मक्का और वेटिकन जैसा दर्जा अयोध्या को क्यों नहीं
हिन्दू अपने प्रतीकों के सम्मान के लिए लड़ना कब सीखेंगे?
विष्णुगुप्त
मक्का ए मदीना में क्या कोई कल्पना मात्र कर सकता है कि इस्लाम के उस पवित्र शहर में कोई मंदिर या गिरिजा घर हो सकता है? क्या वेटिकन सिटी में कोई मंदिर होे सकती है जिसकी सत्ता वेटिकन सिटी के पोप के समान हो। इन दोनों प्रश्नों का उत्तर नहीं में हो सकता है। हम कल्पना भी कर सकते है कि क्या श्रीराम की जन्मभूमि ‘अयोध्या‘ को भी मक्का ए मदीना और वेटिकन सिटी की तरह दर्जा मिले और मान सम्मान के साथ ही साथ सत्ता का संरक्षण भी। ऐसा इसलिए संभव नहीं हो सकता है कि भारत की सत्ता तुष्टिकरण की नीति पर चलती है, बुद्धीजीवी और लेखक आदि पर कथित धर्मनिरपेक्षता और हिन्दू विरोध की प्रक्रिया नाचती है। हिन्दू अराध्य देवों-प्रतीकों की खिल्ली उड़ाना और इनके प्रासंगकिता पर सवाल उठाना धर्मनिरपेक्षता व बुद्धीजीवी होने का सर्टिफिकेट बन गया है।
इस्लाम औेर मसीही को सत्ता का संरक्षण है। ऐसे किसी भी प्रयास से दुनिया भर में आग लग सकती है और उफनती हिंसा से हजारों-लाखों बेकसूर जिंदगियां कुर्बान हो सकती हैं जिसमें मक्का ए मदीना या फिर वेटिकन सिटी में किसी अन्य धर्म की कोई नायकत्व या अन्य प्रतीकों के स्थापना की बात हो। डेनमार्क के कार्टूनिस्ट ने इस्लाम के सर्वोच्च नायकत्व की सिर्फ कार्टून बनायी थी, इस पर पूरी दुनिया मे आग लगी। हिंसक प्रर्दशनों में पूरी दुनिया मे कई लोग की हत्याएं हुई। देश में कई लोगों की हत्याएं हुई। लखनउ मंे कार्टून विवाद पर हुए विरोध प्रर्दशनां मंे चार हिन्दुओं की जानें गयी। अपने को तथाकथित धर्मनिरपेक्ष कहने वाला तबका इस्लाम और ईसाइयत के प्रतीक चिन्हों की आलोचना करने या खिल्ली उड़ाने में पीछे क्यो रहता है? इसके विपरीत अपने देश में हिन्दुत्व की दुर्दशा देख लीजिए।
हिन्दुत्व की दुदर्शा और आलोचना-खिल्लियां उड़ाने की राजनीति,सामाजिक और धार्मिक प्रक्रिया की चर्चा की शुरूआत अयोध्या और रामजन्म भूमि प्रसग से बेहत्तर क्या हो सकती है। अयोध्या हिन्दुओं के अराध्य श्रीराम की जन्म भूमि है। श्रीराम जन्म भूमि होने के कारण अयोध्या की महत्ता हिन्दुओं के लिए कैसी है, यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। पर क्या अयोध्या का सम्मान मक्का ए मदीना या फिर वेटिकन सिटी जैसा है। कदापि नहीं। मक्का ए मदीना या वेटिकन सिटी की प्रमाणिकता पर कोई प्रमाण नहीं मांगा जाता। पर अध्योध्या की एतिहासिकता पर प्रमाण मांगा जाता है। श्रीराम अयोध्या में पैदा लिये थे इसका प्रमाण मांगा जाता है। श्रीराम के जन्म से संबंधित प्रमाण देने के बाद भी तथाकथित इतिहासकार ठुकराते ही नहीं हैं बल्कि यह भी कहते हैं कि अध्योध्या न तो एतिहासिक भूमि है और न ही इस नगरी में श्रीराम जैसी कोई एतिहासिकत शख्सियत का जन्म हुआ था। यह सब तो मनगढंत कहानी है और हिन्दुओं की कट्टरता का प्रतीक है।
