Monday, July 28, 2025

सांपों को भी दूध पिलाते हैं मोदी

  




                सांपों को भी दूध पिलाते हैं मोदी

                         आचार्य श्रीहरि



प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मालदीव यात्रा से जुडी एक खबर बहुत ही लोमहर्षक है और भारत की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है, संाप को दूध पिलाने जैसी है, हिंसकों को संरक्षण और संवर्द्धन करने जैसी है, स्वयं के लिए भस्मासुर खड़े करने जैसी है और भारतीय हितों के खिलाफ है। हालांकि भारतीय मीडिया ने इस पर विचारण के लिए दूरदृष्टि नहीं अपनायी। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि वह खबर क्या है? खबर यह है कि मालदीव को भारत पांच हजार करोड़ रूपये की सहायता देगा, जिसकी घोषणा नरेन्द्र मोदी ने अपनी मालदीव यात्रा के दौरान की है। पांच हजार करोड़ रूपये कोई छोटी रकम नहीं है, यह बहुत बड़ी रकम है। इतनी बडी रकम मालदीव पर खर्च करने की जरूरत ही क्या है? इस विषय को हम किस दृष्टिकोण से देखे? 

              मालदीव हमारा पडोसी देश है और पडोसी देश भी सुख और शांति से रहे, इसकी इच्छा तो रखनी चाहिए। पर प्रश्न यह उठता है कि जो देश हमारे लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो गया है, जिसके लिए धर्मनिरपेक्षता कोई अर्थ नहीं रह गयी है, जिसकी नीयत हिंसक हैं, आतंकी है और स्वयं को असफल देश के गर्त में ढकेलने में लगा रहता है उसके लिए इतनी बडी रकम खर्च करने का काम सिर्फ और सिर्फ भारत ही कर सकता है। दुनिया में सिर्फ भारत ही एक मात्र देश है जो अपने हिंसक और अलोकमांत्रिक पडोसी देशों को भी अरबों-खरबों रूपये देकर पालता है। जबकि चीन और अमेरिका जैसे देश कर्ज के मकडजाल में फंसा कर लूटते है और अपने हित सुरक्षित रखते हैं, विकसित करते हैं। चीन ने श्रीलंका को कर्ज देकर दिवालियां बना कर छोडा। चीन ने पाकिस्तान को भी कर्ज के दबाव में जकड चुका है। यूक्रेन की मदद के लिए अमेरिका ने खनिज संपदा समझौता किया है, जिसके तहत यूक्रेन के खनिज संपदाओं का दोहन अमेरिका करेगा। मालदीप तो एक विलुप्त होता देश है जो परजीवी है पर हिंसक और मजहबी मामलों में पाकिस्तान-सीरिया के रास्ते पर चल रहा है।

                 नरेन्द्र मोदी का ऐसा कदम सहानुभूति तो प्रकट कर सकता है, उन्हें लोग दयावन तो समझ सकते हैं, उन्हें पडोसियों को मिला कर, खुश रखकर चलने वाला शासक कह सकते हैं। लेकिन भारत की इस सहायता का सकरात्मक उपयोग होगा, जनपक्षीय उपयोग होगा, पारिस्थिति के संरक्षण में उपयोग होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। भारत के धन से मालदीव अपनी मजहबी मानसिकता का भी पोषण करेगा, आतंकियों का संरक्षण और उनका सवंर्द्धन भी कर सकता है? ऐसी समझ रखना कोइ गैर जरूरी बात नहीं हो सकती है। मालदीव को अब पर्यटन से होने वाली आय कम हो गयी हैे, इसलिए उसे मजहबी मानसिकता की तुष्टि के लिए और प्रचार-प्रसार के लिए अतिरिक्त धन की जरूरत है। इसीलिए मालदीव अपने आप को बदलने का नाटक कर रहा है और भारत के मित्र होने का दावा कर रहा है।

                  सच यह है कि मालदीव हमारा दोस्त भी नहीं है, मालदीव हमारे लिए अच्छा पडोसी भी नहीं है। मालदीव कोई आदर्श सूचक देश भी नहीं है। मालदीव मंें धर्मनिरपेक्षता भी नहीं है। पूरी आबादी मजहबी मानसिकता में विश्वास करती है। कुछ नाम मात्र के अन्य धर्म के लोग मालदीव में रहते हैं, उनका कोई मानवाधिकार का संरक्षण नहीं होता, उनकी धार्मिक मान्यताएं प्रतिबंधित हैं। इस्लाम की सहचर आबादी को छोड़ कर अन्य कोई आबादी अपनी धार्मिक मान्यताओं का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं कर सकता है। कहने का अर्थ यह है कि मालदीव पूरी तरह से इस्लामिक कट्टर मानसिकतों की हिंसक प्रवृति में कैद हो गया है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और लेबनान, सीरिया जैसी मजहबी मानसिकताएं अपना प्रदर्शन करती हैं। वैश्विक मीडिया में कई अन्य हिंसक तथ्य भी अस्तित्व मे हैं। खासकर अमेरिकी मीडिया का कहना है कि अलकायदा और तालिबान के कई खतरनाक और हिंसक आतंकी मालदीव में संरक्षण लिये थे। अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार स्थापित हो गयी, इस कारण तालिबान के आतंकियों की अब मजबूरी समाप्त हो गयी, उनके मालदीव में रहने और सक्रिय होने की उम्मीद बहुत ही कम है। लेकिन पाकिस्तान को लेकर समस्याएं बहुत ही खतरनाक है और हिंसक है। पाकिस्तान की आईएसआई का मंकड जाल फैला हुआ है। आईएसआई के अधिकारी और जासूस मालदीव में बैठे हुए हैं और वे तय कर रहे हैं कि किसी भी स्थिति में मालदीव का इस्लामिक करण मजबूत रहे। आईएसआई का भारत के खिलाफ दृष्टिकोण और कारस्तानी भी जगजाहिर है। भारत के खिलाफ आईएसआई न केवल साजिशें रचती है बल्कि मालदीव की आबादी को भड़काती भी है। आईएसआई हमेशा भारतीय हितों को हिंसक ढंग से कुचलती है और कहती है कि भारत मालदीव का हिन्दूकरण करने जा रहा है और भारत मालदीव को अपना गुलाम बनाना चाहता है,इसलिए भारत का विरोध अनिवार्य है। मालदीव का सत्ता राजनीति आईएसआई का मोहरा है। 

