Thursday, September 30, 2010

तिब्बत में चीनी हथियारों का भंडारण/ समर्पणकारी भारतीय सत्ता

राष्ट्र-चिंतन


तिब्बत में चीनी हथियारों का भंडारण/ समर्पणकारी भारतीय सत्ता

विष्णुगुप्त

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के तिब्बत मे बढ़ते खूंखार/जनसंहारक कदम से भारतीय सत्ता संस्थान मे कोई हलचल न होना राष्ट्र की सुरक्षा और सम्मान के प्रति उदासीनता ही नहीं बल्कि शत्रु देश के सामने सीधेतौर पर समर्पण माना जाना चाहिए। चीन द्वारा बड़े पैमाने पर खतरनाक/नरसंहारक/भीषण हथियारों की तिब्बत क्षेत्र में तैनाती हुई है। तैनात हथियारों में परमाणु सामग्री ले जाने वाले वाले सशस्त्र उपकरण हैं और गैर परमाणु हथियार भी हैं। चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा तिब्बत क्षेत्र में तैनात हथियारों के विश्लेषण के बाद यह साफ हो जाता है कि देश का एक भी ऐसा प्रमुख शहर नहीं है जो उन हथियारों के निशाने से बाहर हैं। हिन्द महासागर/प्रशांत महासागर में चीन की सर्वश्रेष्ठ लड़ाकू /परमाणु पनडुबियां पहले से ही तैयार खड़ी हैं। इतना ही नहीं बल्कि चीन ने पाकिस्तान और श्रीलका में नौसैनिक अड्डे भी बना रहा है। दुनिया भर के रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन एशिया को सशस़्त्र चुनौती की आग में ढकेल रहा है और चीनी आक्रमकता और अराजकता के सामने गैर चीनी राष्ट्रीयता खतरे में है। जाहिरतौर पर एशिया में भारत और जापान चीन के निशाने पर है। भारत को चीन सामंगी दृष्टिकोण से देखता है और आक्रोशित इस बात से होता है कि जिसे वह जिस देश 1962 में अपने पैरों तले कुचला था वह देश कैसे उसके सामने दुनिया की एक मजबूत नियामक बन रहा है जबकि जापान के साथ चीन के झगड़े द्वितीय विश्वयुद्ध कार्यकाल का है जब जापान ने चीन पर कब्जा कर अत्याचार किये थे। तिब्बत की मूल आबादी संतुलन को छिन्न-भिन्न करने के लिए चीनी आबादी की तिब्बत में आउटसोर्सिंग हुई है। लगभग एक करोड़े चीनी आबादी तिब्बत में बौद्धों का दमन के साथ ही साथ चीनी शासकों के सामंती और अराजक नीतियों को समर्थन कर रही है, हौसले दे रही है। चीन को कहीं से भी चुनौती न मिलना वैश्विक कूटनीति/शांति के लिए एक बड़ी चुनौती/विकराल समस्या है।
                           नेहरू जिस तरह खुशफहमी थे उसी तरह वर्तमान भारतीय सत्ता खुशफहमी पाल रखी है। नेहरू ने चीन के साथ दोस्ती की चाह मे देश के अस्तिव और अस्मिता को ही भूल गये थे। इतना ही नहीं बल्कि उन्होने देश के अस्तित्व और अस्मिता पर छूरी तक चलायी थी। हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नेहरू मंत्र ने किस तरह 1962 में शिला दिया? सभी खबरें और चीनी हरकतें साफ करती थी कि वह भारत पर हमला करने की तैयार कर रहा है। माओत्से तुंग के खूनी पंजे भारत को लहूलुहान करने के लिए तैयार हो रहे हैं। पर नेहरू तमाम वैसी खबरों और हरकतों को नजरअंदाज करते रहे थे और सैनिक अंगों को खुशफहमी बांटते रहे थे कि चीन उनका दोस्त है और कभी भी भारत पर हमला नहीं करेगा। नेहरू की खुशफहमी टूटी थी और हमारे हजारों सैनिक चीनी हमले में शहीद हुए थे। दो लाख एकड़ मील भूमि आज भी चीन कब्जे में कर रखा है। इतना ही नहीं बल्कि कश्मीर के एक बड़े भाग पर भी चीन कब्जा कर रखा है। गुलाम कश्मीर के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्र को पाकिस्तान ने चीन के हवाले कर दिया है। जबकि कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है।
                     नेहरू की चीनी चादर की खुशफहमी से वर्ममान भारतीय सत्ता भी कम चमत्कृत नहीं है। चीन की हिमालय क्षेत्र में पारिस्थितिकी को छिन्न-भिन्न करने या फिर तिब्बत में खतरनाक/गंभीर/भीषण/ जनसंहारक परमाणु और गैर परमाणु हथियारों के जमावड़े का प्रसंग, हमेशा से भारतीय सत्ता उदासीन रवैया अपनाती रही है। कभी यह गंभीरता के साथ विश्लेषण करने या फिर किसी कठोर कदम उठाने की कोशिश ही नहीं होती है कि आखिर तिब्बत भूभाग में चीनी हरकतों से भारतीय हित और सुरक्षा पर ही चुनौती खड़ी होती है। चीन से डरने की नीति घातक है। ऐसे भी तिब्बत में जनसंहारक हथियारों का जमावड़ा अवैध है। इसलिए कि तिब्बत पर