Friday, October 8, 2010

राष्ट्र-चिंतन


                    मुशर्रफ की करतूत
     पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित कराओ


     विष्णुगुप्त


                                       पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने भारत को तबाह करने के लिए आतंकवादी कारखाना चलाने की जो स्वीकारोक्ति की है उससे एक बार फिर साबित होता है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश और वैश्विक आतंकवाद की आउटसोर्सिंग भी पाकिस्तान की करतूत है। पाकिस्तान की नीव घृणा/मजहबी उफान से पड़ी हुई थी। भारत विरोध ही नहीं बल्कि भारत विध्वंस की उसकी स्थायी सत्ता नीति है। सिर्फ सत्ता नीति की ही बात नहीं है बल्कि पाकिस्तान की आबादी भी भारत को विध्वंस करने की मजहबी विद्वेश से ग्रसित है। बंटवारे के कुछ ही दिन बाद पाकिस्तान ने कश्मीर हड़पने के लिए हमला कर दिया था। आधी कश्मीर हड़पने में वह कामयाब हो गया। पूरी कश्मीर हड़पने के लिए अब तक पाकिस्तान ने कारगिल सहित चार युद्ध किये हैं। इन सभी युद्धों में पाकिस्तान को बूरी पराजय मिली। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश से पाकिस्तान को हाथ धोना पड़ा। पाकिस्तान ने यह बात पूरी तरह से समझ ली कि वह प्रत्यक्ष युद्ध में न तो भारत को पराजित किया जा सकता है और न ही कश्मीर को हड़पने की उसकी नीति सफल हो सकती है। तानाशाह जियाउल हक ने कश्मीर को हड़पने के लिए आतंकवाद की नीति अपनायी। आतंकवाद से कश्मीर को हड़पने और भारत विध्वंस की यह नीति पाकिस्तान के सभी शासको की रही है। बेनजीर भुट्टों और नवाज शरीफ से लेकर मौजूदा शासक जिलानी-जरदारी भी आतंकवादियों के संरक्षण देने और भारत विध्वस की नीति जारी रखे हुए हैं। मुबंई हमलावरों को भी अब तक दंडित नहीं किया गया है और दंडित किये जाने की भी कोई प्राथमिकता पाकिस्तान नहीं दिखा रहा है। भारत की सत्ता कूटनीति की कमजोरी से पाकिस्तान की आतंकवादी नीति जमींदोज नहीं हो रही है। मुशर्रफ की स्वीकारोक्ति निश्चिततौर पर भारत के लिए एक मौका है। यह हमारा एक बड़ा कूटनीतिक हथियार हो सकता है जिसके सहारे हम पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश घोषित कराने में भी सफल हो सकते हैं।
                                                           मुशर्रफ धूर्त/काइयां भी है। मुशर्रफ देशनिकाला है। पाकिस्तान लौटने की उसकी इजाजत प्रतिबंधित है। एक समझौते के तहत मुशर्रफ राष्ट्रपति पद छोड़ने के लिए बाध्य हुआ था। समझौते के तहत पाकिस्तान में रहने से प्रतिबंधित करने सहित राजनीति से भी दूर रहने की हिदायत मुशर्रफ को मिली थी। इसके बदले में नागरिक सत्ता ने मुशर्रफ के तानाशाही काल की सारी करतूते माफ कर डाली थी। राष्ट्रपति पद छोडने के साथ मुशर्रफ पाकिस्तान से दूर सउदी अरब और ब्रिटेन में रह रहा था। मुशर्रफ पर अमेरिकी सत्ता आंख मुंद कर विश्वास करती थी इसलिए निर्वासन में मुशर्रफ को कोई परेशानी नहीं हुई और अमेरिकी मदद मिलती रही। अमेरिकी मदद और कूटनीतिक संरक्षण के सहारे ही मुशर्रफ सउदी अरब और ब्रिटेन में रह रहा है। गुमनामी की जिंदगी से अचानक मुशर्रफ ने पलटी मारी और रातोरात फिर दुनिया की नजर में चर्चित हो गया। इतना ही नहीं बल्कि अखबारों की सुर्खियां भी बटोरनी शुरू कर दी। मुशर्रफ ने पहले अपनी पाटी बनायी और ब्रिटेन में रह रहे पाकिस्तानियों को एकत्रित कर अपना जनसमर्थन तैयार करने का काम किया और इसके बाद उसने यह स्वीकारोक्ति करने में हिचक या परेशानी महसूर नहीं की कि उन्होंने भारत को विध्वंस करने के लिए आतंकवादी तैयार किये थे। ये दोनों प्रश्न महत्वपूर्ण हैं और इसके निहितार्थ भी अमेरिकी-पाकिस्तानी राजनीति और कूटनीति में खोजी जानी चाहिए।