              मालदीव ने भारत को कितने घाव दिये हैं, कितनी लातें मारी हैं, भारत के हितों को कितना कुचला है, भारत के सम्मान को कितना नुकसान पहुंचाया है? यह सब किसे नहीं मालूम है। मालदीव मे हमारा सैनिक अड्डा था। ऐसे मालदीव सैनिक अड्डे के लिए कोई खास महत्व नहीं रखता है। फिर भी हमारा सैनिक अड्डा था। हम उस सैनिक अड्डे का उपयोग अपने हितों की रक्षा करने के लिए कर रहे थे। खासकर चीन की सैनिक गतिविधियों और सक्रियता को लेकर हमारी चिंता रही है। चीन ने समुद्र में कई प्रकार की गतिविधियां, समस्याएं और अड़चने खडी की है। अपनी आधुनिक नौकाओं के माध्यम से चीन की नजर भारत की महत्वपूर्ण सैनिक अड्डो पर रही है। चीन अपनी आधुनिक नौकाओं के माध्यम से हमारी जासूसी भी करता है। इसलिए मालदीव में मजबूत भारतीय सेना का ठिकाना अति महत्वपूर्ण था। सबसे बडी बात सैनिक अड्डे पर विराजमान भारतीय सैनिक मालदीव की एकता और अखंडता के लिए कोई चुनौती नहीं थे। फिर भी पाकिस्तान और चीन को वह हमारा सैनिक अड्डा खटकता था। चीन और पाकिस्तान की के कहने पर मालदीव ने भारतीय सैनिक अड्डे को समाप्त करने के लिए भारत को बाध्य किया। भारत के खिलाफ हिंसक और तथ्यहीन बयानबाजी की गयी। कोई विकल्प न देखते हुए भारत की मोदी सरकार ने ही सैनिक अड्डे से अपने सैनिक हटाने का काम किया था। सबसे बडी बात मोदी की छवि और सम्मान पर कीचड उछालना और कूटनीतिक सम्मान को भूल जाना। नरेन्द्र मोदी कभी भी मालदीव के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला था। सिर्फ उसने अपने देश के पर्यटक स्थालों का प्रमोशन किया था। नरेन्द्र मोदी ने लक्ष्यद्वीप की यात्रा की थी। लक्ष्यद्वीप एक खूबखूरत पर्यटक स्थल है, उसकी खूबसूरती मालदीव के पर्यटक स्थलों से कम नहीं है। नरेन्द्र मोदी लक्ष्यद्वीप जाकर पर्यटक स्थलों का दर्शन कराया था। इस पर मालदीव की पूरी सरकार ही पागल हो गयी, हिंसक हो गयी, मालदीव सरकार में शामिल मंत्रियों ने नरेन्द्र मोदी को गालियां दी थी, नरेन्द्र मोदी को नीच कहा था और भारत को बर्बाद करने की धमकी पिलायी थी। इस कारण भारत में बहुत बडी प्रतिक्र्रिया हुई थी और कहा गया था कि क्या भारत के प्रधानमंत्री को अपने देश के पर्यटक स्थलों का दर्शन करना और दर्शन कराने का अधिकार नहीं है? इस दर्शन कार्यक्रम से मालदीव को हानि क्या है, उसकी विरोध की प्रक्रिया चीन और पाकिस्तान की कारस्तानी है। हजारों भारतीयों ने प्रतिक्रिया दिखायी थी और मालदीव घूमने के टिकट भी रद कराये थे। इसके बाद मालदीव के पर्यटन बाजार में मंदी आ गयी थी और भारत के प्रति सम्मान दर्शाना शुरू कर दिये थे।

                भारत सिर्फ मालदीव ही नहीं बल्कि बांग्लादेश, नेपाल और श्रींलंका जैसे विरोधी पडोसियों को भी मदद देकर पालन पोषण करता है, उन देशों की आबादी की भूख मिटाता है। नेपाल का माओवाद भारत विरोधी रहा है, चीन का गुलाम रहा है। नेपाल का कम्युनिस्ट शासन हमेशा से भारत के हितों का संहार करता है और सरेआम भारत के खिलाफ सक्रियता दिखाता है पर चीन की वह गुलामी करता है। श्रीलंका ने भी कभी भारत विरोध की कूटनीति अपनायी थी। श्रीलंका भारत के विरोध में चीन की गोद में जा बैठा था। चीन ने खूब कर्ज दिया। चीनी कर्ज में डूब कर श्रीलंका दिवालिया हो गया, बर्बाद हो गया। बर्बाद, तबाह और दिवालिया होने के बाद चीन ने श्रीलंका से मुंह मोड लिया और अपना कर्ज मांगना शुरू कर दिया। फिर श्रीलंका भारत के शरण में आया। नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका की मदद कर उसकी आबादी की भूख की समस्या को दूर करने में मदद किया। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भी भारत की मदद पर टिकी हुई थी। मदद कर दुश्मन खडा करना कोई मोदी से सीखें।


