Monday, September 8, 2025

अब आया उंट (कनाडा) पहाड (भारत) के नीचे

 



                 राष्ट्र-चिंतन

     अब आया उंट (कनाडा) पहाड (भारत) के नीचे

                          आचार्य श्रीहरि

 

       कनाडा ने स्वीकार किया है उसकी जमीन पर खालिस्तानी समर्थकों की हिंसक सक्रियता है और राजनीतिक कारणों से उन्हें संरक्षण भी मिला हुआ है, इतना ही नहीं बल्कि इन्हें आर्थिक मदद भी मिल रही है। कनाडा की यह स्वीकारोक्ति बहुत देर से आयी हुई है, जब कूटनीतिक परिस्थितियां खतरनाक हुई और भारत अपने रूख से पीछे नहीं हटा तो फिर कनाडा के पास सच बोलने के अलावा कोई और रास्ता ही नहीं था। सबसे बडी बात यह है हिंसक, विखंडनकारी तत्व कभी भी शांति और सदभाव के पुजारी नहीं हो सकते हैं, समर्थक नहीं हो सकते हैं, ये हमेशा हिंसा मे विश्वास रखते हैं और हिंसा से अपनी मांगे मनवाना चाहते हैं। कनाडा की स्वीकारोक्ति तो है पर उसमें प्रतिबद्धता की कोई घोषणा नहीं है। कनाडा ने यह नहीं कहा कि वह खालिस्तानी तत्वों को शांति का पाठ पढायेंगे, उन्हें अपने देश के कानूनों का पाठ पढायेंगे, उनकी गतिविधियों का संहार करेंगे। जबतक उनकी हिंसा जारी रहेगी, उनकी हिंसक वैचारिक गतिविधियां जारी रहेंगी, जब तक कनाडा की सिख आबादी का समर्थन इन्हें जारी रहेगा तब तक कूटनीतिक तकरार जारी रहेगा, भारत और कनाडा के आपसी संबंधों में मिठास आ ही नहीं सकता है। क्योकि भारत और कनाडा के आपसी सबंधों में सिख खालिस्तानी ही अडचन है, बाधा है। उम्मीद की जानी चाहिये कि कनाडा का नया नेतृत्व आगे की राह को देखेगे, अपना भविष्य देखेगे और अपना हित देखेगे, खालिस्तानी तत्वों की हिंसा से कनाडा को कोई खास लाभ नहीं होने जा रहा है, उसकी कूटनीति मजबूत नहीं होने वाली हैं, उनके हित समृद्ध होने वाले नहीं है। जहां तक भारत की बात है तो भारत अपने दुश्मनों को साफ संकेत देता है कि उन्हें छोड़ा नहीं जायेगा, उन्हें हिंसा फैलाने और मनुष्यता का खून बहाने का कठोर दंड मिलेगा। भारत ने अपनी आतरिक सुरक्षा की संरचना को न केवल मजबूत किया है बल्कि चाकचैबंद भी किया है।

               राजनीतिक कारणों से खालिस्तानी समर्थक तत्वों को कनाडा में संरक्षण मिला। कनाडा की आबादी का एक बड़ा हिस्सा सिखों का है। सिख भारत से ही जाकर कनाडा मं बसे हुए हैं। जिस प्रकार से भारत में चुनावी राजनीति के कारण मुसलमानों के आतंक और हिंसा की मानसिकता को संरक्षण मिलता है, उस पर उदासीनता बरती जाती है, उसी प्रकार से कनाडा में भी वोटों की राजनीति, पार्टियों के सिर पर चढकर नाचती है। कनाडा में मुस्लिम और सिख आबादी मिलकर लोकतांत्रिक ढंाचे को प्रभावित करती हैं और अपना वर्चस्व स्थापित करती हैं। कनाडा अपनी राष्ट्रीय जरूरतों को पूरा करने के लिए अप्रवासियों को संरक्षण देता है, मदद देता है और स्वागत करता है। खासकर मुस्लिम देशों से अप्रवासी बहुत बडी संख्या में जाकर कनाडा में बसे हैं। मुस्लिमो की तरह सिख भी बडी संख्या में जाकर वहा पर बसे हुए हैं। उदारीकरण के बाद हिन्दू भी जाकर बसे हुए हैं। लेकिन हिन्दू जो वहां पर बसे हुए हैं वे काफी प्रशिक्षित है, इनमें डाॅक्टर, इंजीनियर और सूचना प्रौद्यागिकी के सहचर हैं। इसलिए कनाडा में हिन्दू उतने मुखर नहीं है जितने मुखर मुस्लिम और सिख हैं। मुस्लिम तो भारत के दुश्मन पहले से ही है, उन पर कश्मीर का प्रसंग पहले से प्रभाव डालता है, इसके अलावा मुगलों के आठ सौ साल के शासनकाल के बाद भारत कैसे नहीं मुस्लिम देश बना, इसकी ग्रथि मुसलमानों को उग्र करती है। कनाडा की राजनीतिक पार्टियो और राजनीतिक नेताओं की समझ यह है कि अगर हम भारत का विरोध करते हैं और हिन्दुत्व का विरोध करते हैं तो हमारे मुस्लिम मतदाता और सिख मतदाता खुश होंगे, सिर्फ खुश ही नहीं होंगे बल्कि सत्ता की चाभी भी उन्हें सौंपेगे।

