Wednesday, April 21, 2010

शशि थरूरो का यही हस्र होना चाहिए

शशि थरूरो का यही हस्र होना चाहिए

विष्णुगुप्त



शशि थारूर जैसी फैशनपरस्त, जनविरोधी और परसंप्रभुता को साधने वाली शख्सियत रातोरात राजनीति में स्टार क्यों बन जाते हैं। भारतीय राजनीति में फैशनपरस्त, अपराधी, चमचो और परहित साधने वालों की भूमिका बढ़ती जा रही है। जनता की बात करने की जगह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों सहित परसंप्रभुता की पक्षधारी राजनेताओं से संसद और विधान सभाएं भरी पड़ी है। कभी कोई सांसद और मंत्री कहते हैं कि महंगाई नहीं घटेगी। कभी कोई संासद और मंत्री जनता की परेशानियो को दूर करने की जगह तेल कीमतों को बढ़ाने में दिलचस्पी रखता है। क्या देश को आजाद कराने के लिए हमारे पूर्वजो ने इसी लिए कुर्बानियां दी थी? क्या हमारी राजनीति सही में शशि थरूर से कोई सबक लेगी।
                                    क्लर्कगिरी-बाबूगिरी और राजनीति मे फर्क नहीं समझने वालों का वही हस्र होता है जो शशि थरूर का हुआ है। शाशि थरूर संयुक्त राष्ट्रसंघ की चाकरी में थे। फाइल ढ़ोना और बॉस का हुक्म की मानसिकता का संतुष्ट करने भर की उनकी जिम्मेदारी थी। अचानक शशि थरूर साहब के भाग्य ने पलटी मारी और वह सब उन्हें हासिल हो गया जो वर्षो-वर्ष की राजनीतिक और कूटनीतिक तपस्या के बाद भी दूसरों को नहीं मिलती है। भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव के पद पर चुनाव लड़ने के लिए उन्हें नामित कर दिया। बानकी मुन के सामने शशि थरूर कोई चमत्कार नहीं कर सके। पर वे संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव के पद पर चुनाव लड़ने से विश्वविख्यात हो जरूर हो गये। भारतीय मीडिया और बुद्धीजीवी ने भी रातोरात शशि थरूर को अपना खैवनहार मान लिया। चर्चे और प्रशंसाएं ऐसी कि सही में शशि थरूर कूटनीतिक महारथी हैं और शशि थरूर के कूटनीतिक महारथ का भारत फायदा उठाकर विश्व में अपना धाक जमा सकता है। इसी चर्चे और प्रशंसाओं पर सवार होकर शशि थरूर न केवल कांग्रेस के लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट पाये बल्कि चुनाव जीतकर विदेश राज्य मंत्री जैसे जिम्मेवार पद पर विराजमान हो गये। अमेरिका ने शशि थरूर की जगह बानकी मुन को समर्थन क्यो दिया था, उसका भी परीक्षण-विश्लेषण भारतीय मीडिया और कांग्रेस ने करने की जरूरत नहीं समझी थी। शशि थरूर पर जार्ज बुश की टिप्पणी थी कि गैर कूटनीतिक और विश्व राजनीति की अनुभवहीन शख्सियत पर विश्वास कैसे किया जा सकता है। जार्ज बुश की वह टिप्पणी आज शशि थरूर पर सही साबित हो रही है।
                    शशि थरूर को मुर्ख कहा जाये या भ्रष्ट कहा जाये या फिर गैर राजनीतिज्ञ कहा जाये? शशि थरूर पर एक राय बनानी मुश्किल है। गैर जिम्मेदार और गैर राजनीतिज्ञ के साथ ही साथ मुर्ख कहना ज्यादा सटीक होगा। शशि थरूर किसके प्रतिनिधि थे? इनके ट्विटर पर रखे विचारों को गौर करें तो साफ स्पष्ट होता है कि वे विदेश राज्यमंत्री जैसे जिम्मेदार और कूटनीतिक दक्षता मांगने वाले पद पर बैठने के लायक कहीं से भी नहीं थे। विदेश राज्य मंत्री बनने के साथ ही साथ उनकी कारस्तानियां, फैशनपरस्ती और संसदीय