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्या और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करूणानिधि का श्रीराम से संबंधित बयान और प्रतिक्रिया कैसी रही है यह भी बताने की जरूरत है क्या? भट्टाचार्या और करूणानिधि ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाओ में श्रीराम का धार्मिक पात्र होने पर न केवल सवाल उठाये थे बल्कि यहां तक इन दोनों ने कहा था कि श्रीराम हिन्दुओं के अराध्य नहीं बल्कि कवि की कल्पन मात्र है। हिन्दी के साहित्यकार और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार राजेन्द्र यादव ने एक टीवी शो में खुलेआम कहा था कि ‘रामायण‘ कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि साहित्य है। राजेन्द्र यादव की असली मंशा थी कि रामायण और श्रीराम का अराधना हिन्दु फिजुल ही करते हैं और उनका यह अधंविश्वास ही है। एक अन्य धारणा भी यह है कि जब रामायण कोई धार्मिक ग्रंथ है ही नही तब अध्योध्या में श्रीराम का अस्तित्व होने का कोई अर्थ ही नहीं है।
बुद्धदेव भट्टाचार्यो, करूणानिधियों और राजेन्द्र यादवों की क्या इतनी हिम्मत है कि वे जिस तरह रामायण और श्रीराम को धार्मिक ग्रंथ और धार्मिक पुरूष नहीं मानते और हिन्दुओं के इन मान्य अराध्य देवों की आलोचना करते हैं, हिन्दुओं पर अंधविश्वासी होने जैसी राजनीतिक प्रक्रिया चलायी जाती है वैसी ही राजनीति और मजहबी प्रक्रिया अन्य धर्मो के खिलाफ ये चला सकते हैं क्या? क्या ये कुरान के पवित्र ग्रंथ होने पर सवाल उठा सकते हैं? क्या यशुमसीह कुआंरी मां से जन्म लेने की बात पर सवाल उठाया जा सकता है। बुद्धदेव भट्टाचार्यो, करूणानिधियों और राजेन्द्र यादवों को खुलेआम चुनौती है कि ये कुरान आसमान से अल्लाह के यहां से टपका था और यशुमसीह कुंआरी मां के पेट से जन्म लिये थे पर सवाल उठा कर देख लें। भारत में तो क्या पूरी दुनिया में ये सुख और चैन से रह सकते हैं? इन्हें सुरक्षा घेरे में ही रहने के लिए विवश होना पड़ेगा। देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धीजीवियों, राजनीतिज्ञों और लेखकों का एक अन्य चेहरा भी क्यों नहीं देखा जाना चाहिए? अभी हाल ही में मकबूल फिदा हुसैन ने कतर की नागरिकता ली है। मकबूल फिदा हुसैन ने हिन्दू देवी-देवताओं की वीभत्स चित्रांकन की थी। मकबूल फिदा हुसैन की कतर नागरिकता लेने पर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लेखकों, बुद्धीजीवियों ने खुब हंगामा मचाया। हिन्दुओं की खिल्ली उड़ाने की कोई कसर नहीं छोड़ी गयी। हिन्दुओं को कट्टरवादी ही नहीं बल्कि आतंकवादी होने के तोहमत भी डाला गया। मकबूल फिदा हुसैन की पैंटिगस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता करार दिया गया और कहा गया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हिन्दू कट्टरता और आतंकवाद से खतरा है। क्या सही में हिन्दू कट्टरवादी हैं और आतंकवादी है। अगर हिन्दू कट्टरवादी-आतंकवादी होते तो फिर मुस्लिम और ईसाई धर्मो की धर्मातंरण की राजनीति दिन दुगनी और रात चौगुनी कैसे बढ़ती। मकबूल फिदा हुसैन के समर्थकों और कथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धीजीवियों ने हजरत मुहम्मद वाला कार्टून पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अति और दुरूपयोग बताते हुए कार्टूनिस्ट की आलोचनाओं की प्रक्रिया चलायी थी।
श्रीराम इस भूभाग के अराध्यदेव हैं। बाबर आक्रमणकारी था। मुस्लिम आक्रमणकर्ताओं ने हिन्दू प्रतीक चिन्हों को मिटाने और तहस-नहस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। नालंदा और तक्षशिला इसका उदाहरण है। नालंदा विश्वविद्यालय और तक्षशिला ज्ञान भंडार के सर्वोच्च स्थल थे। दुनिया की सबसे उत्कृष्ट और प्रयोगिक शिक्षा के केन्द्र होने का गुणगान और चर्चा विश्व में थी। यद्यपि नालंदा विश्वविद्यालय और तक्षशिला कोई धार्मिक प्रतीक भी नहीं थे। फिर भी नालंदा विश्वविद्यालय और तक्षशिला को मुस्लिम