संपर्क

आचार्य श्रीहरि

Mobile---      9315206123











Sunday, July 27, 2025

मदद देकर दुश्मन खड़ा करना कोई मोदी से सीखें

  


   मदद देकर दुश्मन खड़ा करना कोई मोदी से सीखें

                   आचार्य श्रीहरि

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मालदीव यात्रा से जुडी एक खबर बहुत ही लोमहर्षक है और भारत की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है, संाप को दूध पिलाने जैसी है, हिंसकों को संरक्षण और संवर्द्धन करने जैसी है, स्वयं के लिए भस्मासुर खड़े करने जैसी है और भारतीय हितों के खिलाफ है। हालांकि भारतीय मीडिया ने इस पर विचारण के लिए दूरदृष्टि नहीं अपनायी। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि वह खबर क्या है? खबर यह है कि मालदीव को भारत पांच हजार करोड़ रूपये की सहायता देगा, जिसकी घोषणा नरेन्द्र मोदी ने अपनी मालदीव यात्रा के दौरान की है। पांच हजार करोड़ रूपये कोई छोटी रकम नहीं है, यह बहुत बड़ी रकम है। इतनी बडी रकम मालदीव पर खर्च करने की जरूरत ही क्या है? इस विषय को हम किस दृष्टिकोण से देखे? 

              मालदीव हमारा पडोसी देश है और पडोसी देश भी सुख और शांति से रहे, इसकी इच्छा तो रखनी चाहिए। पर प्रश्न यह उठता है कि जो देश हमारे लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो गया है, जिसके लिए धर्मनिरपेक्षता कोई अर्थ नहीं रह गयी है, जिसकी नीयत हिंसक हैं, आतंकी है और स्वयं को असफल देश के गर्त में ढकेलने में लगा रहता है उसके लिए इतनी बडी रकम खर्च करने का काम सिर्फ और सिर्फ भारत ही कर सकता है। दुनिया में सिर्फ भारत ही एक मात्र देश है जो अपने हिंसक और अलोकमांत्रिक पडोसी देशों को भी अरबों-खरबों रूपये देकर पालता है। जबकि चीन और अमेरिका जैसे देश कर्ज के मकडजाल में फंसा कर लूटते है और अपने हित सुरक्षित रखते हैं, विकसित करते हैं। चीन ने श्रीलंका को कर्ज देकर दिवालियां बना कर छोडा। चीन ने पाकिस्तान को भी कर्ज के दबाव में जकड चुका है। यूक्रेन की मदद के लिए अमेरिका ने खनिज संपदा समझौता किया है, जिसके तहत यूक्रेन के खनिज संपदाओं का दोहन अमेरिका करेगा। मालदीप तो एक विलुप्त होता देश है जो परजीवी है पर हिंसक और मजहबी मामलों में पाकिस्तान-सीरिया के रास्ते पर चल रहा है।

                 नरेन्द्र मोदी का ऐसा कदम सहानुभूति तो प्रकट कर सकता है, उन्हें लोग दयावन तो समझ सकते हैं, उन्हें पडोसियों को मिला कर, खुश रखकर चलने वाला शासक कह सकते हैं। लेकिन भारत की इस सहायता का सकरात्मक उपयोग होगा, जनपक्षीय उपयोग होगा, पारिस्थिति के संरक्षण में उपयोग होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। भारत के धन से मालदीव अपनी मजहबी मानसिकता का भी पोषण करेगा, आतंकियों का संरक्षण और उनका सवंर्द्धन भी कर सकता है? ऐसी समझ रखना कोइ गैर जरूरी बात नहीं हो सकती है। मालदीव को अब पर्यटन से होने वाली आय कम हो गयी हैे, इसलिए उसे मजहबी मानसिकता की तुष्टि के लिए और प्रचार-प्रसार के लिए अतिरिक्त धन की जरूरत है। इसीलिए मालदीव अपने आप को बदलने का नाटक कर रहा है और भारत के मित्र होने का दावा कर रहा है।

                  सच यह है कि मालदीव हमारा दोस्त भी नहीं है, मालदीव हमारे लिए अच्छा पडोसी भी नहीं है। मालदीव कोई आदर्श सूचक देश भी नहीं है। मालदीव मंें धर्मनिरपेक्षता भी नहीं है। पूरी आबादी मजहबी मानसिकता में विश्वास करती है। कुछ नाम मात्र के अन्य धर्म के लोग मालदीव में रहते हैं, उनका कोई मानवाधिकार का संरक्षण नहीं होता, उनकी धार्मिक मान्यताएं प्रतिबंधित हैं। इस्लाम की सहचर आबादी को छोड़ कर अन्य कोई आबादी अपनी धार्मिक मान्यताओं का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं कर सकता है। कहने का अर्थ यह है कि मालदीव पूरी तरह से इस्लामिक कट्टर मानसिकतों की हिंसक प्रवृति में कैद हो गया है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और लेबनान, सीरिया जैसी मजहबी मानसिकताएं अपना प्रदर्शन करती हैं। वैश्विक मीडिया में कई अन्य हिंसक तथ्य भी अस्तित्व मे हैं। खासकर अमेरिकी मीडिया का कहना है कि अलकायदा और तालिबान के कई खतरनाक और हिंसक आतंकी मालदीव में संरक्षण लिये थे। अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार स्थापित हो गयी, इस कारण तालिबान के आतंकियों की अब मजबूरी समाप्त हो गयी, उनके मालदीव में रहने और सक्रिय होने की उम्मीद बहुत ही कम है। लेकिन पाकिस्तान को लेकर समस्याएं बहुत ही खतरनाक है और हिंसक है। पाकिस्तान की आईएसआई का मंकड जाल फैला हुआ है। आईएसआई के अधिकारी और जासूस मालदीव में बैठे हुए हैं और वे तय कर रहे हैं कि किसी भी स्थिति में मालदीव का इस्लामिक करण मजबूत रहे। आईएसआई का भारत के खिलाफ दृष्टिकोण और कारस्तानी भी जगजाहिर है। भारत के खिलाफ आईएसआई न केवल साजिशें रचती है बल्कि मालदीव की आबादी को भड़काती भी है। आईएसआई हमेशा भारतीय हितों को हिंसक ढंग से कुचलती है और कहती है कि भारत मालदीव का हिन्दूकरण करने जा रहा है और भारत मालदीव को अपना गुलाम बनाना चाहता है,इसलिए भारत का विरोध अनिवार्य है। मालदीव का सत्ता राजनीति आईएसआई का मोहरा है। 

