राष्ट्र-चिंतन
पाकिस्तान फिर हुआ नंगा
विष्णुगुप्त
दुनिया के नियामकों और पाकिस्तान पक्षकारी भारतीय बुद्धीजीवियों को और कितने सबूत चाहिए? एक पर एक पाकिस्तान के आतंकवादी सबूतों पर उदासीनता की नीति क्यों अपनायी जाती है। दुनिया के नियामक पाकिस्तान के खिलाफ सबककारी दंड विधान की नीति कब अमल पर उतरेगी। भारतीय सत्ता कब तक पाकिस्तान के खिलाफ नरम नीति से भारतीय आबादी का खून बहाती रहेगी? भारतीय बुद्धीजीवी कबतक पाकिस्तान के पक्ष में अपनी भूमिका निभा कर राष्ट्र के गौरव ओर अस्मिता के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे? सिर्फ भारत ही नहीं है बल्कि अमेरिका, रूस, बिंटेन और जर्मनी जैसे देश पाकिस्तान के आतंकवादी आउटसोर्सिंग की नीति से हलकान हैं। पाकिस्तान ने दुनिया से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए करोड़ों-अरब डालर वसूलती है फिर भी आईएसआई और पाकिस्तान सेना ने तालिबान-अलकायदा को फिर से खड़ा कर दुनिया की शांति को गहरे सुरंग में ढंकेल दिया है।
कारगिल के बाद अब जुल्फिकार अहमद प्रसंग में पाकिस्तान नंगा हुआ है और उसका यह कहना कि वह दुनिया मे आतंकवाद का आउटसोर्सिंगकर्ता नहीं है, का भी पोल खुल गया है। जुल्फिकार अहमद एक आत्मघाती हमलावर था। आईएसआई ने उसे भारत मे आतंकवादी हमले के लिए भेजा था। जुल्फीकार अहमद ने भारत में आईएसआई के कारनामों की जमीन तैयार की थी और कई आतंकवादी हमलो को अंजाम दिया था। पाकिस्तान सेना ने अपने वेबसाइट पर यह स्वीकार कर लिया है कि जुल्फीकार अहमद पाक सेना का जवान था और वह आईएसआई के गुर्गे के तौर पर भारत गया था। पाक सेना ने अब जुल्फीकार अहमद को शहीद का दर्जा दिया है।
इस स्वीकरोक्ति के कूटनीतिक अर्थ बहुत ही गंभीर है। कारगिल हमले में पाकिस्तान सेना के हाथ होने की मुशर्रफ की स्वीकरोक्ति पहले ही चुकी है। भारत के लिए ये दोनों कूटनीतिक तथ्य काफी लाभकारी हो सकते हैं। भारत इन दोनों तथ्यों के माध्यम से पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित कराने में कामयाब हो सकता है। साथ ही साथ देश के ऐसे बुद्धीजीवियों के मुंह पर तमाचा भी है जो पाकिस्तान के साथ दोस्ती की बात कहते हैं और आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान के पक्ष में पक्षकारी भूमिका निभाते रहे हैं। पाकिस्तान का आतंकवादी सरोकार और नीति तबतक जमींदोज नहीं सकती जबतक उस पर दंड संहिता का कोडा न चले। दुनिया के नियामकों को अब पाकिस्तान के पक्ष में नरमी दिखाने वाले कार्यक्रम और नीतियां बदल लेनी चाहिए। कुछ ऐसी ही विसंगतियां है जिसके कारण से ही दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ जारी विचार प्रवाह दम तोड़ता रहा है और अलकायदा-तालिबान जैसी शक्तियां लगातार मजबूत और खतरनाक होती जा रही है।
दुनिया को पाकिस्तान के खिलाफ और कितने सबूत चाहिए? कारिगल हमले के दौरान ही यह स्पष्ट था कि पूरी कारस्तानी पाकिस्तान सेना की है। मुशर्रफ ने कारगिल हमले का जंजाल खड़ा किया था। पाकिस्तान अपने बचाव में तथ्य प्रत्यारोपित किये थे कि कारगिल हमला पाकिस्तान सेना नहीं बल्कि कश्मीरी स्वतंत्रासेनानियों ने किये हैं। नवाज शरीफ ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के माध्यम से कारगिल संकट से निजात पायी थी। भारत ने बिल क्लिंटन के दबाव में पाकिस्तानी सैनिकों की वापसी का सुरक्षित रास्ता दिया था। कुछ दिन पहले ही मुशर्रफ ने लंदन में यह स्वीकार किया कि कारगिल की कारस्तानी उनकी थी और कश्मीर प्रसंग का अंतर्राष्ट्रीय करण करने के लिए उसने पाकिस्तानी सेना को कारगिल में धुसपैठ करायी थी। जबकि कारगिल हमले के समय प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ भी कारगिल हमले के लिए मुशर्रफ पर दोष मढ़ते रहे है। मुशर्रफ की स्वीकारोक्ति के बाद दुनिया में हडंकप मचा था और पाकिस्तान की असहज स्थिति हुई थी। आतंकवाद की आउटसोर्सिंग पर पाकिस्तान की घेरेबंदी तेज हुई थी। ऐसी घेरेबंदी से निजात पाने के लिए पाकिस्तान की वर्तमान सत्ता ने कारगिल हमले के सच पर पर्दा डालने का काम किया था। पाक सत्ता का कहना था कि मुशर्रफ का बयान सच से दूर है। पाक सेना ने अपने वेबसाइट पर कारगिल शहीदों के नाम डालकर मुशर्रफ की स्वीकारोक्ति पर मुहर लगायी थी।
