पादरी बनिये, बलात्कार कीजिए, पहुंच जाइये ‘पोप‘ की शरण में - बच जायेंगे
विष्णुगुप्त
अब आयी वैटिकन सिटी की असली कहानी। मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता और लोमहर्षक खेल का यह है संरक्षणवादी नीति। पोप बेनेडिक्ट सोलहवें और कैथलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर ही हो गयी। जब पोप बेनेडिक्ट सोलहवें और कथौलिक चर्च का क्रूर-अमानवीय चेहरा सामने आया तब ‘विशाषाधिकार‘ का कवच उठाया गया। कैथ लिक चर्च ने नयी परिभाषा गढ़ दी कि उनके धर्मगुरू पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर न तो मुकदमा चल सकताा है और न ही उनकी गिरफ्तारी संभव हो सकती है। इसलिए कि पोप बेनेडिक्ट न केवल ईसाइयों के धर्मगुरू हैं बल्कि वेटिकन सिटी राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष भी हैं। एक राष्ट्रध्यक्ष के तौर पर पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की गिरफ्तारी हो ही नहीं सकती है। जबकि अमेरिका और यूरोप में कैथलिक चर्च और पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की गिरफ्तारी को लेकर जोरदार मुहिम चल रही है। न्यायालयों में दर्जनों मुकदमें तक दर्ज करा दिये गये हैं और न्याायलयों में उपस्थिति होकर पोप बेनेडिक्ट सोलहवें को आरोपों का जवाब देने के लिए कहा जा रहा है। यह सही है कि पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के पास वेटिकन सिटी के राष्ट्राध्यक्ष का कवच है, इसलिए वे न्यायालयों में उपस्थित होने या फिर पापों के परिणाम भुगतने से बच जायेंगे पर कैथलिक चर्च और पोप की छवि तो घूल में मिली ही है इसके अलावा चर्च में दया, शांति और कल्याण की भावना जागृत करने की जगह कुकर्मों की पाठशाला कायम हुई है, इसकी भी पोल खूल चुकी है। चर्च पादरियों द्वारा यौन शोषण के शिकार बच्चों के उत्थान के लिए कुछ भी नहीं किया और न ही यौन शोषण के आरोपी पादरियो के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई है। इस पूरे घटनाक्रम को अमेरिका-यूरोप की मीडिया ने वैटिकन सेक्स स्कैंडल का नाम दिया हैं। कुछ दिन पूर्व ही पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने आयरलैंड में चर्च पादरियों द्वारा बच्चों के यौन शोषण के मामले प्रकाश मे आने पर इस कुकृत्य के लिए माफी मांगी थी।
पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर कोई सतही नहीं बल्कि गंभीर और प्रमाणित आरोप हैं जो उनकी एक धर्माचार्य और राष्ट्राध्यक्ष की छवि को तार-तार करते हैं। अब यहां यह सवाल है कि पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर आरोप हैं क्या? पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर कुकर्मी पादरियों को संरक्षण देने और कुकर्मी पादरियों को कानूनी प्रक्रिया से छुटकारा दिलाने का आरोप हैं। पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने कई पादरियों को यौन शोषण के अपराधों से बचाने जैसे कुकृत्य किये हैं पर सर्वाधिक अमानवीय, लोमहर्षक व चर्चित पादरी लारेंस मर्फी का प्रकरण है। लारंेंस मर्फी 1990 के