राष्ट्र-चिंतन
अब आया
उंट (कनाडा) पहाड (भारत) के नीचे
आचार्य श्रीहरि
कनाडा ने
स्वीकार किया है उसकी जमीन पर खालिस्तानी समर्थकों की हिंसक सक्रियता है और
राजनीतिक कारणों से उन्हें संरक्षण भी मिला हुआ है, इतना ही नहीं बल्कि इन्हें आर्थिक मदद भी मिल रही है। कनाडा
की यह स्वीकारोक्ति बहुत देर से आयी हुई है,
जब
कूटनीतिक परिस्थितियां खतरनाक हुई और भारत अपने रूख से पीछे नहीं हटा तो फिर कनाडा
के पास सच बोलने के अलावा कोई और रास्ता ही नहीं था। सबसे बडी बात यह है हिंसक, विखंडनकारी तत्व कभी भी शांति और सदभाव के पुजारी नहीं हो
सकते हैं, समर्थक नहीं हो सकते हैं, ये हमेशा हिंसा मे विश्वास रखते हैं और हिंसा से अपनी मांगे
मनवाना चाहते हैं। कनाडा की स्वीकारोक्ति तो है पर उसमें प्रतिबद्धता की कोई घोषणा
नहीं है। कनाडा ने यह नहीं कहा कि वह खालिस्तानी तत्वों को शांति का पाठ पढायेंगे, उन्हें अपने देश के कानूनों का पाठ पढायेंगे, उनकी गतिविधियों का संहार करेंगे। जबतक उनकी हिंसा जारी
रहेगी, उनकी हिंसक वैचारिक गतिविधियां
जारी रहेंगी, जब तक कनाडा की सिख आबादी का
समर्थन इन्हें जारी रहेगा तब तक कूटनीतिक तकरार जारी रहेगा, भारत और कनाडा के आपसी संबंधों में मिठास आ ही नहीं सकता है।
क्योकि भारत और कनाडा के आपसी सबंधों में सिख खालिस्तानी ही अडचन है, बाधा है। उम्मीद की जानी चाहिये कि कनाडा का नया नेतृत्व आगे
की राह को देखेगे, अपना भविष्य देखेगे और अपना हित
देखेगे, खालिस्तानी तत्वों की हिंसा से
कनाडा को कोई खास लाभ नहीं होने जा रहा है,
उसकी
कूटनीति मजबूत नहीं होने वाली हैं, उनके हित समृद्ध होने वाले नहीं
है। जहां तक भारत की बात है तो भारत अपने दुश्मनों को साफ संकेत देता है कि उन्हें
छोड़ा नहीं जायेगा, उन्हें हिंसा फैलाने और
मनुष्यता का खून बहाने का कठोर दंड मिलेगा। भारत ने अपनी आतरिक सुरक्षा की संरचना
को न केवल मजबूत किया है बल्कि चाकचैबंद भी किया है।
राजनीतिक कारणों से खालिस्तानी
समर्थक तत्वों को कनाडा में संरक्षण मिला। कनाडा की आबादी का एक बड़ा हिस्सा सिखों
का है। सिख भारत से ही जाकर कनाडा मं बसे हुए हैं। जिस प्रकार से भारत में चुनावी
राजनीति के कारण मुसलमानों के आतंक और हिंसा की मानसिकता को संरक्षण मिलता है, उस पर उदासीनता बरती जाती है, उसी प्रकार से कनाडा में भी वोटों की राजनीति, पार्टियों के सिर पर चढकर नाचती है। कनाडा में मुस्लिम और
सिख आबादी मिलकर लोकतांत्रिक ढंाचे को प्रभावित करती हैं और अपना वर्चस्व स्थापित
करती हैं। कनाडा अपनी राष्ट्रीय जरूरतों को पूरा करने के लिए अप्रवासियों को
संरक्षण देता है, मदद देता है और स्वागत करता है।
खासकर मुस्लिम देशों से अप्रवासी बहुत बडी संख्या में जाकर कनाडा में बसे हैं।
मुस्लिमो की तरह सिख भी बडी संख्या में जाकर वहा पर बसे हुए हैं। उदारीकरण के बाद
हिन्दू भी जाकर बसे हुए हैं। लेकिन हिन्दू जो वहां पर बसे हुए हैं वे काफी
प्रशिक्षित है, इनमें डाॅक्टर, इंजीनियर और सूचना प्रौद्यागिकी के सहचर हैं। इसलिए कनाडा
में हिन्दू उतने मुखर नहीं है जितने मुखर मुस्लिम और सिख हैं। मुस्लिम तो भारत के
दुश्मन पहले से ही है, उन पर कश्मीर का प्रसंग पहले से
प्रभाव डालता है, इसके अलावा मुगलों के आठ सौ साल
के शासनकाल के बाद भारत कैसे नहीं मुस्लिम देश बना, इसकी ग्रथि मुसलमानों को उग्र करती है। कनाडा की राजनीतिक
पार्टियो और राजनीतिक नेताओं की समझ यह है कि अगर हम भारत का विरोध करते हैं और
हिन्दुत्व का विरोध करते हैं तो हमारे मुस्लिम मतदाता और सिख मतदाता खुश होंगे, सिर्फ खुश ही नहीं होंगे बल्कि सत्ता की चाभी भी उन्हें
सौंपेगे।
कनाडा में खालिस्तानी तत्वों के
उग्र अराजकता और हिंसा के पीछे जस्टिन टुडों की विशेष कारस्तानी रही है। जस्टिन
टुडांें कभी कनाडा के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। जस्टिन टूडों हद से ज्यादा अपने
आप मानवतावादी घोषित करते थे और कहते थे कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन
नही कर सकते हैं, हम किसी को भी विरोध दर्शाने से
रोक नहीं सकते हैं। पर उनकी यह मानसिकता घातक थी ओर हिंसक भी थी। क्योंकि