राजनीति के प्रति अंगभीरता की कंडिया बननी शुरू हो गयी थी। विदेश मंत्रालय के पैसो पर ये फाइव स्टार होटलों में तीन महीने तक रहे। वह भी प्रतिदिन 50 हजार रूपये खर्च पर। मामला मीडिया में उठने और प्रणव मंत्री के डांट पड़ने पर इन्होंने फाइव स्टार होटल छोड़ी। विमानों में इक्नोनॉमी क्लास में सफर करने वाले देश के नागरिको को थरूरी ने भेंड़-बकरी क्लास कहकर खिल्ली उड़ायी। इतना तक तो बर्दाश्त किया जा सकता था। पर इनके तीन ऐसी नादानियां रहीं है जिससे भारत की कूटनीतिक संवर्ग को न केवल परेशानियां झेलनी पड़ी बल्कि भारतीय संप्रभुता पर भी आंच आने की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। पहली नादानी थी पाकिस्तान के नागरिकों के पक्ष में खड़ा होना। पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियो को शरण देने और मुबंई आतंकवादी हमले में पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक हेडली के प्रमाणित आरोप उजागर होने के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तानी मूल के नागरिकों की बीजा नीति बदली थी। पाकिस्तानी नागरिकों के बीजा मिलने के नियमों को कठोर बनाया गया था। इस पर शशि थरूर आग बबूला हो गये और गुस्से में ट्विटर पर विदेश मंत्रालय की इस नीति की खिल्लियां उड़ायी और पाकिस्तानी नागरिकों के पक्ष में बैंटिंग की।
                    दूसरी उनकी बड़ी नादानी थी कश्मीर पर सउदी अरब का मध्यस्थ बनाने की बात करना। कश्मीर हमारा अटूट अंग है। भारत ने कभी भी और किसी भी परिस्थिति मे कश्मीर पर तीसरे देश की मध्यस्थता की बात नहीं स्वीकारी है और न ही ऐसी किसी भी विचार प्रक्रिया को भारत ने गति दिया था। सउदी अरब सहित अन्य सभी मुस्लिम देश कश्मीर पर पाकिस्तान के पक्षगामी है। भारत के हितों के खिलाफ पाकिस्तान का पीठ थपथपाने की नीति मुस्लिम देशों के सिर पर चढ़कर बोलती है। सउदी अरब घोषित तौर पर पाकिस्ताने के पक्ष में खड़ा रहने वाला मुस्लिम देश है। उसने एक बार भी कश्मीर मे पाकिस्तान संरक्षित आतंकवाद की निंदा नहीं की है बल्कि अपप्रत्यक्षतौर पर वह कश्मीर में आतंकवादी मानसिकता का समर्थ्रन भी करता आया है। मुबंई के अंडरडॉन दाउद इ्रब्राहिम सहित अन्य मुस्लिम गंुडे क्या सउदी अरब में रह कर भारत विरोधी कार्यो में संलग्न नहीं है? क्या सउदी अरब ने भारतीय गंुडों के खिलाफ कभी भी कोई कार्रवाई की है। ऐसे दुश्मन सोच और मानसिकता रखने वाले देश को कश्मीर पर मध्यस्थ बनाने का पक्षधर होना आश्चर्य की ही बात नहीं है बल्कि भारतीय संप्रभुता के खिलाफ उठा कदम माना जाना चाहिए। उनकी तीसरी नादानी महात्ता गाधी से जुड़ी हुई है।महात्मा गांधी को देश ने बापू माना है। पूरी दुनिया महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानती है। उनके जन्मदिन दो अक्टूबर को देश में छुट्टी रहती है। छुट्टी का मतलब सिर्फ आराम नहीं होता है बल्कि भावी पीढ़ी को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से महात्मा गांधी के विरासत से अवगत कराना भी एक ध्यैय है। पर दो अक्टूबर की महात्मा गांधी जयंती पर छुट्टी पर ही शशि थरूर ने सवाल उठा दिया। शशि थरूर जिस पाटी में हैं वह पार्टी नेहरू के विरासत से जुड़ी है और नेहरू की नीतियों पर चलती है। नेहरू की सोवियत संघ के पक्षधरी की भी शशि थरूर ने खिल्लियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