                कनाडा में खालिस्तानी तत्वों के उग्र अराजकता और हिंसा के पीछे जस्टिन टुडों की विशेष कारस्तानी रही है। जस्टिन टुडांें कभी कनाडा के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। जस्टिन टूडों हद से ज्यादा अपने आप मानवतावादी घोषित करते थे और कहते थे कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन नही कर सकते हैं, हम किसी को भी विरोध दर्शाने से रोक नहीं सकते हैं। पर उनकी यह मानसिकता घातक थी ओर हिंसक भी थी। क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतगर्त हिंसा नहीं आती है, विखंडन नहीं आता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतगर्त किसी को हिंसा फैलाने की छूट नहीं दी जा सकती है ,किसी को भयभीत करने की छूट नही दी जा सकती है। जस्टिन टूडों के कार्यकाल में कई अप्रिय धटनाएं भी घटी थी और भारत-कनाडा के बीच कूटनीतिक युद्ध चरम पर पहुंच गया था। टूडों ने भारत पर हिंसा कराने और अपने नागरिकों की हत्या करने जैसे बेबुनियाद आरोप लगाये थे। जबकि भारत ने मजबूती के साथ इसका खंडन किया था और कहा था कि वह अतंराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का पालन करता है, कनाडा के सिख नेताओं की हत्या कनाडा का निजी मामला है, इसमें भारत की भूमिका नहीं है। कनाडा में समय-समय पर दो सिख खालिस्तानी नेताओं की हत्या हुई थी। खालिस्तानी नेताओं की हत्याएं अस्पष्ट थी, इसमें किसका हाथ था, यह स्पष्ट नहीं था। आतंकवादी संगठनों में वर्चस्व को लेकर शह-मात का खेल चलता ही रहता है, उनके अंदर हिंसा भी होती रहती है, एक-दूसरे को निपटाने का भी खेल होता रहता है। सबसे बडी बात यह है कि खालिस्तानी तत्वों के बीच मादक द्रव्यों की तस्करी को लेकर भी तनातनी रहती है। मीडिया रिपोर्ट कहती है कि कनाडा के खालिस्तानी तत्व मादक द्रव्यों की आपूर्ति और तस्करी में लगे हुए हैं। यह भी सच है कि आतंकी संगठनों को अपने आतंक को सफल करने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है, यह पैसा मादक द्रव्यों की तस्करी से ही आता है। फिर कनाडा इन थ्योेेेें को स्वीकार करने के लिए तैयार नही हुआ था। फिर कनाडा और भारत के बीच कूटनीतिक युद्ध भी हुआ था। भारत ने कनाडा के साथ कूटनीतिक संबंध सीमित कर सख्त संदेश दिये थे जवाब मे कनाडा ने भी कूटनीतिक संबंध सीमित कर दिये थे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कनाडा और भारत एक दूसरे के खिलाफ थे। अमेरिका भी चैधराहट दिखा रहा था। अमेरिका ने घोषणा की थी कि कनाडा के अंदर सिख नेताओं की हत्या को लेकर जांच प्रक्रिया पर निगरानी कर रहा है और इसका सच उगागर करने के पक्ष में है। अमेरिका ने भी कनाडा के पक्ष में खूब लाठियां भांजी थी। पर भारत के खिलाफ उन्हें कोई सबूत नहीं मिला, भारत की संलिप्तता उजागर नहीं हुई। क्योंकि कनाडा के सिख नेताओं की हत्या में भारत की कोई भूमिका ही नहीं थी।