                            मुशर्रफ के इस स्वीकारोक्ति और अलग पार्टी बनाने की रणनीति के पीछे कहीं अमेरिकी कूटनीति तो काम नहीं कर रही है। अमेरिकी कूटनीति को यह अहसास हो चुका है कि पाकिस्तान में अब न तो कानून का शासन रहा और न ही आमजन के बीच सत्ता का विश्वास कायम रहा। बाढ़ और गरीबी आम पाकिस्तान काहिल है। गिलानी और जरदारी दोनो खतरनाक ढ़ंग से अलोकप्रिय हो चुके हैं। गिलानी और जरदारी की लोकप्रियता सही में खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है। एक तो गिलानी और जरदारी आतंकवादी संगठनों को नकेल पहनाने में विफल रहे हैं वही उनकी गुड और बैड तालिबान की थ्यौरी भी कम चर्चा के विषय नहीं रही है। अफगानिस्तान सीमा से लगे कबिलाई इलाकों में नाटो सैनिकों के लगातार हो रहे हमलो से आवाम में गिलानी-जरदारी के खिलाफ आका्रेश बढ़ा है। जरदारी-गिलानी की घटती लोकप्रियता ने सेना के हौसले बढाये हैं और सेना की रणनीति नागरिक सरकार का तख्तापटल करने की है। सेना अध्यक्ष परवेज कियानी के साथ नागरिक सत्ता का टकराहट बढ़ रहा है। दुनिया की मीडिया और सामरिक विशेषज्ञ यह मान चुके हैं कि आज न कल सेना अध्यक्ष परवेज कियानी सत्ता का ताख्ता पलट कर सकते हैं। परवेज कियानी अगर तख्तापलट करते हैं तो ऐसी स्थिति मे अमेरिका गिलानी-जरदारी का पक्ष ले नहीं सकता है। नवाज शरीफ अमेरिकी इसारों में नाचने से रहे। नवाज शरीफ का नजरिया भी संपूर्ण अमेरिकी पक्ष का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। ऐसे में मुशर्रफ ही बचते हैं जो अमेरिकी नीतियों को संतुष्ट कर सकते हैं। मुशर्रफ ने आतंकवादी तैयार करने और भारत को विध्वंस करने की नीति का खुलासा कर पाकिस्तान के कट्टरवादियों में जगह भी बना चुके हैं। यह स्वीकारोक्ति मुशर्रफ के नागरिक राजनीति की चुनौतियां कम करेंगी।
                       ऐसी नीति अमेरिकी हितों का रक्षा करेगी। यह सही हैं। पर अमेरिकी हितों के सवर्द्धन से हमें क्या लेना-देना। हमें अपने हित की चिंता होनी चाहिए। अपनी सीमा की चिंता होनी चाहिए। कैसे आतंकवादी संगठनो को नकेल पहुंचाया जाये और कैसे पाकिस्तान के हुकमरानों के भारत विरोधी कूटनीति कुंद किया जाये। हम मुगालते मे रहे हैं कि अमेरिका हमें आतंकवादियों से बचायेगा और पाकिस्तान की आतंकवादी नीति का दमन करेगा। अगर ऐसा होता तो पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी कारखाने कब के बंद हो चुके होते। पाकिस्तान में आतंकवादी कारखाने आज भी चल रहे हैं और भविष्य में भी चलते रहेंगे। पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवादियों की घुसपैठ तो रोकी नहीं है और अफगानिस्तान में भी हमारे हितों को नेस्तनाबुद करने की नीति बुन चुका है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान मे आईएसआई को खड़ा करने में सफलता प्राप्त की है। अफगानिस्तान के पूनर्निमाण में भारत की भूमिका अग्रणी है। भारत वहां पर करोड़ो डालर खर्च कर कई परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है और पुलिस-सैनिक व्यवस्था को प्रशिक्षित करने का काम भी कर रहा है। पाकिस्तान के दबाव में अमेरिका और अफगानिस्तान तालिबान से बातचीत करने की नीति पर चल रहे हैं। गुड तालिबानों की थ्यौरी पर अफगानिस्तान के शासक हामिद करजई भी चमत्कृत हैं। हामिद करजई और तालिबान के बीच वार्ताए भी शुरू हो चुकी हैं। तालिबान के लौटने से अफगानिस्तान में हमारे हितों का बलि चढ़ना निश्चित है।
                 भारत ने हमेशा मौका गंवाया है। पाकिस्तान को आतंकवाद की कारखाना चलाने की छूट दी है। मुशर्रफ की स्वीकारोक्ति हमारे लिए एक मौका है। इस मौके का फायदा उठाने के लिए हमारी कूटनीतिक संवर्ग को चाकचौबंद होना चाहिए थी। हमारी सत्ता की सक्रियता भी होनी चाहिए थी। हम पूरे विश्व को इस सच्चाई से अवगत करा सकते थे। संयुक्त राष्ट्रसंघ से पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने की मांग अभी भी हो सकती है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर के मुताबिक आतंकवाद का प्रश्रय देना अपराध माना गया है। ऐसी स्थिति मे प्रश्रय देने वाले देश को आतंकवादी देश घोषित किया जा सकता है। प्रमाण हमारे पास मौजूद है। फिर देर कैसी? लेकिन हमारी सरकार का रवैया पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित कराने जैसा है कहां। मुशर्रफ की स्वीकारोक्ति के बाद भी हमारी सरकार की प्रतिक्रिया बेहद निराशाजनक रही है। ऐसे में हम आतंकवाद से थोड़े लड़ पायेगे और न ही आतंकवादी सगठनों पर विजय प्राप्त कर पायेंगे। पाकिस्तान की यह दहशतगर्दी चलती रहेगी और हम पाकिस्तान प्रत्यारोपित आतंकवाद का खूनी शिकार होते ही रहेंगे।


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1 comment:

  1. आपको इन धर्मनिरपेक्षियों से क्या उम्मीद है...

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