बिहार में तीस लाख फर्जी वोटर
चुनाव आयोग से फर्जी और विदेशी ही डरते हैं
आचार्य श्रीहरि
बिहार में तीस लाख फर्जी वोटर? फर्जी वोटरों में बांग्लादेशी और पाकिस्तानी नागरिक भी शामिल हैं? चुनाव आयोग कितना निष्पक्ष है, नीयत समय पर मतदाता पुर्ननिरीक्षक का काम दक्षता पूर्ण ढंग से चुनाव आयोग कर पायेगा या नहीं? फर्जी नागरिकता रखने वालो पर सरकारी संहिताएं सक्रिय नहीं होनी चाहिए? फर्जी घोषित होने वाले लोगो पर आपराधिक मामला क्यों नहीं चलता चाहिए? बिहार ही क्यों बल्कि पूरे देश में फर्जी और विदेशी वोटरों को भारतीय वोटर सूची से बाहर करने की कार्रवाई होनी ही चाहिए। क्योंकि यह प्रसंग जनादेश को प्रभावित करने का है। दतलीय आधार पर इस प्रसंग को कदापि नहीं देखा जाना चाहिए। राष्ट्रहित को ध्यान मे रख कर फर्जी और विदेशी मतदाता को कानून का पाठ पढ़ाना चाहिए।
बिहार विधान सभा चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण होने वाले हैं। विवाद और तनाव अभी से ही शुरू है। अभी तो चुनाव की प्रकिया भी शुरू नहीं हुई है। पर वोटर लिस्ट को लेकर तनातनी है। तनातनी हिंसक भी है और खतरनाक है। दोनों गठबंधन के बीच इस पर शह-मात का खेल जारी है। इंडिया गठबंधन जहां लाखों लोगों को वोट के अधिकार से वंचित करने की साजिश को शाब्दिक हिंसा के माध्यम से उठा रहा है वहीं एनडीए गठबंधन का कहना है कि हमारी कोई भूमिका नहीं है, चुनाव आयोग का दायित्व है और चुनाव आयोग अपना दायित्व कुशलता के साथ निभा रहा है। फार्म भरने और जांच करने की कार्रवाई तेजी के साथ हो रहा है, करीब एक लाख बीएलओ इस प्रक्रिया में शामिल हैं। फार्म सत्यापित करने के लिए वोटरों को पूरा अवसर दिया जा रहा है, बीएलए डोर टू डोर जाकर फार्म की सच्चाई अंकित कर रहे हैं।
लेकिन समय को लेकर चिंता और प्रश्न का उठना स्वाभाविक है। चुनाव आयोग का जागना एक अच्छी बात है। पर चुनाव आयोग थोड़ी देर कर दी। यही कार्रवाई छह महीने पहले होती तो राजनीतिक विवाद थोड़ा कम होता और चुनाव आयोग की साख भी बनी रहती। फिर भी चुनाव आयोग की कारवाई को रोकना या फिर उन पर कीचड उछालना सही नहीं है और साफ-सूथरी चुनाव प्रक्रिया को बाधित करने के प्रयास समझा जाना चाहिए। यह कौन नहीं जानता है कि बैलेड पेपर से चुनाव प्रक्रिया को समाप्त करने बाद आई इलेक्ट्रानिक्स मशीन चुनाव प्रक्रिया तो बेहतर है पर अभी भी फर्जी मतदान और फर्जी मतदाता का शोर थमा नहीं है, अगर निष्पक्ष और गहणता के साथ वोटर सूची की जांच हो तो फिर करोड़ो की संख्या में फर्जी वोटर मिलेगे, क्योकि अभी ऐसी कोई भी प्रकिया या फिर नियमावली नहीं बनी है कि फर्जी वोटरों पर कानूनी प्रकिया लगायी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने भी मान लिया कि मतदाता पुर्ननिरक्षण की प्रक्रिया नहीं रोकी जानी चाहिए, चुनाय आयोग के हाथ नहीं बांधे जाने चाहिए, चुनाव आयोग को स्वतंत्र भूमिका निभाने देनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अगर किसी भी तरह के नियमावली का उल्लंघन माना होता तो फिर चुनाव आयोग पर बंदिशें लगा दिया होता। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को स्वतंत्रा देने का काम किया, इसका सीधा अर्थ होता है कि चुनाव आयोग का पुर्ननिरक्षण का कार्य ठीक ठाक है। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दूसरे दस्तावेज को भी मान्य प्रक्रिया का माध्यम बनाने के लिए कहा है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश मानते हुए दूसरे दस्तावेज को भी आधार मानने के लिए तैयार हो गया। अब वोटरों को आधार कार्ड, पैन कार्ड और अन्य पहचान पत्र दिखाने और प्रमाणित कराने की सुविधा मिल गयी। देश में ऐसा कोई अपवाद ही होगा जिसके पास आधार कार्ड, पैन कार्ड, जमीन का दस्तावेज या फिर घर का दस्तावेज नही होगा। सरकार ने आधार कार्ड की सुविधा सुलभ करा रखी है। ग्रामीण इलाकों में आधार कार्ड बनाने की सुविधा है। आॅनलाइन भी आधार कार्ड और पैन कार्ड बनाये जा सकते हैं। अगर फिर भी कोई मतदाता कहता है कि उसके पास कोई पहचान पत्र नही है तो फिर उसकी नागरिकता ही संदेह के घेरे में होगी, या फिर वह झूठ बोलता है।
फिर चुनाव आयोग से डरता कौन है? सही वोटर चुनाव आयोग से डरेगा क्यों? डरेगा तो फर्जी वोटर और विदेशी घुसपैठिये ही डरेगा। बिहार के कटिहार, पूर्णिया, अररिया, मधुबनी, दरभंगा, जिले में मतदाताओं की पारिस्थितिकी और उनकी राष्ट्रीयता पर प्रश्न चिन्ह हैं। क्योंकि ये सभी एकाएक मुस्लिम बहुलता के शिंकजे में कस गये और इन जिलों मतदाताओं की संख्या भी बढ गयी थी। इसके पीछे सीधे तौर पर विदेशी घुसपैठ को जिम्मेदार मानते है। राजनीतिज्ञों के संरक्षण के कारण पूरे बिहार में विदेशी घुसपैठियों की जनसंख्या पारिस्थितिकी बदली है जिसके कारण जनादेश पर भी प्रभाव पडा है। बांग्लादेश में दस लाख से अधिक रोहिंग्या शरण लिये हुए थे। म्यामार में राष्ट्रीयता के आंदोलन के दौरान हिंसक और आतंकी रोहिंग्याओं को भागना पडा था, जिन्हें बांग्लादेश ने मुस्लिम आधार के कारण शरण देने का काम किया था। बांग्लादेश मे शरण लिये दस लाख से अधिक रोहिंग्याओं में से एक तिहाई बिहार की आबादी में घुसपैठ कर गये हैं। खासकर कटिहार और अररिया संसदीय क्षेत्र एकाएक मुस्लिम बहुलतावाले संसदीय क्षेत्र बन गये। कटिहार और अररिया संसदीय क्षेत्र अचानक कैसे मुस्लिम बहुलता वाला संसदीय क्षेत्र बन गये? इस पर शोध की जरूरत है। चुनाव आयोग को इस पर सर्वे के साथ ही साथ शोध कराने की जरूरत होनी चाहिए, बिहार और भारत सरकार को भी इस पर संज्ञान लेने की जरूरत है।