                 सच तो यह है कि पश्चिम देश अभिव्यक्ति के नाम पर दुनिया भर के उग्र और हिंसक आतंकी संगठनों का पोषण करते हैं। खालिस्तानी उग्र तत्वों की हिंसा और सक्रियता की कसौटी पर आई 5 के अन्य देश भी गुनहगार है। आईफाइव में कनाडा के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आता है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन में भी खालिस्तानी समर्थकों की पूरी छूट मिली हुई है। इन जगहों पर खालिस्तानी तत्व समयसमय पर सक्रिय और हिंसक गतिविधियां संचालित करते हैं और इतना नहीं बल्कि हिन्दुओं के पूजा स्थलों पर भी हमला करते हैं, हिंसा को अंजाम देते हैं। हिन्दू मंदिरों पर हमले के कई घटनाएं हो चुकी हैं और इन सभी घटनाओं में सिख आतंकवादियों का हाथ रहा है। अमेरिका में पन्नू नामक खालिस्तानी तत्व की गतिविधियां भी अति खतरनाक है। पन्नू अमेरिका में बैठकर भारत में हिंसा फैलाने और भारत विखंडन की बात सरेआम करता है। अमेरिका ने आरोप लगाया था कि पन्नू की हत्या कराने के लिए भारतीय अधिकारी सकिय थे और निखिल गुप्ता ने आपराधिक भूमिका निभायी थी। अमेरिका ने निखिल गुप्ता को गिरफ्तार भी किया था। आज भी निखिल गुप्ता अमेरिकी जेल में बंद है पर अमेरिका अभी भी निखिल गुप्ता का अपराध साबित नहीं कर पाया है। निखिल गुप्ता का कहना है कि उसे बलि का बकरा बनाया गया है।

         उग्र खालिस्तानी तत्व कनाडा के हित साधक नहीं हो सकते हैं। कनाडा की आर्थिक समृद्धि के प्रतीक नहीं बन सकते हैं। भारत के कारण कनाडा की आर्थिक व्यवस्था मजबूत रहती है। हजारों भारतीय छात्र हर साल कनाडा में पढाई करने जाते हैं। इस कारण कनाडा की आर्थिक स्थिति मजबूत रहती है। सबसे बडी बात यह है कि भारत खुद के बल पर खालिस्तानी तत्वों को नियंत्रित करने में सक्षम है।

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Wednesday, September 3, 2025

तिरंगे का मजहबी अपमान

 


                                 राष्ट्र-चिंतन


                        तिरंगे का मजहबी अपमान

तिरंगे का अपमान कर फिलिस्तीन का झंडा फहराने, फिलिस्तीन जिंदाबाद और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने की बढती प्रवृति राष्ट्र के लिए घातक है

