहीं रख्ता है तब हम समाज के अन्य कम जागरूक वर्ग से उम्मीद क्या कर सकते हैं? चार माह के गर् के बाद ी शादी का विकल्प क्यों नहीं चुना गया। यह कह देने मात्र से कि वह दोष से बरी नहीं हो सकता है कि निरूपमा के परिजन तैयार नहीं थे। कोर्ट मैरेज का विकल्प क्यो नहीं चुना गया। निरूपमा की जान खतरे में थी और वह धीरे-धीरे ऑनरकिलिंग की परिस्थितियों से धिर रही थी तब पुलिस और न्यायालय सहित मीडिया संस्थानों की सहायता क्यों नहीं ली गयी। पुलिस, न्यायालय और मीडिया संस्थानों के हस्तक्षेप से ऑनर किलिंग से निरूपमा बच सकती थी और वापस दिल्ली आ सकती थी।

निरूपमा अब इस दुनिया में नहीं है। इसलिए उसके प्रति प्रियभांषु कितना समर्पित था और ईमानादार था, इसे भी शक की निगाह से देखी जानी चाहिए। कही प्रियभांषु निरूपमा के साथ दोहरा खेल तो नहीं खेल रहा था। मोहरे से मोहरे लडाने में तो वह नहीं लगा था। निरूपमा के गर् को वह उसके घर वालों के माध्यम से ही निपटाना चाहता था क्या? क्योंकि गर् का प्रश्न हल हो जाने के बाद प्रियभांषु शादी के झमेले में पडने से ी बच सकता था। अगर ऐसी धारणा सही हो सकती है तो निरूपमा अपने परिजनों के साथ ही साथ अपने प्रेमी प्रियभांषु की भी साजिश का शिकार हुई है?



सिर्फ प्रियभांषु को मालूम था कि निरूपमा ऑनर किलिंग का ग्रास बनने जा रही है। क्या उसने निरूपमा की जान बचाने के लिए पुलिस और हाईकोर्ट में गुहार लगायी ? वह चुपचाप निरूपमा को ऑनर किलिंग के ग्रास में जाते देखता रहा। प्रियभांषु कब चिल्लाया? वह महिला आयोग और पत्रकार संगठनों का दरवाजा कब खट-खटकाया? मीडिया में अपनी खतरनाक प्रेम कहानी कब खोली? जब निरूपमा की हत्या हो चुकी थी। निरूपमा के परिजनों को सजा हो ही जायेगी पर निरूपमा की जान वापस आयेगी क्या? विवाह पूर्व असुरक्षित-खतरनाक यौन संबंध का ी दोषी है प्रियभांषु।


प्रेमी प्रियभांषु रंजन पर एक और गं ीर लापरवाही सामने आती है। प्रियभांषु के शब्दों में निरूपमा पाठक के परिजन किसी ी परिस्थिति में शादी नहीं होने देने के लिए कटिबद्ध थे। इसके लिए निरूपमा के परिजन प्यार, लोकलाज से लेकर इज्जत का ी हवाला देकर निरूपमा को प्रियभांषु से अलग करने की कोशिश हुई थी। निरूपमा पर उसके परिजनों ने कठोरता ी बरती थी।प्रियभांषु रंजन की ये स ी बातें सही हैं। ऐसी प्रक्रिया चली होगी। ऑनर किलिंग से पहले निरूपमा के परिजन ये स ी हथकंडे जरूर अपनाये होंगे। जो परिवार और जो घराना ऑनर किलिंग कर सकता है वह परिवार और घराना उसके पहले अपनी इज्जत का हवाला देकर कुछ ी कर सकता है। पिता द्वारा निरूपमा पाठक को लिखी गयी चिट्ठी ी इसकी गवाही देती है। यह सब यहां यह जताने के लिए तथ्य और ऑनर किलिंग की स्थितियां बतायी जा रही है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि निरूपमा खतरे से घिरी हुई थी। खतरा उसके परिजनों से ही था। यह ी ज्ञात हुआ है कि वह कई महीनों से घर नहीं गयी थी। इस खतरे को देखते हुए ी निरूपमा अपने मां-पिता से मिलने झारखंड की कोडरमा शहर अपने घर गयी और जाने दिया गया। आम समझ यह है कि जब निरूपमा पर खतरा था वह ी ऑनर किलिंग की स्थितियां उत्पन्न होने या फिर उसके ग्रास बनाये जाने की तब निरूपमा को दिल्ली से कडोरमा जाने ही क्यों दिया गया। तर्क यह दिया जा रहा है कि उसकी मां ने अपनी बीमारी की झूठी खबर देकर बुलायी थी। यह तो पहले से ही स्पष्ट था कि उसके परिजन किसी ी खतरनाक और लोमहर्षक प्रक्रिया को अपना सकते हैं। ऐसी स्थिति में प्रिय ांषु रंजन को निरूपमा को कोडरमा जाने से रोकना चाहिए था। यह ी स्पष्ट हुआ है कि निरूपमा के प्रिय ाषु के साथ प्यार और शादी के लिए जिद करने की जानकारी परिजनों को थी पर वह चार महीने की गर् वती थी यह जानकारी निरूपमा के घर आने पर ही उसके परिजनो को हुई होगी। गांवों और कस्बायी महिलाओं को एक-दो दिन के गर् के लकक्षण ी पता चल जाता है। वह तो चार माह की गर् वती थी।