              मालदीव ने भारत को कितने घाव दिये हैं, कितनी लातें मारी हैं, भारत के हितों को कितना कुचला है, भारत के सम्मान को कितना नुकसान पहुंचाया है? यह सब किसे नहीं मालूम है। मालदीव मे हमारा सैनिक अड्डा था। ऐसे मालदीव सैनिक अड्डे के लिए कोई खास महत्व नहीं रखता है। फिर भी हमारा सैनिक अड्डा था। हम उस सैनिक अड्डे का उपयोग अपने हितों की रक्षा करने के लिए कर रहे थे। खासकर चीन की सैनिक गतिविधियों और सक्रियता को लेकर हमारी चिंता रही है। चीन ने समुद्र में कई प्रकार की गतिविधियां, समस्याएं और अड़चने खडी की है। अपनी आधुनिक नौकाओं के माध्यम से चीन की नजर भारत की महत्वपूर्ण सैनिक अड्डो पर रही है। चीन अपनी आधुनिक नौकाओं के माध्यम से हमारी जासूसी भी करता है। इसलिए मालदीव में मजबूत भारतीय सेना का ठिकाना अति महत्वपूर्ण था। सबसे बडी बात सैनिक अड्डे पर विराजमान भारतीय सैनिक मालदीव की एकता और अखंडता के लिए कोई चुनौती नहीं थे। फिर भी पाकिस्तान और चीन को वह हमारा सैनिक अड्डा खटकता था। चीन और पाकिस्तान की के कहने पर मालदीव ने भारतीय सैनिक अड्डे को समाप्त करने के लिए भारत को बाध्य किया। भारत के खिलाफ हिंसक और तथ्यहीन बयानबाजी की गयी। कोई विकल्प न देखते हुए भारत की मोदी सरकार ने ही सैनिक अड्डे से अपने सैनिक हटाने का काम किया था। सबसे बडी बात मोदी की छवि और सम्मान पर कीचड उछालना और कूटनीतिक सम्मान को भूल जाना। नरेन्द्र मोदी कभी भी मालदीव के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला था। सिर्फ उसने अपने देश के पर्यटक स्थालों का प्रमोशन किया था। नरेन्द्र मोदी ने लक्ष्यद्वीप की यात्रा की थी। लक्ष्यद्वीप एक खूबखूरत पर्यटक स्थल है, उसकी खूबसूरती मालदीव के पर्यटक स्थलों से कम नहीं है। नरेन्द्र मोदी लक्ष्यद्वीप जाकर पर्यटक स्थलों का दर्शन कराया था। इस पर मालदीव की पूरी सरकार ही पागल हो गयी, हिंसक हो गयी, मालदीव सरकार में शामिल मंत्रियों ने नरेन्द्र मोदी को गालियां दी थी, नरेन्द्र मोदी को नीच कहा था और भारत को बर्बाद करने की धमकी पिलायी थी। इस कारण भारत में बहुत बडी प्रतिक्र्रिया हुई थी और कहा गया था कि क्या भारत के प्रधानमंत्री को अपने देश के पर्यटक स्थलों का दर्शन करना और दर्शन कराने का अधिकार नहीं है? इस दर्शन कार्यक्रम से मालदीव को हानि क्या है, उसकी विरोध की प्रक्रिया चीन और पाकिस्तान की कारस्तानी है। हजारों भारतीयों ने प्रतिक्रिया दिखायी थी और मालदीव घूमने के टिकट भी रद कराये थे। इसके बाद मालदीव के पर्यटन बाजार में मंदी आ गयी थी और भारत के प्रति सम्मान दर्शाना शुरू कर दिये थे।

                भारत सिर्फ मालदीव ही नहीं बल्कि बांग्लादेश, नेपाल और श्रींलंका जैसे विरोधी पडोसियों को भी मदद देकर पालन पोषण करता है, उन देशों की आबादी की भूख मिटाता है। नेपाल का माओवाद भारत विरोधी रहा है, चीन का गुलाम रहा है। नेपाल का कम्युनिस्ट शासन हमेशा से भारत के हितों का संहार करता है और सरेआम भारत के खिलाफ सक्रियता दिखाता है पर चीन की वह गुलामी करता है। श्रीलंका ने भी कभी भारत विरोध की कूटनीति अपनायी थी। श्रीलंका भारत के विरोध में चीन की गोद में जा बैठा था। चीन ने खूब कर्ज दिया। चीनी कर्ज में डूब कर श्रीलंका दिवालिया हो गया, बर्बाद हो गया। बर्बाद, तबाह और दिवालिया होने के बाद चीन ने श्रीलंका से मुंह मोड लिया और अपना कर्ज मांगना शुरू कर दिया। फिर श्रीलंका भारत के शरण में आया। नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका की मदद कर उसकी आबादी की भूख की समस्या को दूर करने में मदद किया। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भी भारत की मदद पर टिकी हुई थी। मदद कर दुश्मन खडा करना कोई मोदी से सीखें।


