Monday, August 25, 2025

मार्कंडेय काटजू की औरतखोरी की खुली पोल

                             


             

                      राष्ट्र-चिंतन


मार्कंडेय काटजू की औरतखोरी की खुली पोल

आंख मारने वाली महिला वकीलों के पक्ष में देते थे फैसले

                  ( आचार्य श्रीहरि ) 

मार्कंडेय    काटजू संघ-भाजपा विरोधियों के आईकाॅन हैं, उन सभी एनजीओ और संगठनों जो राष्ट्र की परिभाषा से अपने आप को परे समझने वाले हैं, के लिए प्रेरक और महान  भी है। आखिर क्यों? इसलिए कि इनकी भाषा और बयानबाजी से इस वर्ग-समूह को अतिरिक्त लाभ होता है, अतिरिक्त शक्ति मिलती है, अरिरिक्त पहचान मिलती है। मार्कंडेय काटजू ने अपने बयानों से जब चाहा तब तहलका मचाया, भारत की राजनीति में गर्माहट लाया और न्यायिक व्यवस्था को भी प्रभावित किया। सोशल मीडिया के इस आधुनिक दौर में बहुत सारे लोग अपने आप को महान ज्ञानी, परम परोपकारी, महान राजनीतिज्ञ, अतिरिक्त समाज सुधारक घोषित करने के लिए तरह-तरफ के प्रपंच करते रहते है, विवादित बोल, असत्य बोल, अफवाह युक्त बोल इनके प्रिय हथियार होते हैं। इन्ही श्रेणी में काटजू आते हैं। जब एक बहुत बडा समूह वर्ग अपने छिपे एजेंडे में किसी ऐसी शख्सियत को अपने साथ हसचर पाते हैं तो फिर उनका खेल आसान हो जाता है। जाहिरतौर पर इनके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ हिन्दुत्व रहा है, हिन्दुत्व के प्रतीक चिन्ह रहा है, भारत की पुरातन संस्कृति रही है, भारत का वैभव रहा है। नरेन्द्र मोदी ऐरा तो इनके लिए छोभ और घृणा बन गया, इन्हें यह स्वीकार ही नहीं है देश पर नरेन्द्र मोदी की सरकार है और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। मुस्लिम और ईसाइत के प्रतीक चिन्हों पर कोई ज्ञान नहीं देना, कोई टिका-टिपपणी न करना इनकी दोहरी मानसिकता का परिचायक है, इनके निष्पक्ष न होने, इनके स्वतंत्र न होने का प्रमाण पत्र है। इसके पीछे खबरों में बने रहना और अतिरिक्त लाभार्थी होना भी है। क्योंकि भारत की संस्कृति और हिन्दुत्व के खिलाफ लिखने और बोलने वालों को फायदे ही फायदे होते हैं, फेलोशिप मिलती है, दुनिया के टूर मिलते हैं, गोष्ठियों औेर कार्यशलाओं में वक्ता और मुख्य वक्ता के लिए कुर्सी मिलती है, फाइव स्टार की मनोरंजनकारी सुविधाएं भी मिलती हैं।
           लेकिन झूठ और बईमानी और अफवाह का बाजार, धंधा और अभियान हमेशा नही चलता है, हर बुरी आदत नकरात्मकता को ही जन्म देती है और उसका एक न दिन बेपर्द होना ही है, उसका एक न एक दिन बेनकाब होना ही ही, उसका एक न एक दिन सच आना ही है। जब मुखौटा हटता है, जब पर्दा उठता है, जब खोल उठता है तब वह सच्चाई का पात्र कभी नहीं रह पाता है, तब वह अपने आप को महान ज्ञानी कहलाने का पात्र नहीं रह पाता है, अपने आप को निष्पक्ष कहने की शख्सियत नहीं रह पाता है, अपने आप को प्रेरक कारक कहने का हकमदार नहीं रह पाता है, वह तो  बदनाम चेहरा बन जाता है, घृणित शख्सियत बन जाती है, झूठ और बईमानी का बदबूदार चेहरा बन जाता है, अपराध -कदाचार का अपराधी बन जाता है, समाज का दुश्मन मान लिया जाता है, दूर रहो और उससे बचो का प्रतीक बन जाता है। यह सब मार्कंडेय काटजू पर लागू हो गया। मार्कंडेय काटजू अब सच्चाई के प्रतीक नहीं रहे, सादगी के प्रतीक नहीं रहे, ईमानदारी के प्रतीक नहीं रहे, न्याय प्रिय भी नहीं रहे, न्याय के रखवाले भी नहीं रहे। वह सब कैसे और क्यों?
                 