                            आचार्य श्रीहरि
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क्या किसी भारतीय के लिए तिरंगे झंडे से भी बड़ा फिलिस्तीन झंडा प्यारा हो सकता है, क्या कोई भारतीय तिरिगे झंडे का फेक कर, उतार कर, उसका अपमान कर सकता है, तिरंगे की जगह फलिस्तीन का झंडा फहरा सकता है? अगर ऐसी घटना किसी सरकारी भवन पर हुआ है तो यह प्रसंग न केवल देशद्रोह का बनता है बल्कि एक सभ्य और दायित्वपूर्ण नागरिक होने की अहर्तता का संहार भी करता है, क्योंकि भारतीय संविधान में अगर मौलिक अधिकार है तो फिर मौलिक कर्तव्य भी है। खासकर तिरंगे के प्रति समर्पण नहीं रखने वाले लोग, तिरंगे का अपमान करने वाले लोग, तिरंगे का फाड कर फेंकने वाले लोग, तिरंगे से नफरत करने वाले लोग संविधान से प्रदत्त मौलिक कर्तव्य का उल्लघन करते हैं और अपनी नागरिकता खोने का अपराध करते हैं। तिरंगे के प्रति समर्पण दिखाना मौलिक कर्तव्य है।
         तिरंगा सिर्फ एक कपडे का टूकडा मात्र नहीं है बल्कि देश का आन-बान शान है, न जाने कितने भारतीयों ने तिरंगे के सम्मान के लिए अपनी जानें बलिदान की थी, अंग्रेजो की गोलिया खायी थी, अपनी हंसती-खेलती और मुस्कराती जिंदगी समाप्त करने के लिए पीछे नहीं हटे थे। लेकिन तिरंगे के प्रति मुस्लिम समुदाय की नफरत और मजहबी सोच अब भयानक और घिनौना उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है, तिरंगे की जगह उनका इस्लाम और मजहब प्यारा, सर्वश्रेष्ठ होता जा रहा है, मजहब के आधार पर उनके लिए कभी इस्लाम का झंडा, कभी बांग्लादेश का झंडा तो कभी ईरान का झंडा, तो कभी फिलिस्तीन का झंडा महत्वपूर्ण होता जा रहा है। सिर्फ तिरंगे की ही बात नहीं है बल्कि अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति इनकी नफरत और हिेसक सोच सामने लोमहर्षक करतूत के तौर पर आ रही है। जन गन मन अधिनायक हमारा राष्ट्रीय गाण है, इस राष्ट्रीय गान के प्रति हमारा रझान और सम्मान सर्वश्रेष्ठ है पर मुस्लिम समुदाय इसके प्रति घृणा प्रस्तुत करते हैं। संसद के अंदर में कई बार देखा गया है कि मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले मुस्लिम सांसद जन गन मन के गान के समय खडे होने से भी बचते है।
             इस कसौटी पर उत्तर प्रदेश के खीरी की घटना ने हमें मुस्लिम समुदाय की भारत विरोधी हरकतांें पर संज्ञान लेने के लिए प्रेरित किया है, देश के नीति निर्धारकों और देश के संवैधानिक नियामकों को भी प्रतिक्रिया गत कदम उठाने के लिए प्रेरित करता है। लोमहर्षक घटना उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले की है। जहां पर एक सरकारी स्कूल के भवन पर लगे तिरंगे झंडे के साथ अपमान हुआ है, तिरंगे झंडे को फाड कर फेकने का अपराध हुआ है, तिरंगे की जगह फिलिस्तीन के झंडे को फहराया गया है। यह घटना सरेआम घटी है, एलानिया तौर पर हुई है। पहले से ही धमकी दी गयी थी कि स्कूल का इस्लामिककरण करो, नही ंतो इस्लामिक झडा लगा देंगे, फिलिस्तीन का झंडा लगा देंगे, पाकिस्तान का झंडा लगा देंगे। सरकारी स्कूल के शिक्षक और छात्र डरे हुए थे, वे तिरंगा हटाते तो क्यों? धमकियांें को अंजाम दिया गया। दर्जनों मुस्लिम युवक उस सरकारी स्कूल पर धावा बोलते हैं और तिरंगे का अपमान करते हैं, तिरंगे को नोच कर फेक देते हैं, उसके बाद फिलिस्तीन का झंडा लगा देंते हैं, फिलिस्तीन का झंडा फहराने के बाद फिलिस्तीन जिदाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद और इस्लाम जिंदाबाद के नारे लगते हैं। गांव वालों को धमकिया मिलती है कि इसका विरोध किया तो डायरेक्ट एक्शन वाली घटना को अंजाम दिया जायेगा। डायरेक्ट एक्शन का अर्थ हिन्दुओं को गाजर मूली की तरह काटना और इस्लाम का झंडा फहराना है। गांव वाले इस घटना से डरे हुए थे। फिर एक युवक की साहस असर दिखाता है। साहस कर एक युवक ने पुलिस के पास जाकर कंपलेन करता है। पुलिस एक्शन में आती है। तीन मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी होती है, शेष की पहचान और खोज जारी है। पुलिस की जांच संपूर्णता में होनी चाहिए। संपूर्णता में पुलिस जांच होने से यह बात सामने आयेगी कि इस लोमहर्षक घटना में कितनी बडी साजिश है और तिरंगा को निशाना बनाने के पीछे कहीं कोई अंतर्राष्टीय षडयंत्र तो नहीं है, किसी आतंकवादी संगठनों की इसमें सलिप्तता तो नहीं, क्योकि भारत में इस्लामिक कूरीतियों और हिंसक ग्रथियों का शासन लागू करने को लेकर जिहाद पहले से ही जारी है।
