Saturday, March 20, 2010

नितिन गडकरी का सेलिब्रिटी शो

राष्ट्र-चिंतन



विष्णुगुप्त

भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पेशे से व्यापारी और गन्ना सेंडिकेट के खिलाड़ी रहे हैं। मुबंई की चकाचौंध दुनिया उनकी कार्यस्थली रही है। उनकी कार्यसमिति में मुबंई की चकाचौंध दुनिया साफतौर पर ही नहीं झलकी बल्कि वर्चस्ववाली रेखा भी खीची है। हेमामालिनी, स्मृति ईरानी, वाणी त्रिपाठी, शत्रुघ्न सिन्हा सिंहा, गजेन्द्र चौहान, नवजीत सिंह सिद्धु जैसी फिल्मी और चकाचौंध दुनिया की शख्सियतों को कार्यसमिति के विभिन्न पदों पर बैठाया गया है। सिर्फ चकाचौध दुनिया ही नहीं बल्कि दलाल, चमचा और धनपशु संस्कृति के वाहकों की पौ बारह रही है। नितिन गडकरी की कार्यसमिति को देखने के बाद यह नहीं कहा जा सकता है कि राजनीति को रीढ़विहीन, जमीरविहीन शख्सियतों और दलाल, चमचा व धनपशुओं से मुक्त कराने की कोशिश हुई है। दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से वंशवाद की परमपरा भी खीची गयी है। सोनिया गांधी और कांग्रेस को वंशवाद पर कोसने वाली भाजपा खुद को वंशवाद की चपेट मे आने से रोक नहीं सकी है। दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग को कार्यसमिति मे अनुपातिक जगह नहीं मिली है। सिर्फ खानापूर्ति के लिए दलित, पिछड़े और आदिवासी संवर्ग से गिन-चुने राजनीतिज्ञो को जगह मिली है। अल्पसंख्यक समुदाय से पुराने शहनवाज हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी पर भरोसा जताया गया है जबकि आरिफ बेग जैसे पुराने और सिद्धांतवादी शख्सियत की उपेक्षा हई है। क्या ऐसी जमीर-रीढ़ विहीन बिग्रेड के सहारे नितिन गडकरी भाजपा को फिर से सत्ता दिला सकेंगे?
                                   नितिन गडकरी की राजनीतिक और सत्ता संचालन प्रतिभा का बुलबुला कुछ ज्यादा ही उपर उठाया गया था। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने नितिन गडकरी का महिमामंडन करने की प्रक्रिया ऐसी चलायी जैसे वे कोई अटल बिहारी वाजपेयी या लालकृष्ण आडवाणी से भी ज्यादा उत्कृष्ठ और अनुभव वाले नेता हैं। जबकि ऐसी बात थी नहीं। नितिन गडकरी भाजपा का पिटे हुए मोहरा हैं जिसे कांग्रेस की सत्ता को उखाड फेंकने के लिए युद्ध का महारथी बना दिया गया। राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले तक नितिन गडकरी मुबंई-महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष थे। महाराष्ट्र में भाजपा की पिछले 15 सालों के दौरान कैसी दुर्गति हुई है? यह बताने की जरूरत नहीं है। लगातार तीन विधान सभा चुनावो से भाजपा महाराष्ट्र में हार रही है। ध्यान देने वाली बात यह है कि जब नितीन गडकरी महाराष्ट्र में भाजपा को लगातार तीन विधान सभा चुनावों में हार को नहीं रोक सके और न ही भाजपा कार्यकर्ताओं में कांग्रेस-पवार के खिलाफ राजनीतिक जंग के लिए प्रेरित कर सके तब राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार को खिलाफ कैसे भाजपा कार्यकर्ताओ को प्रेरित कर पायेंगे। नितिन गडकरी न तो अटल बिहारी वाजपेयी जैसा उत्कृष्ट और चालबाज वक्ता हैं और न ही लाल कृष्ण आडवाणी जैसा संगठन कर्ता। जिन लोगों ने भी गडकरी के भाषण सुने हैं उन लोगो को गडकरी एक औसत दर्जे के ही राजनीतिक लगते हैं। ऐसे लोगों में मैं भी शामिल हूं।
                                             चकाचौंध दुनिया की राजनीतिक समझ और सरोकार पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। इसलिए कि चकाचौंध दुनिया के बल पर राजनीतिज्ञ बने लोग आमजनता से न जुड़ पाते हैं और न ही वे आमजनता का प्रतिनिधित्व करते है। इन्हें राजनीतिक समझ और जनसमस्याओं की समझ भी नहीं होती है। अमिताभ, गोविंदा, राजेश खन्ना, धर्मेन्द्र जैसे चकाचौंध दुनिया की शाख्सियतों का उदाहरण हमारे सामने है। ये चुनाव जीतने के बाद जनता की सेवा की जगह चकाचौंध दुनिया में धन कमाने में ज्यादा सक्रिय रहे। गडकरी ने जिन फिल्मी और सीरियल दुनिया की शख्सियतों पर विश्वास जताया है उनकी राजनीतिक समझ और भाजपा के प्रति समपर्ण की भी एक झलक हम आपको दिखाता हूं। चर्चा स्मृति ईरानी से कर रहा हू। स्मृति ईरानी गडकरी कार्यसमिति में सचिव बनायी गयी है। ये वही स्मृति ईरानी है जो कभी भाजपा के लिए सिर दर्द बनी थी। स्मृति ईरानी पार्टी संविधान और अनुशासन की खुलेआम धजियां उड़ायी थीं। भाजपा की तत्कालीन रांची कार्यसमिति की बैठक के पूर्व यह बयान