निरूपमा ऑनर किलिंग की ग्रास बनने की ओर अग्रसर हो रही है। ऐसी जानकारियां निरूपमा अपने प्रेमी प्रियभांषु रंजन को देती रही थी। एसएमएस और मोबाइल कॉल के द्वारा। टेलीविजनों और प्रिंट मीडिया में ी निरूपमा द्वारा प्रिय ांषु रंजन को ेजे गये एसएमएस दिखाया गया। एसएमएस में निरूपमा लिखती है कि कोई एक्सटीम एक्शन मत लेना। यानी निरूपमा को अपनी हत्या की आशंका ही नहीं बल्कि पूरा विश्वास हो गया था। वह जान रही थी कि अब उसका बचना मुश्किल है। उसके ाई और ाई के दोस्त उस पर नजर रखे हुए थे। मां और पिता वापस दिल्ली आने देने के लिए किसी ी परिस्थिति में तैयार नहीं थे। जबकि निरूपमा दिल्ली आना चाहती थी और अपना कैरियर जारी रखना चाहती थी। ऐसी सूचना मिलने पर तत्काल उसे सहायता की जरूरत थी। पर निरूपमा को सहायता मिली नहीं। निरूपमा की जान खतरे में है यह जानकारी सिर्फ और सिर्फ प्रियभांषु रंजन को थी। प्रियभांषु ने निरूपमा को सुरक्षा दिलाने और उसकी जान बचाने की कोई कार्रवाई नहीं की। प्रियभांषु रंजन झा रंजनरखंड ओर कोडरमा पुलिस से निरूपमा की जान बचाने की गुहार लगा सकता था। प्रत्रकार संगठनों को एक महिला पत्रकार की जान बचाने के लिए तत्काल मुहिम शुरू करने के लिए कह सकता था। इसके अलावा वह हाईकोर्ट जैसे जगह पर प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर निरूपमा को उसके परिजनों के चंगुल से मुक्त कराने का सफलतम प्रयास कर सकता था। क्या प्रियभांषु ने निरूपमा की जान बचाने के लिए पुलिस और हाईकोर्ट में गुहार लगायी? वह चुपचाप निरूपमा को ऑनर किलिंग के ग्रास में जाते देखता रहा। ऐसा मानो उसका निरूपमा से कोई वास्ता ही नहीं था।

प्रियभांषु कब चिल्लाया? वह महिला आयोग और पत्रकार संगठनों का दरवाजा कब खट-खटकाया? मीडिया कब अपनी खतरनाक प्रेम कहानी कब खोली? जब निरूपमा की हत्या हो चुकी थी। जब निरूपमा इस दुनिया में रही नहीं। ऐसी मुहिम का अब निरूपमा के लिए क्या मतलब? निरूपमा के परिजनों को सजा हो ही जायेगी पर निरूपमा की जान वापस आयेगी क्या? यह लापरवाही प्रियभांषु जान कर की है या अनजाने में। इस तथ्य का पता लगाना मुश्किल है। पर उसने खतरनाक त्रढग से लापरवाही बरती ही है।

