सांपों को भी दूध पिलाते हैं मोदी
आचार्य श्रीहरि
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मालदीव यात्रा से जुडी एक खबर बहुत ही लोमहर्षक है और भारत की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है, संाप को दूध पिलाने जैसी है, हिंसकों को संरक्षण और संवर्द्धन करने जैसी है, स्वयं के लिए भस्मासुर खड़े करने जैसी है और भारतीय हितों के खिलाफ है। हालांकि भारतीय मीडिया ने इस पर विचारण के लिए दूरदृष्टि नहीं अपनायी। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि वह खबर क्या है? खबर यह है कि मालदीव को भारत पांच हजार करोड़ रूपये की सहायता देगा, जिसकी घोषणा नरेन्द्र मोदी ने अपनी मालदीव यात्रा के दौरान की है। पांच हजार करोड़ रूपये कोई छोटी रकम नहीं है, यह बहुत बड़ी रकम है। इतनी बडी रकम मालदीव पर खर्च करने की जरूरत ही क्या है? इस विषय को हम किस दृष्टिकोण से देखे?
मालदीव हमारा पडोसी देश है और पडोसी देश भी सुख और शांति से रहे, इसकी इच्छा तो रखनी चाहिए। पर प्रश्न यह उठता है कि जो देश हमारे लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो गया है, जिसके लिए धर्मनिरपेक्षता कोई अर्थ नहीं रह गयी है, जिसकी नीयत हिंसक हैं, आतंकी है और स्वयं को असफल देश के गर्त में ढकेलने में लगा रहता है उसके लिए इतनी बडी रकम खर्च करने का काम सिर्फ और सिर्फ भारत ही कर सकता है। दुनिया में सिर्फ भारत ही एक मात्र देश है जो अपने हिंसक और अलोकमांत्रिक पडोसी देशों को भी अरबों-खरबों रूपये देकर पालता है। जबकि चीन और अमेरिका जैसे देश कर्ज के मकडजाल में फंसा कर लूटते है और अपने हित सुरक्षित रखते हैं, विकसित करते हैं। चीन ने श्रीलंका को कर्ज देकर दिवालियां बना कर छोडा। चीन ने पाकिस्तान को भी कर्ज के दबाव में जकड चुका है। यूक्रेन की मदद के लिए अमेरिका ने खनिज संपदा समझौता किया है, जिसके तहत यूक्रेन के खनिज संपदाओं का दोहन अमेरिका करेगा। मालदीप तो एक विलुप्त होता देश है जो परजीवी है पर हिंसक और मजहबी मामलों में पाकिस्तान-सीरिया के रास्ते पर चल रहा है।
नरेन्द्र मोदी का ऐसा कदम सहानुभूति तो प्रकट कर सकता है, उन्हें लोग दयावन तो समझ सकते हैं, उन्हें पडोसियों को मिला कर, खुश रखकर चलने वाला शासक कह सकते हैं। लेकिन भारत की इस सहायता का सकरात्मक उपयोग होगा, जनपक्षीय उपयोग होगा, पारिस्थिति के संरक्षण में उपयोग होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। भारत के धन से मालदीव अपनी मजहबी मानसिकता का भी पोषण करेगा, आतंकियों का संरक्षण और उनका सवंर्द्धन भी कर सकता है? ऐसी समझ रखना कोइ गैर जरूरी बात नहीं हो सकती है। मालदीव को अब पर्यटन से होने वाली आय कम हो गयी हैे, इसलिए उसे मजहबी मानसिकता की तुष्टि के लिए और प्रचार-प्रसार के लिए अतिरिक्त धन की जरूरत है। इसीलिए मालदीव अपने आप को बदलने का नाटक कर रहा है और भारत के मित्र होने का दावा कर रहा है।
सच यह है कि मालदीव हमारा दोस्त भी नहीं है, मालदीव हमारे लिए अच्छा पडोसी भी नहीं है। मालदीव कोई आदर्श सूचक देश भी नहीं है। मालदीव मंें धर्मनिरपेक्षता भी नहीं है। पूरी आबादी मजहबी मानसिकता में विश्वास करती है। कुछ नाम मात्र के अन्य धर्म के लोग मालदीव में रहते हैं, उनका कोई मानवाधिकार का संरक्षण नहीं होता, उनकी धार्मिक मान्यताएं प्रतिबंधित हैं। इस्लाम की सहचर आबादी को छोड़ कर अन्य कोई आबादी अपनी धार्मिक मान्यताओं का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं कर सकता है। कहने का अर्थ यह है कि मालदीव पूरी तरह से इस्लामिक कट्टर मानसिकतों की हिंसक प्रवृति में कैद हो गया है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और लेबनान, सीरिया जैसी मजहबी मानसिकताएं अपना प्रदर्शन करती हैं। वैश्विक मीडिया में कई अन्य हिंसक तथ्य भी अस्तित्व मे हैं। खासकर अमेरिकी मीडिया का कहना है कि अलकायदा और तालिबान के कई खतरनाक और हिंसक आतंकी मालदीव में संरक्षण लिये थे। अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार स्थापित हो गयी, इस कारण तालिबान के आतंकियों की अब मजबूरी समाप्त हो गयी, उनके मालदीव में रहने और सक्रिय होने की उम्मीद बहुत ही कम है। लेकिन पाकिस्तान को लेकर समस्याएं बहुत ही खतरनाक है और हिंसक है। पाकिस्तान की आईएसआई का मंकड जाल फैला हुआ है। आईएसआई के अधिकारी और जासूस मालदीव में बैठे हुए हैं और वे तय कर रहे हैं कि किसी भी स्थिति में मालदीव का इस्लामिक करण मजबूत रहे। आईएसआई का भारत के खिलाफ दृष्टिकोण और कारस्तानी भी जगजाहिर है। भारत के खिलाफ आईएसआई न केवल साजिशें रचती है बल्कि मालदीव की आबादी को भड़काती भी है। आईएसआई हमेशा भारतीय हितों को हिंसक ढंग से कुचलती है और कहती है कि भारत मालदीव का हिन्दूकरण करने जा रहा है और भारत मालदीव को अपना गुलाम बनाना चाहता है,इसलिए भारत का विरोध अनिवार्य है। मालदीव का सत्ता राजनीति आईएसआई का मोहरा है।