 मार्कंडेय   काटजू अपनी छवि के आत्महत्यारे भी है। उन्होंने अपनी बईमानी और न्याय की हत्या को खुद उगागर किया है। इसका माध्यम उन्होंने सोशन मीडिया को बनाया। सोशल मीडिया एक्स पर उन्होंने ऐसा लिखा कि हंगामा मच गया और लोग आश्चर्यचकित हो गये, उनके विरोधियों को भी हैरान और परेशान कर दिया। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि उन्होंने ऐसा क्या लिख दिया? उन्होंने लिखा था कि जो महिला वकील उन्हें आंख मारती थी उसे मुकदमा जीता देते थे, उसके पक्ष में फैसला दे देते थे। उनके इस बयानबाजी और कथन के दो प्रमुख प्रश्न उठते हैं। क्या ये औरत खोर हैं और क्या के न्यायप्रिय नहीं थे। क्योकि कोई औरत खोर जज ही ऐसा कर सकता है, जो जज औरत खोर नहीं होगा, वह ऐसा कर ही नहीं सकता है, ईमानदार और न्यायप्रिय जज तो आखं मारने वाली महिला वकीलों पर न केवल टिप्पणी कर सकते हैं, उनकी घोर आलोचना कर सकते हैं, बल्कि उनकी वकालत की डिग्री और बार काउसिल की सदस्यता पर रोक लगा सकते हैं, बार काउंसिल की सदस्यता समाप्त करने के लिए निर्णय दे सकते हैं, कुछ साल की वकालत पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। आपने वरिष्ठ वकील आर के आनन्द का नाम सुना होगा, साथ ही साथ वकील आई यू खान का नाम भी सुना होगा। ये दोनों सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील थे, मिनटो-मिनट में ये जीत-हार तय करते थे, बईमानी में पकडे गये, सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें कुछ समय के लिए वकालत करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसी तरह काटजू औरत खोर नहीं होते तो फिर उसकी तुरंत रिपोर्ट करने की जिम्मेदारी बनती थी। आंख मारने की करतूत को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश तक पहुंचानी चाहिए थी। लेकिन काटजू ने ऐसा किया नहीं।
               सुप्रीम कोर्ट में सैकडों महिलाएं वकालत करती हैं। सुप्रीम कोर्ट में कानून के छात्र भी प्रशिक्षण के लिए जाते हैं। जब तक किसी महिला वकील को यह मालूम नहीं होगा कि इस जज की कमजोरी औरत है तब तक वह जज को आंख कदापि नहीं मार सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट में यह चर्चित जरूर होगा कि काटजू की कमजोरी महिला है, महिला वकील रखने और महिला वकील से आंख मरवाने से तुरंत फुरंत फैसला पक्ष् में मिलता है। एक अन्य घटना का उल्लेख करना यहां अति आवश्यक है। कुख्यात वकील अभिषेक मनु सिंघवी का प्रकरण कौन नहीं जानता है? एक महिला वकील के साथ उनका अश्लील और विभत्स तथा लोमहर्षक वीडीओ कांड बेपर्द हुआ था जिसमें एक महिला वकील अभिषेक मनु सिंघवी का मुख मैथुन करती है और कहती है कि जज कब बनाओगे, तुम्हारी इतना सेवा करती हूं और अपनी शरीर तक तुम्हें बार-बार सौपती हूं फिर भी जब बनाने के तुम अपने वायदे पूरे नहीं कर रहे हो। उस समय भी न्यायपालिका की छवि खराब हुई थी। न्याय पालिका पर प्रश्न चिन्ह खडा हुआ था।
                 आखं मारने वाली महिला वकीलों की करतूतों के कारण कितने लोग न्याय से वंचित हुए होंगे, कितने लोगों का समय जाया हुआ होगा, उनकी कितनी धन राशि का स्वाहा हुआ होगा, इसकी कल्पना कर सकते हैं। काटजू लंबे समय तक जज रहे हैं। वे हाईकोट्र से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जज रहे हैं। विचारण का एक पक्ष यह है कि महिला वकील द्वारा आंख मारने पर उसके पक्ष में फैसला देने की लत और आदत कब से चालू था। क्या वे हाईकोर्ट के जज के रूप में भी ऐसी करतूत को अंजाम देते थे और ऐसी आदम के शिकार थे? इसका आकलन कोई और नहीं कर सकता है, इसका आकलन सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही कर सकती है या फिर काटजू ही बता सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट तो खुद ही इसकी जांच कर नहीं सकती है। इसके लिए सीबीआई एनआईए जैसी जांच एजेंसियां ही सक्षम हैं। पर प्रश्न यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट सीबीआई और एनआईए जैसी जांच एजेंसियों का सहारा लेगी? अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसा कदम उठा सकती है तो निश्चित मानिये कि न्यायिक इंतिहास का प्रेरक प्रश्न बनेगा और न्यायप्रियता का आईकान भी बनेगा। पर ऐसी उम्मीद बनती ही नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट इसकी जांच सीबीआई और एनआईए से कराये और मार्कडेय काटजू को दंडित कर सके।
                 सुप्रीम कोर्ट की काॅलेजियम व्यवस्था की ही यह करतूत है, यह बदनामी है। सुप्रीम कोर्ट की काॅलोजियम व्यवस्था का प्रतिफल है कि अभिषेक मनु सिंघवी जो जज बनवाने के लिए महिला वकील की शरीर का सहचर बन जाता है को रातोरत सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिल जाता है, करतूत उजागर होने के बाद भी उसे सीनियर एडवोकेट के पद से नहीं हटाया जाता और काटजू जैसा घटिया और औरतखोर जज भी काॅलोजियम न्यायिक व्यवस्था में पैदा लेते हैं। अब काॅलोजियम व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो फिर इनके खिलाफ जनविद्रोह भी हो सकता है। काटजू प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट को अब जगना ही होगा।

संपर्क
आचार्य श्रीहरि
Mobile         9315206123

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