चीन का अवैध कब्जा है और तिब्बत में चीन मानवाधिकार हनन की कब खोद कर रख दी है। तिब्बतियों पर चीनी अत्याचार एक वैश्विक प्रसंग है जिसमें चीन की धेराबंदी हो सकती थी। चीन की नापाक इरादों का दुनिया के सामने पर्दाफाश हो सकता था। चीन ने इधर तिब्बत की आबादी संतुलन को अपने पक्ष में करने के लिए कई सफलतम उपाये किये है। इन उपायों में तिब्बत में चीनी आबादी का आउटसोर्सिंग शामिल है। चीनी आबादी के लगातार हो रहे आउट सोर्सिग बौद्ध आबादी का अनुपात दिनोदिन घट रहा है। चीनी आबादी को तिब्बत में कई रियायतें मिल रही हैं जो उन्हे तिब्बत में रहने और बौद्ध राष्ट्रीयता को जमींदोज करने में खाद-पानी का काम कर रही हैं। बौद्ध आबादी के मानवाधिकार और मूल आबादी के अधिकार के खिलाफ दुनिया के नियामकों में चुप्पी बहुत कुछ कहती है। आखिर चीन के खिलाफ दुनिया के नियामकों में आवाज कौन उठायेगा ?
                        चीन सिर्फ तिब्बत या फिर हिमालय क्षेत्र में ही हथियारों का जमावड़ा नहीं कर रहा है बल्कि हमारी राष्ट्रीयता/एकता और अखंडता पर सवाल उठाता रहा है और घेराबंदी भी करते रहा है। अभी तक वह कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग नहीं मानता है। कश्मीर वासियों को भारत की नागरिक के तौर पर बीजा नहीं देता है बल्कि कश्मीर की आबादी के लिए उसकी अलब बीजा प्रणाली है जो हमारी अस्मिता और एकता-अखंडता को तार-तार करने वाली है। कुछ दिन पूर्व ही चीन ने कश्मीर में पदास्थापित एक भारतीय सैन्य अधिकारी को चीन जाने का बीजा देने से इनकार कर दिया था। चीनी हरकत यहीं तक नहीं है। चीन ने भारत की घेराबंदी के लिए दीर्घकालीक नीतियां बुनी हैं। उसने हमारे अराजक/अविश्वसीन/अलोकतांत्रिक/ खूनी मानसिकता वाले पड़ोसियों को साधा है। पाकिस्तान/ नेपाल/ श्रीलंका आज पूरी तरह से चीनी आवाज से चमत्कृत है। पाकिस्तान के कबायली इलाकों में चीन ने नौसैनिक अड्डे बना रखे हैं। श्रीलंका में भी चीन दो नौ सैनिक अड्डे बना रहा है। लिट्टे के सफाये में चीनी सैनिकों ने अपनी भूमिका दी थी। इस कारण श्रीलंका के राजपक्षे सरकार पूरी तरह से चीनी आगोश में जा बैठी है। गुलाम कश्मीर के भूभागों को चीन को न तो लेने का अधिकार है और न ही पाकिस्तान को देने का। फिर भी चीन ने गिलगिल भूभाग में पाकिस्तान के आमंत्रण पर अपने सैनिक अड्डे स्थापित कर लिये हैं।
                              राष्ट्र की अस्मिता/सुरक्षा महत्वपूर्ण है। चीनी हमलों में राष्ट्र की अस्मिता छलनी हुई है, हजारों सैनिक शहीद हुए हैं। पर राष्ट्र की सत्ता और राजनीतिक संवर्ग को चीनी साजिशों और धेराबंदी के खतरनाक/जनसंहारक यथार्थ पर चिंता ही नहीं है। भारतीय सत्ता समर्पण का भाव रखे चीन के सामने खड़ा रहती है। चीन को यह मालूम है कि भारत की समर्पणकारी सत्ता बहादुरी दिखाने से रही, कूटनीति ताकत दिखाने से रही, इसलिए उसकी साजिशों और अराजक सैनिक हरकतों-जमावड़ों को चुनौती मिलने वाली नहीं है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में इतनी राजनीतिक/कूटनीतिक शक्ति है नहीं की वे चीन के हरकतों का मुंहतोड़ जवाब दे। सोनिया गांधी/राहुल गाध्ंाी अब तक चीनी साजिशों के प्रति चुप्प रहने की नसीहत स्वयं पर डाल रखी है। जबकि कम्युनिस्ट राजनीतिक संवर्ग अब भी चीनी पक्षधर है और उनकी अरूणाचल प्रदेश’-सिक्किम पर चीनी पक्ष की मानसिकता गयी नहीं है। तिब्बत का प्रश्न हमारे लिये एक अचुक हथियार था जिसके सहारे हम चीन के खतरनाक मंसुबो का तोड़ खोज लेते थे। पर तिब्बत के प्रश्न से हमनें मुंह मोड़ लिया। एक तरह से तिब्बत पर चीन के अवैध कब्जे को वैध मान लिया है। तिब्बत के प्रश्न को फिर से जिंदा करने और इसे कूटनीति का एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में स्थापित करने की जरूरत होनी चाहिए। इसके साथ ही साथ हमें तिब्बत और हिमालय सीमा पर अपनी सुरक्षा तैयारियां भी चाकचौबंद करनी चाहिए। हमें यह ख्याल रखना होगा कि देश को असली खतरा पाकिस्तान से नहीं बल्कि चीन से है।



मोबाइल- 09968997060

1 comment:

  1. आंखें खोलने वाला, लेकिन उनकी आंखों से पट्टी हटेगी कब..

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