            फिलिस्तीन हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण हैं, फिलिस्तीन के लिए हम अपना राष्ट्रीय हित और सुरक्षा हित को बलिदान क्यों करें? फिलिस्तीन कोई देश नहीं है, फिलिस्तीन कभी भी मुसलमानों की धरती या फिर वर्चस्व नहीं रहा है। इस्लाम की स्थापना के पूर्व से ही फिलिस्तीन के अंदर यहूदियों और ईसाइयों की उपस्थिति और वर्चस्व था। क्योंकि ईसाई और यहूदियों के अस्तित्व के कई सौ साल बाद इस्लाम और मुसलमानों का अस्तित्व सामने आया था। इस्लाम तलवार के बल पर बढा हुआ है और विस्तार पाया है। इस्लाम ने फिलिस्तीन पर हमला बोला और कब्जा करने के लिए हिंसा को अपनायी। इतिहास कोई भी पढ सकता है। इतिहास मे दर्ज है कि इस्लाम के दूत मोहम्मद साहब के समय भी इस्लाम और यहूदियों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था और इस्लाम की घुसपैठ फिलिस्तीन में हुई थी। बाद में फिलिस्तीन के अंदर इस्लाम का वैसा ही प्रचार और प्रसार हुआ जैसा कि ईरान में इस्लाम का हुआ था, भारत में इस्लाम का हुआ था। जिस तरह से भारत में इस्लाम ने हिंसा फैलायी और धर्मातंरण करा कर अपनी पैठ बढायी, ईरान में जिस तरह से इस्लाम ने मूल निवासी पारसियों का सफाया कर अपना एकमेव वर्चस्व स्थापित किया उसी तरह से फिलिस्तीन में भी इस्लाम ने अपना वर्चस्व कायम किया। बाद में फिलिस्तीन इस्लाम, यहूदी और ईसाइयों की सांझी भूमि के तौर पर विख्यात हो गयी, स्थापित हो गयी, फिलिस्तीन में आज मुस्लिम, ईसाई और यहूदियों के धर्मस्थल हैं, जिनको लेकर संघर्ष और हिंसा होती है। दूसरे युद्ध की समाप्ति के बाद इस्राइल अस्तित्व में आया और यहूदियों को अपनी भूमि मिली।
              फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन हमास और हिज्जबुल्लाह हमारे लिए उतने ही खतरनाक हैं और हिंसक है जितने हमारे लिए पाकिस्तान के मुस्लिम आतंकवादी संगठन हैं। अभी-अभी भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुआ और सिंदुर आपरेशन के माध्यम से भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाया, मुस्लिम आतंकवादी संगठनों के ठिकानों को उड़ाया। इस प्रकरण में हमास और हिज्जबुल्लाह ने भारत का समर्थन नहीं किया, इसने पाकिस्तान का समर्थन किया था। कश्मीर के प्रश्न पर फिलिस्तीन के आतंकी संगठनों ने हमेशा पाकिस्तान और इस्लामिक कसौटी पर समर्थन किया है और भारत के इस्लामीकरण के प्रति अपनी आस्था जतायी है। इसकी जगह इस्राइल को देख लीजिये। इस्राइल हमारा पक्का दोस्त है, इस्राइल हमारा सुरक्षा साझेदार है, इस्राइल हमारी कूटनीति का समर्थक है। जब-जब भारत की संप्रभुत्ता और अस्मिता पर संकट आया है तब-तब इस्राइल ने भारत का समर्थन किया है और भारत की मदद की है। आगे भी इस्राइल हमारा समर्थन और हमारी मदद के प्रति असहिष्णुता प्रदर्शित नहीं कर सकता है। फिलिस्तीन में मुसलमानों को इस्राइल गाजर मूली की तरह काट रहा है पर इसके लिए हमास और हिज्जबुल्लाह और मुस्लिम देशों की भूमिका और करतूत को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।
        भारतीय मुसलमानों की गतलफहमियां टूटने वाली नहीं है। भारतीय मुसलमानों के इस्राइल मुर्दाबाद के नारे लगाने से, तिरंगा का अपमान करने से, तिरंगे की जगह फिलिस्तीन झंडे फहरा देने आदि की करतूत से कोई लाभ नहीं होने वाला है, इस्राइल को आप डरा धमका नहीं सकते हैं। इस्राइल को शांति का पाठ तभी पढाया जा सकता है जब हमाम और मुस्लिम गोलबंदी अपनी हिंसक और मजहबी नीतियां छोडने के लिए तैयार होंगे और फिलिस्तीन को सिर्फ मुस्लिम आधार पर देखने और समझने की नीति का त्याग करेंगे।
             तिरंगे का अपमान करने, फिलिस्तीन का झंडा फहराने, फिलिस्तीन जिंदाबाद और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने की बढती प्रवृति राष्ट्र के लिए घातक है और भविष्य के लिए खतरनाक संकेत हैं। हमें ऐसे लोगों और ऐसे समूहों को राष्ट्रदा्रेही घोषित कर उन्हें नागरिकता के अधिकार से वंचित करना ही होगा।

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