Wednesday, June 4, 2025

गोली और भूख के बीच फंसंे फिलिस्तीन

 



  

       गोली और भूख के बीच फंसंे फिलिस्तीन


                           आचार्य श्रीहरि


अभी-अभी एक वीडीओ ने दुनिया की मानवता को झकझौर कर रख दिया, हिंसा और प्रतिहिंसा विरोधियों को इतना भयभीत कर दिया कि वे सोचने के लिए मजबूर हो गये कि अब दुनिया में शांति की बात बैमानी हो गयी है, हिंसकों और प्रतिहिंसकों का राज कायम हो गया है, जिसकी लाठी उसकी भैंस का शासन हो गया है। अब प्रश्न यह उठता है कि वह वीडीओ क्या था और वह कितना विभत्स था, कितना डरावना था, कितना अमानवीय था, उस वीडीओ के लिए दोषी किसको मानें, क्या हिंसकों का समर्थन करने वालों और हिंसकों को संरक्षण देने वालों को जिंदा रहने का अधिकार भी है या नहीं? हम बात कर रहे है हमास और इस्राइल के बीच युद्ध और हिंसा आधारित वीडीओ का। गाजा पट्टी में खाना बांटने के आयोजन पर इस्राइली मिसाइलों ने हमला कर दिया और 36 लोगों को मौत का घाट उतार दिया, दो सौ से अधिक फिलिस्तीनियों को गंभीर रूप से लहूलुहान कर घायल कर दिया। गाजा पट्टी फिलिस्तीन का वह स्थान है जहां पर हमास का कब्जा है, हमास के समर्थकों की जगह है, हमास के लिए लडने वालों की जगह है, हमास ने यही पर इस्राइली बंधकोेें को बंधक बना कर रखे हुए हैं। फिर एक प्रश्न मानवता की कसौटी पर यह उठता है कि भूख से तडपते हुए लाखो लोगों की भूख कौन मिटायेगा, भूख से होने वाली मौतों को कौन रोकेगा, मुस्लिम यूनियनबाजी चलाने वाले मुस्लिम देश फिलिस्तीनियों के पुर्ननिर्माण मंें पैसे खर्च करने के लिए तैयार क्यों नहीं है? संयुक्त राष्ट्रसंघ का कहना है कि फिलिस्तीन को आर्थिक मदद नहीं मिली, इस्राइल के प्रहार और प्रतिहिंसा नहीं रोकी गयी तो फिर भूख से लाखों लोगों की मौत हो सकती है। लाखों लोग युद्ध के कारण बूरी स्थिति में फंसे हुए हैं, उनका जीवन संकट में हैं, वे इस्राइल की गोली से बच भी जायेंगे तो भी भूख से तड़प-तडप कर मरेंगे। उनके सामने भूख मिटाने के लिए न तो खाद्य सामग्री है और न ही दवाइयां। अंतर्राष्ट्रीय मदद के रास्ते बहुत ही सीमित हैं।

                  गाजा पट्टी लगभग कब्र बन चुकी है। गाजा पट्टी के 75 प्रतिशत भूभागो पर इस्राइल ने कब्जा कर रखा है। यहां पर इस्राइल की पूरी मनमर्जी चल रही है। उसकी मिसाइलें जब चाहती हैं तब हमला कर देती हैं, मिसाइल हमले आबादी वाले क्षेत्रों में ही क्यो होते हैं, सार्वजनिक जगहों पर क्यों होते हैं, स्कूलों-कालेजों पर क्यों होते हैं, अस्पतालों में क्यों होते हैं, सार्वजनिक वाहनों पर क्यों होते हैं? ऐसी जगहों पर मिसाइलें जब अराजक होंगी और मार करेंगी तो फिर नुकसान तो निर्दोष लोगों को ही होगा। निर्दोष लोगों ने ही अब तक अपनी जिंदगियां स्वाहा की है। आंकडे बताते हैं कि अब गाजा पट्टी में एक लाख लोगों की हत्याएं हुई हैं। इन एक लाख लोगों में मुश्किल से गिनती के कुछ लोग होंगे जिनका संबंध हमास और हिज्जबुल्लाह जैसे विभत्स आतंकी संगठनों से होंगे? फिर भी प्रतिहिंसा में निर्दोष जिंदगियां स्वाहा हो रही हैं। निदोष लोगों को मारे जाने की चिंता किसी को नहीं है। इस्राइल की इस कसौटी पर चिंता हो ही नही सकती है क्योंकि वह तो प्रतिहिंसा को ही अपना विजय मानता है और अपने अस्तित्व के लिए जरूरी मानता है, अचूक हथियार मानता है। हमास को भी चिंता नहीं है क्योंकि वह तो यही चाहता है, उसकी मंशा तो यही होती है कि इस्राइल जितना मुसलमानों का संहार करेगा, मुसलमानों को जितना प्रताडित करेगा उसका उतना ही समर्थन मुस्लिम वर्ग से आयेगा, हमास का हिंसक तत्व उतना ही मजबूत होगा।