दशक में अमेरिका के एक कैथलिक चर्च में पादरी थे। उस कैथलिक चर्च में अनाथ, विकलांग और मानसिक रूप से बीमार बच्चों के लिए एक आश्रम भी था। पादरी लारेंस मर्फी पर 230 से अधिक बच्चों का यौन शोषण का अरोप है। सभी 230 बच्चे अपाहिज औेर मानसिक रूप से विकलांग थे। इनमें से अधिकतर बच्चे बहरे भी थे। मानिसक रूप से बीमार और अपाहिज बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की धटना सामने आने पर अमेरिका में तहलका मच गया था। कैथलिक चर्च की छवि के साथ ही साख पर संकट खड़ा हो गया था। कैथलिक चर्च में विश्वास करने वाली आबादी इस घिनौने कृत्य से न केवल आका्रेशित थी बल्कि कैथलिक चर्च से उनका विश्वास भी डोल रहा था। कैथलिक चर्च को बच्चों के यौन उत्पीड़न पर संज्ञान लेना चाहिए था और सच्चाई उजागर कर आरोपित पादरी पर अपराधिक दंड संहिता चलाने में मदद करनी चाहिए थी। लेकिन कैथलिक चर्च ने ऐसा किया नहीं। यौन उत्पीड़न की घटना को कैथलिक चर्च द्वारा दबाने की ही कोशिश हुई। कैथलिक चर्च को इसमें अमेरिकी सत्ता का सहायता मिली। विवाद के पांव लम्बे होने से कैथलिक चर्च की नींद उड़ी और उसने आरोपित पादरी लारेंस मर्फी पर कार्रवाई के लिए वेटिकन सिटी और पोप को अग्रसारित किया था।
पोप बेनेडिक्ट सोलहवें का उस समय नाम कार्डिनल जोसेफ था और वैटिकन सिटी के उस विभाग के अध्यक्ष थे जिनके पास पादरियों द्वारा बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न किये जाने की जांच का जिम्मा था। पोप बेनेडिक्ट ने पादरी लारेंस मर्फी को सजा दिलाने में कोई रूचि नहीं दिखलायी। बात इतनी भर थी नहीं। बात इससे आगे की थी। मामले को रफा-दफा करने की पूरी कोशिश हुई। लारेंस मर्फी को अमेरिकी काूननों के तहत गिरफ्तारी और दंड की सजा में रूकावटें डाली गयी। वेटिकन सिटी का कहना था कि पादरी लारेंस मर्फी भले आदमी हैं और उन पर दुर्भावनावश यौन शोषण के आरोप लगाये गये हैं। इसमें कैथलिक चर्च विरोधी लोगों का हाथ है। जबकि लारेंस मर्फी पर लगे आरोपों की जांच कैथलिक चर्च के दो वरिष्ठ आर्चविशपों ने की थी। सिर्फ अमेरिका तक ही कैथलिक चर्च में यौन शोषण का मामला चर्चा में नहीं है। अपितु वैटिकन सिटी में भी यौन शोषण के कई किस्से चर्चे में रहे हैं। पुरूष वेश्यावृति के मामले में भी वेटिकन सिटी घिरी हुई है। वैटिकन सिटी में पादरियों द्वारा पुरूष वैश्यावृति के राज पुलिस ने खोले थे। वैटिकन धार्मिक संगीत मंडली के मुख्य गायक टॉमस हीमेह और पोप बेनेडिक्ट के निजी सहायक एंजलों बालडोची पर पुरूष वैश्या के साथ संबंध बनाने के आरोप लगे थे। पोप के निजी सहायत एंजलों बालडोची का वैटिकन में तूती बोलती थी। विदेशी राष्टाध्यक्षों और बड़ी-बड़ी हस्तियों के वैटिकन आने पर एंजलों बालडोची ही स्वागत करते थे और पोप के साथ वर्ताओं में वे साथ भी रहते थे।