                                     शशि थरूर प्रकरण में कांग्रेस पार्टी भी आलोचना और निंदा की पात्र मानी जानी चाहिए। सिद्धांतवादी राजनीति के मूलमंत्र में शशि थरूर की बिदाई उसी दिन हो जानी चाहिए थी जिस दिन उन्होंने विमानों के इकोनॉमी क्लास में सफर करने वाले देशवासियों को भेड-बकरी क्लास से नवाजा था। अगर उस समय शशि थरूर पर कड़े निर्णय आ जाते तो आपीएल जैसी पटकथा बनती ही नहीं। आईपीएल में कोच्चि टीम को लेकर जिस तरह से शशि थरूर ने अपने पद का दुरूपयोग किया है उससे भारतीय राजनीति में साफ-सूथरे चरित्र पर आक्षेप क्यों नहीं माना जाना चाहिए। अपने होने वाली बीबी सुनंदा को उन्होंने कोच्चि टीम के शेयर दिलाये। सुनंदा इतने बड़ी शेयर प्रापर्टी खरीदने की कुबत रखती थी ही नहीं। सभी तथ्य सामने आ जाने के बाद भी इस्तीफे नहीं देने की बात करना भी शशि थरूर के लिए भारी पड़ गया। अपने बचाव में केरल की भावनात्मक नीतियां भी उठायी। कांग्रेस को यह मालूम था कि शशि थरूर ने अपने पद का दुरूपयोग किया है। आयकर विभाग और आईबी की रिपोर्ट में शशि थरूर और उनकी बीबी सुनंदा पुस्कर सीधेतौर पर दोषी पाये गये। सुनंदा पर दाउद कम्पनी के लिए काम करने की बात भी उठी। ऐसी परिस्थति में कांग्रेस के लिए शशि थरूर परेशानी के सबब बन सकते थे। कांग्रेस के लिए शशि थरूर को विदेश राज्य मंत्री के पद से बिदा करना ही उचित था।
                शशि थरूर का प्रकरण भारतीय राजनीति के लिए एक सबक है। राजनीति में जवाबदेही जनता के प्रति होती है। जनता की इच्छाओं का सम्मान करना जरूरी होता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि शशि थरूर जैसी शख्सियत रातोरात राजनीति में स्टार क्यों बन जाते हैं। सही तो यह है कि भारतीय राजनीति में फैशनपरस्त, अपराधी, चमचो और परहित साधने वालों की भूमिका बढ़ती जा रही है। जनता की बात करने की जगह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों सहित पर संप्रभुता की पक्षधारी राजनेताओं से संसद और विधान सभाएं भरी पड़ी है। कभी कोई सांसद और मंत्री कहते हैं कि महंगाई नहीं घटेगी। कभी कोई संासद और मंत्री जनता की परेशानियो को दूर करने की जगह तेल कीमतों को बढ़ाने में दिलचस्पी रखता है। क्या देश को आजाद कराने के लिए हमारे पूर्वजो ने इसी लिए कुर्बानियां दी थी? क्या हमारी राजनीति सही में शशि थरूर से कोई सबक लेगी?


मोबाइल - 09968997060

2 comments:

  1. सही कहा आपने !
    अभी कुछ ही समय पहले की तो बात है , जब दक्षित कोरिया के तत्कालीन विदेशमंत्री बैन की मून संयुक्त राष्ट्र महासचिव चुने गए थे , तो मैं पश्चिमी देशो को बुरा-भला कहने से नहीं चुका था, उनपर भेद-भाव के मानसिकता का आरोप तक लगा गया था , मगर अब महसूस हुआ की भगवान् जो करता है, वह भले के लिए ही करता है !

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  2. किन्तु होगा क्या. हम सब आंखें बन्द किये बैठे हैं.. बस..

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