बिहार में कितने फर्जी वोटर हैं जिन पर वोट से वंचित होने और मतदाता सूची से नाम हटने की तलवार लटक रही है? संख्या जान कर हैरान और परेशान हो जायेंगे? हैरान और परेशान कैसे हो जायेंगे? इसलिए कि मतदान से वंचित होने वाले मतदाताओं की संख्या बहुत ही ज्यादा है। अनुमान और कल्पना से भी ज्यादा है। चुनाव आयोग का कहना है कि तीस लाख से अधिक लोगों का नाम मतदाता सूची से हटना तय है। कहने का अर्थ यह है कि वर्तमान में तीस लाख मतदाता सूची में ऐसे लोग शामिल हैं जो मतदाता सूची की अहर्ताएं ही नहीं रखते हैं और जिनकी नागरिकता ही संदेह के घेरे मे हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता पुर्ननिरक्षण के लिए आधार सहित अन्य माध्यमों को आधार बनाने के लिए नहीं कहा होता तो निश्चित मानिये कि यह संख्या भी छोटी पड जाती। क्योकि अगर दस्तावेजों आयु बीस साल मानी जाती तो फिर एक चैथाई लोग मतदाता सूची से बाहर हो जाते। अगर कोई व्यक्ति देश के किसी राज्य या फिर बिहार के किसी जिले से पलायन कर आया है तो फिर उससे संबंधित दस्तावेजों की आयु तो मान्य कसौटी पर होनी चाहिए। समस्या सरकारी कर्मचारियों की रिश्वत खोरी का भी है। रिश्वत खोरी अब चुनाव और चुनाव परिणाम को प्रभावित कर रही है। रिश्वत खोरी के कारण पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और नेपाली भी भारत के नागरिक बन रहे हैं। अधिकारियों और कर्मचारियों को रिश्वत खोरी कराकर देशद्रोही लोग भारत के नागरिक बन जाते हैं और भारत के नागरिक के लिए अनिवार्य और मान्य दस्तावेज हासिल कर लेते हैं। बार-बार ऐसे आतंकवादी पकडे गये हैं जिनके मूल पाकिस्तानी होने, बांग्लादेशी होने के बावजूद उनके पास भारत के आधार कार्ड, वोटर कार्ड आदि दस्तावेज थे, जिनके माध्यम से पाकिस्तानी-बांग्लादेशी भारत में रहकर और भारत की अस्मिता को लहूलुहान करते हैं, भारत के जनादेश को कुचलते हैं और भारत मे आतंक की हिंसा फैलाते हैं।
दस्तावेज तो सही मिल सकते हैं। पर एक गांरटी नहीं मिल सकती है। किसी अन्य बूथ पर भी, किसी अन्य विधान सभा क्षेत्र में भी मतदाता सूची में नाम हो सकता है। अभी जो मतदाता सूची की प्रक्रिया है उसमे इस बात की पूरी संभावना होती है कि एक व्यक्ति का कई क्षेत्रों के मतदाता सूची में नाम दर्ज हो सकता है। कई लोग अपने पंसदीदा उम्मीदवार को चुनाव जीताने और अपने मजहब के समर्थकों को जीताने के लिए कई-कई क्षेत्रों के वोटर लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा लेते हैं। अब चुनाव सुधार पक्रिया में सुधार, बदलाव और परिवत्रन की जरूरत है। जिस प्रकार में बैकों में व्यवस्था है कि सभी बैंकों के खातों की जानकारी आयकर विभाग और सरकार को मिल जायेगी उसी प्रकार से वोटर लिस्ट को आधार कार्ड से लिंक करा दिया जाना चाहिए। आधार कार्ड से लिंक कराने के बाद कई क्षेत्रों में अपना नाम दर्ज कराने वाले लोगों की पहचान आसानी से हो सकती है और उनके मतदाता अधिकार को शुन्य घोषित किया जा सकता है। अगर ऐसी व्यवस्था होती तो निश्चित मानिये कि विहार का वर्तमान वोटर सूची को लेकर विवाद और तनातनी की आवश्यकता ही नहीं पडती।
संपर्क
आचार्य श्रीहरि
Mobile ... 9315206123
No comments:
Post a Comment