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतगर्त हिंसा नहीं आती है, विखंडन नहीं आता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतगर्त
किसी को हिंसा फैलाने की छूट नहीं दी जा सकती है ,किसी को भयभीत करने की छूट नही दी जा सकती है। जस्टिन टूडों
के कार्यकाल में कई अप्रिय धटनाएं भी घटी थी और भारत-कनाडा के बीच कूटनीतिक युद्ध
चरम पर पहुंच गया था। टूडों ने भारत पर हिंसा कराने और अपने नागरिकों की हत्या
करने जैसे बेबुनियाद आरोप लगाये थे। जबकि भारत ने मजबूती के साथ इसका खंडन किया था
और कहा था कि वह अतंराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का पालन करता है, कनाडा के सिख नेताओं की हत्या कनाडा का निजी मामला है, इसमें भारत की भूमिका नहीं है। कनाडा में समय-समय पर दो सिख
खालिस्तानी नेताओं की हत्या हुई थी। खालिस्तानी नेताओं की हत्याएं अस्पष्ट थी, इसमें किसका हाथ था,
यह
स्पष्ट नहीं था। आतंकवादी संगठनों में वर्चस्व को लेकर शह-मात का खेल चलता ही रहता
है, उनके अंदर हिंसा भी होती रहती
है, एक-दूसरे को निपटाने का भी खेल
होता रहता है। सबसे बडी बात यह है कि खालिस्तानी तत्वों के बीच मादक द्रव्यों की
तस्करी को लेकर भी तनातनी रहती है। मीडिया रिपोर्ट कहती है कि कनाडा के खालिस्तानी
तत्व मादक द्रव्यों की आपूर्ति और तस्करी में लगे हुए हैं। यह भी सच है कि आतंकी
संगठनों को अपने आतंक को सफल करने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है, यह पैसा मादक द्रव्यों की तस्करी से ही आता है। फिर कनाडा इन
थ्योेेेें को स्वीकार करने के लिए तैयार नही हुआ था। फिर कनाडा और भारत के बीच
कूटनीतिक युद्ध भी हुआ था। भारत ने कनाडा के साथ कूटनीतिक संबंध सीमित कर सख्त
संदेश दिये थे जवाब मे कनाडा ने भी कूटनीतिक संबंध सीमित कर दिये थे।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कनाडा और भारत एक दूसरे के खिलाफ थे। अमेरिका भी चैधराहट
दिखा रहा था। अमेरिका ने घोषणा की थी कि कनाडा के अंदर सिख नेताओं की हत्या को
लेकर जांच प्रक्रिया पर निगरानी कर रहा है और इसका सच उगागर करने के पक्ष में है।
अमेरिका ने भी कनाडा के पक्ष में खूब लाठियां भांजी थी। पर भारत के खिलाफ उन्हें
कोई सबूत नहीं मिला, भारत की संलिप्तता उजागर नहीं
हुई। क्योंकि कनाडा के सिख नेताओं की हत्या में भारत की कोई भूमिका ही नहीं थी।
सच तो यह है कि पश्चिम देश
अभिव्यक्ति के नाम पर दुनिया भर के उग्र और हिंसक आतंकी संगठनों का पोषण करते हैं।
खालिस्तानी उग्र तत्वों की हिंसा और सक्रियता की कसौटी पर आई 5 के अन्य देश भी गुनहगार है। आईफाइव में कनाडा के अलावा
अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आता है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन में भी
खालिस्तानी समर्थकों की पूरी छूट मिली हुई है। इन जगहों पर खालिस्तानी तत्व समय’समय पर सक्रिय और हिंसक गतिविधियां संचालित करते हैं और इतना
नहीं बल्कि हिन्दुओं के पूजा स्थलों पर भी हमला करते हैं, हिंसा को अंजाम देते हैं। हिन्दू मंदिरों पर हमले के कई
घटनाएं हो चुकी हैं और इन सभी घटनाओं में सिख आतंकवादियों का हाथ रहा है। अमेरिका
में पन्नू नामक खालिस्तानी तत्व की गतिविधियां भी अति खतरनाक है। पन्नू अमेरिका
में बैठकर भारत में हिंसा फैलाने और भारत विखंडन की बात सरेआम करता है। अमेरिका ने
आरोप लगाया था कि पन्नू की हत्या कराने के लिए भारतीय अधिकारी सकिय थे और निखिल
गुप्ता ने आपराधिक भूमिका निभायी थी। अमेरिका ने निखिल गुप्ता को गिरफ्तार भी किया
था। आज भी निखिल गुप्ता अमेरिकी जेल में बंद है पर अमेरिका अभी भी निखिल गुप्ता का
अपराध साबित नहीं कर पाया है। निखिल गुप्ता का कहना है कि उसे बलि का बकरा बनाया
गया है।
उग्र खालिस्तानी तत्व कनाडा के हित साधक
नहीं हो सकते हैं। कनाडा की आर्थिक समृद्धि के प्रतीक नहीं बन सकते हैं। भारत के
कारण कनाडा की आर्थिक व्यवस्था मजबूत रहती है। हजारों भारतीय छात्र हर साल कनाडा
में पढाई करने जाते हैं। इस कारण कनाडा की आर्थिक स्थिति मजबूत रहती है। सबसे बडी
बात यह है कि भारत खुद के बल पर खालिस्तानी तत्वों को नियंत्रित करने में सक्षम
है।
संपर्क
आचार्य
श्रीहरि
Mobile 9315206123
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