                 सभी अमेरिका और यूरोप की ओर देख रहे हैं। अमेरिका और यूरोप से इस्राइल के प्रहार बचाने की उम्मीद कर रहे हैं। फिलिस्तीन में इस्राइल के खिलाफ अमेरिका और यूरोप से ही उम्मीद होती है। अमरिका और यूरोप के पैसे से फिलिस्तीन आबादी की रोजी रोटी चलती है और उनकी जिंदगियां गुलजार होती हैं। क्योंकि फिलिस्तीन वर्षो-वर्षो से हिंसा और प्रतिहिंसा की आग में धधक रही है। इस्लाम के स्थापना काल से ही वहां पर हिंसा और प्रतिहिंसा चल रही है। इस्लाम के आगमन के पहले वहां पर यहूदियों का राज था, यहूदियों का पूर्ण वर्चस्व था, थोडी बहुत आबादी ईसाइयों को थी। लेकिन मुस्लिम आबादी तो थी ही नहीं। फिर इस्लाम और यहूदियों के बीच कई लडाइयां हुई और यहूदियों का दमन हुआ, यहूदियों को हिंसा के बल पर दोयम नागरिक बनाया गया, फिलिस्तीन से पलायन करने के लिए विवश किया गया। जिस प्रकार से कश्मीर में हिन्दुओं को खदेडा गया, जिस प्रकार से कश्मीर को आतंकवाद और हिंसा के बल पर कब्जा कर इस्लाम की शक्ति बढायी गयी उसी प्रकार का खेल इस्लाम ने फिलिस्तीन में खेला था। दूसरे विश्व युद्ध के संकट के बाद यहूदियों ने अपनी माटी और अपना देश इस्राइल बनाया और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए प्रतिहिंसा अपनायी।

                        फिलिस्तिनयों की जिंदगी की रक्षा करना, उनके लिए बाजार की व्यवस्था करना, उनके लिए रोजगार का सजृन करना, उनकी भूख को मिटाना आदि की जिम्मेदारी किसकी है? क्या यह सिर्फ अमेरिका और यूरोप की ही जिम्मेदारी है? क्या शेष दुनिया की कोई जिम्ेदारी नहीं है? खासकर मुस्लिम देशों की कोई जिम्मेंदारी नहीं है? दुनिया में 60 से अधिक मुस्लिम देश हैं। सउदी अरब, ईरान, मिश्र, कतर, तुर्की, अजरबैजान आदि दर्जनों मुस्लिम देश अमीर है और उनके पास पैसे भी बहुत ज्यादा है, ये अरबों-खरब डाॅलरों का निवेश यूरोप और अमेरिका में करते हैं? फिर ये फिलिस्तीन की मुस्लिम आबादी की भूख मिटाने के लिए सहायताएं देने में पीछे क्यों रहते हैं? फिलिस्तीन के पुर्नर्निमाण की बात आती है तो फिर ये मुस्लिम देश कभी भी आगे नहीं आते हैं, इनकी तिजारी खुलती नहीं है। ये सिर्फ अमेरिका और यूरोप को दोषी ठहराते हैं और अमेरिका व यूरोप से उम्मीद करते हैं कि ये फिलिस्तिनियों की भूख मिटायें और अपनी तिजोरी खोल कर रखें। दुनिया की कूटनीति में यह बात भी सामने आती है कि मुस्लिम देश ही हमास और हिज्जबुल्लाह को मदद देकर फिलिस्तीन समस्या को बकरार रखे हैं और हिंसक बना कर रखें हुए हैं। हमास का अपना कोई रोजगार नहीं है, अपना उसका कोई उद्योग धंधा नहीं है, उसकी अपनी कोई फैक्टरी नहीं है फिर उसके पास हथियार खरीदने के पैेसे कहा से आते हैं, आतंकी गतिविधियों को संचालित करने के लिए, हिंसक रखने के लिए पैसे कहां से आते हैं? ईरान तो हमास को हथियार देता है और इस्राइल के खिलाफ भडकाता भी है पर फिलिस्तीन की आबादी की भूख और विकास के लिए पैसे देने के लिए आगे भी नहीं आता है। 

                फिलिस्तीन आबादी की भलाई अब इसी में है कि हमास को रास्ते पर लाया जाना चाहिए और उसे युद्ध के भरोसे यहूदियों का सफाया करने के सपने देखने से रोका जाना चाहिए। अगर हमास के विभत्स हमले के समय मुस्लिम देशों ने हमास की आलोचना की होती तो फिर इस्राइल के आक्रोश और बदले की भावना की आंच कम की जा सकती थी, रोकी जा सकती थी। मुस्लिम देशों की बात छोड दीजिये पर इस्लाम के बुद्धिजीवियों ने भी हमास की आलोचना करने के लिए आगे नहीं आये थे। जबकि हमास का आतंकी हमला कितना विभत्स था, कितना रौंगटे खडा करने वाला था, कितना जहरीला था, यह सब कौन नहीं जानता है? अभी भी सैकडों बंधको को हमास अपने कब्जें में रखा है जिसे वह छोडने के लिए तैयार नहीं है। हमास बंधक छोडने के लिए तैयार होगा तभी दुनिया का जनमत इस्राइल की प्रतिहिंसा और प्रहार को रोकने के लिए दबाव बना सकता है। मुस्लिम देश और मुस्लिम बुद्धिजीवी बंधकों की रिहाई के लिए हमास तैयार नहीं कर सकेंगे तो फिर फिलिस्तीन की लाखों मुस्लिम आबादी भूख से मरने के लिए विवश होगी।


संपर्क:

आचार्य श्रीहरि

नई दिल्ली

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