राष्ट्र-चिंतन
मोदी विरोध की दुकानदारी
विष्णुगुप्त
दोहरे चरित्र रखने वाले व अति हिन्दू विरोध से लथपथ देश के बुद्धीजीवियों व गैर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक संवर्ग निश्चित तौर पर मुस्लिम आबादी के शुभचिंतक नहीं, उनके वोट बैंक पर कुदृष्टि डाले गिद्ध है औरगुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की असली शक्ति हैं। नरेन्द्र मोदी का जितना अधिक विरोध और उनके खिलाफ राजनीतिक/न्यायिक प्रक्रियाएं चलती हैं उतना ही गुजरात का जनमानस नरेन्द्र मोदी के साथ निकट चला आता है। गुजरात की जनता की अस्मिता के साथ गोधरा कांड से ही खिलवाड़ करने की राजनीतिक-सामाजिक प्रक्रिया चलती रही है। गुजरात दंगा निश्चित तौर पर एक गैरजरूरी प्रक्रिया थी। लेकिन यह क्यों भूला दिया जाता है कि गोधरा कांड के बाद तथाकथित दोहरे चरित्र रखने वाले और अति हिन्दू विरोध से लथपथ बुद्धीजीवियों-राजनीतिक पार्टियों ने सांप्रदायिक मानसिकता की आग लगायी थी। गोधरा कंाड के दोषियों को कानून का पाठ पढाने की जगह विवेचना-आलोचना का मकड़जाल हिन्दू विरोध पर आधारित थी। गुजराती अस्मिता गोधरा कांड के पूर्व से आहत थी और कई ऐसी प्रक्रियाएं थी जो सीधेतौर बहुसंख्यक गुजराती अस्मिता को कूचल रहीं थी। गुजरात दंगे के बाद नरेन्द्र मोदी ने विकास-उन्नति के रास्ते चुनने की काबलियत दिखायी। राजनीतिक/एनजीओ गठजोड़ से उपजी चुनौतियों से दूसरा कोई भी राजनीतिज्ञ विचलित होता और उसकी सत्ता विध्वंस को भी प्राप्त होती पर नरेन्द्र मोदी ने उन चुनौतियों का न केवल दृढ़ता के साथ सामना किया बल्कि भेदभाव रहित शासन व्यवस्था कायम की है। मोदी के विकास को विरोधी शक्तियां ही नहीं बल्कि मुस्लिम आबादी भी स्वीकार करती है और तारीफ करती है। विकास की जो श्रृंखलाएं बनती है उन श्रृंखलाओं का लाभ सभी संवर्ग को मिलता है। राजनीतिक तकरार तो चलती रहेगी पर इस राजनीतिक तकरार का मोहरा सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम आबादी ही बनती हैं। गुजरात में ऐसी राजनीतिक-सामाजिक वातावरण की जरूरत है जिसमें सभी आबादी की श्रृंखलाओं में परस्पर सहयोग व सदभावना की उम्मीद बनती है।
मोदी का अतिविरोध करने वालों का दोहरा चरित्र कितना घिनौना है? कितना राष्ट की अस्मिता को धूल धूसरित करती है? इसका भी एक उदाहरण देख लीजिये। इस उदाहरण को देखने के लिए गुजरात दंगे से बाहर निकल कर देखना होगा। कश्मीरी पंडितों के अनुपात में गुजरात में कितने मुस्लिम समुदाय की आबादी आहत व प्रताड़ित हुई है? दस लाख कश्मीरी पंडितों को अपनी जन्मभूमि को छोड़कर भागने के लिए विवश किया गया। हजारों लोगों को आतंकवादियों ने मौत की नींद सुला दी। तर्क यही था कि कश्मीरी पंडित हिन्दू हैं, इसलिए इन्हें या तो इस्लाम स्वीकार करना होगा या फिर गोली-बम का शिकार होना होगा। आज कश्मीरी पंडित अपनी मातृभूमि से बेदखल होकर ठोकरे खा रहे हैं पर इनकी चिंता बुद्धीजीवियों को है? हुर्रियत के सभी नेता किसी न किसी काल खंड में आतंकवादी रहे है और वे कश्मीरी पंडितों के लहू पीने वाले पिशाच है। इन कश्मीरी पंडितो के रक्तपिशाचुओं के सम्मान में यही बुद्धीजीवी खड़ा रहते हैं। हुर्रियत के नेताओं को दिल्ली बुलाकार सेमिनारों में सम्मानित किया जाता है व राष्ट की संप्रभुता के साथ खिलवाड करने की अनवतरत प्रक्रिया चलती है। क्या हुर्रियत के नेता मोदी से कम विषैला हैं? क्या हुर्रियत के नेता कश्मीरी पंडितांे के रक्तपिशाचु नहीं हैं। हिन्दू और राष्ट के हितो के साथ खिलवाड़ करने पर बुद्धीजीवियों को आर्थिक व वैश्विक लाभ-सम्मान मिलता है। आईएसआई ने देश के अंदर राष्टविरोधी बुद्धीजीवियों की लम्बी कतार खड़ी है। ये बुद्धीजीवी आईएसआई के इसारों पर नाचते हैं। अमेरिका में आईएसआई एजेंट फई से पैसा लेने वाले और उसके निमंत्रण पर अमेरिका जाकर भारत विरोध की कूटनीति चलाने वाले बुद्धीजीवियों की पोल खुल गयी है।