संपर्क

आचार्य श्रीहरि

Mobile....          9315206123











Thursday, July 24, 2025

धनखड़ की वीरता, निडरता और सक्रियता आईकाॅन बनने चाहिए

 


 







धनखड़ की वीरता, निडरता और सक्रियता आईकाॅन बनने चाहिए


                     आचार्य श्रीहरि



जगदीप धनखड़ का इस्तीफा एक पहले बन गयी है। मिजाज से हटकर उनका इस्तीफा। मीडिया भी इस्तीफे की पहेली को भेदने में नाकामी हासिल की है, राजनीति भी इसके बंद पर्दे को खोलने में नाकाम रही है। मीडिया और राजनीति के लिए यह प्रसंग भी अटकलबाजियों जैसा रहा। जबकि सच्चाई यह है कि मीडिया और राजनीति ग्यारह सालों में नरेन्द्र मोदी के किसी भी नीति और कदम का राज न जान सकी और न ही उनके कदम का कोई चाकचैबंद अनुमान लगा सकी  इस्तीफा देकर भागना उनका स्वभाव नहीं था। अचानक घटी अदृश्य घटनाएं इस्तीफा का कारण बनी हैं। लेकिन जितना आश्चर्यचकित करना वाला धनखड़ का इस्तीफा है उससे भी बढकर कांगेस और अन्य विपक्षी दलों का उमड़ा धनखड़ प्रेम है। धनखड को हटाने के लिए महाभियोग लाने वाली कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने धनखड के प्रति सहानुभूति जतायी है, उनके इस्तीफे के कारणों को लेकर आशंकाए भी जतायी है, पर्दे के पीछे घटी घटनाओं को जाहिर करने की मांग की है।

                    जगदीप धनखड के इस्तीफे के दो पक्ष हैं जिनके पास रहस्य-पहली का राज है। पहला पक्ष खुद धनखड हैं जिनके पास वह सच्चाई है जिसके कारण उन्होंने इस्तीफा दिया या फिर इस्तीफा  लिया गया। जबकि दूसरा पक्ष नरेन्द्र मोदी की सरकार है, नरेन्द्र मोदी का थींक टैंक ही जानती है कि धनखड से इस्तीफा क्यों लिया गया। हमारे जैसे स्वतत्र विचारकों का ख्याल और निष्कर्ष है कि यह स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रक्रिया-कदम किसी भी परिस्थिति में नहीं है, स्वाभाविक तो माना ही नहीं जा सकता है। पर्दे के पीछे का कारण बहुत ही कठिन है, आश्चर्यचकित करने वाले कभी नहीं हैं, क्योकि नरेन्द्र मोदी ने अपने ग्यारह साल की सरकार की अवधि में किसी मंत्री को भी इस तरह से इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा और न ही इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया। मंत्रिमंडल विस्तार और कहीं अन्य जगहों पर उपयोग को ध्यान में ही रखकर किसी मंत्री से जगह खाली करायी गयी। धनखड़ का यह प्रकरण भविष्य मे अपना कमाल दिखा भी सकता है और राजनीति को प्रभावित भी कर सकता है।

                   धनखड़ की पहचान क्या थी? धनखड की उपलब्धियां क्या थी? धनखड़ को भविष्य में किस रूप में देखा जाना जा सकता है या फिर याद किया जा सकता है? नरेन्द्र मोदी के लिए धनखड कितना लाभ और कितना घाटे का दांव रहा है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर तलाशना मुश्किल नहीं है। धनखड को जिन जिम्मेदारियों के लिए कहा गया या सौंपी गयी उन जिम्मेदारियों का निर्वाहन में उन्होंने हीलाहवाली नहीं की थी, अकर्मण्यता नहीं दिखायी थी, अयाोग्यता नहीं दिखायी थी। रणछोड़ दास नहीं बने थे। निडरता दिखायी थी, वीरता दिखायी थी, आमने-सामने की लड़ाई लडी थी, संविधान और परमपरा को अपना हथ्यिार बनाया था और अपने इसी हथियार से अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों का निर्वाह्ण भी किया था। याद कीजिये उनकी राज्यपाल की जिम्मेदारी को, राज्यपाल की भूमिका को। राज्यपाल के रूप में उनकी जिम्मेदारी और भूमिका कोई असक्रिय नहीं थी, कोई ओझल नहीं थी, कोई रबर स्टाम्प वाली नहीं थी। वे एक सक्रिय और परिणामदायी भूमिका निभायी थी। राज्यपाल को ऐसे रबर स्टाम्प कहा जाता है, एक ऐसा मजबूर पद जो सिर्फ हस्ताक्षर कर सकता है, प्रस्तावित नियम-कानूनों पर वह निर्णायक कैंची नहीं चला सकता है। सबसे बडी बात पश्चिम बंगाल की राजनीतिक परिस्थितियों को लेकर है। ममता बनर्जी की अराजक और निरंकुश भूमिका कौन नहीं जानता है। नियम कानूनों को तोड़ना और संवैधानिक जिम्मेदारियों पर उदासीनता बरतना उसकी शख्सियत भी शामिल है। पश्चिम बंगाल में कई घोटोले हुए, घोटाले कुख्यात थे और लोमहर्षक भी थे, उसमें ममता बनर्जी के मंत्रिमंडल मे शामिल लोगों की भूमिका थी। अन्य घोटालों में ममता बनर्जी तक नाम आया। सीबीआई की टीम पर  टीएमसी के  लोगों ने हमले पर हमले किये। ममता बनर्जी सीबीआई के खिलाफ खुद धरने पर बैठ गयी थी। ममता बनर्जी के शासन काल में बांग्लादेशी घुसपैठियों की पौबारह थी, संरक्षण प्राप्त था। टीएमसी के गंुडे हिन्दुओं का संहार पर संहार कर रहे थे। ऐसी विकट परिस्थितियों में प्रभावित लोगों के लिए धनखड एक आशा की किरण के तौर पर स्थापित हुए थे। पश्चिम बंगाल सरकार के विरोध और अड़चनों और धमकियों की भी परवाह नहीं की थी और अपना कर्तव्य का निर्वाह्न उन्होंने चाकचैबंद ढंग से की थी। यही कारण था कि ममता बनर्जी ने एक बार नहीं बल्कि बार-बार धनखड की आलोचना की थी और संवैधानिक लक्ष्मण रेखा पार की थी। फिर भी केन्द्रीय सरकार के संरक्षक के तौर पर उनकी भूमिका शानदार थी और आईकाॅन की तरह थी। 

