Thursday, September 11, 2025

‘जेन जी‘ विद्रोह के पीछे कोई अंतर्राष्ट्रीय साजिश तो नहीं ?

 राष्ट्र-चिंतन


‘ जेन जी ‘ विद्रोह के पीछे कोई अंतर्राष्ट्रीय साजिश तो नहीं ?
    

           
                 
आचार्य श्रीहरि
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दक्षिण ऐशिया का एक देश और ‘जेन जी‘ आंदोलन-विद्रोह का शिकार हो गया। ‘जेन जी‘ के पीछे कोई अंतर्राष्ट्रीय साजिश तो नहीं है? आखिर यूरोपीय देशों, अमेरिका में ‘जेन जी‘ जैसा कोई विद्रोह क्यों नहीं होता है? दुनिया भर में 60 से अधिक मुस्लिम देश है जहां पर मजहबी तानाशाही हिंसक तौर पर उपस्थित है पर वहां ‘जेन जी‘ की तरह कोई विद्रोह क्यों नहीं होता है? चीन अतिहिंसक और तानाशाही वाला देश है वहां पर ‘ जेन जी‘ जैसी क्रांति क्यों नहीं होती है। अगला निशाना भारत और नरेन्द्र मोदी होंगे? भारत के पडोसी देशों के अंदर ही ‘जेन जी‘ की लहर क्यों चल रही है? नरेन्द्र मोदी और भारत को कितना सावधान रहना होगा? अमेरिका की एक सरकारी एजेंसी अपने नापंसद देशों में सत्ता का तख्तापलट के लिए अरबों-खरब डॉलर खर्च करती है।
         ‘ जेन जी ‘ यानी नयी पीढ़ी ने नेपाल में भी क्रांति कर दी है और नेपाल का कम्युनिस्ट शासक ओपी शर्मा कोली ने इस्तीफा देकर भाग खडा हुआ, कोली के इस्तीफा देने के पहले रक्तपात खूब हुआ, हिंसा ऐसी कि 22 लोगों की मृत्यु हो गयी और पांच सौ ज्यादा लोग पुलिस की गोलियो से घायल हो गये। नेपाल में सरकारी संपत्ति का नुकसान कितना हुआ है, इसका आकलन अभी संभव नहीं है। लेकिन अनुमान लगाया जा सकता है। नेपाल की सरकारी संपत्ति का संहार नेपाल के उज्जवल भविष्य का भी संहार करता है। इसके पहले बांग्लादेश और श्रीलंका में भी जेन जी ने अपना कमाल दिखाया था और तख्तापलट किया था। बांग्लादेश में शेख हसीना को छात्रों के आंदोलन के बाद सेना ने बलपूर्वक भगाया जबकि श्रीलंका के शासक बोलबाया राजपक्षे भाग कर विदेश चला गया और वहीं से ही इस्तीफा भेज दिया था। ओपी शर्मा कोली, शेख हसीना और बोलबाया राजपक्षे के सत्ता संहार में एक ही समानता थी। तीनों देशों के तत्कालीन सरकार छात्रो और युवाओं के विद्रोह की शिकार हुई थी और कारण सिर्फ इतना प्रदर्शित हुआ है कि बेरोजगारी और अभाव के कारण आक्रोश पनपा है, जीवन संकट में खडा और महंगाई चरमसीमा पर पहुंच गयी, इस कारण छात्र और युवा हिंसा को थाम लिया, अपने हाथों में बम, पेट्रोल लेकर शासक का संहार करने के लिए कूद पडे और उसमें उन्हें सफलता भी मिली। यह बात तो उपर से ठीक लगती है। पर कुछ प्रश्न ऐसे हैं कि जिनके जवाब आप खोजेंगे और उसका विश्लेषण करेंगे तो पायेंगे कि जेन जी सिर्फ आक्रोश का कारण नहीं है, महंगाई का कारण नहीं है, बेरोजगारी का कारण नहीं है, जीवन संकटग्रस्त होना कारण नहीं है। साजिश भी है, षडयंत्र भी है, इसका एक अंतर्राष्टीय कुचक्र भी है।
            नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका ये तीनों देश भारत के पडोसी देश है जहां पर समस्याएं और राजनीतिक तकरार चरम पर जरूर थी। लेकिन ये तीनों देशों में चीन की कारस्तानी भी कम जिम्मेदार नहीं थी, चीनी कर्ज के मकडजाल में श्रीलंका फंस गया था, नेपाल भी चीनी कर्ज और कुचक्र में फंसा हुआ था। सत्ता गंवाने के कुछ दिन ही पूर्व शेख हसीना चीन गयी थी और अपने लिए समर्थन के साथ ही साथ सहायता मांगी थी। चीन दौरा अधूरा छोडना पडा था और बांग्लादेश वापस होना पडा था। फिर भी शेख हसीना की सरकार नहीं बची थी। लेकिन एक तथ्य पाकिस्तान के लेकर भी है। पाकिस्तान भी भारत का पडोसी है और दक्षिण ऐशिया का हिस्सा है। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति तो नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश से भी बूरी है, दयनीय है और लोमहर्षक है। पाकिस्तान दुनिया के सामने कटौरा लेकर सहायता और कर्ज की भीख मांग रहा है पर उसे भीख नहीं मिल रही है, पाकिस्तान की आर्थव्यवस्था बूरी तरह चौपट हो गयी है, खेती अब आजीविका प्रदान नहीं करती है, रोजगार का साधन नहीं है, बेरोजगारी चरम पर है। यह सिर्फ मेरी धारणा नहीं है बल्कि पाकिस्तान की सरकार की भी यही धारणा है, पाकिस्तान की राजनीति की भी यही धारणा है, दुनिया के नियामकों का भी यही धारणा है। ऐसी विकट, कठिन और लोमहर्षक स्थिति में होने के बाद भी पाकिस्तान में जेन जी क्रांति क्यों नहीं हुई, जनता सड़कों पर क्यों नहीं उतरी? छात्र और युवा भी सड़कों पर उतर कर पाकिस्तान की सरकार और सेना के खिलाफ बगावत क्यों नहीं किये? चीन एक कम्युनिस्ट तानाशाही वाला देश है। कम्युनिस्ट तानाशाही में जनता की कोई इच्छा नहीं होती है, जनता की इच्छा को बन्दूक की गोलियों से उडा दिया जाता है, कुचल दिया जाता है और संहार कर दिया जाता है। चीन की राजधानी बीजिंग के थ्यैन मेन चौक पर आज के पच्चीस साल पूर्व छात्रों ने विद्रोह किया था जिसे चीन ने रेल से कुचलकर, टेकों से मसलकर और मिसाइलें दाग कर दमन किया था। थ्यैन मेन चौक के नरसंहार के बाद पच्चीस साल गुजर गये पर फिर कोई बगावत क्यो नहीं हुई? चीन में जिस तरह से हायर और फायर की नीति है उसके दुष्परिणामों से जेन जी क्राति तो कब की हो जानी चाहिए थी?
       सबसे बडी बात यह है कि यूरोप और अमेरिका की स्थिति भी कोई खास नहीं है। वहां पर बेरोजगारी है और महंगाई है, वहां पर भी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कठिन परिस्थितियां है। अमेरिका और यूरोप भी अपनी जनता को उनकी इच्छानुसार शासन नहीं दे पा रहे हैं, सुविधाएं नहीं दे पा रहे हैं। लेकिन अमेरिका, ब्रिटन, फ्रांस, इटली, जर्मनी जैसे देशों में छात्र और युवाओं का कोई विद्रोह देखने को नहीं मिला है। अब आइये मुस्लिम दुनिया के स्थिति पर। मुस्लिम दुनिया भी अपनी जनता की इच्छानुसार समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहे हैं, मुस्लिम देशों में गरीबी पसर रही है, भूखमरी पसर रही है, बेरोजगारी और महंगाई चरप पर है। सबसे बडी बात यह है कि अधिकतर मुस्लिम देशों में तानाशाही पसरी हुई है, नदी की काई की तरह जमी हुई है, छिपकिली की तरह चिपकी हुई है। मुस्लिम तानाशाही हिंसक तो होती ही है, इसके अलावा जनहीन भी होती है, जनता का दमन