जुल्फीकार अहमद हैं कौन? यह आत्मघाती हमलावर कैसे बना? आईएसआई ने जुल्फीकार अहमद को किस मकसद से भारत भेजा था। आईएसआई ने जुल्फीकार अहमद के आत्मधाती कारस्तानी से कितनी कामयाबी हासिल की? वास्तव में जुल्फीकार अहमद पाकिस्तानी सेना का जवान था। उसे आईएसआई ने आत्मघाती गुर्गे के तौर पर तैयार किया था। जुल्फीकार अहमद को भारत भेजने के आईएसआई का मकसद भारत विरोधी भावनाएं बढ़ाना और आतंकवादी गुटों को एकजुट कर भारत के खिलाफ खूनी राजनीति और खूनी कार्रवाइयो को अंजाम देना। इसके पहले उसे पाक अधिकृत कश्मीर में ट्रैनिंग दी गयी थी। उसे पाक अधिकृत कश्मीर के रास्ते से भी भारत में घुसाया गया था। जुल्फीकार अहमद पहले जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और दहशत फैलाने की कार्रवाइयो में लगा रहा और बाद में उसने कश्मीर को छोडत्रकर दिल्ली में अपना अड्डा बना लिया। दिल्ली में उसने नेपाल के रास्ते से आतंकवादियों को भारत में घुसाने का जंजाल खड़ा किया। इसके अलावा बेरोजगार मुस्लिम युवकों को उसने भारत के खिलाफ गुमराह करने का काम किया। 16 नवम्बर 2007 को दिल्ली कें गंगा राम अस्पताल में उसकी मौत हुई थी। मौत का कारण किडनी और श्ंवास नली में सक्रमण बताया गया था। जुल्फीकार अहमद के मौत के बाद भी काफी समय तक आईएसआई और पाक सेना सच्चाई छुपाती रही। अब उसे शहीद का दर्जा दिया गया है।
आईएसआई और पाक सेना का आतंकवादी नीति शायद ही समाप्त होगी। आईएसआई ने तालिबान और अलकायदा को फिर से खड़ा कर दिया है। अमेरिकी हमले के बाद तालिबान और अलकायदा भाग खड़े हुए थे और यह लगने लगा था कि अलकायदा-तालिबान फिर से अपनी शक्ति हासिल नहीं कर पायेंगे। यह उम्मीद बेकार साबित हुई। अब तालिबान फिर से अफगानिस्तान में न केवल सक्रिय हुए बल्कि कई पहाड़ी इलाको में अपना स्रामाज्य भी स्थापित कर लिये हैं। अफगानिस्तान सरकार की सत्ता सिर्फ काबुल के आस-पास तक ही सीमट कर रह गयी है। अफगानिस्तान सरकार ने पाकिस्तान पर तालिबान को सह और संरक्षण देने के आरेप बार-बार लगायी हैं। अमेरिकी नीति भी यह मानती है कि जब तक आईएसआई जब तक सीधी नहीं होगी और उस पर कार्रवाई का डंडा नहीं चलता है तब तक पाकिस्तान में आतंकवाद के कारखाने चलते रहेंगे। इधर पाकिस्तानी नीति तालिबान को लोकतांत्रिक चोला पहनाने का है। गुड और बेड तालिबान की थ्योरी में दुनिया के नियामक भ्रम में पड़ गये हैं। गुड तालिबानों की एक खूंखार टोली खड़ी हुई है जिसके गंभीर परिणाम भविष्य में अमेरिका को भुगतना होगा। अमेरिका इधर अफगानिस्तान से निकलने के लिए आतुर है। अफगानिस्तान से निकलने के आतुरता मे अमेरिका कहीं आईएसआई के बुने जाल न फंस जाये। इसके खतरे साफ दिख रहे हैं।
जुल्फीकार अहमद के आत्मघाती हमलावर होने के सबूत से पाकिस्तान की आतंकवादी नीति और सरोकार एक बार फिर उजागर हुए है। भारत को इसका लाभ उठाने के लिए कूटनीतिक शक्ति दिखानी चाहिए। भारत शायद ही कूटनीतिक शक्ति दिखाने और पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित कराने के आगे बढ़ेगा। मुबंई हमले के दौरान भारतीय सत्ता खूब गरजी थी पर पाकिस्तान ने मुबंई हमले के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के नाम पर भारतीय सत्ता को मुर्ख बनाया है। अब पाकिस्तान सत्ता भारत को ही आतंकवादी देश बताता रहता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की सहिता के अनुसार पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित कराया जा सकता है। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस सहित अन्य देशों को अब यह समझ में आ जाना चाहिए कि पाकिस्तान पर दया या उदासीनता बरतने की नीति घातक है। जब तक पाकिस्तान पर दंडा नहीं धुमेगा तबतक पाकिस्तान की आतंकवादी नीति कभी समाप्त ही नहीं होगी। पर क्या दुनिया के नियामक अपनी विसंगतियां छोड़ने के लिए तैयार हैं और पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठायेंगे। असली सवाल यही है।
संपर्क .........
विष्णुगुप्त
मोबाइल- 09968997060
Monday, December 20, 2010
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भारत अपने अन्दर के गद्दारों को तो ठीक कर नहीं पा रहा है, बाहर के लोगों का क्या कर लेगा...please remove word verification..
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