                 न्यायापलिका की स्वच्छंदता ही नहीं बल्कि तानाशाही चरम पर पहुंच गयी। न्यायपालिका एकाएक संविधान का तख्तापलट दिया और तानाशाही हो गयी। कह दिया कि मैं ही सर्वश्रेष्ठ हू, मेरे सामने विधायिका और कार्यपालिका का कोई भूमिका नहीं है, कोई हैसियत नहीं है, हमसे पूछे बिना किये गये विधायिका और कार्यपालिका के हर काम और नीति की हम समीक्षा करेगे। हम स्वयं ही नियुक्ति का अधिकार धारण करेंगे, इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी, सरकार हमारी सिफारिशों पर सिर्फ मुहर लगायेगी। न्यायपालिका के लोग नेता की तरह काम करने लगे, वे भाषण देने जैसे काम करने लगे। ये झूठ और आधारहीन फैसले देंगे पर भी सत्यवादी बनते रहे हैं और इन पर कोई अंकुश नहीं होगा। कोई आलोचना नहीं करेगा, आलोचना करने वाले जेल की हवा खायेंगे। इस डर से कौन बोलेगा? यही कारण है कि नेता और अन्य संस्कृति के लोग न्यायपालिका के खिलाफ बोलने से भागते हैं। लेकिन धनखड ने गजब की निडरता दिखायी और गजब की वीरता दिखायी। न्यायपालिका को आलोचना का वाजिब शिकार बनाया, उनकी तानाशाही को चुनौती दी, उनकी रिश्वतखोरी की मानसिकता को चुनौती दी और आईना भी दिखाया। संसद ही सर्वश्रेष्ठ है। जब संविधान को संसद ने स्वीकृति दी है तो फिर संविधान को बदलने का अधिकार भी संसद को है। धनखड तो यही बात कह रहे थे। यशवंत वर्मा के घर पर करोड़ों रूपये पकडे गये, पुलिस और सुप्रीम कोर्ट की जांच में भी यह सच साबित हुआ फिर भी यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हुई, सुप्रीम कोर्ट ने अपने संरक्षण से यशवंत वर्मा का बचाव किया है। संसद में महाभियोग लाना था। महाभियोग की प्रक्रिया चल रही थी। महाभियोग को लेकर धनखड की सक्रियता कुछ ज्यादा ही थी। धनखड की सक्रियता को कुछ लोग अति मान रहे थे। लेकिन न्यायपालिका की तानाशाही और निरंकुशता के खिलाफ किसी न किसी को आगे आकर बोलने का साहस करना ही पडेगा।

                मानवीय स्वभाव की समस्या और चुनौतियां कई अहर्ताओं को प्रभावित करती है। अति उत्साह का दांव उल्टा पड जाता है, कभी-कभी अति सक्रियता और उत्साह में कई लक्ष्मण रेखांए टूट जाती हैं, उदासीनता की शिकार हो जाती हैं, चुनौती और वर्चस्व स्थापित करने का खेल साबित हो जाती हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार की न्यायिक चुनौतियां और धनखड की अति सक्रियता के बीच टकराव हुआ होगा। न्यायपालिका के सामने नरेन्द्र मोदी ने पहले ही हथियार डाल चुके हैं। न्यायधीशों की नियुक्ति और न्यायालय से जुडे प्रबंधन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट ने मनमाने ढंग से खारिज कर दिया था। जबकि संसद के दोनो सदनों ने और कई राज्यों के विधान सभाओं नेे उक्त विधेयक को पास किया था। सुप्रीम कोर्ट सरकार की सभी नीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा करती है, मनमाने फैसले देती है। सुप्रीम कोर्ट से लडने की राजनीतिक शक्ति नरेन्द्र मोदी के पास नहीं है। गलत और संविधान विरोधी, कानून विरोधी फैसले देने के खिलाफ भी केन्द्रीय सरकार कोई कार्रवाई नही कर सकती है। ऐसी मजबूरी में नरेन्द्र मोदी न्यायपालिका से लडने की जगह समझौतावादी रूख और राजनीति के सहचर बन गये। लेकिन हम धनखड की वीरिता, निडरता को अस्वीकार नहीं कर सकते हैं। धनखड की वीरता और निडरता हमेशा याद रहेगी।

संपर्क

आचार्य श्रीहरि

नई दिल्ली 

Mobile       9215206123












Wednesday, July 16, 2025

चुनाव आयोग से फर्जी और विदेशी ही डरते हैं

      