शासकों ने यह कहकर जलाया कि ये हिन्दू प्रतीक हैं और इस तरह के प्रतीकों से इस्लामिक सत्ता दीर्धायु हो ही नहीं सकती है। वाराणसी में बाबा विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनायी गयी। मथुरा में श्रीकृष्ण की जन्म स्थली पर मस्जिद बनायी। क्या यह सब किसी से छिपा हुआ है। अगर मुगलकालीन मुस्लिम सत्ता कहीं से भी धर्मनिरपेक्ष नहीं थी। इतिहासकारों के मुस्लिम परस्त दृष्टिकोण ने एक तरह से हिन्दुओं की धार्मिक अस्मिता के साथ अन्याय किया है और मुस्लिम परस्त मानसिकता को स्थापित किया है। इसकी परिणति पर संज्ञान लीजिए। आज हमारा देश मुस्लिम कटटरता की चपेट में है। मुस्लिम आतंकवाद का हिन्दू आसान शिकार हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमार तक इसकी वीभिषीका देखी जा सकती है।
रामजन्म भूमि का प्रसंग फिर से महत्पपूर्ण हुआ है। बरेली में सीबीआई की अदालत में बाबरी ढाचा के विध्वंस पर सुनवायी जारी है। कांग्रेस प्रायोजित गवाहों से रामजन्म भूमि आंदोलन के नेताओं की काूननी घेरेबंदी शुरू है। खासकर लालकृष्ण आडवाणी निशाने पर हैं। आडवाणी पर यह आरोप है कि उन्होंने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था कि मंदिर यहीं बनेगी। यह तो हिन्दुओं की आस्था रही है। श्रीराम का जहां जन्म हुआ मंदिर वही बनेगी? इसमें नया क्या है। यह सही है कि रामजन्म भूमि आंदोलन की सीढ़ी चढ़कर सत्ता में बैठी भाजपा भी श्रीराम मंदिर के प्रसंग पर ईमानदारी नहीं दिखायी। पर विरोधी दलों ने भी श्रीराम मंदिर आंदोलन का लाभ उठाने में कहा पीछे रहे हैं। भाजपा का डर दिखाकर कांग्रेस, कम्युनिस्टों और अन्य पार्टियों ने मुस्लिम समुदाय का जनादेश हासिल किया-सत्ता सुख भोगे और भोग भी रहीं हैं।
हिन्दुओं को अपने प्रतीकों और नायको के प्रति सम्मान दर्शाना और उनके लिए लड़ना सीखना चाहिए। मक्का ए मदीना और वेटिकन सिटी से सबक लेना चाहिए। जब मक्का ए मदीना मुस्लिम समुदाय का विशेषाधिकार का प्रतीक हो सकता है? जब वेटिकन सिटी मसीही समुदाय के विशेषाधिकार का प्रतीक हो सकता है? तब अधेध्या और श्रीराम मंदिर हिन्दुओ के विशेषाधिकार का प्रतीक क्यो नहीं होना चाहिए? इसके लिए हिन्दू समुदाय ही दोषी हैं। इसलिए कि हिन्दू समुदाय अपने प्रतीकों केेेेेेेे लिए लड़ना नहीं जानता। जिस दिन हिन्दू समाज लड़ना सीख लेगा उस दिन हिन्दुओं के प्रतीकों का खिल्ली उड़ाने की राजनीतिक-मजहबी प्रक्रिया स्वयं विलुप्त हो जायेगी।
सम्पर्क
मोबाइल - 91. 9968997060
Sunday, March 28, 2010
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bhndhuvr indumchhllon me itni himt khan hai ye to bs hindoon ko hi gali de skte hai kyon ki ve gali kha kr khush hote hai pr ye bhool jate hain ki ye gali hindoon ko nhi de rhe apne baap ko de rhe hain pr in ko apne bap ka pta ho jb n
ReplyDeletedr. ved vyathit
samsamyik vicharon ko mahatwpurn dhang se likha hai......
ReplyDelete...बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!!
ReplyDeleteमुसलमानों ने हर तरह हमें चोट पहुँचाने की कोशिश करी है। कुछ मामलो में वो सफल भी हुए हैं। लेकिन अब शायद ऐसा नहीं हो पाए।
ReplyDeleteआपको प्रणाम. साधुवाद. बहुत साफगोई से लिखा गया बेबाक लेख. शब्द पुष्टिकरण हटायें कृपया.
ReplyDeleteHEART KO TOUCH KAR GAYA. apko namaskar hai.
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