देकर तहलका मचा दिया था कि मैं रांची में होने वाली भाजपा कार्यसमिति की बैठक नहीं चलने दूंगी। स्मृति ईरानी की मांग थी कि गुजरात दंगों पर नरेन्द्र मोदी को हटाया जाये। यह मांग स्मृति ईरानी ने कांग्रेसियों को बहकावे मे आकर की थी। राजनीतिक समझ नहीं होने के कारण स्मृति ईरानी खुद साजिश का शिकार हो गयी। अनुशासन की धजियां उठाने पर स्मृति ईरानी को भाजपा से बाहर करना चाहिए था पर कार्यसमिति से वह अब भाजपा की सचिव बन गयी है। हेमा मालिनी उपाध्यक्ष बनी हैं पर राज्यसभा में वह किसी भी गंभीर विषय पर तकरार की नायिका रही है? शत्रुघन सिन्हा अपने बयानों से हमेशा बगावत की रेखा खीचते रहें हैं। उनके बयानो से लगता ही नहीं है कि वे भाजपा में हैं या नहीं है
                                      खून-पसीना से सिंच कर भाजपा को सत्ता में लाने वाले कार्यकर्ताओं और संधर्ष के प्रतीक शख्सियत आज जरूर अपनी कूर्बानी को कोस रहे होंगे। क्या ऐसी ही राजनीतिक संस्कृति के लिए समर्पित निष्ठावान और संघर्ष के प्रतीक कार्यकर्ताओ और नेताओं ने अपनी कुर्बानी दी थी। भाजपा पर धनपशुओं, दलालों और रीढ़विहीन-जमीर विहीन शख्सियतों का पूरी तरह से कब्जा हो गया है। कार्यकारिणी में कई ऐसे लोगों को जगह मिली है जिनकी छवि ठीक नहीं है। सिर्फ चमचेबाजी, और धनबाजी की बदौलत उनकी राजनीतिक उन्नति होती रहती है। राजनाथ सिंह के कार्यकाल में ऐसे लोगो की धारा जोर से बही थी। गडकरी ने भी राजनाथ सिंह का ही अनुसरन किया है। कई ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिनकी छुट्टी होने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन उनकी छुट्टी तो हुई नहीं पर पदोन्नति जरूर हो गयी। राजीव प्रताप रूढी और रविशंकर प्रसाद जैसे लोगों को प्रदोन्नति हुई है। ये दोनो नेता हवा-हवाई हैं। राजीव प्रताप रूढी का तो कई खिस्से आम हैं। एनडीए सरकार में राजीव प्रताप रूढी मंत्री थे। मंत्री रहने के दौरान रूढ़ी ने भाजपा की खूब किरकिरी करायी थी। एक होटल में दो दिन में दो लाख का बिल उठाने वाले रूढी ने बिल पैमेंट की मांग करने पर होटल बंद कराने की धमकी पिलायी थीं। मीडिया में बात उठने पर होटल को बिल पैमेंट हुआ था। ऐसी शख्सियत होने के बाद भी राजीव प्रताप रूढी गडकरी का आईडियल है।
                                                        भाजपा ने सत्ता में आने के लिए दलित, पिछले और आदिवासियों की जनमत का लाभ उठाया। दलित, पिछडे और आदिवासियों ने भाजपा पर विश्वास जताया। लेकिन इसके बदले में उन्हें अनुपातिक हक नहीं मिला। वाजपेयी सरकार में उनकी उपेक्षा हुई। यही कारण था कि 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को दलित, पिछडे और आदिवासियो ने पाठ पढ़ाया और भाजपा सत्ता से बेदखल हो गयीं। कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे नेता भाजपा से बाहर होने के लिए बाध्य हुए। गडकरी ने भी ईमानदारी नहीं दिखायी। अर्जुन मुंडा और धमेन्द्र प्रधान जैसे लोगो को पार्टी पद पर बैठाकर सिर्फ खानापूर्ति ही की गयी है। अल्पसंख्यक समुदाय में सही संदेश देने मेंू भी गडकरी विफल रहे हैं। मुख्तार अब्बास नकवी और शहनवाज हुसैन मुस्लिम समाज पकड़ नही रखते हैं। इसलिए नयी रेखा खींचने की जरूरत थी। आरिफ बेग जैसे पुराने और समर्पित नेता अल्पसंख्यक समुदाय में भाजपा के प्रति अच्छी तस्वीर बना सकते थे। लेकिन गडकरी चूक गये। वरूण गांधी, किरण महेश्वरी, विनय कटियार, थावर सिंह गहलौत और जगत प्रकाश नड्डा जैसे लोगों से गडकरी उम्मीद जरूर कर सकते हैं।
                       गडकरी की टीम को देखने के बाद यह नहीं कहा जा सकता है कि भाजपा एक नये युग में प्रवेश किया है या फिर भाजपा का पुराना जनाधार लौट आयेगा। इसलिए कि भाजपा को अतिरिक्त समर्थन जरूरत है। अतिरिक्त समर्थन की खान दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक राजनीति है। नितिन गडकरी को दलित, पिछडे और आदिवासी राजनीति के प्रबंधन के लिए ठोस कार्यक्रम चलाना होगा। नही ंतो फिर राजनाथ सिंह की तरह गडकरी भी फिसड्डी साबित होंगे।
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1 comment:

  1. पार्टी उनकी फ़ैसला उनका मैं काहे दुबलाउं. यूं भी आज चुनाव कौन विचाराधारा के आधार पर लड़े/ जीते जाते हैं. किसी भी तरह से जीतना ही मुद्दा है बस्स्स्स.... फिर पैसा या ग्लैमर क्या बुरा है

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