                              बिहार में तीस लाख फर्जी वोटर

      चुनाव आयोग से फर्जी और विदेशी ही डरते हैं
 
                       आचार्य श्रीहरि



बिहार में तीस लाख फर्जी वोटर? फर्जी वोटरों में बांग्लादेशी और पाकिस्तानी नागरिक भी शामिल हैं? चुनाव आयोग कितना निष्पक्ष है, नीयत समय पर मतदाता पुर्ननिरीक्षक का काम दक्षता पूर्ण ढंग से चुनाव आयोग कर पायेगा या नहीं? फर्जी नागरिकता रखने वालो पर सरकारी संहिताएं सक्रिय नहीं होनी चाहिए? फर्जी घोषित होने वाले लोगो पर आपराधिक मामला क्यों नहीं चलता चाहिए? बिहार ही क्यों बल्कि पूरे देश में फर्जी और विदेशी वोटरों को भारतीय वोटर सूची से बाहर करने की कार्रवाई होनी ही चाहिए। क्योंकि यह प्रसंग जनादेश को प्रभावित करने का है। दतलीय आधार पर इस प्रसंग को कदापि नहीं देखा जाना चाहिए। राष्ट्रहित को ध्यान मे रख कर फर्जी और विदेशी मतदाता को कानून का पाठ पढ़ाना चाहिए।
               बिहार विधान सभा चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण होने वाले हैं। विवाद और तनाव अभी से ही शुरू है। अभी तो चुनाव की प्रकिया भी शुरू नहीं हुई है। पर वोटर लिस्ट को लेकर तनातनी है। तनातनी हिंसक भी है और खतरनाक है। दोनों गठबंधन के बीच इस पर शह-मात का खेल जारी है। इंडिया गठबंधन जहां लाखों लोगों को वोट के अधिकार से वंचित करने की साजिश को शाब्दिक हिंसा के माध्यम से उठा रहा है वहीं एनडीए गठबंधन का कहना है कि हमारी कोई भूमिका नहीं है, चुनाव आयोग का दायित्व है और चुनाव आयोग अपना दायित्व कुशलता के साथ निभा रहा है। फार्म भरने और जांच करने की कार्रवाई तेजी के साथ हो रहा है, करीब एक लाख बीएलओ इस प्रक्रिया में शामिल हैं। फार्म सत्यापित करने के लिए वोटरों को पूरा अवसर दिया जा रहा है, बीएलए डोर टू डोर जाकर फार्म की सच्चाई अंकित कर रहे हैं।
                लेकिन समय को लेकर चिंता और प्रश्न का उठना स्वाभाविक है। चुनाव आयोग का जागना एक अच्छी बात है। पर चुनाव आयोग थोड़ी देर कर दी। यही कार्रवाई छह महीने पहले होती तो राजनीतिक विवाद थोड़ा कम होता और चुनाव आयोग की साख भी बनी रहती। फिर भी चुनाव आयोग की कारवाई को रोकना या फिर उन पर कीचड उछालना सही नहीं है और साफ-सूथरी चुनाव प्रक्रिया को बाधित करने के प्रयास समझा जाना चाहिए। यह कौन नहीं जानता है कि बैलेड पेपर से चुनाव प्रक्रिया को समाप्त करने बाद आई इलेक्ट्रानिक्स मशीन चुनाव प्रक्रिया तो बेहतर है पर अभी भी फर्जी मतदान और फर्जी मतदाता का शोर थमा नहीं है, अगर निष्पक्ष और गहणता के साथ वोटर सूची की जांच हो तो फिर करोड़ो की संख्या में फर्जी वोटर मिलेगे, क्योकि अभी ऐसी कोई भी प्रकिया या फिर नियमावली नहीं बनी है कि फर्जी वोटरों पर कानूनी प्रकिया लगायी जानी चाहिए।
          सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने भी मान लिया कि मतदाता पुर्ननिरक्षण की प्रक्रिया नहीं रोकी जानी चाहिए, चुनाय आयोग के हाथ नहीं बांधे जाने चाहिए, चुनाव आयोग को स्वतंत्र भूमिका निभाने देनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अगर किसी भी तरह के नियमावली का उल्लंघन माना होता तो फिर चुनाव आयोग पर बंदिशें लगा दिया होता। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को स्वतंत्रा देने का काम किया, इसका सीधा अर्थ होता है कि चुनाव आयोग का पुर्ननिरक्षण का कार्य ठीक ठाक है। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दूसरे दस्तावेज को भी मान्य प्रक्रिया का माध्यम बनाने के लिए कहा है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश मानते हुए दूसरे दस्तावेज को भी आधार मानने के लिए तैयार हो गया। अब वोटरों को आधार कार्ड, पैन कार्ड और अन्य पहचान पत्र दिखाने और प्रमाणित कराने की सुविधा मिल गयी। देश में ऐसा कोई अपवाद ही होगा जिसके पास आधार कार्ड, पैन कार्ड, जमीन का दस्तावेज या फिर घर का दस्तावेज नही होगा। सरकार ने आधार कार्ड की सुविधा सुलभ करा रखी है। ग्रामीण इलाकों में आधार कार्ड बनाने की सुविधा है। आॅनलाइन भी आधार कार्ड और पैन कार्ड बनाये जा सकते हैं। अगर फिर भी कोई मतदाता कहता है कि उसके पास कोई पहचान पत्र नही है तो फिर उसकी नागरिकता ही संदेह के घेरे में होगी, या फिर वह झूठ बोलता है।
