Monday, March 22, 2010

हेडली पर अमेरिकी दादागिरी

राष्ट्र-चिंतन


मनमोहन सरकार बताओ अब तक हेडली के एक भी भारतीय सम्पर्क की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई। फिल्मकार महेश भट्ट के बेटे राहुल भट्ट को क्लीनचिट क्यों और किस आधार पर मिला। यह सब भारतीय जनता को जानने का अधिकार है।


विष्णुगुप्त

हेडली प्रकरण पर मुझे अपनी पूर्व टिप्पणी वापस लेनी पड़ रही है। मैंने अपने कॉलम में लिखा था कि हेडली को भारतीय कानूनो के तहत नहीं बल्कि अमेरिकी कानूनों के तहत ही कड़ी सजा मिल सकती है। अमेरिकी कानूनों के तहत हेडली को दो सौ साल या फिर फांसी की सजा निश्चित भी थी। किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि अमेरिकी हेकड़ी हेडली के सामने झुक जायेगी और अमेरिका समझौतेबाजी कर भारतीय हितों को नेस्तनाबुद कर डालेगा। अब निश्चिततौर पर हेडली को कड़ी सजा और फांसी नहीं होगी। कुछ सालों की सजा काटकर हेडली जेल से बाहर निकल जायेगा। हेडली प्रकरण पर अमेरिका ने जिस तरह से सिर्फ अपना हित साधा है उससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भारत को दो प्रमुख विंदुओं पर विचारण की कठोर नीति अपनानी होगी। प्रथम विंदु यह कि अमेरिका से दोस्ती में कितनी गहरायी रखी जाये और इसका प्रतिफल क्या होगा? दूसरा यह कि आतंकवाद को अपने बलबुते ही सफाया करना होगा और अमेरिका का मुंह ताकने की नीति छोड़नी होगी। अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष पूछताछ मे हेडली भारत की जिज्ञासाओं को न तो दूर कर सकता है और न ही मुबंई हमले की पूरी तह खोलने को बाध्य होगा। इसलिए कि अमेरिकी प्रशासन यह नहीं चाहता कि पाकिस्तान का मौजूदा सरकार की घेरेबंदी शुरू हो। हेडली के पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री यूसुफ गिलानी और आईएसआई के रहनुमाओ से गहरे संबंध थे। सबसे बड़ी बात यह है कि हेडली से पूछताछ की जगह हेडली के भारतीय सम्पर्को और आतंकवादी तानाबाना की छानबीन पर भारतीय सरकार को ज्यादा ध्याना देना चाहिए।
                       जार्ज बुश और बराक ओबामा में फर्क समझना होगा। जार्ज बुश और बराक ओबामा की अंतर्राष्ट्रीय और आतंकवाद के खिलाफ नीति के फर्क को समझे बिना भारत अपने हितो को सुरक्षित नहीं रख सकता है और न ही भारत आतंकवाद के खिलाफ चाकचौबंद घेरेबंदी सुनिश्चित कर सकता है। जार्ज बुश सीधेतौर पर आतंकवाद को नेस्तनाबुत करने की राह अपनायी थी। समझौतावादी होना उनकी शख्सियत में शामिल था भी नहीं। अपने पूरे कार्यकाल तक जार्ज बुश ने पाकिस्तान, इराक और अफगानिस्तान में अलकायदा-तालिबान के खिलाफ सख्ती दिखायी और उसके परिणाम भी सामने आये। अमेरिका में बराक ओबामा की जीत और राष्ट्रपति बनने के बाद ही स्थितियां बदल गयी। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ही बराक ओबामा ने आतंकवाद को सख्ती के साथ कुचलने की जगह बातचीत से हल करने की नीति जाहिर की थी। सत्ता में आने के बाद बराक ओबामा ने आतंकवाद पर तुष्टिकरण की नीति अपनायी। मुस्लिम दुनिया में उसने अमेरिका की छवि बदलने के लिए यात्राएं की और कई रियायतों की घोषणा भी की। अमेरिका की वर्षों पुरानी नीति भी बदल डाली गयी। इस्रायल जैसे दोस्त को बराक ओबामा ने मुश्किल में डाला। कश्मीर पर भारत को पाकिस्तान के साथ समझौता करने पर दबाव बनाया। इसी दबाव का नतीजा यह रहा कि भारत पाकिस्तान के साथ बातचीत करने के लिए बाध्य हुआ। इस्रायल और भारत के के हितो की कुर्बानी पर अमेरिका मुस्लिम दुनिया में अपनी छवि चमकाना चाहता है। हेडली पर समझौतावादी दृष्टिकोण इसी का परिणाम माना जाना चाहिए।