मालदीव ने भारत को कितने घाव दिये हैं, कितनी लातें मारी हैं, भारत के हितों को कितना कुचला है, भारत के सम्मान को कितना नुकसान पहुंचाया है? यह सब किसे नहीं मालूम है। मालदीव मे हमारा सैनिक अड्डा था। ऐसे मालदीव सैनिक अड्डे के लिए कोई खास महत्व नहीं रखता है। फिर भी हमारा सैनिक अड्डा था। हम उस सैनिक अड्डे का उपयोग अपने हितों की रक्षा करने के लिए कर रहे थे। खासकर चीन की सैनिक गतिविधियों और सक्रियता को लेकर हमारी चिंता रही है। चीन ने समुद्र में कई प्रकार की गतिविधियां, समस्याएं और अड़चने खडी की है। अपनी आधुनिक नौकाओं के माध्यम से चीन की नजर भारत की महत्वपूर्ण सैनिक अड्डो पर रही है। चीन अपनी आधुनिक नौकाओं के माध्यम से हमारी जासूसी भी करता है। इसलिए मालदीव में मजबूत भारतीय सेना का ठिकाना अति महत्वपूर्ण था। सबसे बडी बात सैनिक अड्डे पर विराजमान भारतीय सैनिक मालदीव की एकता और अखंडता के लिए कोई चुनौती नहीं थे। फिर भी पाकिस्तान और चीन को वह हमारा सैनिक अड्डा खटकता था। चीन और पाकिस्तान की के कहने पर मालदीव ने भारतीय सैनिक अड्डे को समाप्त करने के लिए भारत को बाध्य किया। भारत के खिलाफ हिंसक और तथ्यहीन बयानबाजी की गयी। कोई विकल्प न देखते हुए भारत की मोदी सरकार ने ही सैनिक अड्डे से अपने सैनिक हटाने का काम किया था। सबसे बडी बात मोदी की छवि और सम्मान पर कीचड उछालना और कूटनीतिक सम्मान को भूल जाना। नरेन्द्र मोदी कभी भी मालदीव के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला था। सिर्फ उसने अपने देश के पर्यटक स्थालों का प्रमोशन किया था। नरेन्द्र मोदी ने लक्ष्यद्वीप की यात्रा की थी। लक्ष्यद्वीप एक खूबखूरत पर्यटक स्थल है, उसकी खूबसूरती मालदीव के पर्यटक स्थलों से कम नहीं है। नरेन्द्र मोदी लक्ष्यद्वीप जाकर पर्यटक स्थलों का दर्शन कराया था। इस पर मालदीव की पूरी सरकार ही पागल हो गयी, हिंसक हो गयी, मालदीव सरकार में शामिल मंत्रियों ने नरेन्द्र मोदी को गालियां दी थी, नरेन्द्र मोदी को नीच कहा था और भारत को बर्बाद करने की धमकी पिलायी थी। इस कारण भारत में बहुत बडी प्रतिक्र्रिया हुई थी और कहा गया था कि क्या भारत के प्रधानमंत्री को अपने देश के पर्यटक स्थलों का दर्शन करना और दर्शन कराने का अधिकार नहीं है? इस दर्शन कार्यक्रम से मालदीव को हानि क्या है, उसकी विरोध की प्रक्रिया चीन और पाकिस्तान की कारस्तानी है। हजारों भारतीयों ने प्रतिक्रिया दिखायी थी और मालदीव घूमने के टिकट भी रद कराये थे। इसके बाद मालदीव के पर्यटन बाजार में मंदी आ गयी थी और भारत के प्रति सम्मान दर्शाना शुरू कर दिये थे।
भारत सिर्फ मालदीव ही नहीं बल्कि बांग्लादेश, नेपाल और श्रींलंका जैसे विरोधी पडोसियों को भी मदद देकर पालन पोषण करता है, उन देशों की आबादी की भूख मिटाता है। नेपाल का माओवाद भारत विरोधी रहा है, चीन का गुलाम रहा है। नेपाल का कम्युनिस्ट शासन हमेशा से भारत के हितों का संहार करता है और सरेआम भारत के खिलाफ सक्रियता दिखाता है पर चीन की वह गुलामी करता है। श्रीलंका ने भी कभी भारत विरोध की कूटनीति अपनायी थी। श्रीलंका भारत के विरोध में चीन की गोद में जा बैठा था। चीन ने खूब कर्ज दिया। चीनी कर्ज में डूब कर श्रीलंका दिवालिया हो गया, बर्बाद हो गया। बर्बाद, तबाह और दिवालिया होने के बाद चीन ने श्रीलंका से मुंह मोड लिया और अपना कर्ज मांगना शुरू कर दिया। फिर श्रीलंका भारत के शरण में आया। नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका की मदद कर उसकी आबादी की भूख की समस्या को दूर करने में मदद किया। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भी भारत की मदद पर टिकी हुई थी। मदद कर दुश्मन खडा करना कोई मोदी से सीखें।
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