यौन शोषण के आरोपित पादरियों के नाम बदले गये। उन्हें अमेरिका-’युरोप से बाहर भेजकर छिपाया गया। तकि वे अपराधिक कानूनों के जद मे आने से बच सकें। खासकर अफ्रीका और एशिया में ऐसे दर्जनों पादरियों को अमेरिका-यूरोप से निकाल कर भेजा गया जिन पर बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के आरोप थे। एक ऐसे ही पादरी भारत में कई सालों से रह रहा है। रेवरेंड जोसेफ फ्लानिवेल जयपॉल नामक पादरी भारत में कार्यरत है। जयपॉल पर एक चौदह वर्षीय किशोरी के साथ बलात्कार करने सहित बलात्कार के दो अन्य आरेप है। अमेरिका के एक चर्च में जयपॉल ने 2004 में एक अन्य ग्रामीण युवती के साथ बलात्कार किया था। वैटिकन और पोप की कृपा से जयपॉल भाग कर भारत आ गया। इसलिए कि बलात्कार की सजा से छुटकारा पाया जा सके। अमेरिकी प्रशासन को जयपॉल का अता-पता ढुढने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। अमेरिकी प्रशासन के दबाव में वैटिकन ने जयपॉल का पत्ता जाहिर किया। वैटिकन ने मामला आगे बढ़ता देख कर जयपॉल को कैथलिक चर्च से बाहर निकालने की सिफारिश की थी। लेकिन भारत स्थित आर्चविशप परिषद ने जयपॉल की बर्खास्ती रोक दी। अमेरिकी प्रशासन जयपॉल को प्रत्यार्पन की कोशिश कर रहा है। क्योंकि अमेरिकी प्रशासन पर मानवाधिकार वादियों का भारी दबाव है। पर जयपॉल अमेरिका जाकर यौन अपराधो का सामना करने से इनकार कर दिया है। जयपॉल पर बलात्कार जैसे अति गंभीर आरोप होने के बाद भी भारतीय मीडिया में जयपॉल काक प्रकरण प्रमुखता के साथ नहीं उछलना गंभीर बात है। कैथलिक चर्च के भारतीय आर्चविशपो द्वारा बलात्कारी पादरी जयपॉल का संरक्षण देना क्या उचित ठहराया जा सकता है? क्या इसमें भारतीय आर्चविशपों की सरंक्षणवादी नीति की आलोचना नहीं होनी चाहिए। अगर जयपॉल हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ बलात्कारी होता तो निश्चित मानिये कि भारतीय मीडिया कई-कई दिनों तक पानी पी पी कर हिन्दू धर्म और धर्माचार्यो को कोसती और खिल्ली उड़़ाती। कथित तौर पर कुकुरमुत्ते की तरह फैले मानवाधिकारियों के लिए भी जयपॉल कोई मुद्दा क्यों नहीं बना?
अमेरिका-यूरोप में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के इस्तीफे की मांग जोर से उठ रही है। जगह-जगह प्रदर्शन भी हुए है। इंगलैंड सहित अन्य यूरोपीय देशों में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की यात्राओं में भारी विरोध हुआ है। लोमहर्षक-आमनवीय कृत्य को संरक्षण देने के लिए पोप से इस्तीफा देकर पश्चताप करने का जनमत तेजी से बन रहा है। पोप के खिलाफ जनमत की इच्छा शायद ही कामयाब होगी। पोप के इस्तीफे का कोई निश्चित संविधान नहीं है। पर इस्तीफे जुड़ंे कुछ तथ्य हैं पर तथ्य स्पष्ट नहीं हैं। 1943 में पोप पायस बारहवें ने एक लिखित संविधान बनाया था। जिसका मसौदा था कि अगर पोप का अपहरण नाजियों ने कर लिया तो माना जाना चाहिए कि पोप ने त्यागपत्र दे दिया है और नये पोप के चयन प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। नाजियों और न ही किसी अन्य किसी पोप का अब तक अपहरण किया है। इसलिए पोप पायस बारहवें के सिद्धांत का अमल में नहीं लाया जा सका है। पोप द्वारा इस्तीफे के दो ही उदाहरण सामने हैं। एक उदाहरण है पोप ग्रेगरी बारहवें का। कोई पांच सौ साल पहले कैथलिक संप्रदाय में विभाजन की स्थिति को रोकने के लिए पोप ग्रेंगरी बारहवे ने त्याग पत्र दिया था। पोप ग्रेगरी ने वैटिकन चर्च परिषद का सम्मेलन बुलाकर खुद पोप चयन का अधिकार दिया था। पोप ग्रेगरी 1406 से लेकर 1415 तक वैटिकन सिटी के राष्टाध्यक्ष और पोप रहे थे। उनकी मृत्यु के बाद ग्रेगरी को वैटिकन सिटी ने संत घोषित किया था। दूसरा उदाहरण है स्टेलस्टीन का। 