जब घर वाले शादी के लिए राजी नहीं थे तब दोनों के पास कोर्ट मैरेज का विकल्प खुला था। हमारे जैसे अनेक लोगों का इस प्रकरण में राय यही बनी है कि अगर प्रियभांषु ने निरूपमा के साथ कोर्ट मैरेज कर लिया होता तो शायद यह हत्या नहीं होती। दिल्ली में आकर हत्या करने के लिए निरूपमा के परिजन सौ बार सोचते। ज्यादा से ज्यादा परिजन निरूपमा से नाता तोत्रड लेते। कई ऐसे उदाहरण सामने हैं जिसमें परिजनों के खिलाफ जाकर कोर्ट मैरिज हुई है और परिजनों से सुरक्षा के लिए कोर्ट ी खत्रडा हुआ है। अंतरजातीय ही नहीं बल्कि अंतधार्मिक शादियां धत्रडडले के साथ हो रही हैं और न्यायालय-प्रशासन सुरक्षा कवज के रूप में खत्रडा है। यह एक संवैधानिक जिम्मेदारी ी है।निरूपमा और प्रियभांषु दोनो वर्किग पत्रकार थे। दोनों अपने पैरों पर खत्रडे थे। इसके बाद ी यह विकल्प नहीं चुना जाना हैरतअंग्रेज बात है। जबकि दोनों के बीच 2007 से ही असुरक्षित प्रेम संबंध थे।

ऑनर किलिंग जैसी धटनाओ के लिए ारतीय समाज की विंसगतियां जिम्मेवार रही है। जातीय आधारित ारतीय समाज आज ी अपने को बदलने के लिए तैयार नहीं है। निरूपमा प्रकरण अकेली घटना नहीं है। अ ी हाल ही में न्यायालय ने हरियाणा में ऑनर किलिंग पर कत्रडी सजा सुनायी है। निरूपमा के हत्यारे परिजनों को कत्रडी सजा मिलनी चाहिए। इसके लिए पत्रकार संगठनों की सक्रियता जरूरी है। पत्रकार संगठनों और मीडिया ने निरूपमा को न्याय दिलाने के लिए सुर्खियां पर सुर्खियां बना रही है। इसी का परिणाम हुआ कि निरूपमा की मां जेल के अंदर हुई और उसके अन्य परिजन ी जेल जाने की प्रक्रिया में खत्रडे है। निरूपमा प्रकरण से ऑनर किलिंग मानसिकता को सबक मिलना चाहिए। पर हमें लापरवाह, गैर जिम्मेदार, असुरक्षित-खतरनाक यौन संबंध पर ी गौर करना चाहिए। लापरवाह, गैर जिम्मेदार, असुरक्षित-खतरनाक यौन संबंधों की प्रेम कहानी ने निरूपमा को मौत के मुंह में धकेला है और इसके लिए उसके प्रेमी प्रियभांषु रंजन ी जिम्मेदार है। इस गैर जिम्मेदार, लापरवाह, असुरक्षित और खतरनाक यौन संबंध की सजा क्या प्रियभांषु रंजन को मिलेगी।



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3 comments:

  1. हुजूर, प्रियभांशु ही मुख्य रूप से निरूपमा की हत्या, आत्महत्या जो भी हो, जिम्मेदार है. एक लड़की को गर्भवती बनाना कहां की नैतिकता है. क्या मां-बाप की मर्जी के बिना शादियां नहीं होतीं, फिर क्यों नहीं की.. अब घड़ियाली आंसू मात्र हैं>.

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  2. sahi bat kahi hai apane vishnu ji nirupam ki hatya nischit tour par galat hai lekin. esme samil uske parijani ke sath uske premi ko bhi saja milani chahiye. kyon ki nirupam ki maut me wah bhi bhagidar hai

    ratnakar mishra

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  3. पहली बार किसी ने ढंग से दूसरा पक्ष भी रखा है, बाकी के पत्रकार तो सिर्फ़ भाण्ड-गवैये की तरह सुर में सुर मिला रहे हैं बस…

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