          फिर चुनाव आयोग से डरता कौन है? सही वोटर चुनाव आयोग से डरेगा क्यों? डरेगा तो फर्जी वोटर और विदेशी घुसपैठिये ही डरेगा। बिहार के कटिहार, पूर्णिया, अररिया, मधुबनी, दरभंगा,  जिले में मतदाताओं की पारिस्थितिकी और उनकी राष्ट्रीयता पर प्रश्न चिन्ह हैं। क्योंकि ये सभी एकाएक मुस्लिम बहुलता के शिंकजे में कस गये और इन जिलों मतदाताओं  की संख्या भी बढ गयी थी। इसके पीछे सीधे तौर पर विदेशी घुसपैठ को जिम्मेदार मानते है। राजनीतिज्ञों के संरक्षण के कारण पूरे बिहार में विदेशी घुसपैठियों की जनसंख्या पारिस्थितिकी बदली है जिसके कारण जनादेश पर भी प्रभाव पडा है। बांग्लादेश में दस लाख से अधिक रोहिंग्या शरण लिये हुए थे। म्यामार में राष्ट्रीयता के आंदोलन के दौरान हिंसक और आतंकी रोहिंग्याओं को भागना पडा था, जिन्हें बांग्लादेश ने मुस्लिम आधार के कारण शरण देने का काम किया था। बांग्लादेश मे शरण लिये दस लाख से अधिक रोहिंग्याओं में से एक तिहाई बिहार की आबादी में घुसपैठ कर गये हैं। खासकर कटिहार और अररिया संसदीय क्षेत्र एकाएक मुस्लिम बहुलतावाले संसदीय क्षेत्र बन गये। कटिहार और अररिया संसदीय क्षेत्र अचानक कैसे मुस्लिम बहुलता वाला संसदीय क्षेत्र बन गये? इस पर शोध की जरूरत है। चुनाव आयोग को इस पर सर्वे के साथ ही साथ शोध कराने की जरूरत होनी चाहिए, बिहार और भारत सरकार को भी इस पर संज्ञान लेने की जरूरत है।
                   बिहार में कितने फर्जी वोटर हैं जिन पर वोट से वंचित होने और मतदाता सूची से नाम हटने की तलवार लटक रही है? संख्या जान कर हैरान और परेशान हो जायेंगे? हैरान और परेशान कैसे हो जायेंगे? इसलिए कि मतदान से वंचित होने वाले मतदाताओं की संख्या बहुत ही ज्यादा है। अनुमान और कल्पना से भी ज्यादा है। चुनाव आयोग का कहना है कि तीस लाख से अधिक लोगों का नाम मतदाता सूची से हटना तय है। कहने का अर्थ यह है कि वर्तमान में तीस लाख मतदाता सूची में ऐसे लोग शामिल हैं जो मतदाता सूची की अहर्ताएं ही नहीं रखते हैं और जिनकी नागरिकता ही संदेह के घेरे मे हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता पुर्ननिरक्षण के लिए आधार सहित अन्य माध्यमों को आधार बनाने के लिए नहीं कहा होता तो निश्चित मानिये कि यह संख्या भी छोटी पड जाती। क्योकि अगर दस्तावेजों आयु बीस साल मानी जाती तो फिर एक चैथाई लोग मतदाता सूची से बाहर हो जाते। अगर कोई व्यक्ति देश के किसी राज्य या फिर बिहार के किसी जिले से पलायन कर आया है तो फिर उससे संबंधित दस्तावेजों की आयु तो मान्य कसौटी पर होनी चाहिए। समस्या सरकारी कर्मचारियों की रिश्वत खोरी का भी है। रिश्वत खोरी अब चुनाव और चुनाव परिणाम को प्रभावित कर रही है। रिश्वत खोरी के कारण पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और नेपाली भी भारत के नागरिक बन रहे हैं। अधिकारियों और कर्मचारियों को रिश्वत खोरी कराकर देशद्रोही लोग भारत के नागरिक बन जाते हैं और भारत के नागरिक के लिए अनिवार्य और मान्य दस्तावेज हासिल कर लेते हैं। बार-बार ऐसे आतंकवादी पकडे गये हैं जिनके मूल पाकिस्तानी होने, बांग्लादेशी होने के बावजूद उनके पास भारत के आधार कार्ड, वोटर कार्ड आदि दस्तावेज थे, जिनके माध्यम से पाकिस्तानी-बांग्लादेशी भारत में रहकर और भारत की अस्मिता को लहूलुहान करते हैं, भारत के जनादेश को कुचलते हैं और भारत मे आतंक की हिंसा फैलाते हैं।
                        दस्तावेज तो सही मिल सकते हैं। पर एक गांरटी नहीं मिल सकती है। किसी अन्य बूथ पर भी, किसी अन्य विधान सभा क्षेत्र में भी मतदाता सूची में नाम हो सकता है। अभी जो मतदाता सूची की प्रक्रिया है उसमे इस बात की पूरी संभावना होती है कि एक व्यक्ति का कई क्षेत्रों के मतदाता सूची में नाम दर्ज हो सकता है। कई लोग अपने पंसदीदा उम्मीदवार को चुनाव जीताने और अपने मजहब के समर्थकों को जीताने के लिए कई-कई क्षेत्रों के वोटर लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा लेते हैं। अब चुनाव सुधार पक्रिया में सुधार, बदलाव और परिवत्रन की जरूरत है। जिस प्रकार में बैकों में व्यवस्था है कि सभी बैंकों के खातों की जानकारी आयकर विभाग और सरकार को मिल जायेगी उसी प्रकार से वोटर लिस्ट को आधार कार्ड से लिंक करा दिया जाना चाहिए। आधार कार्ड से लिंक कराने के बाद कई क्षेत्रों में अपना नाम दर्ज कराने वाले लोगों की पहचान आसानी से हो सकती है और उनके मतदाता अधिकार को शुन्य घोषित किया जा सकता है। अगर ऐसी व्यवस्था होती तो निश्चित मानिये कि विहार का वर्तमान वोटर सूची को लेकर विवाद और तनातनी की आवश्यकता ही नहीं पडती।


संपर्क
आचार्य श्रीहरि
Mobile    ... 9315206123