1294 में पोप स्टेस्लटीन पंचम ने एक आदेश जारी किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि पोप को भी त्यागपत्र देने का अधिकर है। पोप स्टेलस्टीन ने खुद पोप के पद से त्यागपत्र दे दिया था।
पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर यह निर्भर करता है कि वे त्याग पत्र देंगे या नहीं। पर वैटिकन सिटी के विभिन्न इंकाइयों और विभिन्न देशों के कैथलिक चर्च इंकाइयों में अंदर ही अंदर आग धधक रही है। कैथलिक चर्च की छवि बचाने के लिए कुर्बानी देने की सिद्धांत पर जोर दिया जा रहा है। जर्मन रोमन चर्च ने भी पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जर्मन रोमन चर्च का कहना है कि वैटिकन सिटी और पोप बेनेडिक्ट ने यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों और उनके परिजनो के लिए कुछ नहीं किया है। वैटिकन सिटी में भी यौन शोषण के शिकार बच्चों के परिजनों ने प्रदर्शन और प्रेसवार्ता कर पोप बेनेडिक्ट के आचरणों की निंदा करने के साथ ही साथ न्याय का सामना करने के लिए ललकारा है।
कालांतर में ईसाइय का अमेरिका-यूरोप में क्रूर चेहरा चर्चित रहा है। सत्ता से लेकर समाज तक ईसाइयत ने अपने स्वार्थ में प्रभावित किया है। मानवता, शांति, कल्याण जैसे संदेश दिखावा मात्र रहा है। मानवता और कल्याण जैसे हथियारों से ईसाइयत ने दुनिया भर में धर्मातंरण के लोमहर्षक खेल-खेले हैं। अपने देश में ईसाइयत का चेहरा कोई दुध का धुला हुआ नहीं है। ईसाई मिशनरियों में यौन उत्पीड़नों की चर्चा भी आम रही है।
सम्पर्क -
मोबाइल- 09968997060
Friday, April 9, 2010
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kaash har koi ise padh le...
ReplyDeletekunwar ji,
.... बेहद शर्म की बात है .... सजा जरूर मिलना चाहिये ... बेहद प्रभावशाली लेख!!!
ReplyDeleteहर वक्त भारतीय संस्कृति पर हमला करने वाले वौद्धिक गुलाम हिन्दूओं को इसे जरूर पढ़ना चाहिए।
ReplyDeleteबन्धु वर य्ह सब हमारे मिदिया को नही दिखाइ देगा क्योकि यदि उन पर लिख दिया तो इन के बहुत से लाभ लोभ रह जायेंगे ये तो बेचारे भूखे मर जायेंगे
ReplyDeleteआप ने सच्चाइ उजागर की है बदा काम किया है नहि तो ये दूध के धुले बने रहते हैन
वेद व्यथित
वाह..!!
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया लेख...मैं तो इन पादरियों और सिस्टरों के करतूतों की चाश्दीद गवाह हूँ...
इनको हर हाल में सज़ा मिलनी ही चाहिए...
बहुत ही अच्छा आलेख...
अगली चर्चा में मैं इसको शामिल कर रही हूँ....
आपका धन्यवाद...
बेहद शर्मनाक...
ReplyDeleteआपने लिखकर अच्छा काम किया है...
मीडिया तो बस पैसे की गुलाम है....
इस पर कोई मीडिया चर्चा नही करती .
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