तथाकथित बुद्धीजीवी संवर्ग और मोदी विरोधी राजनीतिक शक्तियां क्या मुस्लिम आबादी की हितैषी है? विश्लेषण का एक आधार भी यह होना चाहिए? तथाकथित बुद्धीजीवियो को अपनी दुकान चलानी है जबकि मोदी विरोधी राजनीतिक धारा को मुस्लिम वोट बैंक की चिंता है। इन दोनों धाराओं को यह मालूम है कि उनकी लाभार्थी होने की एकमात्र शर्त अति हिन्दू विरोध और मोदी के डर को कायम रखना है। इन बुद्धीजीवियों और राजनीतिक संवर्ग उस समय मुंह पर पट्टी लगाये क्यों बैठे थे जब गुजरात धधक रहा था। पूर्व सांसद जाफरी ने अपनी जान बचाने के लिए सोनिया गांधी से लेकर कांग्रेस के कई नेताओं को टेलीफोन किये थे। लेकिन जाफरी की किसी ने भी मदद नहीं की। जाफरी की जान बचाने के लिए आगे नहीं आने वाली कांग्रेस आज मुस्लिम आबादी का हमदर्द होने का नाटक रच रही है। यह भी बात होती है कि मुस्लिम आबादी आज पिछड़ी हुई है और उसके साथ राजनीतिक बेईमानी हुई है। यह बात तो सच्ची है पर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या मोदी जिम्मेदार है? कांग्रेस ने सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम आबादी को एक वोट बैंक के तौर पर देखा। वोट लेकर मुस्लिम आबादी को हाशिये पर ढकलने जैसी राजनीतिक प्रक्रिया चलायी गयी। हिन्दूवाद का विरोध-मोदी का विरोध ही वह शक्ति है जिससे कांग्रेस को सत्ता संग्रहित करने का अवसर मिलता है। कांग्रेस की इस राह पर वामपंथी सहित पिछड़ी व दलित राजनीतिक पार्टियां भी चलती हैं।
गुजरात की बहुसंख्यक अस्मिता हमेशा से तथाकथित बुद्धजीवियों और धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टियों की तुष्टीकरण से कुचली गयी हैं। गुजरात ही नहीं बल्कि देश की बहुसंख्यक अस्मिता इस बात को लेकर व्यथित रहती है कि उन्हे तुष्टीकरण के परिणामों का शिकार तो बनाया ही जाता है इसके अलावा उन पर लांक्षणा की प्रक्रिया भी चलती रहती है। बहुसंख्यक अस्मिता शांति और सदभाव का समर्थक हैं। इसलिए बहुसंख्यक मान्यताओं पर खिल्ली उड़ाने वाली प्रक्रिया बेधड़क चलती रहती है। कभी राम की तो कभी कृष्ण पर कीचड़ उछाली जाती है। पर कभी गैर हिन्दू मान्यताओं पर तथाकथित बुद्धीजीवी और राजनीतिक श्रृंखलाएं खिल्ली उड़ा सकती है। कभी नहीं। आनन-फानन में इनकी हेकड़ी ग्राह हो जायेगी? गोधरा-गुजरात के पहले एक खास संवर्ग की गुंडागर्दी चरम पर थी। इस गुंुडागर्दी की मानसिकताएं वैसी ही थी जैसी कि इस्लामिक आतंकवादी श्रृंखलाओं की रही है।
उपवास और सदभावना की नीति का अतिविरोध भी एक तरह से नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक शक्ति का ही परिचायक है। नरेन्द्र मोदी लगातार तीन बार से निर्वाचित हो रहे हैं। कांग्रेस और सभी विरोधी संवर्गों की पूरी की पूरी नीति धरी की धरी रह जाती हैं। नरेन्द्र मोदी की लगातार जीत ने साबित कर दिया है कि वे गुजरात की बहुसंख्यक अस्मिता के प्रतीक हैं। प्रशासनिक क्षमता का उन्होंने बेमिसाल उदाहरण दिया है। वीजा देने से इनकार करने वाला अमेरिका भी अब नरेन्द्र मोदी का प्रशंसक है। इसलिए कि नरेन्द्र मोदी ने विकास की प्रक्रिया चलायी। लगातार विरोधों के बाद भी विकास की सर्वश्रेष्ठ लौ जलाने की उपलब्धि ऐसी है जो मोदी को विकास मसीहा की पदवि देती है। विकास कार्यो में उन्होंने कहीं से भी न तो अन्याय किया और न ही उन्होंने पक्षपात किया। मुस्लिम आबादी आज खुद मोदी के विकास का गुणगान करती है। गुजरात के मुस्लिम सवर्ग के चिंतन में गुणात्मक बदलाव आया है। अब वे यह समझ गये हैं कि राजनीतिक तकरार या हिंसा की बात करने से लाभ नही होने वाला है। शांति-सदभाव से ही उन्नति की राह आसान हो सकती है। अलगाव और वैमनस्यता को हवा देने वाले राजनीतिक दल और बुद्धीजीवी मुस्लिम आबादी की भलाई नहीं चाहते हैं। नरेन्द्र मोदी न केवल गुजरात की बहुंसख्यक अस्मिता का प्रतीक है बल्कि देश की बहुसंख्यक आबादी के बीच भी उनकी साख और विश्वसनीयता सर्वश्रेष्ठता की श्रेणी में खड़ी है। भाजपा में उन्हें प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप देखा जाने लगा है। क्या नरेन्द्र मोदी भाजपा का नेतृत्व करने की शक्ति हासिल कर सकते हैं और भाजपा को फिर से केन्द्र की सत्ता पर बैठा सकते हैं। भविष्य की राजनीति में नरेन्द्र मोदी की संभावनाएं सर्वश्रेष्ठ है।
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