भी खूब करती है। मुस्लिम तानाशाही से युक्त मुस्लिम देशों के शासक भ्रष्टचार और बईमानी की कमाई को यूरोप और अमेरिका में ले जाकर निवेश करते हैं, बैकंों में जमा करते हैं पर इसके खिलाफ मुस्लिम दुनिया में बगावत क्यों नहीं होती है, युवाओं और छात्रों का विद्रोह क्यों नहीं होता है? अरब के मुस्लिम देशों में श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश की तरह तख्तापटल क्यों नहीं होता है?
                     अगला निशाना कौन होगा? इस पर विचार करना होगा। अगला निशाना कोई और नहीं बल्कि भारत है। दुनिया की मुस्लिम और ईसाई शक्तियों और अस्मिताओं को नरेन्द्र मोदी की सरकार पंसद नहीं है, यह कहना भी सही होगा कि नरेन्द्र मोदी की सरकार दुनिया की मुस्लिम-ईसाई शक्तियों और अस्मिताओ की छाती पर बैठकर मूंग दलती है। नरेन्द्र मोदी की सरकार के दफन के लिए अंतर्राष्ट्रीय कुचक्र भी चलता रहा है। नरेन्द्र मोदी की सरकार के खिलाफ जनविद्रोह करने के लिए दुनिया भर से समर्थन आता है, पैसे आते हैं और वैचारिक सामग्रियां आती है। दुनिया भर के इस्लामिक और ईसाई नियामकें अपनी रिपोर्टो में भारत की गरीबी और स्वास्थ सहित महंगाई के बारे में भ्रामक बातें प्रकाशित कराती है, मनगढंत आकंडे प्रस्तुत करते हैं। इसक पीछे इनका मकसद नरेन्द्र मोदी की सरकार को अस्थिर करना और जनता को बगावत के लिए प्रेरित करना। बांग्लादेश में जब तख्तापलट हुआ था तब राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद ने भारत की जनता से विद्रोह करने के लिए अपीलें की थी और उनके बयान थे कि नरेन्द्र मोदी ने जनता की इच्छाओं का कब्र बना दिया है, भारत का नाम डूबा दिया है, गरीबी और महंगाई से जीना दुभर हो गया है, इसलिए आम जनता सडकों पर उतरे और नरेन्द्र मोदी का ताख्तापलट कर दे। पर भारत की समझदार जनता ने राहुल गांधी और उनकी पार्टी के नेताओं की ऐसी अपीलों पर कोई ध्यान ही नही दिया था। भारत की जनता समझदार है और नरेन्द्र मोदी की सत्ता नीति में सबका साथ और सबका विकाल निहित है। प्रतिमाह 80 करोड लोगों को मुफ्त राशन मिल रहा है, जिसके कारण गरीब अपना जीवन सक्रिय करने में सफल हो रहे हैं, साल में पांच लाख तक का मुफ्त इलाज जनका के लिए स्वास्थ्य कवच है। फिर  भारत की जनता नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विद्रोह क्यों करेगी?
          फिर भी नरेन्द्र मोदी को सावधान रहना चाहिए। खासकर अतंराष्टीय ईसाई और मुस्लिम  शक्तियां और संगठनों पर ध्यान देने की जरूरत होगी। उन एनजीओं को भी संज्ञान में रखने की जरूरत होगी जो विदेशी पैसों पर भारत में जनादेश को प्रभावित करती हैं और राष्ट्रवादी प्रतीकों के प्रति घृणा पैदा करती हैं। इसके अलावा राजनीतिक पार्टियों के झूठ और मनगढंत संवाद की प्रक्रिया को नियंत्रित करना होगा। हमारे लिए हर्ष की बात यह है कि हमारी पुलिस और सेना जिम्मेदार है और राष्ट्र की अस्मिता का पोषण करना जानती है।

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आचार्य श्रीहरि
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