                        हमारी कमजोर नीति और दब्बू प्रवृतियां घातक रहीं है। कमजोर और दब्बू प्रवृतियो का लाभ दुनिया और आतंकवादी उठाते रहे हैं। अमेरिका भी हमारी दब्बू और कमजोर नीति का लाभ उठाने में पीछे नहीं रहा है। याद कीजिए। 26/11 आतंकवादी हमले को। मुबंई हमले के तुरंत अमेरिकी सुरक्षा टीम भारत आती है और सीधे कसाब से पूछताछ कर वापस चली जाती है। अमेरिका सुरक्षा एजेन्सियों को कसाब से पूछताछ की मिनटों में इजाजत मिल जाती है। वह भी गोपनीयता के साथ। कसाब से अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां क्या पूछताछ की यह भी भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की पहुंच से बाहर रहीं। यह सीधेतौर पर अमेरिका के सामने समर्पण कहा जा सकता है। इसके उलट अमेरिकी नीति भी देख लीजिए। हेडली को डेनमार्क की गुप्तचर एजेन्सी की रिपोर्ट पर अमेरिका की सुरक्षा एजेसिंयों ने पकड़ा। छह महीने तक हेडली के पकड़े जाने की दुनिया को खबर ही नहीं लगी। पूरी तरह से हेडली के आतंकवादी सरोकार और नेटवर्क को खंगाल लेने के बाद ही अमेरिका ने दुनिया को हेडली की गिरफ्तारी को बताया। अमेरिका ने भारत का अपमान तो उसी समय किया था जब हेडली की गिरफ्तारी पर भारतीय सुरक्षा एजेंिसयां हेडली से पूछताछ के लिए अमेरिका गयीं थी। हेडली से पूछताछ की इजाजत देने की बात तो दूर रही बल्कि अमेरिका सुरक्षा एजेंिसया हेडली के सभी नेटवर्को की जानकारी तक नहीं दी थीं। भारत अगर उसी समय कड़ा रूख अपनाता तो अमेरिका शायद हेडली के साथ हाथ मिलाने पर कई बार सोचता।
                                 अमेरिकी रूख से यह जाहिर हो चुका है कि भारत को अब विशेष जानकारी हेडली से मिलने वाली नहीं है। अमेरिकी सुरक्षा एजेंिसया जितना चाहेंगी उतनी ही जानकारियां भारत को मिलेगी। हेडली से पूछताछ करने के अपने अधिकार पर भारत को कूटनीतिक चालें चलते रहना चाहिए। पर इससे भी अधिक जरूरी हेडली के भारतीय नेटवर्क को खंगालना है। अभी तक हेडली से जुड़े एक भी आतंकवादी की गिरफतारी क्यो नहीं हुई है। हेडली भारत में महीनों रहा है। वह भारत के कई शहरों में बेखोफ घूमा है। मुबंई आतंकवादी हमले की पूरी नीति बनायी। परिस्थिति जन्य तैयारियां की। हेडली के इस आतंकवादी कार्य में दर्जनों स्थानीय लोगों की भूमिका रही होगी। फिल्मकार महेश भट्टे के बेटे राहुल भट्ट और इमरान हाशमी सहित दर्जनो नायको-नायिकाओ के हेडली से सम्पर्क रहा है। कई बार बालाएं हेडली के साथ जुड़ी हुई थी। आखिर इन सभी की गिरफतारी अब तक क्यों नहीं हुई है। कोेई भी आतंकवादी घटना बिना स्थानीय सम्पर्को और सहयोग के संभव है क्या? महेश भट्ट का बेटा राहुल भट्ट को कलीन चिट कैसे मिली। सही तो यह है कि मनमोहन सरकार मुबंई आतंकवादी हमले की स्थानीय सम्पर्को को खंगालना ही नहीं चाहती है। इसमें मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति सबसे बड़ी बाधा है। मनमोहन सिंह सरकार को यह मालूम है कि मुबंई आतंकवादी हमले में स्थानीय मुस्लिम युवकों की संलिप्तता है। स्थानीय मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी से कांग्रेस की तुष्किरण की नीति परवान भी नहीं चढ़ सकती हैं।
                   अमेरिका ने अपना हित साध लिया। भारतीय हितों पर उसने छूरी चलायी है। इसका अहसास भारतीय जनमानस को है। भारतीय जनमानस में आका्रेश भी है। लेकिन यह अहसास भारत सरकार को है या नही। भारत सरकार को अमेरिका के साथ दोस्ती पर पुनर्विचार करना चाहिए। अमेरिका को यह अहसास कराना होगा कि भारतीय हितों पर छूरी चलाने की उसकी नीति के दुष्परिणाम भी सामने आयेगा। भारत को हेडली से जुडे सभी तथ्यों के लिए अंतर्राष्टीय स्तर पर अपनी मुहिम जारी रखनी चाहिए। जाहिर हो चुका है कि हेडली का सीधा सम्पर्क पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ गिलानी और कई अन्य नेताओं से थे। इसके अलावा आईएसआई के रहनुमाओं से भी उसके तार जुडे थे। आईएसआई के दिशानिर्देश से ह ीवह जुड़ा हुआ था। इसलिए पाकिस्तान से जुडे सभी सम्पर्को और संलिप्तताओं पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाना होगा। भारत को अमेरिका का मुह ताकने की नीति भी छोड़नी होगी। भारत को अपने दम पर पाक प्रत्यारोपित आतंकवाद के खूनी पंजों को मरोड़ना होगा। इसके लिए आतंरिक और वाह्य सुरक्षा शक्ति को मजबूत करना होगा और आतंकवादियों को भारतीय कानून का पाठ पढ़ाना होगा। क्या भारत यह साहस कर सकता है। असली प्रश्न यही है।


मोबाइल- 09968997060

1 comment:

  1. इसमें दो राय नहीं है कि हेडली मामले में अमेरिका ने भारतीय हितों को दरकिनार किया है। आगे के घटनाक्रम पर नजर रखने की जरूरत है।

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